शनिवार, 30 जुलाई 2011

सेहत खराब करने वाली दवाईयां आखिर बिकती ही क्यों हैं?

परसों मेरा एक मित्र मुझ से पूछने लगा कि वज़न बढ़ाने के लिये ये जो फूड-सप्लीमैंट्स आते हैं इन्हें खा लेने में आखिर दिक्तत है क्या। मैंने कहा कि लगभग इन सब में कुछ ऐसे प्रतिबंधित दवाईयां –स्टीरॉयड आदि – होते हैं जो कि सेहत के लिये बहुत नुकसानदायक हैं। अच्छा, आगे उस ने कहा कि यह जो जिम-विम वाले हैं वे तो कहते हैं कि जो डिब्बे वो बेच रहे हैं, वे बिल्कुल ठीक हैं। बात वही है कि अगर उन्होंने इन डिब्बों को आठ-नौ सौ रूपये में बेचना है तो इतना सा आश्वासन देने में उन का क्या जाता है, कौन सा ग्राहक इन की टैस्टिंग करवाने लगा है, और सच बात तो यह है कि किसी को पता भी तो नहीं कि यह टैस्टिंग हो कहां पर सकती है।

पिछले सप्ताह अस्पताल में एक युवक मेरे से कोई दवाई लेने आया ...अच्छा, अब पता झट चल जाता है कि सेहत का राज़ क्या है, शारीरिक व्यायाम, पौष्टिक आहार या फिर वही डिब्बे वाला सप्लीमेंट से डोले-शोले बना रखे हैं ....मुझे लगा कि यह डिब्बों वाला केस है ...मेरे पूछने पर उस ने बताया कि सर, दो महीने डिब्बे खाये हैं, पहले महीने तो मुझे अपने आप में लगा कि मुझ में नई स्फूर्ति का संचार हो रहा है तो दूसरे महीने मुझे देख कर लोगों ने कहना शुरू कर दिया। आगे पूछने लगा कि सर, क्या आप अपने बेटे को ये सप्लीमैंट्स खिलाने के लिये पूछ रहे हैं.....उस के बाद मुझे इन सप्लीमैंट्स की सारी पोल खोलनी पड़ी।

हां, तो मैं उस मित्र की बात कर रहा था जो कह रहा था कि जिम संचालक तो कहते हैं कुछ नहीं इन में सिवाए बॉडी को फिट रखने वाले तत्वों के ......लेकिन जो बात उस ने आगे की, मुझे वह सुन कर बहुत शर्म आई क्योंकि मेरे पास उस की बात का कोई जवाब नहीं था।

हां, जानिए उस मित्र ने क्या पूछा....उस ने कहा ..डाक्टर साहब, मैं आप के पास आया हूं, आप ने बता दिया और मैंने मान लिया ...लेकिन उन हज़ारों युवकों का क्या होगा जो ये सप्लीमैंट्स खाए जा रहे हैं.... उस ने यह भी कहा कि इन डिब्बों पर तो स्टीरायड नामक प्रतिबंधित दवाईयों के उस पावडर में डाले जाने की बात कही नहीं होती।

अब इस का मैं क्या जवाब देता ? – बस, यूं ही यह कह कर कि कोई कुछ भी कहें, इन में कुछ प्रतिबंधित दवाईयां तो होती ही हैं जो शरीर के लिये नुकसानदायक होती हैं। लेकिन उस का प्रश्न अपनी जगह टिका था कि अगर ये नुकसानदायक हैं तो फिर ये सरे-आम बिकती क्यों हैं, अब इस का जवाब मैं जानते हुए भी उसे क्या देता!! बस, किसी तरह यह बात कह कर इस विषय को चटाई के नीच सरका दिया कि लोगों की अवेयरनेस से ही सारी उम्मीद है। लेकिन उस बंदे के सारे प्रश्न बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करने वाले हैं।

