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मंगलवार, 5 अगस्त 2014

कैमिस्ट की दुकानों पर होने वाली २० रूपये की ब्लड-शूगर जांच

अकसर अब हम लगभग सभी शहरों में कैमिस्टों की दुकानों पर इस तरह की जांच होने के बोर्ड देखने लगे हैं कि रक्त में शूगर की जांच २० रूपये में और ब्लड-प्रैशर की जांच १० रूपये में। यह जो १०-२० रूपये में जांचें वांचें होने लगी हैं, ठीक है, एक-दो रूपये में सड़क पर चलते हुए अपना वज़न देख लिया, और ज़रूरत पड़ने पर अपनी ब्लड-प्रेशर भी मपवा लिया.....कोई विशेष बात नहीं लगती, लेकिन है। और जहां तक यह २० रूपये में कैमिस्ट की दुकान से अपना ब्लड-प्रैशर मपवाने की बात है, यह मुझे ठीक नहीं लगती, क्योंकि इस के लिए मुझे नहीं पता कि ये लोग ज़रूरी सावधानियां बरतते भी होंगे कि नहीं!

 मैंने यह भी देखा है कि जिन घरों में भी यह घर में ही ब्लड-शूगर की जांच करने वाली मशीनें होती हैं, उस घर में दूसरे सदस्यों, रिश्तेदारों, मेहमानों और पड़ोसियों को भी अपनी शूगर की जांच के लिए एक उत्सुकता सी बनी रहती है। लेकिन मेरे विचार में यह सब करना बीमारी को बुलावा देने जैसा है।

मैं कईं बार लोगों से पूछा है कि आप जिस मशीन से इतने सारे लोग यह जांच करते हो, क्या उस लेंसेट (जिस से अंगुली से ब्लड निकाला जाता है) को बदलते हो, तो मुझे कभी संतोषजनक जवाब मिला नहीं। हर बार यही बात सुनने को मिलता है कि स्पिरिट से पोंछ लेते हैं। नहीं, ऐसा करना बिल्कुल गलत है।

इस तरह की मशीनों के पेम्फलेट पर भी लिखा रहता है कि यह जो इस में लेंसेट है, यह केवल एक ही व्यक्ति के ऊपर इस्तेमाल करने के लिए है।

जो बात मैं कहना चाहता हूं वह केवल इतनी सी है कि जिस भी चीज़ से --लेंसेट आदि से-- अंगुली से रक्त निकाला जाता है, उसे आज के दौर में एक दूसरे के ऊपर ऐसे ही स्पिरिट से पोंछ कर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। किया पहले भी नहीं जाना चाहिए था, आज से ३०-४० वर्ष पहले भी ..लेकिन तब कुछ बीमारियों के बारे में हैपेटाइटिस बी, सी और एचआईव्ही संक्रमण जैसे रोग के बारे में जागरूकता ही कहां थी, इसलिए सब कुछ भगवान भरोसे ही चलता रहा।

मुझे याद है बचपन में एक टैस्ट तो हम लोगों को बार बार लगभग हर साल करवाना ही पड़ता था , मलेरिया की जांच के लिए पैरीफ्रल ब्लड फिल्म...इस के लिए लैब वाला अंकल हमारी अंगुली से रक्त निकालने के लिए कुछ चुभो देता और सभी मरीज़ों पर उसी को स्पिरिट से पोंछ पोंछ कर इस्तेमाल किया करता। निःसंदेह एक खतरनाक प्रैक्टिस।

हां तो मैं बाज़ार में होने वाली कैमिस्ट की दुकान पर ब्लड-शूगर की जांच की बात कर रहा था, मुझे नहीं पता कि ये लोग हर केस में नईं लेंसेट इस्तेमाल करते होंगे या नहीं।

आज मुझे पता चला कि ये जो कंपनियां इस तरह की मशीनें बना रही हैं वे अलग से इस तरह के लेंसेट भी बेचती हैं लेकिन ये थोड़े महंगे ही दिख रहे थे जब मैंने नेट पर चैक किया। ऐसे में क्या आप को लगता है कि बाज़ार में २० रूपये में होने वाली जांच के लिे हर मरीज़ के लिए नया डिस्पोज़ेबल लेसेंट इस्तेमाल किया जाता होगा। आप इस के बारे में अवश्य सोचिए और उसी के आधार प ही इस तरह की जांच के लिए निर्णय लें और अपने से कम पढ़े-लिखों तक भी यह बात पहुंचाएं।

बात जितनी छोटी दिखती है उतनी है नहीं .. इस तरह का सस्ता टैस्ट बाज़ार में करवाना और जिस के लिए लेंसेट नया नहीं है, बिल्कुल वैसा ही हो गया जैसे कि कोई किसी दूषित या किसी दूसरे पर इस्तेमाल की गई सिरिंज से टीका लगवा ले। जहां पर एक दूसरे पर इस्तेमाल किए जाने वाले लेंसेंट या सिरिंज से बीमारी फैलने की बात है, इस में ज्यादा अंतर नहीं है, यह जानना बहुत ज़रूरी है।

वो फिल्मों की बात अलग है कि अमर अकबर एंथोनी में अकबर का खून निकल रहा है और सामने ही दूसरे किरदार को चढ़ाया जा रहा है, कोई बीमारी फैलने के लिए बिना टैस्ट किये हुए रक्त की जांच ही नहीं, रक्त की एक बूंद का उतना छोटे से छोटा अंश (देखना तो दूर, जिस की आप कल्पना भी नहीं कर सकते ) भी भयानक संक्रमण फैला सकता है।

ऐसा नहीं है कि लेंसेट बाज़ार में सस्ते नहीं मिलते ... मिलते हैं, मैंने कईं अस्पतालों मेंंदेखा है कि जिन रक्त की जांच के लिए उन्हें अंगुली को थोड़ी सूईं चुभो कर रक्त निकालना होता है, वे लोग यह काम एक कागज़ में मिलने वाली डिस्पोज़ेबल लेंसेट से करते हैं और फिर उस को नष्ट कर देते हैं। होना भी यही चाहिए, वरना तो खतरा बना ही रहता है।

मैं सोच रहा था कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जिन लोगों को बाज़ार से बार बार रक्त की इस तरह की जांच करवानी पड़ती है, वे लोग कुछ डिस्पोज़ेबल लेंसेट खरीद लें ...और अगर टैस्ट के समय देखें कि वहां पर इस तरह के उपलब्ध नहीं हैं तो अपना लेंसेट ही इस्तेमाल किए जाने का अनुरोध करें।

