बुधवार, 2 अप्रैल 2008

अच्छा तो अब तस्वीरें ही करेंगी अपना काम !!



यह जो न्यूज़-रिपोर्ट आप देख रहे हैं यह 20 मार्च के समाचार-पत्र में छपी थी। इस में यह खबर सुन कर बहुत खुशी हुई थी कि अब तो जून 24,2008 से सिगरेट, बीड़ी एवं तंबाकू के पैकटों पर तसवीर के रूप में भी चेतावनी हुया करेगी और इस चेतावनी के द्वारा पैकेट का 40प्रतिशत हिस्सा कवर किया जायेगा।
बाकी की न्यूज़-रिपोर्ट या तो आप पहले ही पढ़ चुके होंगे , नहीं तो अब पढ़ ही लेंगे। कुछ ज़्यादा डिटेल्स तो अभी इस कानून की मुझे पता नहीं हैं.......लेकिन फिर भी मैं तो बस इस न्यूज़ रिपोर्ट की उस एक बात की तरफ आप सब का ध्यान खींचना चाह रहा हूं जिस में यह कहा गया है कि हर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी को अंग्रज़ी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में स्पैसीफाई कर लिया गया है ......और दो से ज्यादा भाषायें एक पैकेट के ऊपर नहीं लिखी जायेंगी।
अब मैं यही सोच रहा हूं कि क्या इन दोनों भाषाओं में देश की राष्ट्रभाषा भी कहीं शामिल है या नहीं !.....क्योंकि मेरे विचार में अगर च्वाइस एक क्षेत्रीय भाषा की हो और एक दूसरी भाषा की , तो केवल और केवल हिंदी को ही तरजीह मिलनी चाहिये। इस का कारण केवल इतना ही है कि हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो सारे देशवासियों को एक सुंदर माला में पिरो कर रखती है। अगर इन पैकेटों पर कम से कम एक चेतावनी हिंदी में लिखी होगी तो इस देश का बशिंदा चाहे वह कहीं का भी वासी हो रोज़ी-रोटी के लिये कहीं भी बसा हुया हो तो भी एक चेतावनी हिंदी में होने की वजह से उसे सारी बात सही तरह से समझ में आ जायेगी।
नहीं तो आप एक कल्पना कीजिये कि पंजाब में बिक रही बीड़ी के पैकेटों पर अगर एक चेतावनी तो अंग्रेज़ी में होगी और दूसरी पंजाबी (गुरमुखी लिपि) में लिखी होगी तो उन हज़ारों लाखों लोगों पर इस का कितना प्रभाव पड़ पायेगा जो दूसरे प्रांतों से आकर यहां बसे हुये हैं। सीधी बात यह है कि हिंदी को हमें याद रखना ही होगा....अगर कहीं हिंदी भूल गये तो बस हो गया इस चेतावनी का सारा काम चौपट ! जो भी हो, अभी तो इस के बारे में विस्त्तृत जानकारी हमें भी पता नहीं है। आशा है कि इन बातों का़ ध्यान रखा जायेगा।
पता नहीं, यह तंबाकू भी क्या बला है कि जिस के ऊपर इतने सारे संसाधन खप जाते हैं लेकिन फिर भी जब तक लोग इस तंबाकू के सभी रूपों को अपनी ज़िंदगी से बाहर नहीं करेंगे तब तक कुछ भी होने वाला नहीं है....चाहे जितने भी बड़े बड़े हास्पीटल खुल जायें, जितने भी बड़े बड़े कैंसर हास्पीटल खुल जायें, तंबाकू की वजह से होने वाली सांस की तकलीफ़ों से जूझने के लिये चाहे दुनिया के जितने बड़े से बड़े डाक्टर इक्ट्ठे कर लिये जायें....इन से कुछ नहीं होगा.......रोज़ाना हास्पीटलों में तंबाकू से हुई बर्बादी की मुंह बोलती तस्वीरें देख देख कर अब तो मैं भी थक सा गया हूं। सोच रहा हूं कि पंजाब में अकसर यह कहावत बड़ी मशहूर है कि अगर किसी का घर तबाह करना हो तो उस के बेटे को शराब की लत लगा दो,.....मैं तो सोचता हूं कि इतनी भी मेहनत करने की क्या ज़रूरत है.......शौक शौक में उसे सिगरेट-बीड़ी के ही चंगुल में फंसा दो, समझो काम हो गया !
अकसर सोचता हूं कि बाहर के देशों में तो सैकेंड-हैंड स्मोक का रोना इतना रोया जा रहा है लेकिन हम पहले फर्स्ट हैंड स्मोक का रोना रोने से तो फारिग हो लें, सैकेंड-हैंड स्मोक के बारे में सोचने की अभी किसे फुर्सत है !!!

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