शुक्रवार, 16 मई 2008

मुझे इन पार्टीयों वगैरह में जाने से चिढ़ है

क्योंकि इन में मन में कुछ चल रहा होता है, बंदा सोच रहा होता है, कह कुछ रहा होता है और उस का मतलब कुछ और ही होता है.....नकली प्लास्टिक मुस्कुराहटों से नफरत करता हूं मैं.......अभी दो मिनट पहले किसी के साथ मिला कर अगले पांच मिनटों में जैसे ही वह आंखों से ओझल होता है, आप उस बेचारे की कमजोरियां गिनाना शुरू कर देते हो...........यह सब बेहद चीप हरकतें हैं....मेरा इन में कोई इंटरस्ट नहीं है इसलिये मैं ज़्यादातर इन पार्टीयों वगैरा से दूर ही रहना चाहता हूं। मैंने बहुत नज़दीक से छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी पार्टीयों को देखा है लेकिन यही देखा है कि जिन्हें हम छोटी मोटी पार्टीयां कहते हैं वहां पर लोग जी रहे होते हैं .....बड़ी बड़ी पार्टियों और जश्नों में हम लोग केवल गोसिपिंग करते हैं , केवल चुगलखोरियां, केवल पर-छिद्रानवेषण ..............लेकिन ना भी करें तो क्यों ना करें......हमें मजा आता है....हमें इस की आदत लग चुकी है। क्या फायदा इस तरह की पार्टियों में जाने का ...इस से घर पर बैठ कर एफएम पर गाने ही सुन लो।
देखो, दोस्तो, अब हो चुके हैं छः महीने ब्लागरी में पैर धरे हुये थे.....बहुत हो गईं अच्छी अच्छी बातें......सोच रहा हूं अब तो शुरू करूं अपने मन की बात कहना । तो, दोस्तों, शुरू करूंगा आज से यह जो नया काम करने जा रहा हूं उस में शत-प्रतिशत इमानदारी ही हो, और कुछ नहीं.......।

4 टिप्‍पणियां:

  1. न आपको सन्संग में जाना पसंद है.
    न आपको पार्टियों में जाना पसंद है.

    -यही तो योग्यता चाहिये एक सफल ब्लॉगर में. शुरु हो जायें दनादन. फिर ऑफिस जाना भी पसंद आना बंद हो जायेगा. शुभकामनाऐं.

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  2. इन पार्टियों को लेकर मेरा तजुर्बा भी आप जैसा है। खैर, आपने दिल की बात लिखने की बात की है। ज़रुर लिखें। इससे बेहतर माध्यम अपनी बात कहने का और क्या हो सकता है।

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  3. सही है लोगो की जो आदत बन गई है धन्यवाद

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  4. मेरे भी हालात आपसे मिलते हैं.

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