मामला इतना आसान है नहीं , यह काम हम डाक्टर लोग किसी लैब में जाकर नहीं कर पाते, ऐसे में आप कैसे कर पाएंगे यह आपने देखना है, क्योंकि यह आप की सेहत का मुद्दा है, किसी भी दूषित उपकरण के चुभने से आप की सेहत खतरे में पड़ सकती है।

इतना पैनिकि होने की बात भी नहीं है, बस बात तो है केवल सचेत करने के लिए।

ध्यान आ रहा है कि पिछले सरकार के कुछ दावे अखबारों में खूब छपा करते थे ..कि अब शूगर की जांच के लिए स्ट्रिप्ज़ २-२ रूपये में बिकने लगेंगी.......कहां गई ऐसी स्ट्रिप्ज़ जो आने वाली थीं।

अपनी सेहत के बारे में स्वयं भी सगज रहिए. और औरों को भी करते रहिए।

जाते जाते ध्यान यह भी आ रहा है कि क्या ये कैमिस्ट की दुकानों वाले इस तरह की रक्त की जांचें करने के लिए अधिकृत भी हैं या बस धक्कमपेल किए जा रहे हैं। विचारों का क्या है, कुछ भी मन में आ सकता है......पिछले दिनों आपने देखा कि एम्स जैसी संस्था के डाक्टरों ने अखबारों में लिखा था कि चिकित्सा व्यवसाय में कैसे कैसे गोरखधंधे चल रहे हैं...... जब मैडीकल प्रैक्टीशनर किसी के साथ सांठ-गांठ कर लेते हैं, इसलिए मुझे तो यह भी लगता है कि हो न हो, कहीं कुछ कैमिस्ट की दुकानों पर होने वाले टैस्ट भी ये दवाईयां बनाने वाले कंपनियों के सांठ-गांठ का ही तो नतीज़ा नहीं है... चलते फिरते राहगीर का खड़े खड़े ब्लड-प्रैशर मापो, ब्लड-शूगर की जांच करो और जब रिपोर्ट देख कर वह डरा हुआ इलाज के बारे में पूछे तो उसे उन्हीं कंपनियों की दवाईयां थमा दो...बस, इस चक्कर में चिकित्सक बाहर हो गया, कितने लोग तो वैसे ही इसी तरह से दवाई लेकर खाना शुरू कर देते हैं।

इन मसलों पर जागरूक किये जाने की बहुत ज़रूरत है........लेकिन अकसर मीडिया को आइटम नंबर की राजनीति और किस हीरो को किस हीरोइन के साथ किस देश के किस होटल में एक साथ देखा गया, मीडिया को ये सब चटखारे लेने से फुर्सत मिले तो ऐसी जनोपयोगी बातों को उठाने की बारी आए।

बीच साइड हैल्थ चैक अप स्टाल 
शूगर की जांच हो जायेगी बहुत सस्ती 
एक आवश्यक सूचना..
रक्त की जांच के समय ध्यान रखिए..

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनों का दुरूपयोग

कल के पेपर में यह खबर देख कर चिंता हुई कि हरियाणा में पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनों का किस तरह से दुरूपयोग हो रहा है और किस तरह से दोषियों की धर-पकड़ जारी है... Haryana drive against female foeticide. 

इन मशीनों के बारे में जानने के लिए चार वर्ष पुराने मेरे इस लेख के लिंक पर क्लिक करिए... आ गया है..पाकेट साइजड अल्ट्रासाउंड। और फिर उस के बाद जब महाराष्ट्र ने इन मशीनों पर प्रतिबंध लगा दिया तो भी यही ध्यान में आ रहा था कि इस तरह की मशीनों के दुरूपयोग का अंदेशा तो बना ही रहेगा।

 अब हरियाणा में जन्म से पूर्व शिशु के सैक्स का पता करने हेतु इस तरह की मशीनों के अंधाधुंध प्रयोग से प्रदेश में सैक्स अनुपात पर कितना बुरा असर पड़ेगा, यह चिंता का विषय तो है ही।

खबर में आप देख सकते हैं कि इस तरह की मशीनें चीन से लाई जा रही हैं और फिर इन का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। बात यह भी है कि क्या इस तरह के गोरखधंधे हरियाणा में ही हो रहे हैं या फिर वहां इस का गंभीरता से संज्ञान लिया गया है और कार्यवाही की जा रही है। ऐसा कैसे हो सकता है कि देश के अन्य क्षेत्र इस के दुरूपयोग से बच पाए हों?

वैसे यह कोई नई बात नहीं है, जब इस तरह की मशीनें चार वर्ष पहले बाज़ार में आईं तो ही लग रहा था कि इन का दुरूपयोग भी ज़रूर होगा।

बड़ी दुःखद बात है कि कुछ तत्व बढ़िया से बढ़िया आविष्कार को भी अपने निजी स्वार्थ के लिए बदनाम कर देते हैं.....जो उपकरण बनते हैं मानवता के कल्याण के लिए उन्हें की मानवता के ह्ास के लिए इस्तेमाल किया जाने लगता है।

सोचने वाली बात यह भी है कि अब हर बात का दोष सरकार के माथे थोप देने से भी नहीं चलने वाला.......सरकारी कर तो रही है अल्ट्रासाउंड सैंटरों पर सख्ती, मीडिया में खबरें दिखती ही रहती हैं कि किस तरह से विभिन्न सैंटरों पर छापेमारी की जाती है, इन सैंटरों को सील किया जाता है, और दोषी डाक्टरों तक के ऊपर केस चलाए जाते हैं।

लेिकन अब सब से चिंता का विषय यह है कि सैंटरों की भी ज़रूरत नहीं, इस तरह की पोर्टेबल मशीनें जेब में डाल कर इन का कितनी आसानी से दुरूपयोग किया जा रहा है। अब सरकारें किस किस की जेब में घुसें....सच में बड़ी सिरदर्दी है। यही दुआ की जाए कि लोगों को ही ईश्वर सद्बुद्धि प्रदान करे ताकि वे इस तरह के कुकृत्यों से बच सकें। आमीन !!



