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सोमवार, 21 मार्च 2011

डा. बशीर की डायरी ----पेज 2.

पिछली पोस्ट ...डा बशीर का डायरी --पेज 1 से आगे .....

जब बशीर ने उन से उस एक्स-रे के बारे में पूछा कि वह कहां पर है? उन्होंने बताया कि वह तो एक्स-रे विभाग में जमा हो गया था ... उस ने उन्हें वह लाने को कहा। वहां पर वे एक-डेढ़ घंटा धक्के खाने के बाद वापिस आ गये कि वहां से तो कहते हैं कि हम इतना पुराना एक्स-रे नहीं ढूंढ सकते।

बशीर उन के साथ एक्स-रे रूम तक गया ... वहां पर स्टॉफ को कहा कि देखो, बई, इन का एक्स-रे ढूंढो कैसे भी, कहीं से भी, इन का स्वास्थ्य देख ही रहे हैं आप! आधे घंटे के बाद वे दंपति एक्स-रे लेकर वापिस बशीर के पास आ गये।

बशीर ने फिर से पूछा कि बाकी सब तो ठीक है ना, उस ने साफ साफ अक्षरों में यह भी पूछ डाला कि बवासीर जैसी कोई बात तो नहीं! इतना सुनते ही उस वृद्दा ने बहुत ही झिझकते झिझकते बोला कि इन्हें टायलेट के साथ खून आता है। पूछने पर उस ने आगे बताया कि यह तो बहुत दिनों से हो रहा है। बशीर ने पूछा कि क्या यह तकलीफ़ आप ने अपने डाक्टर को पहले कभी बताई? जवाब मिला कि उन्हें लग रहा था कि गर्म दवाईयों की वजह से यह सब हो रहा है, अपने आप ठीक हो जायेगा। और रही बात, अपने डाक्टर के साथ बात करने की, यह बात किसी ने पूछी नहीं और उन्हें स्वयं यह बात करने में शर्म आती थी क्योंकि डाक्टर के कमरे में हमारी जान-पहचान के और भी बहुत से लोग इक्ट्ठे होते हैं।

बहरहाल , बशीर ने उन के नुस्खे पर यह टायलेट के रास्ते रक्त निकलने की बात लिख कर उसे वापिस डाक्टर के पास भेज दिया ... और डाक्टर ने छाती का एक्स-रे देख कर उन्हें अगले दिन फ़िज़िशियन को दिखाने के लिये बुला लिया।

बशीर आगे लिखता है कि जिस बड़े अस्पताल में वह काम करता है, वह बिल्कुल नाम का ही बड़ा है, पंद्रह डाक्टरों की जगह चार डाक्टर काम कर रहे हैं...विशेषज्ञ कोई भी नहीं टिकता, चुस्त चालाक लोग कोई भी जुगाड़ कर के बड़े शहरों में लपक जाते हैं... केवल एक फ़िज़िशियन है। आगे जो लिखा था वह पढ़ कर मन दुःखी हुआ....लिखता है कि एक एक डाक्टर दिन भर में 80-90 मरीज़ “भुगता” देता है, वह भी यह सोच कर हैरान है कि यह कैसे हो सकता है ! लेकिन बड़े दुःखी मन से आगे लिखता है कि डाक्टर चाहे एक भी हो....(और चाहे न भी हो !!) , सिवाए मरीज़ के किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, सब मस्ती मार रहे हैं, टूर जाने वाले टूर पर जा रहे हैं, छुट्टी पर जाने वाले छुट्टी काट रहे हैं, खूब राजनीति भी चल रही है, लेकिन अगर मरीज़ों की तरफ़ से कोई शिकायत नहीं है, तो किसी को भी किसी से कोई भी शिकायत नहीं है ....

बशीर भी जब दिल की बात लिखने लगता है ....तो फिर सब कुछ लिख ही देता है ... उस ने लिखा था ....मरीज़ों का क्या है, वे घंटा शिकायत करेंगे, उन्हें पता कैसे चलेगा कि उन के साथ कम से कम दस मिनट बिताने की जगह अगर आधा मिनट बिताया गया है तो इस का सीधा सीधा मतलब उन की सेहत के लिये आखिर है क्या ! लेकिन छोड़िए, किसी को कोई परवाह नहीं, सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा... आगे लिखता है कि उस के अस्पताल का सीधा सीधा फंडा है कि बस उन पांच दस लोगों को “ हर कीमत पर” हर तरह से खुश रखा जाए...( पंजाबी में एक कहावत है ...किसे अग्गे कोड़ा होना....बस लिखदा ऐ कि अजेहे पंजा-दसां लोकां अग्गे बस कोडे होन दी ही कसर रह जांदी ऐ !!) …..बशीरे, तूं वी जदों दिल नाल लिखदैं फेर कुछ नहीं वेखदा .......लेकिन लगता है कि वह इधर उधर देखता भी क्यों, अपनी डायरी में अपनी मस्ती में लिख रहा था।

मैं बशीर की डायरी पढ़ते पढ़ते सोच रहा था कि बशीर क्यों इतनी हिम्मत हारता दिखाई दे रहा है, हर बात का इलाज तो है, खैर मैं वापिस उस की डायरी के दूसरे पन्ने पर ही वापिस आ जाता हूं.....

अगले दिन वो दंपति आते हैं ...फिज़िशियन को दिखाने के लिये....किसी पड़ोसी की कार मांग कर क्योंकि उस बंदे से चला नहीं जा रहा था लेकिन उन के अस्पताल पहुंचने पर पता चलता है कि फिज़िशियन साहब तो आज छुट्टी पर हैं । मायूस हो कर जाने के सिवाए कोई चारा नहीं था।

 अगले दिन वे दंपति आते हैं, फिज़िशियन को दिखाने के बाद बशीर के पास आते हैं....फिज़िशियन ने भी उन के छाती के एक्स-रे में दिखने वाली गड़बड़ी के बारे में लिखा था और टीबी के जीवाणु देखने के लिये लगातार तीन बार लार की टैस्टिंग (sputum test) के लिये कहा था। आज फिर बशीर ने पूछ ही लिया कि वह जो टायलेट के साथ रक्त आता है, उस का क्या हाल है ?

इतना बात सुनने पर पता नहीं कैसे बेचारी उस वृद्दा के सब्र का बांध टूट गया कि उस ने दिल की बात खोल ही दी ...डाक्टर साहब, यह तकलीफ़ इन्हें पिछले काफी दिनों से है, बड़ी बेबसी से, बशीर लिखता है, उस ने कहा कि मैं थक गई हूं इन का खून से लथपथ पायजामा और कच्छा (अंडरवियर) धोते धोते...... मुझे उल्टी जैसा होने लगता है, लेकिन बहुओं-बेटों वाला घर है, किसी से कुछ भी कहते शर्म आती है !! मैं तो यह बात आपसे भी न करती, पता नहीं कैसे आज हिम्मत आ गई !! और उस ने आगे कहा कि उसे लगता है कि इन की उस जगह पर कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि जिस तरह खून के थक्के निकलते हैं, मुझे बहुत डर लगता है....

बशीर ने आगे लिखा कि उसे समझ मे आ रहा था कि इन्हें किसी सर्जन को दिखाया जाना बेहद ज़रूरी है.... जिस के लिये उन्हें चालीस मील दूर जाना होगा......लेकिन वे अभी कहते हैं कि पहले वे थूक का टैस्ट करवा के उस तकलीफ़ से निपट लें, यह तकलीफ़ को थोड़े दिनों बाद देख लेंगे........क्रमशः
कड़ी जोड़ने के लिये देखिए
डा बशीर की डायरी --पहला पन्ना 

डा बशीर की डायरी ... पहला पन्ना

कुछ दिन पहले मुझे बहुत वर्षों के बाद एक कॉलेज के दिनों का मित्र मिला... खूब बातें हुईं... प्रोफैशन, दुनिया और इधर उधर की हर तरह की बहुत सी बातें। प्रोफैशन की बातों से ध्यान आया ...उस ने मेरे को अपनी डायरी ही पढ़ने के लिये दे दी .... कुछ बातें ऐसी पढ़ीं जिन्हें मैं यहां पाठकों के साथ साझा करना ज़रूरी समझता हूं।

मेरा यह दोस्त एक डैंटिस्ट है डा. बशीर (नाम बदल दिया है).. डायरी में उस ने एक बुज़ुर्ग के बारे में लिखा था कि एक 70-75 वर्ष का व्यक्ति था, वह दो एक साल पहले दांतों के उपचार के लिये उस के पास अकसर आया करता था ...जब सब कुछ दुरूस्त हो गया तो उस से मुलाकात होनी बंद हो गई। उस के बारे में उस ने लिखा था कि बड़ा हंसमुख, ज़िंदादिल इंसान था.....अपनी ज़िदगी के किताब के कुछ पन्ने बशीर के सामने खोल लिया करता था।
हां, तो बशीर ने आगे लिखा था कि उसने उस बुज़ुर्ग को पिछले कुछ महीनों में तीन चार बार बाज़ार में देखा ... उसे देख कर बहुत ताजुब्ब हुआ करता था कि वह बहुत कमज़ोर सा दिखने लगा था।