परसों उस मित्र से होने वाली इस बातचीत का यकायक ध्यान इसलिए आ गया क्योंकि कल मैंने अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की साइट पर एक पब्लिक के लिये नोटिस देखा जिस में उन्होंने जनता को आगाह किया था एक गर्भनिरोधक दवाई न लें क्योंकि वह नकली हो सकती है, इस से नुकसान हो सकता है.....यह उस तरह की दवाई थी जो एमरजैंसी गर्भनिरोधक के तौर पर महिलाओं द्वारा खाई जाती है.....असुरक्षित संभोग के बाद (unprotected sex) ….. वैसे तो अब इस तरह की दवाईयों के विज्ञापन भारतीय मीडिया में भी खूब दिखने लगे हैं....इन की गुणवत्ता पर मैं की प्रश्नचिंह नहीं लगा रहा हूं लेकिन फिर भी कुछ मुद्दे अब महिला रोग विशेषज्ञ संगठनों ने इन के इस्तेमाल से संबंधित उठाने शुरू कर दिये हैं।

सौजन्य .. फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन
पहला तो यह कि कुछ महिलाओं ने इसे रूटीन के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है ... दंपति यह समझने लगे हैं कि यह भी गर्भनिरोध का एक दूसरा उपाय है....लेकिन नहीं, यह एमरजैंसी शब्द जो इन के साथ लगा है यह बहुत ज़रूरी शब्द है. वरना रूटीन इस्तेमाल के लिये अगर इसे गर्भनिरोधक गोलियों (माला आदि) की जगह इसे इस्तेमाल किया जाने लगेगा तो अनर्थ हो जाएगा, महिलाओं की सेहत के ऊपर बुरा असर – after all, these are hormonal preparations-- और दूसरी बात यह कि लोगों को यह गलतफहमी है कि इस तरह का एमरजैंसी गर्भनिरोधक लेने से यौन-संचारित रोगों की चिंता से भी मुक्ति मिलती है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है।

हम भी कहां के कहां निकल गये ....वापिस लौटते हैं उस अमेरिकी एफडीआई की चेतावनी की तरह जिस में उन्होंने एक ऐसे ही प्रोडक्ट की फोटो अपनी वेबसाइट पर डाल दी है ताकि समझने वाले समझ सकें, लेकिन मेरी भी तमन्ना है कि जो किसी भी नागरिक के लिये खराब है ...पहली बात है वो कैमिस्टों की दुकानों पर बिके ही क्यों और दूसरी यह कि क्यों न अखबारों में, चैनलों पर इन के बारे में जनता को निरंतर सूचित किया जाए ..........आखिर चैनल हमें प्रवचनों की हैवी डोज़ या फिर सास-बहू के षड़यंत्र दिखाने-सिखाने के लिए ही तो नहीं बने....सामाजिक सरोकार तो भी कोई चीज़ है। कोई मेरी बात सुन रहा है या मैं यूं ही चीखे जा रहा हूं?

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3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या डॉ. साब आप भी न....
    कितनी बार तो इस ब्लौग पर यह बात हुई है कि ये इण्डिया है! यहाँ सब चलता है! और चलता रहेगा!
    मैं चीज़ें सुधरने की उम्मीद करता-करता जवान हुआ और बूढ़ा भी हो जाऊँगा.
    बहुत सी चीज़ें सुधरीं भी, पर बहुत सी और बिगड़ गयीं.
    खैर, उम्मीद पे दुनिया कायम है.
    ज्यादा पैसा कमाने की होड़ हर बुराई की जड़ में है.

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  2. हम तो जी सुबह को एक दर्जन केले और शाम को एक किलो आम खा लेते हैं खाना खाने के बाद। फिर जो भरपूर नींद आती है, उसका क्या कहना। सेहत भी फिट और खाने वाला भी फिट।

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  3. sahi kahan aapne. ab mere sampark mey jo bhi ayega main un sab ko .in sab bato se parichit karaunga...

    aap ka bhut dhanyawad
    kanwar vikrant singh
    www.kanwarvikrantsingh.blogspot.com

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