दोस्तो, मैं अकसर यहां वहां आते जाते रास्ते में तस्वीरें खींचता रहता हूं...पिछले कुछ दिनों में भी मैंने कुछ तस्वीरें खींचीं...सभी लखनऊ की ही हैं...मैं अभी डिलीट करने लगा तो सोचा, इतनी भी क्या जल्दी है, अब खेंच ही रखी हैं तो आप सब से दो दो लाइन लिख कर शेयर भी कर लेता हूं...
अपनी कॉलोनी के एक घर के बाहर इस तरह का पुराने ज़माने का लेटर-बॉक्स देख कर हैरानगी हुई...वैसे तो आजकल इस तरह के ये बॉक्स कहां बनते हैं...शायद इन लोगों ने कह कर बनवाया होगा।
कुछ हाउसिंग सोसाइटीयों को बेल-बूटों की संभाल करने का हुनर होता है..यह एक नमूना है...आप ने शायद किसी गांव में ही पेड़ों की इस तरह की अच्छी हिफ़ाज़त होती देखी होगी...कितना सुंदर लगता है मिट्टी का प्लेटफार्म...और ये लोग इसे अकसर गमलों वाले रंग से सजाते रहते हैं....अच्छा लगता है। अकसर जिन जगहों पर इन पेड़ों के इर्दगिर्द सीमेंट का प्लेटफार्म बना दिया जाता है...ऐसे नहीं लगता जैसे पेड़ों का गला ही दबा दिया हो!...मुझे यह मिट्टी वाला आइडिया बहुत बढ़िया लगता है।
यह जो आप ऊपर तीन तस्वीरें देख रहें हैं , ये कल की हैं। मैंने कल पहली बार ऐसा देखा था कि इस तरह के बेड में एक बड़ा ट्रंक ही फिट करवा दिया। वैसे तो इस तरह की जुगाड़बाजी के अपने फायदे भी हैं और नुकसान भी हैं..लेकिन जो भी हो, ज़रूरत आविष्कार की जननी है। मैंने इस भद्रपुरूष को जाते जाते पूछा कि ये कहां पर बनते हैं तो उसने बताया कि कह नहीं सकता...मैं तो मोहनलालगंज से लेकर आ रहा हूं....यह लखनऊ से लगभग १५ किलोमीटर की दूरी पर है।
इस कॉलोनी में रहते दो बरस हो गये हैं....और माली अकसर नीचे काम करते दिख जाता था..इन तीनों में से सब से पहली तस्वीर जो आप देख रहे हैं, वह उस दिन की है जब मैंने एक जैसे दो बंदे देखे। मैं इन के पास गया और मैंने हैरानगी प्रकट की कि यार, आप दोनों अलग अलग हो, मुझे तो यह कभी पता ही नहीं चला....वे बताने लगे कि हम दोनों जुड़वा हैं ..दस मिनट का अंतर है....मैंने कहा..तस्वीर ले लूं ...तो वे झट से पोज़ देने के लिए खड़े हो गये।
रास्ते में जाते हुए यह पत्ते अच्छा लगा था कुछ दिन पहले.... यह इस तरह से मेरे कैमरे में आ गया।
आज शाम एक बाज़ार की नुक्कड़ पर ये सब तैयारियां होते देख ध्यान आया कि होलिका दहन की तैयारियां ज़ोरों पर हैं...तो मैंने इस मंज़र को कैमरे में कैद कर लिया.....पता नहीं यह भाई जी क्यों इतने गुस्से में लग रहे हैं, यह मेरा प्रश्न नहीं है, मेरे बेटे ने मेरे से पूछा!
तीन दिन पहले पीडब्ल्यूडी अफसरों की कॉलोनी के बाहर इस तरह का विज्ञापन पहली बार देखा.... मुझे नहीं पता था कि गाड़ी को धुलवाना भी इतना महंगा सौदा है......और ऊपर से आपने देख ही लिया...बिजली..पानी आपका...हा हा हा हा ...
आज कल हर तरफ़ लोगों को सेहतमद बनाने पर जोर है.....आए दिन फिटनेस वर्कशाप लगती रहती हैं।
हमारे अस्पताल से मरीज़ों को माउथवाश भी मिलता है...दो दिन पहले एक पढ़ी लिखी लेडी बोतल लेकर मेरे को दिखाने आ गई कि क्या यह भी औरतों मर्दों के लिए अलग अलग होता है। मैंने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, यह कंपनी ने बिना कारण टिका दिया होगा, आप भी इसे बिना झिझक इस्तेमाल कर सकती हैं।
हमारे घर के पास ही किसी मकान के बाहर सड़क के किनारे उन्होंने यह शो-पीस रखा हुआ है...अच्छा लगता है ...रात के समय इस पर लाइट पड़ती है, इस का भी इंतजाम है.....अपने अपने शौंक की बात है!!
