आज ऐसे ही ध्यान आ रहा था कि हमारा समय भी क्या था कि अगर हिंदी फिल्मी के गीत देखने भी हैं तो वे सिर्फ़ सिनेमाघरों में जा कर ही देखे जा सकते थे । यह टीवी..वीवी तो बाद में आया....और उस पर भी ये फिल्मी गीत हफ्ते में एक-दो दिन लगभग आधे घंटे के लिये ही दिखाये जाते थे। और दूरदर्शन पर दिखाये जाने वाले इस प्रोग्राम का नाम हुया करता था...चित्रहार,जिस में पांच-छः गीत सुनाये जाते थे। और यकीन मानिये, हफ्ते के बाकी दिन बस इसी कार्यक्रम का ही इंतज़ार हुया करता था। स्कूल का होम-वर्क भी उस दिन इस चाव में दोपहर में भी निबटा लिया जाता था कि आज शाम को तो टीवी पर चित्रहार आना है । और हां, स्कूल में भी अपने दोस्तों के साथ इस तरह की बातें होती थीं कि अच्छा तू बता, आज कौन कौन से गाने दिखायेंगे ...चित्रहार में । और ये डिस्कशन लंबे समय तक चलती थी जब तक वह डरावना सा दिखने वाला हिस्ट्री का मास्टर क्लास में अपनी ऐन्ट्री से इस डिस्कशन का सारा मज़ा किरकिरा ही नहीं कर देता था।
लेकिन वो हमारी प्रोबल्म थी.....आप क्यों बिना वजह सुबह सुबह अपना मूड खराब करते हैं। लीजिये, उन्हीं दिनों की अपनी हसीन यादों में से एक बेहद सुंदर गीत फैंक रहा हूं.......जिसे शायद बीसियों बार देख चुका हूं, सुन चुका हूं........अब आप के साथ फिर से सुन रहा हूं।
सच कहा डाक्टर साहब, दूरदर्शन वाले दिन भी क्या दिन थे। अब कोफ्त होती है कि उन दिनों दूरदर्शन को सरकारी कह कर कोसा जाता था। मगर आज के ये न्यूज़ चैनल तो अपशकुनी हैं।
जवाब देंहटाएंगाना मस्त था...:)