गुरुवार, 16 जनवरी 2014

शूगर की जांच हो जायेगी बहुत सस्ती

शूगर रोग के बारे में मेरे कुछ विचार ये हैं कि इस शारीरिक अवस्था का जो बुरा प्रबंधन हो रहा है उस के लिए स्वयं मरीज और साथ में चिकित्सा व्यवस्था भी ज़िम्मेदार है। मरीज़ की गैर-ज़िम्मेदारी की बात करें तो बड़ी सीधी सी बातें हैं कि नियमित दवाई न ले पाना, विभिन्न भ्रांतियों के चलते दवाई बीच ही में छोड़ देना, किसी बाबा-वाबा के चक्कर में पड़ कर देशी किस्म की दवाईयां लेनी शुरू कर देना, परहेज़ न करना, शारीरिक परिश्रम न कर पाना और ब्लड-शूगर की नियमित जांच न करा पाना।

शूगर की अवस्था में -जो दवाईयों से नियंत्रण में हो और चाहे जीवन-शैली में बदलाव से ही काबू में हो -- नियमित शूगर जांच करवानी या करनी बहुत आवश्यक होती है ..और यह कितनी नियमितता से होनी चाहिए, इस के बारे में आप के चिकित्सक आप को सलाह देते हैं।

चलिए इस समय हम लोग एक ही बात पर केंद्रित रहेंगे कि लोग शूगर की जांच नियमित नहीं करवा पाते। सरकारी चिकित्सा संस्थानों की बात करें तो पहले दिन तो मरीज़ शायद ब्लड-शूगर की जांच का पर्चा किसी डाक्टर से बनवा पाता है, फिर वह दूसरे दिन अपने साथ नाश्ता बांध कर लाता है ...सुबह से भूखा रह कर वह अस्पताल पहुंचता है... और उस दिन ११-१२ बजे वह फ़ारिग होता है ..खाली पेट वाली (फास्टिंग) और खाने के बाद वाली (पी पी .. पोस्ट परैंडियल ब्लड-शूगर) ..फिर तीसरे दिन वह पहुंचता से अपनी रिपोर्ट लेने को। अच्छा खासा भारी भरकम सा काम लगता है ना......और ऊपर से अगर किसी की शारीरिक अवस्था ठीक नहीं है तो यह बोझ और भी बोझिल करने वाला लगता है......घर से अस्पताल आना बार बार भी आज के दौर में कहां इतना आसान रह पाया है।

मैं इस के कारणों का उल्लेख यहां करना नहीं चाहूंगा लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि कुछ मरीज़ों को सरकारी अस्पतालों की रिपोर्टों पर भरोसा नहीं होता.......मरीज़ ही क्यों, बहुत बार निजी क्लीनिक या अस्पताल चलाने वाले डाक्टर भी इन्हें नहीं मानते और बाहर से ये सब जांच करवाने को कह देते हैं......अकसर मरीज़ों को भी कहते देखा है कि सरकारी अस्पताल में करवाई तो शूगर इतनी आई और बाहर से इतनी ... लोगों से बातचीत के दौरान बहुत बार सुनने को मिलता है। जब वह दोनों रिपोर्टें आप के सामने रख दे तो आप क्या जवाब दें, यह एक धर्म-संकट होता है, लेकिन जो है सो है!

कुछ उच्च-मध्यम वर्गीय लोगों ने --जो एफोर्ड कर सकते हैं--घर में ही शूगर की जांच करने का जुगाड़ कर रखा है। ठीक है। एक बार मैंने मद्रास की मैरीना बीच पर देखा कि वहां सुबह सुबह लोग भ्रमण कर रहे थे और वहीं किनारे पर बैठा एक शख्स ब्लड-शूगर की जांच की सुविधा प्रदान कर रहा था। पचास रूपये में यह सुविधा दी जा रही था। इस के बारे में मेरी पोस्ट आप इस लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं।

अभी दो चार दिन पहले ही की बात है कि मैंने यहां लखनऊ के एक कैमिस्ट के यहां बोर्ड लगा हुआ देखा कि यहां शूगर की जांच ३० रूपये में होती है।

घर में जो लोग इस शूगर जांच की व्यवस्था कर लेते हैं या मैरीना बीच पर बैठा जो शख्स यह सुविधा दे रहा था या फिर अब कुछ कैमिस्ट लोगों ने भी यह सब करना शुरू कर दिया है, इसे ग्लूकोमीटर की मदद से स्ट्रिप के द्वारा किया जाता है।

अब आता हूं अपनी बात पर......खुशखबरी यह है कि आज कल ये ग्लूकोमीटर विदेशों से आते हैं और इन की कीमत १०००-२५०० रूपये के बीच होती है लेकिन अब शीघ्र ही भारत ही में तैयार हुए ये ग्लूकोमीटर ५०० से ८०० रूपये में मिलने लगेंगे।

और जो स्ट्रिप इन के साथ इस्तेमाल होती है उस के दाम वर्तमान में १८ से ३५ रूपये प्रति स्ट्रिप हैं, लेकिन अब शीघ्र ही ये स्ट्रिप भी दो और चार रूपये के बीच मिलने लगेगी।

यह एक खुशखबरी है कि शूगर की जांच अब लोगों की जेब पर भारी न पड़ेगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो दिन पहले ही इस तरह की किट्स को लंॉच किया है। प्रशंसनीय बात यह है कि इन किट्स को इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी मुंबई ने सूचक (Suchek) के नाम से और बिरला इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी, हैदराबाद ने क्विकचैक (QuickcheQ) के नाम से डिवेल्प किया है।

जेब पर भारी न पड़ने वाली इन किटों के बारे में आप यह समाचार इस लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं..... Purse-friendly diabetic testing kits launched. 

उम्मीद है इन के बाज़ार में आने से यह जांच बहुत से लोगों की पहुंच में हो जायेगी और कम से कम कुछ लोगों की  यह बात कि महंगे टैस्ट की वजह से इस की नियमित जांच न करवा पाना रूल-आउट सा हो जायेगा लेकिन फिर भी नियमित दवाई, परहेज़ और शारीरिक व्यायाम का महत्व तो अपनी जगह पर कायम ही है........इस किट से बहुत से लोगों के हैल्थ-चैक अप करने में भी सुविधा हो जायेगी......होती है पहले भी यह जांच (कैंपों आदि में) इसी किट से ही हैं लेकिन अब यह काम बहुत सस्ता हो जायेगा, अच्छी बात है। 

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

सी.टी स्कैन से भी होता है ओवर-एक्सपोज़र ?

अमेरिका में हाल ही में कुछ केस सामने आये हैं जिन में सी.टी स्कैन करते समय भूलवश रेडिएशन की डोज़ सामान्य से आठ गुणा तक दे दी गई। इसे लिंक पर क्लिक कर के पूरा पढ़ें...