बस, आज के लिए इतना ही......लेिकन जाते जाते ध्यान आ गया कि पिछले बरस इन्हीं दिनों जब पड़ोस में होलिका दहन हो रहा था तो एक भोजपुरी गाने की खूब धूम मची हुई थी....मैंने अपने सहायक से आज पूछा कि वह कौन सा गीत है ....राजा जी...राजा जी.....उसने मुझे उस गीत का पूरा पता बता दिया....आप भी सुनिए...यह यहां का सुपर-डुपर गीत है....जैसे पंजाब का दिलेर मेंहदी का गीत है ना ...........गड्डे ते न चड़दी... गडीरे ते न चड़दी.....
अपनी कॉलोनी के एक घर के बाहर इस तरह का पुराने ज़माने का लेटर-बॉक्स देख कर हैरानगी हुई...वैसे तो आजकल इस तरह के ये बॉक्स कहां बनते हैं...शायद इन लोगों ने कह कर बनवाया होगा।
यह हमारी कॉलोनी के मेनगेट की शोभा बढ़ाता है... |
यह जो आप ऊपर तीन तस्वीरें देख रहें हैं , ये कल की हैं। मैंने कल पहली बार ऐसा देखा था कि इस तरह के बेड में एक बड़ा ट्रंक ही फिट करवा दिया। वैसे तो इस तरह की जुगाड़बाजी के अपने फायदे भी हैं और नुकसान भी हैं..लेकिन जो भी हो, ज़रूरत आविष्कार की जननी है। मैंने इस भद्रपुरूष को जाते जाते पूछा कि ये कहां पर बनते हैं तो उसने बताया कि कह नहीं सकता...मैं तो मोहनलालगंज से लेकर आ रहा हूं....यह लखनऊ से लगभग १५ किलोमीटर की दूरी पर है।
इस कॉलोनी में रहते दो बरस हो गये हैं....और माली अकसर नीचे काम करते दिख जाता था..इन तीनों में से सब से पहली तस्वीर जो आप देख रहे हैं, वह उस दिन की है जब मैंने एक जैसे दो बंदे देखे। मैं इन के पास गया और मैंने हैरानगी प्रकट की कि यार, आप दोनों अलग अलग हो, मुझे तो यह कभी पता ही नहीं चला....वे बताने लगे कि हम दोनों जुड़वा हैं ..दस मिनट का अंतर है....मैंने कहा..तस्वीर ले लूं ...तो वे झट से पोज़ देने के लिए खड़े हो गये।
रास्ते में जाते हुए यह पत्ते अच्छा लगा था कुछ दिन पहले.... यह इस तरह से मेरे कैमरे में आ गया।
आज शाम एक बाज़ार की नुक्कड़ पर ये सब तैयारियां होते देख ध्यान आया कि होलिका दहन की तैयारियां ज़ोरों पर हैं...तो मैंने इस मंज़र को कैमरे में कैद कर लिया.....पता नहीं यह भाई जी क्यों इतने गुस्से में लग रहे हैं, यह मेरा प्रश्न नहीं है, मेरे बेटे ने मेरे से पूछा!
तीन दिन पहले पीडब्ल्यूडी अफसरों की कॉलोनी के बाहर इस तरह का विज्ञापन पहली बार देखा.... मुझे नहीं पता था कि गाड़ी को धुलवाना भी इतना महंगा सौदा है......और ऊपर से आपने देख ही लिया...बिजली..पानी आपका...हा हा हा हा ...
आज कल हर तरफ़ लोगों को सेहतमद बनाने पर जोर है.....आए दिन फिटनेस वर्कशाप लगती रहती हैं।
हमारे अस्पताल से मरीज़ों को माउथवाश भी मिलता है...दो दिन पहले एक पढ़ी लिखी लेडी बोतल लेकर मेरे को दिखाने आ गई कि क्या यह भी औरतों मर्दों के लिए अलग अलग होता है। मैंने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, यह कंपनी ने बिना कारण टिका दिया होगा, आप भी इसे बिना झिझक इस्तेमाल कर सकती हैं।
हमारे घर के पास ही किसी मकान के बाहर सड़क के किनारे उन्होंने यह शो-पीस रखा हुआ है...अच्छा लगता है ...रात के समय इस पर लाइट पड़ती है, इस का भी इंतजाम है.....अपने अपने शौंक की बात है!!
बस, आज के लिए इतना ही......लेिकन जाते जाते ध्यान आ गया कि पिछले बरस इन्हीं दिनों जब पड़ोस में होलिका दहन हो रहा था तो एक भोजपुरी गाने की खूब धूम मची हुई थी....मैंने अपने सहायक से आज पूछा कि वह कौन सा गीत है ....राजा जी...राजा जी.....उसने मुझे उस गीत का पूरा पता बता दिया....आप भी सुनिए...यह यहां का सुपर-डुपर गीत है....जैसे पंजाब का दिलेर मेंहदी का गीत है ना ...........गड्डे ते न चड़दी... गडीरे ते न चड़दी.....
पढ़ा बहुत अच्छा लगा ...देखा और अच्छा लगा ...फिर थोड़ा सुना ...ठीक है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें |