सोमवार, 3 नवंबर 2014

डिठवन पर्व है आज...

आज दोपहर बाद मैंने लखनऊ के बाज़ार में देखा कि बढ़िया बढ़िया क्वालिटी के गन्ने और शकरकंदी खूब बिक रही थी, मुझे यह अनुमान लगाते देर न लगी कि आज भी कोई त्योहार है, कोई तो व्रत है, पर्व है।

एक बुज़ुर्ग रिक्शेवाला मेरे पास आकर रूका......मैंने उस से पूछा....आज क्या कोई त्योहार है। उस ने बड़े उत्साह से मुझे जवाब दिया...हां, हां, यह डिठवन है। मुझे शब्द अच्छे से पल्ले पड़ा नहीं। फिर भी उस बेचारे ने तो मुझे दो बार दोहरा कर बताने की कोशिश तो की ही...इतने में उस की सवारी आ गई।

अभी मैं जब फिर से बाज़ार में निकला तो लोगों को ताबड़तोड़ गन्ने और शकरकंदी खरीदते देखा... मैंने एक बंदे को पूछ ही लिया कि इस त्योहार का क्या नाम है। तो उसने वही शब्द बोला ...मैंने उसे कहा कि आप ज़रा लिख दें.....मैं नेट पर देख लूंगा।

उसने लिख तो दिया ...चाहे उस ने ठीक से लिखा नहीं था, लेकिन इतना बता दिया कि यहां गांव-देहात में इसे डिठवन कहते हैं.....



अब मुझे यह तो पता नहीं कि यह पर्व कैसे मनाया जाता है लेकिन फिर से नेट पर हिंदी लिख लेने का एक फायदा यह तो है कि आप गूगल से तो पूछ ही सकते हैं.....पहले तो स्पैलिंग गलत ही थे, फिर आखिर जब डिठवन लिखा तो दिख गया कुछ कुछ अपने मतलब का।

जिस पन्ने पर जाकर मैंने इस पर्व के बारे में पढ़ा, आप भी इसे यहां जाकर पढ़ सकते हैं......मन साफ होंगे तभी होंगे हरि दर्शन 

कईं बार यही अहसास होता है कि हम लोग अपने शहर की जगहों को नहीं जानते, गली मोहल्लों के नामों से वाकिफ़ नहीं है, अपने ही कितने तीज-त्योहारों के नाम तक नहीं जानते, किसी दूसरे प्रांत में चले जाएं तो वहां पर कुछ ऐसी सब्जियां दिखती हैं जो पहले कभी देखी नहीं होती........सच में हमारा ज्ञान कितना सूक्ष्म है.....फिर भी हम लोग पता नहीं किस बात पर इतराए रहते हैं, नाक पर मक्खी नहीं बैठते देते....बात सोचने लायक है कि नहीं!!

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