मैं तो इस खबर के बाद यही सोच रहा हूं कि इस तरह की अवेयरनैस मुझे लगता है कि इस देश में तो नहीं है। अवेयरनेस नहीं, जागृति नहीं तो इसीलिये कोई प्रश्न भी नहीं पूछता।

पीछे आपने भी मीडिया में देखा होगा कि खूब आ रहा था कि बार बार सी.टी स्कैन करवाने से जो रेडिएशन ओवर-एक्सपोज़र हो जाता है वह शरीर के लिये नुकसानदायक है। और अब यह नई बात पता चली कि सी.टी स्कैन करवाते समय भी इस तरह का अंदेशा बना रहता है।

तो इस का समाधान क्या है ? --- सब से पहला तो यह कि यह जो आजकल सी.टी स्कैन करवाने का फैशन सा चल निकला है, इस को रोकना होगा। फैशन ? – आप सोच रहे होंगे कि डाक्टर यह क्या कह रहा है, अब विशेषज्ञ कहते हैं तो हम करवाते हैं, वरना हमें कोई शौक है !!

बीमारों एवं तीमारदारों के साथ पूरी सहानुभूति रखते हुये यह कहने की हिम्मत कर रहा हूं कि आजकल बिना सी.टी स्कैन के कईं बार डाक्टरों की तो बल्कि मरीज़ों की तसल्ली नहीं होती। इस में दो तीन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं----
--- आप किसी प्राइवेट विशेषज्ञ के पास जाते हैं तो उस के पास जाने से पहले अपनी पूरी तसल्ली कर लें। एक बार उस के चैंबर में दाखिल हो गये तो जहां तक हो सके अपना मैडीकल ज्ञान वेटिंग-रूम में ही छोड़ जाएं --- मरीज़ के लिये ठीक है उस का दुःख नया है लेकिन विशेषज्ञ तो दशकों से ऐसे ही मरीज़ देख रहा है। और अगर आप ने अपनी तरफ़ से कह दिया कि डाक्टर साहब, सी.टी स्कैन करवा लें क्या ? –तो मुझे यह बतलाईये कि अगर आपने सी.टी स्कैन करवाने की ठान ही ली है तो आप को कौन रकता है !! बल्कि अगर विशेषज्ञ जांच करने के बाद उसे वैसे ही सारा माजरा समझ में आ जाता है और वह इस तरह के सी. या एमआरआई करवाने की सलाह ही नहीं देता तो आप बधाई के पात्र हैं।

---अब चलिये कुछ लोगों को जिन्हें उन की कंपनी इस तरह के टैस्टों पर किये जाने वाले खर्च को रिएम्बर्स करती हैं अर्थात् उन्हें सारा पैसा अपने एम्पलॉयर से मिल जाता है। अब इसे कुछ भी कहिये ---लेकिन उन्हें कईं बार लगता है कि चलों, यार, यह बार बार सिरदर्द जा नहीं रहा, कल पैस फिसल गया था, सिरदर्द है, सी.टी हो क्यों न करवा लिया जाए......अब अगर इस तरह के बाशिंदों ने भी यह ठान ही लिया है तो भला है कोई जो इन्हें ऐसा करवाने से रोक पाये ----- बात ज़्यादा होगी तो डाक्टर को यह सुनने को मिल सकता है---आप का क्या जा रहा है, सरकार जब कोई सुविधा दे रही है तो आप क्यों एडवाईज़ नहीं कर रहे ?

--- कुछ सरकारी संस्थान ऐसे हैं जिन्हें अपने मरीज़ो के लिये शहर के प्राइवेट सी.टी,एमआरआई सैंटरों के साथ टाई-अप कर रखा है, जिन्हें वे मरीज़ों की गिनती के अनुसार उस सैंटर के साथ हुये करार की शर्तों के अनुसार मासिक बिलिंग के अनुसार पेमैंट कर देती है। इन में भी मुझे ऐसा लगता है तो कईं बार ( बहुत बार लिखने से डर रहा हूं, अधिक बार लिखने के लिये क्वालीफाईड नहीं हूं , इसलिये कईं बार लिख कर ही काम चला रहा हूं !!) बस ऐसे ही इस तरह के टैस्ट करवा लिये जाते हैं। मैं तो भई प्रामाणिक बात करता हूं ---अगर किसी को इस में कोई शक हो तो क्यों न एक साल में हुये सी.टी स्कैनों में से कितने स्कैनों की रिपोर्ट किसी भी तरह से पाज़िटिव आई, इस का अध्ययन किया जा सकता है। इस तरह के संस्थानों में तो बहुत बार मरीज़ की मरजी चलती है ---अगर उसे बाहर से किसी झोलाछाप चिकित्सक ने भी कह दिया है कि तुम यह सी.टी करवा ही लो, तो फिर कोई डाक्टर उस की ख्वाहिश पूरी न कर के तो देखो, अकसर इस तरह के केसों द्वारा हंगामा, हो-हल्ला किये जाने के डर से डाक्टर आसान ही डगर पकड़ तो लेते हैं लेकिन किस कीमत ? -----सरकारी पैसा गया सो गया, मरीज़ की ख्वाहिश पूरी करने के चक्कर में उस ने बिना वजह रेजिएशन ले लीं ?

----जो मेरा पीजीआई रोहतक में प्रोफैशनल अनुभव रहा है कि वहां पर दो-तीन डाक्टरों की टीम यह तय करती है कि किसी व्यक्ति को इस तरह के टैस्टों की ज़रूरत है कि नहीं .... अगर टैस्टों की ज़रूरत है तो सब्सिडाईज्ड रेट पर इन-हाउस सैंटरों पर ही ये महंगे टैस्ट मरीज़ों को उपलब्ध करवा दिये जाते हैं।

अब एक ऐसी श्रेणी की बात भी कर लें जिन के लिये ये टैस्ट ज़रूरी तो हैं लेकिन जिन्हें झोलाछाप, फुटपाथ-मार्का नकली चिकित्सकों ने इस कद्र उलझा के रखा हुया है कि वे हर बीमारी के पीछे किसी प्रेतात्मा का हाथ बताते रहते हैं ---कईं बार सोचता हूं कि इन चक्करों में उलझे रहना शायद इन कम-खुशकिस्मत लोगों की मजबूरी भी हो सकती है। अगर टैस्ट करवाने को कोई कह भी दे तो पैसे कहां से आएंगे ?