अभी कुछ दिन पहले ही की बात है कि वह बुज़ुर्ग और उस की वृद्ध पत्नी डा बशीर को अस्पताल के बाहर ही मिल गये....अच्छी तरह से मिले ...लेकिन वह बंदा बहुत ही कमज़ोर दिख रहा था...बशीर ने उनसे पूछा कि क्या बात है, वजन बहुत कम लग रहा है, सब ठीक तो है? इस पर उस की पत्नी ने बताया कि बस, अब इन की तबीयत ऐसी ही रहती है, पिछले कुछ दिनों से पेट में दर्द भी है, बस, दिन प्रतिदिन इन की सेहत गिरती जा रही है, बस किसी तरह से यह अस्पताल में भर्ती हो जाएं।

बशीर जल्दी में था ... उस ने उन का मार्गदर्शन किया कि वे किस डाक्टर के पास जाएं और वहां दिखाने के बाद उस से मिल कर जाएं.... और कोई भी दिक्कत होने पर उस के कमरे में आकर  मिलने के लिये भी कह दिया।

लगभग डेढ़ घंटे के बाद वह बुज़ुर्ग और उन की बीवी बशीर के कमरे में पहुंचे ..... उस ने उन्हें सम्मानपूर्वक बिठाया, अच्छे से बात की और सब हाल चाल पूछा ... उस वृद्दा ने डाक्टरी नुस्खा उस के आगे कर दिया। उस ने देखा कि डाक्टर ने उस के लिये पेट और सिरदर्द की दवाई लिखी हुई थी ... लेकिन यह देख कर बशीर को तसल्ली नहीं हुई...उसे लगा कि यह बंदा बीमार तो इतना ज़्यादा लग रहा है और ये पेट-सिरदर्द की दवाईयां आखिर कौन सा जादू कर देंगी!

बहरहाल बशीर ने उस नुस्खे को फिर से देखना शुरू किया ...उस ने देखा कि दो महीने पहले इस बंदे का छाती का एक एक्स-रे हुआ था जिस की रिपोर्ट कुछ गड़बड़ थी ...
क्रमश.....

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

बुज़ुर्गों के आर्थिक शोषण को नासमझने की नासमझी

कुछ अरसा पहले मेरी ओपीडी में एक बुज़ुर्ग दंपति आये थे ...पता नहीं बात कैसे शुरू हुई कि उन्होंने अपनी असली बीमारी मेरे सामने रख दी कि उन का इकलौता बेटा जो तरह तरह के नशे लेने का आदि हो चुका है, उन की पेंशन छीन लेता है। विरोध करने पर अपने पिता पर हाथ भी उठाने लगता है, जब उन का छः-सात साल का पौता उस बुज़ुर्ग को बचाने की कोशिश करता है तो उस का पिता उसे भी पीट देता है...............और उन दंपति के सहमे हुये चेहरे और भी बहुत कुछ ब्यां कर रहे थे !

मैं सोच रहा था कि यह बुज़ुर्ग जो उच्च रक्तचाप की दवाईयां ले रहा है, इस से क्या हो जाएगा? तकलीफ़ कहीं और है जिसे देखने के लिये हमारी आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के पास आंखें है ही नहीं.... चाहे ऐसे मरीज़ की हर माह दवाई बदल दी जाए, पुरानी दवाईयों में नईं और जोड़ दी जाएं ... तो क्या हम सोच सकते हैं कि यह ठीक रह सकता है ? ……..मुझे तो कभी भी ऐसा नहीं लगा!!

