मुझे जो बच्चे मोटर साईकिल एवं कारें चलाते हैं...शायद मुझे उन के ऊपर जितना गुस्सा आता है, उस से भी कहीं ज्यादा गुस्सा उन के मां बाप के ऊपर आता है जिन की वजह से यह बच्चा बेलगाम हो गया है. लेखक हूं ..अखबारों के लिए भी लेख लिखता रहता हूं लेकिन पता नहीं यह बलाग लिखते हुए मैं बेहद आजादी सी अनुभव कर रहा हूं ..शायद इसीलिए अपने मन की बात आप से सांझी करने की तीव्र इच्छा सी हो रही है। वह यह है कि जब भी मैं इन छोटे-छोटे बच्चों को इस तरह के वाहन उड़ा कर डरावने से हार्न बजा कर जाते देखता हूं तो मेरी इतनी ज्यादा इच्छा होती है कि मैं पहले तो इसे रोक कर एक करारा सा तमाचा जड़ूं और फिर उन के मां-बाप से बात करूं..
दोस्तो, कृपया यह मत सोचिए कि यह मैं यह इस लिए करने की चाह रखता हूं कि मैं अपने किशोर बेटे के लिए ऐसी गाड़ी की व्यवस्था करने के काबिल नहीं हूं या मैंने सारी पढ़ाई एक साईकिल पर चढ़ कर ही पूरी की है, इसलिए मैं कहीं फ्रस्टरेटिड हूं ..बिल्कुल नहीं मेरी इस नफरत के पीछे केवल एक ही कारण है कि ये बच्चे सड़क पर सीधे-सादे लोगों को आतंकित कर के रखते हैं। दोस्तो, आप जानते हैं कि इस देश में तो वैसे ही फुटपाथ गधे के सींग की तरह गायब हैं, जिस की वजह से बुजर्ग लोगों , पैदल जाने वाले छोटे स्कूली बच्चों को एवं बीमार लोगों को सड़क के बीच चलने का जोखिम तो उठाना ही पड़ता है, इस सब से ऊपर इन बच्चों का आतंक सहने की ज़हमत भी इन्हें उठानी पड़े ,यह मेरे से देखा नहीं जाता।
वैसे भी जब इन बच्चों के मां-बाप इन को मोटर-साइकिल एवं कारें थमाते हैं, उन्हें यह तो समझ लेना चाहिए कि वे अपने बच्चे की जान तो खुशी खुशी जोखिम में डाल सकते हैं, लेकिन एक आम बंदे की जिंदगी से खिलवाड़ करने का लाइसैंस आखिर उन के लाडले को किस ने दे दिया है। बात सोचने की है,,,,,,अगर हम इन की लगाम अपने हाथ में नहीं रखेंगे तो फिर गुड़गांव स्कूल जैसे किस्से ही हमें नियमति देखने सुनने को मिला करेंगे।
बस दीनता से यह कह देना कि बच्चे मानते नहीं हैं , यह बिल्कुल गलत है। मेरा किशोर बेटा मुझे हज़ारों बार मोटर-साइकिल दिलाने को कह चुका है और मैं भी उसे 18 साल न खरीदने के लिए हज़ारों बार ही मना कर चुका हूं।