“ऑक्सीजन बार में आक्सीजन सूंघने आये ग्राहकों को आक्सीजन बहुत अच्छी मात्रा (95प्रतिशत तक) उपलब्ध होती है जो कि सामान्य वातावरण से उपलब्ध होने वाली मात्रा (21प्रतिशत) से बहुत ज्यादा होती है और यह मात्रा प्रदूषित वातावरण में तो और भी घट जाती है।”--------यह पंक्तियां मैंने आज के अंग्रेजी पेपर हिंदु की एक रिपोर्ट से ली हैं, जिस का शीर्षक और यही पंक्तियां नीचे लिख रहा हूं......
Oxygen bars catch on…..……”Oxygen bars offer sniffers an increased percentage (upto 95percent) of oxygen compared to the normal atmospheric content of 21percent – lower in the case of severe pollution.”
यह वाली खबर पढ़ कर मुझे कोई ज़्यादा हैरानी नहीं हुई क्योंकि कुछ इस से मिलती जुलती खबर मैंने एक-दो साल पहले भी कहीं पढ़ी थी। इस में यह भी बताया गया है कि कैनेडा से कैलीफोर्निया और ब्रिटेन से जापान...तक फैलते हुये ये ऑक्सीजन बॉर अब फ्रांस में भी कईं जगहों पर खुल गये हैं...इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए इस तरह का पहला बॉर कल पैरिस के बहुत ही फैशुनेबल इलाके में खुला है, जिस से ही संबंधित यह खबर लगी थी।
इस देश में तो जब किसी को ऑक्सीजन लगती है ना तो सारे सगे-संबंधी अपना खाना-पीना भूल जाते हैं। लेकिन यह फैशन देखिए कि लोग रिलैक्स होने के लिए, तनाव-मुक्त होने के लिए इन ऑक्सीजन बॉर में जा रहे हैं....जो कि नाइट-क्लबों में, हैल्थ-क्लबों में, हवाई-अड्डों पर, और यहां तक कि ट्रेड-फेयरों में एक अच्छा-खासा बिजनैस बन रहा है। इस दौरान इन्हें कम से कम दस मिनट तक ऑक्सीजन सूंघाई जाती है।
हां, एक बात याद आई.....कि मैं जिस किसी न्यूज़-रिपोर्ट को पहले से पढ़ने की बात कर रहा था, इस के संबंध में मुझे कुछ कुछ याद आ रहा है कि शायद उस में मैंने पढ़ा था कि ऐसा ऑक्सीजन बार अहमदाबाद में भी खुल गया है।
वैसे एक तरह से देखा जाये तो जिस तरह की प्रकृति के साथ दूसरी सब तरह की पंगेबाजी हो रही है, यह ऑक्सीजन बार वाली बात तो कोई इतनी बड़ी नहीं कि इसे इतना तूल दिया जाये। लेकिन , नहीं , हमारे देश में इसे तूल दिया जाये दिया ही जाना चाहिए......क्यों कि इस तरह की ऊल-जलूल प्रणालियों की हमें कोई ज़रूरत ही नहीं है।
हमारे पास तो भई इस से भी कईं गुणा (हज़ारों गुणा !) बेहतर विकल्प है .....हज़ारों साल पुराना हमारे ऋषियों-मुनियों द्वारा सिद्ध किया हुया प्राणायाम्। यह जो प्राणायाम् है न यह पूरी तरह से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है क्योंकि जब हम प्राणायाम् करते हैं तो हमारे शरीर में इस प्राण-ऊर्जा की सप्लाई कईं गुणा तक बढ़ जाती है जिस की वजह से हम सारा दिन बहुत चुस्ती-स्फूर्ति अनुभव करते रहते हैं। अगर हम नियमित प्राणायाम करते हैं तो हमें अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं।
लेकिन मैं यह समझता हूं कि प्राणायाम की विधि हमें कहीं से व्यक्तिगत रूप से सीखनी चाहिए क्योंकि यह एक बहुत ही सटल(subtle science)वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिस को अगर पूरी निगरानी से न सीखा जाये तो इस का वांछित प्रभाव तो दूर किसी उल्ट प्रभाव का भी अंदेशा लगा रहता है।
मैंने यह सब कुछ बंबई में रहते हुए एक पंद्रह दिन के कार्यक्रम के दौरान सीखा था। यह सिद्ध समाधि योग कार्यक्रम है, जो कि ऋषि संस्कृति विद्या केन्द्र नामक संस्था करवाती है जो कि अडवर्टाइजिंग में विश्वास नहीं करती है....इस के संस्थापक हैं ब्रह्मर्षि ऋषि प्रभाकर जी, जो कि स्वयं एक ऐरोनॉटिक्ल इंजीनियर हैं और जिन की कईं सालों की तपस्या का फल है यह प्रोग्राम...सिद्ध समाधि योग प्रोग्राम ( Siddha Samadhi yoga programmes run by Rishi Samskruti Vidya Kendra with its headquarters at Bangalore.. www.ssy.org) इन के सेंटर विभिन्न शहरों में हैं।
वास्तव में यह प्रोग्राम कर लेने के बाद से तो मेरी जिंदगी में बहुत बदलाव आये थे। कुछ साल तक तो मैं नियमित सब कुछ प्रैक्टिस करता रहा ...लेकिन काफी लंबे अरसे से बस हर किसी को ज़्यादा उपदेश देता रहता हूं लेकिन खुद नहीं करता हूं जब कि मुझे इतना भी पता है कि इस का नियमित अभ्यास करने से ज़्यादा कोई और चीज़ मेरे लिए इतनी ज़रूरी नहीं है। लेकिन अब जब से इस ऑक्सीजन बार वाली खबर पर नज़र पड़ी है ना , तो बस मन ही मन ठान लिया है कि अब फिर से इस का अभ्यास दोबारा शुरू करूंगा। पता नहीं हम डाक्टर लोग खुद के लिए क्यों इतने लापरवाह होते हैं। शायद हम अपनी सलाह खुद नहीं मानना चाहते ...अपने आप से पूछ रहा हूं कि कहीं वही वाली बात तो नहीं है....हलवाई अपनी मिठाई खुद नहीं खाता। लेकिन जो भी यह सब कुछ ---प्राणायाम् इत्यादि ---तो जल्द से जल्द शुरू करना ही होगा....वज़न बढ़ रहा है, और कुछ खास शारिरिक श्रम करता नहीं हूं।
और हां, वह अपनी ऑक्सीजन बार तो कहीं बीच में ही रह गई। उस हिंदु अखबार की रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि चूंकि इस तरह की ऑक्सीजन का प्रयोग सामान्यतः अस्पताल में तो एक दवाई की तरह होता है ( विशेषकर सांस लेने में कठिनाई के मामलों में), इसलिए इस तरह के ऑक्सीजन बारों को भी कंट्रोल करने की बात छिड़ी हुई है।
तो चलो, बीयर बॉर के मुद्दे से पूरी तरह फारिग हुये बिना अपनी बलोग्स में इस ऑक्सीजन बार के बारे में हमें आने वाले दिनों में खूब लिखने को मिलेगा.......वैसे तो मेरी प्रार्थना यही है कि ये आक्सीजन बार हमारे यहां तो न ही आयें तो बेहतर होगा......इस मामले में हम वैस्टर्न के लोगों से जितना पीछे ही रहें उतना ही बेहतर होगा। लेकिन मेरे सोचने से क्या हो जायेगा.....अगर आने वाले समय में इन ऑक्सीजन बारों की भरमार होनी है तो इन्हें लोगों को शुद्ध ऑक्सीजन का लुत्फ़ उठाने के लिए उकसाने से भला कौन रोक सकता है ?
Oxygen bars catch on…..……”Oxygen bars offer sniffers an increased percentage (upto 95percent) of oxygen compared to the normal atmospheric content of 21percent – lower in the case of severe pollution.”
यह वाली खबर पढ़ कर मुझे कोई ज़्यादा हैरानी नहीं हुई क्योंकि कुछ इस से मिलती जुलती खबर मैंने एक-दो साल पहले भी कहीं पढ़ी थी। इस में यह भी बताया गया है कि कैनेडा से कैलीफोर्निया और ब्रिटेन से जापान...तक फैलते हुये ये ऑक्सीजन बॉर अब फ्रांस में भी कईं जगहों पर खुल गये हैं...इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए इस तरह का पहला बॉर कल पैरिस के बहुत ही फैशुनेबल इलाके में खुला है, जिस से ही संबंधित यह खबर लगी थी।
इस देश में तो जब किसी को ऑक्सीजन लगती है ना तो सारे सगे-संबंधी अपना खाना-पीना भूल जाते हैं। लेकिन यह फैशन देखिए कि लोग रिलैक्स होने के लिए, तनाव-मुक्त होने के लिए इन ऑक्सीजन बॉर में जा रहे हैं....जो कि नाइट-क्लबों में, हैल्थ-क्लबों में, हवाई-अड्डों पर, और यहां तक कि ट्रेड-फेयरों में एक अच्छा-खासा बिजनैस बन रहा है। इस दौरान इन्हें कम से कम दस मिनट तक ऑक्सीजन सूंघाई जाती है।
हां, एक बात याद आई.....कि मैं जिस किसी न्यूज़-रिपोर्ट को पहले से पढ़ने की बात कर रहा था, इस के संबंध में मुझे कुछ कुछ याद आ रहा है कि शायद उस में मैंने पढ़ा था कि ऐसा ऑक्सीजन बार अहमदाबाद में भी खुल गया है।
वैसे एक तरह से देखा जाये तो जिस तरह की प्रकृति के साथ दूसरी सब तरह की पंगेबाजी हो रही है, यह ऑक्सीजन बार वाली बात तो कोई इतनी बड़ी नहीं कि इसे इतना तूल दिया जाये। लेकिन , नहीं , हमारे देश में इसे तूल दिया जाये दिया ही जाना चाहिए......क्यों कि इस तरह की ऊल-जलूल प्रणालियों की हमें कोई ज़रूरत ही नहीं है।
