गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

धीरे धीरे सुबह हुई ...जाग उठी ज़िंदगी..

मैं अपने मरीज़ों को यह ज़रूर कहता रहा हूं कि दिन में जब भी मौका मिले टहल लिया करो....और सुबह का वक्त तो इस काम के लिए सब से बेहतरीन होता ही है... दोस्तो, मैंने ऐसे ऐसे लोगों को वॉकर के साथ टहलते देखा है कि अगर ८-९ बजे तक लंबी ताने सोए रहने  जवान लोग उन्हें बाग में टहलते देख लें तो शर्म से पानी पानी हो जाएं...

मुझे अगर मरीज़ कहते कि हम ज़्यादा चल नहीं सकते तो मैं उन्हें कहता कि आप ने रेस नहीं लगानी, जितना आराम से चल सकते हैं, उतना चलिए...चलने का लुत्फ़ लीजिए...कुछ ऐसे महिलाएं जो कहतीं कि बिल्कुल भी कहीं जाने की तमन्ना ही नहीं होती...चलने की तो बिल्कुल नही....मैं उन्हें कहता कि जब भी वक्त मिले घर के पास के किसी बगीचे में ही बैठ जाइए..सर्दी है तो धूप का आनंद लीजिए, पेड़ पौधे, फूल-पत्ते देख कर तबीयत को हरा-भरा रखिए....कुछ तो मान भी लेते हैं ...

मैं सब को यही कहता हूं कि जितना भी हो सके एक-आध घंटे के लिए ही सही, घर से निकला तो करिए...जब भी हम लोग सुबह बाहर निकलते हैं, कुछ न कुछ नया दिखता है, क़ुदरती नज़ारे दिखते हैं...अचानक रास्ते में वे चीज़ें दिख जाती हैं जिन की तरफ़ वैसे दिन भर की आपा-धापी में कभी ध्यान ही नहीं जाता। 

कहते तो हम रहते हैं जब भी मौका मिलता है सभी को ...जो नहीं मानते उन से भी कोई गिला-शिकवा नहीं ...क्योंकि हम लोग नसीहत देने वाले ही कहां अपनी कही बातें ख़ुद मानते हैं...मैं सुबह सुबह साईकिल पर दूर तक जाना बहुत पसंद करता हूं ...मैं पिछले साल इन्हीं दिनों साईकिल पर रोज़ सुबह २०-२५ किलोमीटर घूम कर आता है ..ज़्यादातर तो बांद्रा से जुहू बीच होते हुए, वर्सोवा बीच तक जाता था और वहां से वापिस लौट आता था...कईं बार तो जुहू बीच की रेत पर अपनी फैट-बाइक भी चलाता था ..


फिर किसी बंदे ने नेक सलाह दे दी कि उस रेत में साई्कल चलाने में जितना ज़ोर लगता है न, तुम अपने घुटनों की बची-खुची सलामती भी खो दोगे... और मैंने यह सलाह मान ली। २ महीने साईकिल चलाया और वज़न १०-१२ किलो कम हो गया था...लेकिन पिछले ११ महीनों से साईकिल नहीं चलाता ...कोई कारण नहीं, जा सकता हूं लेकिन नहीं, आलस करता हूं ...पता भी है कि इस उम्र में बहुत ज़रूरी है ..अभी मैं कुछ दिन पहले सुबह साईकिल पर घूमने गया था ...बहुत अच्छा लगा था...बांद्रा से जुहू होते हुए इस्कॉन टेंपल तक गया और वापिस लौट आया...वही बात है, जैसे एक प्रसिद्ध कहावत है कि ...कुछ भी करने के मौसम नहीं, मन चाहिेए।

और जहां तक सुबह टहलने की बात है....वह भी कईं कईं दिन बाद ही होता है ....घर के आस पास ही किसी काम की वजह से जहां भी जाना होता है, वह पैदल ही जाता हूं और इसीलिए मैं यहां नया स्कूटर नहीं खरीद रहा हूं ..क्योंकि मुझे अपना पता है अगर मेरे पास स्कूटर होगा तो जैसा मैं हूं ...मैं अपनी टांगों को थोड़ी बहुत ज़हमत देनी भी बंद कर दूंगा। 

जहां हम अब रहते हैं...उस के सामने बीच है ...बढ़िया प्रॉमेनेड है, पास ही ख़ूबसूरत जागर्स पार्क है...और 10-15 मिनट की पैदल की दूरी पर बैंड-स्टैंड है वहां का भी प्रॉमनेड बहुत बढ़िया है ...इस एरिया में फिल्मी हस्तियां, मॉडल टहलते दिखते हैं अकसर ...लेकिन हम कईं कईं दिन बाहर निकलने का मूड बनाने में ही निकाल देते हैं...और जिस दिन अगर कभी टहल ही आएं तो सारा दिन वे तस्वीरें शेयर कर कर के दूसरों का जीना दूभर कर देते हैं... जैसा कि मैं अभी करने वाला हूं ...😎