बुज़ुर्गों के शारीरिक उत्पीड़न (physical torture) के साथ साथ उन का आर्थिक शोषण भी किया जा रहा है, लेकिन ज्यादातर ऐसे किस्से ये बुज़ुर्ग ही दबाए रखते हैं ....वही पुरानी दलीलें ..घर की बदनामी होगी, बेइज्जती होगी, बेटा या बहू इस से और ढीठ हो जाएंगे वगैरह वगैरह ......इसलिये यह सिलसिला बुजुर्गों के दम निकलने तक चलता ही रहता है।

और इस तरह की यातना झेलने के बाद जब ये बुज़ुर्ग बदहवास से होते हैं तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि उम्र की तकाज़े की वजह से अब ये पगला गये हैं, अब इन का जाने का समय आ गया है।
आप को भी शायद यह लगता होगा कि यह सब तो हम जैसे देशों में ही होता होगा ...लेकिन न्यू-यार्क टाइम्स की यह रिपोर्ट .... When abuse of older adults is financial...वहां की परिस्थितियों के बारे में भी बहुत कुछ बताती है।

रिपोर्ट में कितनी साफ़गोई से लिखा गया है कि डाक्टर लोग बुज़ुर्गों के आर्थिक शोषण के मुद्दे को अकसर नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं। अगर कोई ऐसा मरीज़ कहता है कि उस ने अपने पैसे किसी जगह रखे थे लेकिन वह उसे मिल नहीं रहे, उस की पचास-साठ पुरानी शादी की अंगूठी पता नहीं कहां चली गई, अगर कोई बुज़ुर्ग कहता है कि उस ने एक खाली फार्म पर हस्ताक्षर तो कर दिये हैं लेकिन उसे उस की कोई समझ नहीं ....और भी ऐसी बहुत सी बातें ... तो ऐसे में डाक्टर क्या करते हैं ... उन की बातों की गहराई में जाकर कुछ ढूंढने की बजाए यही सोच लेते हैं कि ये सब भूल-भुलैया तो अब इन के साथ चलेंगी ही ...इसलिये उन्हें दी जाने वाली टेबलेट्स की लिस्ट में कुछ और दवाईयां जोड़ दी जाती हैं, या फिर कोई और टैस्ट करवाने की हिदायत दे दी जाती है। 

यह सब कुछ इस देश में भी हो रहा है ..और बड़े स्तर पर .. ... सोचने की बात है कि  किसी की अति-वरिष्ट नागरिक की लेबलिंग करने से क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा?

यह तो बात पक्की है कि बुज़ुर्गों का हर तरह का शोषण हो रहा है ... और इस के एक प्रतिशत केस भी जगजाहिर नहीं होते ... और यह सब होता इतने नर्म तरीके और सलीके (subtle way) से है कि उन्हें घुट घुट कर मारने वाली बात दिखती है। भारत में अभी भी नैतिक मूल्य काफ़ी हद तक कायम तो हैं लेकिन पश्चिम की देखा देखी अब इन का भी ह्रास तेज़ी से हो ही रहा है। कानून तो बन गये कि मां बाप की देखभाल करना बच्चों की जिम्मेवारी है लेकिन ऐसा कानून कितने लोग इस्तेमाल करते हैं या कर पाते हैं ....यह बताने की कोई ज़रूरत नहीं !!

इस का कारण व इलाज यही है कि अब नईं पीढ़ी को सही संस्कार नहीं मिल पा रहे—आर्कुट, फेसबुक, ट्विटर पर सारा दिन जमे रहने से तो ये मिलने से रहे, ये केवल किसी सत्संग में बैठ कर किसी महांपुरूष की बातें सुन कर ही ग्रहण किये जा सकते हैं और साथ ही साथ बच्चे हर काम में अपने मां-बाप का ही अनुसरण करते हैं, इसलिये उन के सामने मां-बाप को भी आदर्श उदाहरण रखनी होगी .....वरना तो वही बात ... बीस-तीस सालों बाद वही व्यवहार यही बच्चे उन के साथ करने वाले हैं!!

यह दकियानूसी बात नहीं है कि बच्चों को किसी भी सत्संग के साथ जोड़ने में और जोड़े रखने में ही सारे समाज की भलाई है ताकि वे अपने नैतिक मूल्यों एवं जिम्मेदारियों के प्रति सचेत रह सकें ......इस के अलावा कोई भी रास्ता मेरी समझ में तो आता नहीं..... दुनिया तो ऐसी ही है कि एक 80 साल की महिला के बस द्वारा कुचले जाने पर मुआवजा देने से बचने के लिये एक सरकारी इंश्योरैंस कंपनी कहती है कि इस के लिये काहे का मुआवजा, यह तो बोझ है!! ……. लेकिन जज ने फिर उस कंपनी को कैसे आड़े हाथों लिया, यह जानने के लिये इस लिकं पर क्लिक करिये ...Insurance firm's view on old people insulting ..