कुछ अरसा पहले मेरी ओपीडी में एक बुज़ुर्ग दंपति आये थे ...पता नहीं बात कैसे शुरू हुई कि उन्होंने अपनी असली बीमारी मेरे सामने रख दी कि उन का इकलौता बेटा जो तरह तरह के नशे लेने का आदि हो चुका है, उन की पेंशन छीन लेता है। विरोध करने पर अपने पिता पर हाथ भी उठाने लगता है, जब उन का छः-सात साल का पौता उस बुज़ुर्ग को बचाने की कोशिश करता है तो उस का पिता उसे भी पीट देता है...............और उन दंपति के सहमे हुये चेहरे और भी बहुत कुछ ब्यां कर रहे थे !
मैं सोच रहा था कि यह बुज़ुर्ग जो उच्च रक्तचाप की दवाईयां ले रहा है, इस से क्या हो जाएगा? तकलीफ़ कहीं और है जिसे देखने के लिये हमारी आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के पास आंखें है ही नहीं.... चाहे ऐसे मरीज़ की हर माह दवाई बदल दी जाए, पुरानी दवाईयों में नईं और जोड़ दी जाएं ... तो क्या हम सोच सकते हैं कि यह ठीक रह सकता है ? ……..मुझे तो कभी भी ऐसा नहीं लगा!!
बुज़ुर्गों के शारीरिक उत्पीड़न (physical torture) के साथ साथ उन का आर्थिक शोषण भी किया जा रहा है, लेकिन ज्यादातर ऐसे किस्से ये बुज़ुर्ग ही दबाए रखते हैं ....वही पुरानी दलीलें ..घर की बदनामी होगी, बेइज्जती होगी, बेटा या बहू इस से और ढीठ हो जाएंगे वगैरह वगैरह ......इसलिये यह सिलसिला बुजुर्गों के दम निकलने तक चलता ही रहता है।
और इस तरह की यातना झेलने के बाद जब ये बुज़ुर्ग बदहवास से होते हैं तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि उम्र की तकाज़े की वजह से अब ये पगला गये हैं, अब इन का जाने का समय आ गया है।
आप को भी शायद यह लगता होगा कि यह सब तो हम जैसे देशों में ही होता होगा ...लेकिन न्यू-यार्क टाइम्स की यह रिपोर्ट .... When abuse of older adults is financial...वहां की परिस्थितियों के बारे में भी बहुत कुछ बताती है।
रिपोर्ट में कितनी साफ़गोई से लिखा गया है कि डाक्टर लोग बुज़ुर्गों के आर्थिक शोषण के मुद्दे को अकसर नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं। अगर कोई ऐसा मरीज़ कहता है कि उस ने अपने पैसे किसी जगह रखे थे लेकिन वह उसे मिल नहीं रहे, उस की पचास-साठ पुरानी शादी की अंगूठी पता नहीं कहां चली गई, अगर कोई बुज़ुर्ग कहता है कि उस ने एक खाली फार्म पर हस्ताक्षर तो कर दिये हैं लेकिन उसे उस की कोई समझ नहीं ....और भी ऐसी बहुत सी बातें ... तो ऐसे में डाक्टर क्या करते हैं ... उन की बातों की गहराई में जाकर कुछ ढूंढने की बजाए यही सोच लेते हैं कि ये सब भूल-भुलैया तो अब इन के साथ चलेंगी ही ...इसलिये उन्हें दी जाने वाली टेबलेट्स की लिस्ट में कुछ और दवाईयां जोड़ दी जाती हैं, या फिर कोई और टैस्ट करवाने की हिदायत दे दी जाती है।
यह सब कुछ इस देश में भी हो रहा है ..और बड़े स्तर पर .. ... सोचने की बात है कि किसी की अति-वरिष्ट नागरिक की लेबलिंग करने से क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा?