इसी संबंध में एक किस्सा सुना रहा हूं ---लड़का बहुत दिनों से कह रहा था कि पोर्टेबल हार्ड डिस्क लेनी है। कुछ दिन पहले मैं उस के साथ चंडीगढ़ पहुंचा ---स्टेशन के बाहर ही –हम दोनों आटो की इंतज़ार कर रहे थे कि अचानक एक आटो वाला एक पचास के करीब की महिला को बुरी तरह ठोक कर चला गया। जिस तरह से वह महिला गिरी और बेहोश हो गई मुझे तो लगा कि चोट खासी गहरी लग गई लगती है। महिला का वर्णऩ तो किया ही नहीं ---- यह वो महिला बिल्कुल वैसी थी जिसे हम पढ़े लिखे लोग अनपढ़, गरीब, .....पता नहीं क्या क्या कह देते हैं ? ---शायद यह सब लिखना इतना ज़रूरी नहीं था क्योंकि वह तो केवल एक मां थी। उस के बच्चों ने उस को घेर रखा था।

मैंने पानी की बोतल उसे दी--- उस ने पानी पिया ---मैंने उस के बच्चों को कहा कि कुछ समय के लिये इन्हें लिटा दो, उसे लिटा दिया गया , उस के कुनबे के लोगों में से कोई उस का सिर दबा रहा था...मैं भी अपना काम कर रहा था ---उन के पास ही खड़ा मैं बड़ी शिद्दत से इस प्रभु से यही प्रार्थना किये जा रहा था कि कैसे भी इसे ठीक कर दे, भाई। मुझे यह तो यकीन ही था कि परमात्मा ही कुछ चमत्कार करे सो करे, इन्हें कोई दो-चार सौ रूपये दे भी देगा तो इतने में इन का क्या बनेगा, शायद इतने रूपयों में तो ये किसी बड़े हास्पीटल के गेट तक ही पहुंच पाएं ---- बस, मैं बड़ी इमानदारी से उस लम्हों में प्रार्थना से जुड़ा हुया था -----और मेरा ऐसा विचार बन रहा था कि ये कुछ ठीक हो तो ही मैं और मेरा बेटा वहां से चलें !!
तभी वह औरत ने बात करना शुरू कर दिया –वह अपने बेटे को बता रही थी कि यह सब कैसे हुआ ---- दोस्तों, मैं बता नहीं सकता कि मुझे उस पल कितनी खुशी हुई ---मेरी खुशी का पारावार नहीं था ---- मुझे शायद यही लग रहा था कि मेरी अरदास काम कर गई ----- तभी एक आटो दिखा, हम बैठ कर मार्कीट की तरफ़ निकल पड़े।

मुझे पता है कि इस औरत के सिर पर इस तरह की टक्कर के इंपैक्ट के कारण वह जो दो-तीन मिनट बेसुध रही वह भविष्य के लिये एक दुर्भाग्यपूर्ण भी हो सकती थी लेकिन यही सोच कर ही मन को तसल्ली दे दी कि जिस ने उस की अभी इस समय रक्षा की है, वह भविष्य में भी करेगा ---- सोच वैसे रहा था कि अगर इस का सी.टी करवाना होगा तो कौन करवायेगा .......और साथ ही यह भी समझने की कोशिश कर रहा था कि यार, कुछ तो बात है उस बात में भी कि जब दवा काम नहीं करती तो दुआ काम करती है।

बुधवार, 25 मार्च 2009

अपने रक्त की जांच के समय ज़रा ध्यान रखियेगा

जब कभी बाजू से रक्त का सैंपल लिया जाता है तब तो आप डिस्पोज़ेबल सूईं इत्यादि का पूरा ध्यान कर ही लेते होंगे, लेकिन क्या कभी आपने यह ध्यान किया है कि जब आप की उंगली को प्रिक कर के सैंपल लिया जाता है तो वह किस तरह से लिया जाता है ?
मुझे याद है कि बचपन में हम लोग भी जब अपने रक्तकी जांच करवाने जाते थे तो उस लैब वाले ने एक सूईं रखी होती थी जिसे वह स्प्रिट वाली रूईं से पोंछ पोंछ कर काम चला लिया करता था।
आज इस बात का ध्यान इसलिये आया है क्योंकि कल ही अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने चिकित्सा कर्मीयों को कहा है कि ये जो इंसुलिन पैन एवं इंसुलिन कार्टरिज़ होती हैं, इन्हें केवल एक ही मरीज़ पर इस्तेमाल के लिये अप्रूव किया गया है।
इंसुलिन पैन जैसे कि नाम से ही पता चलता है पैन की शेप में एक इंजैक्शन लगाने जैसा उपकरण होता है जिस के साथ एक डिस्पोज़ेबल सूईं के साथ या तो एक इंसुलिन रैज़रवॉयर और या एक इंसुलिन कार्टरिज़ होती है। इस उपकरण में इतनी मात्रा में इंसुलिन होती है कि मरीज़ रैज़रवॉयर अथवा कार्टरिज़ समाप्त होने तक स्वयं ही अपने ज़रूरत के मुताबिक कईं बार इंजैक्शन लगा सकता है।
आखिर अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को ऐसी चेतावनी देने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई ? --- इस का कारण यह था कि इस संस्था को ऐसे दो अस्पतालों का पता चला जिस में लगभग 2000 व्यक्तियों के ऊपर जब इंसुलिन पैन से इंजैक्शन लगाये गये तो कार्टरिज़ कंपोनैंट की तरफ़ कुछ इतना ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा गया --- हालांकि डिस्पोज़ेबल नीडल को तो हर मरीज़ के लिये बदला ही गया था।
ऐसे उपकरण को जिसे केवल एक ही मरीज़ पर इस्तेमाल करने की अप्रूवल मिली हुई है ---इसे विभिन्न मरीज़ों द्वारा नीडल बदल कर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि इस से रक्त के आदान-प्रदान से फैलने वाली एच-आई-व्ही एवं हैपेटाइटिस सी जैसी भयंकर बीमारियों के फैलने का खतरा होता है।
हां, तो हम लोग अपने यहां पर उंगली से रक्त का सैंपल देने की बात कर रहे थे ---सही ढंग की बात करें तो उस के लिये एक छोटा सी पत्तीनुमा बारीक सी सूईं आती है जिसे लैंसेट ( Lancet) कहा जाता है और यह डिस्पोज़ेबल होती है अर्थात् इसे दोबारा किसी मरीज़ पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। वह सूईं को स्प्रिट में डुबो डुबो कर काम चला लेने वाला पुराना तरीका गड़बड़ सा ही लगता है । आप अपने डाक्टर से बात तो कर के देखिये।

