जब मेरा मन भारी सा होता है..........मैं सोचता हूं कि जब मेरा मन भारी सा होता है तो मैं किस तरह उसे हल्का करता हूं........नहीं, नहीं, डाक्टर होते हुये भी आज तक कभी भी ये टेंशन-वेंशन दूर भगाने वाली गोलियों से दूर ही रहा हूं और ऐसी दुआ करता हूं कि ताउम्र इन से कोसों दूर ही रहूं और अपने मरीज़ों को भी यही मशविरा देता रहूं। फिलहाल तो मैंने अपने ही कुछ तरीके निकाल रखे हैं ...इस टेंशन को दूर भगाने के लिये। उस में से सब से महत्त्वपूर्ण है .....मैडीटेशन............मैं जितना भी लो-फील कर रहा होता हूं, कितना भी थका-मांदा सा.......मैडीटेशन कर लेने के बाद मैं एकदम फ्रेश एवं चुस्त-दुरूस्त फील करने लगता हूं। दूसरा तरीका है ....जब सिर थोड़ा थोड़ा भारी होने लगता है तो लंबी पैदल सैर कर निकल पड़ता हूं.......आधे-पौने घंटे की तेज़ रफ्तार सैर के बाद मैं एकदम बढ़िया फील करने लगता हूं। और, तीसरा तरीका है कि मैं डैक्सटाप पर या लैटलाप पर ....अपनी पसंद के हिंदी या पंजाबी ( नहीं, इंगलिश गाने कभी सुने ही नहीं, इसलिये कभी समझ ही नहीं आते................सिवाये उस के ....ब्राजील.....ब्राजील.....क्योंकि वह लंबे समय तक बजता रहा है) ...। हां, तो मैं अपनी पसंद के हिंदी गीत या पंजाबी गीत अपने स्टडी-रूम में बहुत तेज़ आवाज़ में सुनने का बहुत ज़्यादा शौकीन रहा हूं। मेरी डाक्टर बीवी को इस से नाराज़गी इसलिये होती रही है कि उन्हें डर लगता रहता है कि कहीं इस से मेरे कानों पर इसका बुरा असर न पड़े। लेकिन अब यह आवाज़ वाला फैक्टर काफी कंट्रोल हो चुका है.................लेकिन मेरी यह आदत तो अभी भी यूं की त्यों बनी हुई है ....जो गाना पसंद है तो बस उस को बार-बार कईं बार सुनता है ...इस आदत को मैं कभी कंट्रोल करना भी नहीं चाहता....जैसी है, वैसी रहे ....क्या फर्क पड़ता है.........।
मैं अकसर सोचता हूं कि मैं इस तरह के जश्न वाले गानों में इतना खो इसलिये भी जाता हूं क्योंकि मैं इन गानों को एक दर्शक के तौर पर कभी नहीं देखता... मैं तो अपने आप को भी उसी उत्सव का हिस्सा ही मानने लगता हूं और इसी उत्सव में धूम मचाने की वजह से मेरे सिर का भारीपन पता नहीं कहां छू-मंतर हो जाता है।
तो, क्या आप भी यह मैथेड ट्राई करना चाहेंगे....तो, लीजिये इस गाने पर क्लिक करिये और खो जाइये इस के जश्न में .............ध्यान से देखियेगा कि ये सब लोग कितने खुश दिख रहे हैं , तो हमें कौन रोक सकता है !
और हां, स्टैस मैनेजमैंट के नये नये फंडे- ब्लोगिंग- के बारे में लिखना तो भूल ही गया। जब भी कभी कोई शिकायत होती है ..तो बलोग-पोस्ट की-बोर्ड पर उंगलियां पीटने से तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है ना।
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