यह तो बात पक्की है कि बुज़ुर्गों का हर तरह का शोषण हो रहा है ... और इस के एक प्रतिशत केस भी जगजाहिर नहीं होते ... और यह सब होता इतने नर्म तरीके और सलीके (subtle way) से है कि उन्हें घुट घुट कर मारने वाली बात दिखती है। भारत में अभी भी नैतिक मूल्य काफ़ी हद तक कायम तो हैं लेकिन पश्चिम की देखा देखी अब इन का भी ह्रास तेज़ी से हो ही रहा है। कानून तो बन गये कि मां बाप की देखभाल करना बच्चों की जिम्मेवारी है लेकिन ऐसा कानून कितने लोग इस्तेमाल करते हैं या कर पाते हैं ....यह बताने की कोई ज़रूरत नहीं !!
इस का कारण व इलाज यही है कि अब नईं पीढ़ी को सही संस्कार नहीं मिल पा रहे—आर्कुट, फेसबुक, ट्विटर पर सारा दिन जमे रहने से तो ये मिलने से रहे, ये केवल किसी सत्संग में बैठ कर किसी महांपुरूष की बातें सुन कर ही ग्रहण किये जा सकते हैं और साथ ही साथ बच्चे हर काम में अपने मां-बाप का ही अनुसरण करते हैं, इसलिये उन के सामने मां-बाप को भी आदर्श उदाहरण रखनी होगी .....वरना तो वही बात ... बीस-तीस सालों बाद वही व्यवहार यही बच्चे उन के साथ करने वाले हैं!!
यह दकियानूसी बात नहीं है कि बच्चों को किसी भी सत्संग के साथ जोड़ने में और जोड़े रखने में ही सारे समाज की भलाई है ताकि वे अपने नैतिक मूल्यों एवं जिम्मेदारियों के प्रति सचेत रह सकें ......इस के अलावा कोई भी रास्ता मेरी समझ में तो आता नहीं..... दुनिया तो ऐसी ही है कि एक 80 साल की महिला के बस द्वारा कुचले जाने पर मुआवजा देने से बचने के लिये एक सरकारी इंश्योरैंस कंपनी कहती है कि इस के लिये काहे का मुआवजा, यह तो बोझ है!! ……. लेकिन जज ने फिर उस कंपनी को कैसे आड़े हाथों लिया, यह जानने के लिये इस लिकं पर क्लिक करिये ...Insurance firm's view on old people insulting ..
मैं सोच रहा था कि यह बुज़ुर्ग जो उच्च रक्तचाप की दवाईयां ले रहा है, इस से क्या हो जाएगा? तकलीफ़ कहीं और है जिसे देखने के लिये हमारी आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के पास आंखें है ही नहीं.... चाहे ऐसे मरीज़ की हर माह दवाई बदल दी जाए, पुरानी दवाईयों में नईं और जोड़ दी जाएं ... तो क्या हम सोच सकते हैं कि यह ठीक रह सकता है ? ……..मुझे तो कभी भी ऐसा नहीं लगा!!