सोमवार, 12 जनवरी 2009

आज की चर्चा का विषय है --- मैमोग्राफी

स्वास्थ्य से संबंधित अधिकांश शीर्ष संस्थानों की इस बारे में सहमति है कि 40 साल की उम्र के बाद महिलाओं को हर साल मैमोग्राम अवश्य निकलवाना चाहिये और इस के बारे में तो सर्व-सम्मति है कि 50 वर्ष की उम्र के बाद तो महिलाओं को यह हर वर्ष करवाना ही चाहिये।

मैमोग्राफी तकनीक द्वारा लिया गया मैमोग्राम छाती (स्तनों) का एक एक्स-रे है जिस के द्वारा या तो महिलाओं में छाती( स्तन) के ऐसे कैंसर पकड़े जाते हैं जो कि अभी इतनी प्रारंभिक अवस्था में हैं कि इन का छूने से पता नहीं पाता अथवा यह देखने के लिये भी मैमोग्राम किया जाता है कि कहीं महिला की छाती में जो गांठ है वह कैंसर के कारण है अथवा किसी अन्य कारण से है।

मैमोग्राफी से 85-90 प्रतिशत छाती के कैंसर पकड़ में आ जाते हैं – यहां तक कि एक चौथाई इंच वाले कैंसर का भी इस मैमोग्राम से पता चल जाता है जब कि आम तौर पर कोई भी ऐसी वैसी गांठ का तब तक पता ही नहीं चलता जब तक कि यह बढ़ कर साइज़ में इससे दोगुनी ही नहीं हो जाती ।
जिस दिन किसी महिला ने मैमोग्राफी करवानी हो उस दिन वह अपनी बगलों में अथवा छाती पर किसी डिओडोरैंट अथवा पावडर आदि का इस्तेमाल न करें क्योंकि उस से एक्स-रे को पढ़ने में दिक्कत आती है – Avoid using deodorant or powder on your underarms or breasts on the day of mammogram because they can make the x-ray picture hard to interpret.

शायद पाठकों में यह जानने की भी उत्सुकता होगी कि इस टैस्ट के दौरान होता क्या है ----- मैमोग्राम का काम अकसर एक्स-रे विभाग में ही किया जाता है। सामान्यतयः प्रत्येक वक्ष की दो तस्वीरें ( एक्स-रे) --- एक साइड से और दूसरी ऊपर के कोण से --- ली जाती हैं। प्रत्येक एक्स-रे लेते समय प्रत्येक वक्ष( स्तन) को दो समतल प्लेटों के बीच मात्र 10 सैकेंड के लिये प्रैस किया जाता है । छाती के सभी क्षेत्रों को सफ़ाई से देखने के लिये यह आवश्यक है।

मात्र 10 से 20 मिनट के बाद आप के आप के टैस्ट की रिपोर्ट बता दी जाती है लेकिन फाइनल रिपोर्ट अकसर एक-दो दिन के बाद ही दी जाती है। इस टैस्ट को करवाने से कोई रिस्क नहीं है, इस में बहुत ही कम स्तर की एक्स-रे किरणों का इस्तेमाल होता है।

और यह टैस्ट कुछ खास महंगा भी नहीं है --- पांच या छः सौ रूपये में हो जाता है। अगर आप महिला हैं और चालीस की उम्र पार चुकी हैं तो अपना एक मैमोग्राम तो जल्दी से करवा कर निश्चिंत हो ही जाइये। वैसे, अच्छे हास्पीटलों के महिलाओं के लिये वार्षिक हैल्थ-चैकअप प्लान में यह मैमोग्राम, पैप-स्मीयर टैस्ट आदि सम्मिलित ही होते हैं।

रविवार, 11 जनवरी 2009

महिलाओं के लिये किसी वरदान से कम नहीं --- पैप स्मियर टैस्ट !!

शायद ही आपने सुना हो कि महिलाओं को नियमित तौर पर यह पैप स्मियर टैस्ट -Pap Smear Test- करवाना अत्यंत आवश्यक है --- लेकिन मैंने आज तक कम ही देखा है कि महिलाएँ स्वयं किसी महिला-रोग विशेषज्ञ के पास इस टैस्ट के लिये गई हों--- और हमारे देश में तो महिलाओं के लिये यह टैस्ट करवाना और भी ज़रूरी है --- क्योंकि यहां पर गर्भाशय के कैंसर के बहुत केस पाये जाते हैं।

पैप स्मियर टैस्ट में होता क्या है ?- गर्भाशय के मुख ( cervix – the entrance to the uterus, located at the innere end of vagina) –से कुछ कोशिकायें ( cells) ले कर उन का निरीक्षण किया जाता है कि कहीं ये गर्भाशय के कैंसर से ग्रस्त तो नहीं हैं।

गर्भाशय का कैंसर जिस वॉयरस के कारण होता है उसे ह्यूमन पैपीलोमा वायरस ( human papillomavirus or HPV) कहा जाता है।

पैप स्मियर टैस्ट में इन कोशिकाओं को सूक्ष्मदर्शी उपकरण से देख कर यह पता लगाया जाता है कि कहीं ये कोशिकायें कैंसर से ग्रसित तो नहीं हैं, कहीं ये कैंसर की पूर्व-अवस्था में तो नहीं हैं !! आज कल तो पैप-स्मियर टैस्ट के अलावा HPV test के द्वारा यह भी ढूंढ निकालते हैं कि एचपीवी ( ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस) संक्रमण है या नहीं !!

वैसे तो जो महिलायें एचपीव्ही ( HPV) से बाधित है उन में से बहुत कम महिलाओं में गर्भाशय का कैंसर उत्पन्न होता है लेकिन एक बात तो निश्चित है कि ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस के संक्रमण की वजह से यह जोखिम बढ़ जाता है।

सभी महिलाओं को यह टैस्ट करवाना ज़रूरी है जिन की आयु 21 वर्ष या उस से ज़्यादा है --- इस से कम उम्र की उन महिलाओं को भी यह टैस्ट करवाना ज़रूरी है जो कि सैक्सुयली एक्टिव हैं।

और यह पैप स्मियर टैस्ट महिलाओं को एक से लेकर तीन साल के भीतर ( जैसी भी आप की स्त्री-रोग विशेषज्ञ सलाह दे) रिपीट करवाना चाहिये --- अगर कोशिकाओं में किसी तरह के बदलाव पाये जाते हैं तो यह टैस्ट इस से पहले भी रिपीट करवाना पड़ सकता है।


महिलाओं का यह टैस्ट तभी किया जाता है जब वे मासिक-धर्म के पीरियड में न हों, इस टैस्ट को करवाने के 24 घंटे पहले संभोग नहीं किया जाना चाहिये। और टैस्ट से पहले योनि में किसी तरह की क्रीम( vaginal creams) का इस्तेमाल वर्जित है।