मेरी बहन आई हुई हैं ...मेरे से 10 साल बड़ी हैं...डाक्ट्रेट हैं, यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर रही हैं...अभी भी यूनिवर्सिटी क्लासेस के लिए बुलाती है ..मुझे आठवीं तक इंगलिश-विंग्लिश खूब अच्छे से पढ़ाती थीं, मैं इन से अपने दिल की सभी बातें शेयर कर लेता था... आठवीं में पढ़ ही रहा था कि इन की शादी हो गई, मुझे बुरा लग रहा था, लेकिन मन में कहीं न कहीं यह भी खुशी थी कि अब इन का साईकिल मुझे मिल जाएगा...कल सुबह उन्हें बैंड-स्टैंड की तरफ़ लेकर गया तो बहुत अच्छा लगा...आलस त्याग कर जब भी सुबह उठ जाते हैं तो अच्छा ही लगता है ... 

ज़िंदगी की आपा-धापी में हम लोग बहुत सी चीज़ों को तो नोटिस भी नहीं करते ...बैंड-स्टैंड के पास ही अभिनेत्री रेखा के बंगले (बसेरा) के सामने यह बैंच हमने कभी आते जाते नोटिस ही नहीं किया था ... यह भी कोई दो एक सौ साल पुराना है ...और देखने लायक है ..

ध्यान से देखिए बंदा वॉकर की मदद से नीचे समंदर की लहरों तक पहुंच गया है ...जहां चाह वहां राह!!

रिमांइडर हर तरफ़ मिलते हैं हमें, लेकिन हम किसी की बात सुनें तों...यह एलडीएल को देख कर मुझे भी ख्याल आया कि कुछ दिन पहले करवाए मेरे लिपिड प्रोफाईल में भी कुछ लफड़ा था..डा जायस्वाल मैम ने कहा भी था कि ख़ूब तेज़ तेज़ रोज़ टहला करो...आज यह रिमांइडर फिर से मिला...

हैरानगी की बात यह भी है कि इतनी बार गये हैं इस तरफ़ लेकिन कभी यह चिल्ड्रन-पार्क की तरफ़ ध्यान ही न गया...आप यह तो नहीं सोच रहे न कि चिल्ड्रन पार्क में तुम क्या कर रहे हो...हम भी तो अभी बच्चे ही हैंं!

कौन है जिसे इन सुंदर फूलों को यूं ज़मीन पर पड़े देख कर "पु्ष्प की अभिलाषा" याद न आ जाती होगी!


सी.एस.आर भी अच्छी बात है ....कुछ बातें याद दिलाते रहना भी एक बड़ी ख़िदमत है ...

एक नेक महिला प्लेट में इस महारानी को खानी परोस रही दिखी ...और इसे बड़े प्यार से कुछ कह भी रही थीं साथ साथ ...शायद यह कह रही होगी कि तुम इतना बिगड़ा मत करो, अब मान भी जाओ...घर से निकलते निकलते कभी देर हो भी जाती है....मैं ऐसी सभी महिलाओं के इस जज़्बे के आगे नतमस्तक हूं ...

जनाब कौआ जी धरने पर बैठे हों जैसे...मानो कह रहे हों कि यह तो सब कुछ कबूतरों के लिए लिखा है, मेरे पेट पर क्यों लात मार रहे हो, मुझे भी तो कुछ खिलाओ...पिलाओ

सिर्फ इस लिए खीले (कील) ठोंक दिए गये हैं ताकि आते-जाते कोई थका-मांदा राही गल्ती से भी दो मिनट चैन की सांस न ले ले .....यह भी है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ...जो अमिताभ न दिखा पाया डॉन फिल्म के उस गाने में ...

आज यहीं बंद करते हैं ..आज तो हम नहीं गए टहलने, कल के नज़ारों को ही इस पोस्ट में समेटने में लग गए...और कल सुबह से जिस गीत का बार बार ख़्याल आ रहा है, अब हम सब मिल कर वह गीत सुनते हैं- 'धीरे धीरे सुबह हुई...जाग उठी ज़िंदगी'...मेरे लिए यही सुबह की प्रार्थना, इबादत भी है ...जिसे बार बार कहने-सुनने को दिल मचलता है....😄यसुदास की मधुर आवाज़ के नाम!

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