बुज़ुर्गों के शारीरिक उत्पीड़न (physical torture) के साथ साथ उन का आर्थिक शोषण भी किया जा रहा है, लेकिन ज्यादातर ऐसे किस्से ये बुज़ुर्ग ही दबाए रखते हैं ....वही पुरानी दलीलें ..घर की बदनामी होगी, बेइज्जती होगी, बेटा या बहू इस से और ढीठ हो जाएंगे वगैरह वगैरह ......इसलिये यह सिलसिला बुजुर्गों के दम निकलने तक चलता ही रहता है।
और इस तरह की यातना झेलने के बाद जब ये बुज़ुर्ग बदहवास से होते हैं तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि उम्र की तकाज़े की वजह से अब ये पगला गये हैं, अब इन का जाने का समय आ गया है।
आप को भी शायद यह लगता होगा कि यह सब तो हम जैसे देशों में ही होता होगा ...लेकिन न्यू-यार्क टाइम्स की यह रिपोर्ट .... When abuse of older adults is financial...वहां की परिस्थितियों के बारे में भी बहुत कुछ बताती है।
रिपोर्ट में कितनी साफ़गोई से लिखा गया है कि डाक्टर लोग बुज़ुर्गों के आर्थिक शोषण के मुद्दे को अकसर नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं। अगर कोई ऐसा मरीज़ कहता है कि उस ने अपने पैसे किसी जगह रखे थे लेकिन वह उसे मिल नहीं रहे, उस की पचास-साठ पुरानी शादी की अंगूठी पता नहीं कहां चली गई, अगर कोई बुज़ुर्ग कहता है कि उस ने एक खाली फार्म पर हस्ताक्षर तो कर दिये हैं लेकिन उसे उस की कोई समझ नहीं ....और भी ऐसी बहुत सी बातें ... तो ऐसे में डाक्टर क्या करते हैं ... उन की बातों की गहराई में जाकर कुछ ढूंढने की बजाए यही सोच लेते हैं कि ये सब भूल-भुलैया तो अब इन के साथ चलेंगी ही ...इसलिये उन्हें दी जाने वाली टेबलेट्स की लिस्ट में कुछ और दवाईयां जोड़ दी जाती हैं, या फिर कोई और टैस्ट करवाने की हिदायत दे दी जाती है।
यह सब कुछ इस देश में भी हो रहा है ..और बड़े स्तर पर .. ... सोचने की बात है कि किसी की अति-वरिष्ट नागरिक की लेबलिंग करने से क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा?
यह तो बात पक्की है कि बुज़ुर्गों का हर तरह का शोषण हो रहा है ... और इस के एक प्रतिशत केस भी जगजाहिर नहीं होते ... और यह सब होता इतने नर्म तरीके और सलीके (subtle way) से है कि उन्हें घुट घुट कर मारने वाली बात दिखती है। भारत में अभी भी नैतिक मूल्य काफ़ी हद तक कायम तो हैं लेकिन पश्चिम की देखा देखी अब इन का भी ह्रास तेज़ी से हो ही रहा है। कानून तो बन गये कि मां बाप की देखभाल करना बच्चों की जिम्मेवारी है लेकिन ऐसा कानून कितने लोग इस्तेमाल करते हैं या कर पाते हैं ....यह बताने की कोई ज़रूरत नहीं !!
इस का कारण व इलाज यही है कि अब नईं पीढ़ी को सही संस्कार नहीं मिल पा रहे—आर्कुट, फेसबुक, ट्विटर पर सारा दिन जमे रहने से तो ये मिलने से रहे, ये केवल किसी सत्संग में बैठ कर किसी महांपुरूष की बातें सुन कर ही ग्रहण किये जा सकते हैं और साथ ही साथ बच्चे हर काम में अपने मां-बाप का ही अनुसरण करते हैं, इसलिये उन के सामने मां-बाप को भी आदर्श उदाहरण रखनी होगी .....वरना तो वही बात ... बीस-तीस सालों बाद वही व्यवहार यही बच्चे उन के साथ करने वाले हैं!!
यह दकियानूसी बात नहीं है कि बच्चों को किसी भी सत्संग के साथ जोड़ने में और जोड़े रखने में ही सारे समाज की भलाई है ताकि वे अपने नैतिक मूल्यों एवं जिम्मेदारियों के प्रति सचेत रह सकें ......इस के अलावा कोई भी रास्ता मेरी समझ में तो आता नहीं..... दुनिया तो ऐसी ही है कि एक 80 साल की महिला के बस द्वारा कुचले जाने पर मुआवजा देने से बचने के लिये एक सरकारी इंश्योरैंस कंपनी कहती है कि इस के लिये काहे का मुआवजा, यह तो बोझ है!! ……. लेकिन जज ने फिर उस कंपनी को कैसे आड़े हाथों लिया, यह जानने के लिये इस लिकं पर क्लिक करिये ...Insurance firm's view on old people insulting ..
दुर्भाग्य
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