इस टैस्ट में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती --- इसे समझने के लिये एक बात सुनिये – अगर मुझे मुंह के कैंसर की जांच के लिये इस तरह का ही स्मियर टैस्ट( ओरल स्मियर) करना होता है तो मैं एक स्पैचुला ( आप यह समझ लें कि एक तरह का ऐसा औज़ार जिस से जुबान को थोड़ा नीचे दबा कर गले का निरीक्षण किया जाता है – tongue depressor की तरह से दिखने वाला एक औज़ार ) --- इस्तेमाल करता हूं --- मुंह के अंदर गाल पर इसे थोड़ा घिसने के बाद जो कोशिकाएं प्राप्त होती हैं उन्हें सूक्ष्मदर्शी उपकरण ( microscope) की सहायता से चैक किया जाता है) --- बिल्कुल उसी तरह से जो स्त्री-रोग विशेषज्ञ यह टैस्ट कर रही हैं वह एक गोलाकार स्पैचुला ( rounded spatula) को आहिस्ता से गर्भाशय की बाहरी सतह पर आहिस्ता से घिसने के बाद एकत्रित हुई कोशिकाओं को लैब में माइक्रोस्कोप के द्वारा चैक किये जाने के लिये भेज देती हैं।

माइक्रोस्कोप के द्वारा चैक-अप द्वारा यह देखा जाता है कि कहीं इन कोशिकाओं में कोई असामान्य ( abnormal) कोशिका तो नहीं है , और अगर है तो फिर स्त्री-रोग विशेषज्ञ समुचित उपचार की सलाह दे देती हैं।

एक अंग्रेज़ी कहावत है ---- a stitch in time saves nine !!---अगर समय रहते किसी फटे कपड़े को एक टांका लगा दिया जाये तो भविष्य में लगने वाले नौ टांकों से बचा जा सकता है --- और यहां भी पैप-स्मियर टैस्ट के लिये भी यह बात बिलकुल उसी तरह से लागू होती है ।

वैसे तो अच्छे प्राइवेट हास्पीटल में महिलाओं के हैल्थ-चैक अप प्लान में यह टैस्ट सम्मिलित होता ही है ------लेकिन मुझे अच्छा तब लगेगा अगर आप महिलाओं में से किसी ने अभी तक इस टैस्ट के बारे में सुना नहीं है, करवाया नहीं है तो बिना किसी तरह की स्त्री-रोग संबंधी ( without any gynaecological problem) शिकायत के भी अपनी स्त्री-रोग विशेषज्ञ से नियमित तौर पर मिलें और इस टैस्ट को करवाने के बारे में चर्चा करें। यह बहुत ही ----बहुत ही ----बहुत ही ----- बहुत ही ----- ज़रूरी है ......ज़रूरी है ।

PS……..पुरूष पाठको, आप ने यह पोस्ट पढ़ी--- बहुत बहुत धन्यवाद। लेकिन अगर आप इसे अपनी श्रीमति जी को भी पढ़वायेंगे तो आभार होगा---- और अगर इस का एक प्रिंट-आउट लेकर उन्हें थमा देंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी --- और उन्हें यह भी संदेश दें कि इस के बारे में अपनी सखी-सहेलियों से भी चर्चा करें।

यकायक ध्यान उस विज्ञापन की तरफ़ जा रहा है ---- जो सचमुच बीवी से करते प्यार, हॉकिंग्ज़ से कैसे करें इंकार ---- तो सुविधा के लिये हॉकिंग्ज़ की जगह पैप-स्मियर लगा दें, तो कैसा रहेगा !!

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

बडे़ हास्पीटलों के ये हैल्थ चैक-अप प्लान

आंखों का चैक अप इतने महीने बाद, दांतों का इतने महीने बाद, प्रोस्टेट का इतने अरसे बाद, कोलैस्ट्रोल एवं लिपिड प्रोफाईल इतने समय के बाद, ईसीजी कितने अरसे बाद, महिलाओं में स्त्री-रोग विशेषज्ञ द्वारा फलां फलां नियमित चैक-अप, मैमोग्राफी कब और पैप-स्मियर कब, रक्त की पूरी जांच, यूरिन की पूरी जांच, कुछ ब्लड-मार्कर्स् की तफतीश, छाती का एक्स-रे, पेट का अल्ट्रासाउंड ( ultrasound examination of Abdomen), 50 वर्ष के बाद गुदा-मार्ग का नियमित परीक्षण, थायरायड चैक-अप एवं स्कैन, ओसटियोपोरोसिस के लिये स्क्रीनिंग ............................मेरी तरह आप भी बोर हो गये ना पड़ते पड़ते ....लेकिन यह लिस्ट अभी अभी बिलकुल आधी अधूरी है ....बिलकुल पूरी नहीं है – जो इस समय में ध्यान में आया लिख दिया –बहुत से चैक-अप के बारे में तो मैं इस समय अवश्य भूल रहा हूं।

इस लंबी चौड़ी लेकिन अभी आधी अधूरी लिस्ट को यहां डालने का मेरा उद्देश्य केवल यही है कि इस बात को रेखांकित किया जा सके कि अपने आप ये सब टैस्ट अलग अलग जगह जा कर करवाने वाला काम अच्छा खासा सिरदर्दी वाला हो गया। पहले एक एक स्पैशलिस्ट से अपवायंटमैंट लें, फिर भी पता नहीं कितने दिन लग जायेंगे ये सब जांच करवाने में और चूंकि अब तो इस तरह की जांच कुछ उम्र के बाद नियमित तौर पर ही करवाने की सलाह दी जा रही है तो ऐसे में तो मामला और भी सिरदर्दी वाला ही लगता है।

अपने आप ही विभिन्न स्पैशलिस्टों के पास जाकर समय ज़्यादा लगेगा, खर्च भी शायद ज़्यादा ही बैठेगा, और शायद आप पूरे सिस्टेमैटिक तरीके से सभी प्रकार की जांच करवा पाएं भी या ना –इस की कोई गारंटी नहीं--- शायद, आप किसी विशेष जांच को बिना करवाये ही छोड़ दें जो कि आप की उम्र एवं शारीरिक स्थिति के लिये बहुत अहम् हो----तो ये सब प्राबल्मज़ तो हैं ही अपने आप इस फील्ड में कूदने के।

