शुक्रवार, 16 मई 2008

आखिर डाक्टर ही अकेला कौन सा भाड़ फोड लेगा !!

चिकित्सा के क्षेत्र को बहुत ही नज़दीक से पिछले २५ सालों से देख रहा हूं....बस इसी बेसिस पर इतना तो ज़रूर कह सकता हूं कि ज़्यादातर बातें जो मरीज को परेशान कर रही होती हैं वे वास्तव में डाक्टर के कंट्रोल के बाहर ही की होती हैं। इस में तो कोई शक है ही नहीं कि एमरजैंसी केसों में तुरंत चिकित्सा के नज़रिये से तो चिकित्सा विज्ञान ने जिन आयामों को छुआ है उन्हें देख कर तो बस दांतों तले अंगुली दबाने की ही इच्छा होती है। लेकिन जहां तक जीवनशैली से संबंधित पुरानी बीमारियों की बात है, हम लोग ....हम लोग ही क्यों, सारा संसार जितना भी ढोल पीट ले, इतना कहना तो तय ही है कि इन बीमारियों के लोग लिटरली दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं । जो सरकारी कर्मी हैं या ईएसआई के अंतर्गत कवर हैं उन की हालत तो थोड़ी बेहतर है ....वो भी केवल इस लिये कि उन्हें दवाईयां फ्री मिल तो रही हैं , अब वे लोग कितनी हद तक डाक्टरी सलाह के अनुसार इन का सेवन करते होंगे, यह सोचने की बात है। लेकिन प्राईवेट सैक्टर के बारे में क्या कहूं......मरीज़ों के पास वहां तक जा कर दिखाने के अकसर पैसे ही नहीं होते, अगर कंसल्टेशन के पैसों का जुगा़ड़ हो भी जाता है तो दवाई कहां से आये...दो-तीन दिन की दवा करने पर ही आदमी को अपनी बीमारी की चिंता कम और आटे के खाली कनस्तर की चिंता ज़्यादा सताने लगती है।
लगभग ४०-५० लोगों से रोज़ मिलता हूं......कुछ बीमारियों उम्र के साथ जैसे कि हड्डीयों व जोड़ों की तकलीफें, यहां दर्द -वहां दर्द , गैस का गोला इधर भी और उधर भी, पिंडलीयों में दर्द, भूख न लगना , कमजोरी हो जाना, दिल एवं दिमाग की बीमारियां ( आप क्या कहते हैं कि बीमारियां लिखूं या परेशानियां। ).......नित प्रतिदिन मैं अपनी ओपीडी में बैठा इन चेहरों को पढ़ता हूं.......और फिर बातों बातों में बता भी देता हूं कि हमारी ज़्यादातर तकलीफें हमारी अपनी ही बुलाई हुई हैं। तो मैं कुछ बातें स्वस्थ जीवन के लिये उन को गिना देता हूं...
-- सादा, पौष्टिक खाना खायें......( वो मुझे भी पता है कि आज कल यह कहां हर एक के बस में है।
---तंबाकू सेवन, अल्कोहल से हमेशा दूर रहें। जंक फूड न लें।
---शारीरिक कसरत किया करें.....टहलने जाया करें.....और सब से सब से सब से ज़रूरी है कि प्राणायाम किया करें। और ध्यान की विधि की किसी ग्रेट मास्टर से सीख कर उस का भी अभ्यास किया करें।

पता नहीं कितने लोग बातें मानते होंगे, कितने एक कान से घुसा कर दूसरे से निकाल बाहर करते होंगे...मैं कुछ नहीं कह सकता। लेकिन अपना फर्ज है कि ये बातें चीख-चीख कर कहना ----वही काम किये जा रहे हैं और क्या ।।

8 टिप्‍पणियां:

  1. मैं अपने शहर में लगभग हर डॉक्‍टर से मिला हूं और कमोबेश हर डॉक्‍टर केवल और केवल दवा कं‍पनियों से रिश्‍वत लेकर उनके नाम की दवाईयां और दवा की दुकानों से कमीशन लेकर अपनी जेबें भरने में जुटा है.

    ऊपर से बाजर में अधिकांश दवाईयां नकली.

    मेरे मन में डॉक्‍टर नाम की शख्शियत की कुछ बहुत ही खराब छवियां हैं.

    शुक्र है आप जैसे डॉक्‍टर अभी भी हैं, जो मरीजों के हित के बारे में बातें करते हैं वरना तो सभी मरीज को एक हलाल करने वाला बकरा मानते हैं.

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  2. अरे! अरे! क्या कर रहे हैं आप? आप ने तो बाबा रामदेव की सफलता का सारा राज ही खोल दिया।

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  3. सही कह रहे हैं, अधिकतर तकलीफें तो हम खुद अपनी आदतों के कारण बुलाते हैं.

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  4. एक चिकित्सक की डायरी में ये विश्लेषण पढना कहीं यह उम्मीद तो जगाता ही है कि बाजारुपन के प्रभाव में पूरे तरह से नही है दुनिया.

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  5. dr. sahab aap jaise log hi chikitsa shastra ki sapth yad rakh sakte hain..aapke lekhon ko dekhkar yah viswas hota hai manvta abhi puri tarah mari nhi.aapke sarthak prayas ke liye bdhayi swikaren.

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  6. बड़ा अच्छा लगा आपका ये पन्ना! बहुत काम की जानकारी मिलती रहेगी!धन्यवाद...

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  7. डाक्टर साहब.
    अपने पेशे से जुड़ी विसंगति
    और विडंबना का ऐसा तल्ख़
    और दो टूक अनावरण कर आपने
    बड़ी ईमानदार क़लमगोई का परिचय दिया है.
    वैसे आपके मिशन को पढ़कर भी तसल्ली हुई कि
    चीज़ों को डिकोड करने के पीछे आप
    एक ख़ास लेकिन पाक़ मक़सद रखते हैं.
    ये बड़ी बात है.
    आभार
    डा.चंद्रकुमार जैन

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