हमारे पास तो भई इस से भी कईं गुणा (हज़ारों गुणा !) बेहतर विकल्प है .....हज़ारों साल पुराना हमारे ऋषियों-मुनियों द्वारा सिद्ध किया हुया प्राणायाम्। यह जो प्राणायाम् है न यह पूरी तरह से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है क्योंकि जब हम प्राणायाम् करते हैं तो हमारे शरीर में इस प्राण-ऊर्जा की सप्लाई कईं गुणा तक बढ़ जाती है जिस की वजह से हम सारा दिन बहुत चुस्ती-स्फूर्ति अनुभव करते रहते हैं। अगर हम नियमित प्राणायाम करते हैं तो हमें अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं।
लेकिन मैं यह समझता हूं कि प्राणायाम की विधि हमें कहीं से व्यक्तिगत रूप से सीखनी चाहिए क्योंकि यह एक बहुत ही सटल(subtle science)वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिस को अगर पूरी निगरानी से न सीखा जाये तो इस का वांछित प्रभाव तो दूर किसी उल्ट प्रभाव का भी अंदेशा लगा रहता है।
मैंने यह सब कुछ बंबई में रहते हुए एक पंद्रह दिन के कार्यक्रम के दौरान सीखा था। यह सिद्ध समाधि योग कार्यक्रम है, जो कि ऋषि संस्कृति विद्या केन्द्र नामक संस्था करवाती है जो कि अडवर्टाइजिंग में विश्वास नहीं करती है....इस के संस्थापक हैं ब्रह्मर्षि ऋषि प्रभाकर जी, जो कि स्वयं एक ऐरोनॉटिक्ल इंजीनियर हैं और जिन की कईं सालों की तपस्या का फल है यह प्रोग्राम...सिद्ध समाधि योग प्रोग्राम ( Siddha Samadhi yoga programmes run by Rishi Samskruti Vidya Kendra with its headquarters at Bangalore.. www.ssy.org) इन के सेंटर विभिन्न शहरों में हैं।
वास्तव में यह प्रोग्राम कर लेने के बाद से तो मेरी जिंदगी में बहुत बदलाव आये थे। कुछ साल तक तो मैं नियमित सब कुछ प्रैक्टिस करता रहा ...लेकिन काफी लंबे अरसे से बस हर किसी को ज़्यादा उपदेश देता रहता हूं लेकिन खुद नहीं करता हूं जब कि मुझे इतना भी पता है कि इस का नियमित अभ्यास करने से ज़्यादा कोई और चीज़ मेरे लिए इतनी ज़रूरी नहीं है। लेकिन अब जब से इस ऑक्सीजन बार वाली खबर पर नज़र पड़ी है ना , तो बस मन ही मन ठान लिया है कि अब फिर से इस का अभ्यास दोबारा शुरू करूंगा। पता नहीं हम डाक्टर लोग खुद के लिए क्यों इतने लापरवाह होते हैं। शायद हम अपनी सलाह खुद नहीं मानना चाहते ...अपने आप से पूछ रहा हूं कि कहीं वही वाली बात तो नहीं है....हलवाई अपनी मिठाई खुद नहीं खाता। लेकिन जो भी यह सब कुछ ---प्राणायाम् इत्यादि ---तो जल्द से जल्द शुरू करना ही होगा....वज़न बढ़ रहा है, और कुछ खास शारिरिक श्रम करता नहीं हूं।
और हां, वह अपनी ऑक्सीजन बार तो कहीं बीच में ही रह गई। उस हिंदु अखबार की रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि चूंकि इस तरह की ऑक्सीजन का प्रयोग सामान्यतः अस्पताल में तो एक दवाई की तरह होता है ( विशेषकर सांस लेने में कठिनाई के मामलों में), इसलिए इस तरह के ऑक्सीजन बारों को भी कंट्रोल करने की बात छिड़ी हुई है।
तो चलो, बीयर बॉर के मुद्दे से पूरी तरह फारिग हुये बिना अपनी बलोग्स में इस ऑक्सीजन बार के बारे में हमें आने वाले दिनों में खूब लिखने को मिलेगा.......वैसे तो मेरी प्रार्थना यही है कि ये आक्सीजन बार हमारे यहां तो न ही आयें तो बेहतर होगा......इस मामले में हम वैस्टर्न के लोगों से जितना पीछे ही रहें उतना ही बेहतर होगा। लेकिन मेरे सोचने से क्या हो जायेगा.....अगर आने वाले समय में इन ऑक्सीजन बारों की भरमार होनी है तो इन्हें लोगों को शुद्ध ऑक्सीजन का लुत्फ़ उठाने के लिए उकसाने से भला कौन रोक सकता है ?