तो अब प्रश्न उठता है कि ऐसे में क्या करें ?—सब कुछ उस नीली छतड़ी वाले छोड़ कर बेफिक्री की रजाई ओड़ कर लंबी तान लें। नहीं, यह भी आज की तारीख में संभव नहीं है- मैडीकल डायग्नोसिस में इतनी ज़्यादा तरक्की हो चुकी है---सारे विश्व के लिये यही मंगल-कामना है कि जब तक भी जिंदगी हो, सब लोग उसे भरपूर जियें------इसलिये ये रूटीन चैक-अप तो ज़रूरी हैं ही , वो बात अलग है कि सुप्रीम शक्ति तो यह सब कुछ कंट्रोल कर ही रही है।

मैंने नोटिस किया है कि कुछ अच्छे, बड़े , प्राईवेट हास्पीटलों में हैल्थ-चैकअप प्लान होते हैं-----पूरा एक पैकेज होता है उम्र के हिसाब से, ये चैकअप करवाने वाला पुरूष है या स्त्री, चैक-अप करवाने की जीवन-शैली कैसी है, उस की सेहत कैसी है ----मेरे विचार में एक ही छत के नीचे वे सारे स्पैशलिस्टों से जांच करवा देते हैं, सभी टैस्ट करवा देते हैं, और सभी तरह की जांच करवा देते हैं और जिस किसी एरिया में उन्हें कुछ गड़बड़ी महसूस होती है उस अंग की अथवा एरिया की पूरी डिटेल में जांच की जाती है। इस तरह की जांच तो नियमित अपने उम्र और सेहत के अनुसार करवाते ही रहना चाहिये।

इसे तो एक तरह से पीरियोडिक ओवर-हालिंग ही समझ लेना चाहिये- हम अपने स्कूटर और कार को इतने इतने किलोमीटर चलाने के बाद ले कर जाते हैं ना मैकेनिक इस्लाम भाई के पास ---- जा कर पहले उस से अपवायंटमैंट लेते हैं----तो जब अपनी सेहत की बात आये तो किसी तरह का समझौता क्यों ?

जिस तरह के वातावरण में हम लोग सांस ले रहे हैं, जैसा पानी पी रहे हैं , जिस तरह का खाना खा रहे हैं, सब कुछ कीटनाशकों एवं रासायनों से लैस---------इसलिये नियमित जांच के इलावा कोई रास्ता है ही नहीं। और बेहतर तो यही है कि किसी अच्छे हास्पीटल के हैल्थ-चैक अप पैकेज़ के अंतर्गत ही यह सब कुछ करवा के फारिग हो जाया जाये। नहीं, नहीं .....इस सिलसिले में कुछ महंगा नहीं है .......आप की सेहत अनमोल है.......हमारे तो गुरू-पीर-पैगंबर ही कह रहे हैं---------पहला सुख निरोगी काया !!!

और जहां तक सरकारी हास्पीटलों का सवाल है, मैं सोचता हूं कि इन में भी इस तरह के पैकेज शुरू किये जाने चाहिये ताकि जनता-जनार्दन की भी बचाव की तरफ़ प्रवृत्ति पैदा हो ---और वैसे भी बात वही मन को लगती है जो कि लाखों-करोड़ों लोग अपनी लाइफ में उतार सकें क्योंकि एक आउँस बचाव एक पाउंड इलाज से कईं गुणा ज़्यादा बेहतर है ----An ounce of prevention is better than a pound of treatment.

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

आप ने पिछली बार कब अपनी आंखों का चैक-अप करवाया था ?

एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में 81 फीसदी लोग किसी न किसी तरह से विज़न-करैक्शन ( चश्मा, कंटैक्ट लैंस इत्यादि) का इस्तेमाल करते हैं लेकिन इस के बावजूद 26 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्होंने पिछले दो वर्षों में अपनी आंखों का चैक-अप नहीं करवाया है। एक स्टडी में पाया गया है कि बहुत से लोग अपनी आंखों की सेहत के प्रति ज़्यादा सजग नहीं हैं।

हर व्यस्क व्यक्ति को कम से कम दो साल में एक बार अपनी आंखों का मुकम्मल चैक-अप करवाना चाहिये – लेकिन उन लोगों के लिये तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है जिन्हें चश्मा लगा हुआ है या जो लोग कंटैक्ट लैंस इस्तेमाल करते हैं। और साठ साल की आयु के बाद तो हर साल आंखों का पूर्ण चैक-अप करवाया जाना चाहिये।

18 साल व उस से ऊपर के 1001 अमेरिकी लोगों को लेकर जब एक सर्वे किया गया तो उस से यह पता चला –

ज़्यादातर अमेरिकी लोगों ( 72फीसदी) जिन की उम्र 55 के आसपास थी – इन्होंने अपनी आंखों की दृष्टि ( vision changes) में बदलाव 40 से 45 साल की उम्र में नोटिस करने शुरू कर दिये थे।
अपनी दृष्टि के बारे में चिंतित होते हुये भी 15प्रतिशत लोग ऐसे थे जो न तो चश्मा ही पहनते हैं और न ही कभी नेत्र-रोग विशेषज्ञ के पास ही गये हैं।
62फीसदी लोग ऐसे थे जिन्हें यह पता नहीं था कि कईं बार डायबिटीज़ का पता ही नेत्र-रोग विशेषज्ञ को आपकी आंखों की जांच से पता चलता है। और 71 फीसदी लोगों का इस बात का आभास नहीं था कि आंखों के पूरे चैक-अप से हाई-ब्लड-प्रैशर, ब्रेन-ट्यूमर, कैंसर, दिल की बीमारी तथा मल्टीपल-स्क्लिरोसिस( multiple sclerosis) जैसी बीमारियों का पता चल सकता है।
कुछ भ्रांतियां पाई गईं कि कुछ तरह से आंखें खराब हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर 71फीसदी लोग यह समझते हैं कि मंद रोशमी के तले पढ़ने से, टीवी को बहुत नज़दीक को देखने से, अथवा आंखों को मलने से आंखें खराब हो जाती हैं। इन सब बातों से आंखों पर स्ट्रेन तो पड़ता है लेकिन इन से आंखें या आंखों की रोशनी वास्तव में खराब नहीं होती है।
इसलिये टीवी से सुरक्षित दूरी बनाये रखने वाली और अच्छी रोशनी में पढ़ने जैसी बातें तो अपनी जगह पर कायम है ही हैं।
There were many misconceptions about behaviours that can damage eyes. For example, many incorrectly believe that eye damage can be caused by reading under dim light (71 percent), sitting too close to the television ( 66 percent), or by rubbing the eyes. These behaviours can cause eye strain but don’t cause actual damage to the eye or eyesight.