शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

कैज़ुएल सैक्स भी एक एट्म बम ही है....

आज के समाचार-पत्र में एक एड्स कंट्रोल सोसायिटी द्वारा कॉन्डोम के इस्तेमाल को प्रमोट करने के लिए जारी किया गया एक विज्ञापन दिखा। विज्ञापन कुछ क्रियएटिव किस्म का लगा, इसलिए आप के सामने उस को रख रहा हूं........इस में एक कॉन्डोम पाठकों से यह कहता दिखाया गया है.....
श्रीमान, एक मिनट ज़रा मेरी बात सुनिए.....

(अगर आप शादीशुदा नहीं हैं)

तो शादी से पहले संभोग से दूर रहें


(अगर आप शादीशुदा हैं, तो)

अपने जीवन साथी के प्रति सदैव वफादार रहें।

(यदि आप अकसर संभोग करते रहते हैं, तो)

मुझे हमेशा अपने साथ रखिए

मेरा नाम कॉन्डोम है

कॉन्डोम (निरोध) का प्रयोग करने में बिल्कुल भी शर्म न करें

क्योंकि....

कॉन्डोम आपको एस.टी.डी/एच.आई.वी / एड्स से बचाता है।

इस समय , मैं केवल आपको
एस.टी.डी/एच.आई.वी / एड्स
से बचा सकता हूं।

मैं अनचाहे गर्भ से भी रक्षा करता हूं

इसमें कोई संदेह नहीं है कि , कॉन्डोम का प्रयोग करने से आपकी सुरक्षा के साथ-साथ आपकी खुशी में भी इजाफा होगा।

एक मात्र अनुरोध

यह मत भूलिए कि ज्यादातर असुरक्षित यौन संबंधों के कारणों से ही एच-आई-व्ही / एड्स फैलता है। एक से ज्यादा व्यक्तियों के साथ संयुक्त संभोग न करें क्योंकि एच.आई.वी संक्रमण 15से 49वर्ष तक की आयु समूह में बड़ी तेज़ी से फैलता है। ................


तो यह तो था आज विज्ञापन जो मुझे सुबह दिखा । अच्छा खासा क्रियएटिव इश्तिहार है, शायद आप को भी कुछ ऐसा ही लगा होगा।
लेकिन मेरे मन में एड्स से संबंधित कुछ मुद्दे कौंध रहे हैं। अब इस विज्ञापन की पहली पंक्ति की तरफ ध्यान करते हैं कि अगर आप शादीशुदा नहीं हैं तो शादी से पहले संभोग से दूर रहें। अकसर सोचता हूं कि क्या मात्र ऐसा नुस्खा थमा देने से ही यह संभव हो जायेगा कि लोग शादी से पहले संभोग से दूर रहने लग जायेंगे। मुझे पता नहीं आप का इस के बारे में क्या ख्याल है ! ….वैसे सब कुछ कहने में कितना आसान सा लगता है....वो कहते हैं न कि जुबान में हड्डी थोड़े ही होती है। लेकिन मीडिया में आये दिन हो रहे बलात्कार, डेट-रेप, छोटी छोटी उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म तो कुछ और ही कह रहा है। ठीक है , ऐसे विज्ञापन लोगों में इस तरह के विवाह-पूर्व संबंधों के प्रति भय पैदा करते हैं और यह खौफ़ पैदा किया भी जाना चाहिए। लेकिन क्या यह काफी है?—मुझे तो नहीं लगता ।

मैं तो ऐसा सोचता हूं कि युवाओं की परवरिश ही कुछ इस तरह से की जानी चाहिए कि उन्हें अपनी ऊर्जा उपयोग करने के सकारात्मक विकल्पों की तरफ प्रेरित किया जाना चाहिए। ज़िंदगी में हर चीज़ का एक समय है....हमारे तो सारे शास्त्र ब्रह्मचर्य के पालन की बातों से भरे पड़े हैं.....हां, वो बात अलग है कि एक तो आजकल इस की कोई परवाह कर नहीं रहा......35-40 साल तक लोग शादी न करवाने में अपनी शान समझने लगे हैं.......लेकिन...... ; एक बात और भी है ना कि सभी तरह के मीडिया में इतनी हद तक अश्लीलता परोसी जा रही है कि युवाओं का बिना बहुत ही उत्तम पारिवारिक संस्कारों की नींव के इस से बच कर रहना बेहद कठिन होता जा रहा है....चाहे वे इसे एक्सपैरीमेंटल कहें , या जस्ट स्टाइल कहें.........कुछ भी कहें , यह स्वीकार्य नहीं है। एक तो सब से बड़ा अजगर एचआईव्ही संक्रमण सारे विश्व के सामने मुंह फाड़े खड़ा है और वैसे भी भावनात्मक स्तर पर भी देखा जाये तो किसी की फीलींग के साथ खिलवाड़ कर के बंदा कभी भी मानसिक तौर पर सही नहीं रह पाता। सो, युवाओं को अपना ध्यान योग में लगाना होगा, खान-पान सादा रखना होगा और लेट-नाइट पार्टियों एवं डेट-वेट के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.....ये सारे लफड़े बस इन्हीं बातों से ही शुरू होते हैं जो शुरू शुरू में मामूली दिखती हैं, लेकिन अभिभावक शायद अपनी कुछ ज़्यादा ही मसरूफीयात की वजह से देखा-अनदेखा कर जाते हैं। सीधी सी बात है कि शादी से पहले सैक्स संबंधों का कोई स्थान नहीं है। शायद इस ब्लोग में या मेरी हैल्थ टिप्स वाली ब्लोग (http://drchopraparveen.blogspot.com) पर मैंने कुछ समय पहले शादी से पूर्व एचआईव्ही टैस्टिंग की बात शुरू की थी, अगर कभी समय हो तो देख लीजिएगा।

चलिए , वापिस उस विज्ञापन की तरफ आते हैं.....उस में एक बात यह लिखी है कि यदि आप अकसर संभोग करते रहते हैं, तो मुझे हमेशा अपने साथ रखिए --- मेरा नाम कॉन्डोम है।

यह पंक्ति पढ़ कर कुछ इस तरह नहीं लगता कि अकसर संभोग करने को गली के नुक्कड़ में खड़े चाट-पापड़ी वाले से चाट खाने के बराबर खड़ा कर दिया गया है। जब इस तरह की बात होती है तो मुझे यह बेहद आपत्तिजनक लगता है ......क्योंकि मैं यह सोचता हूं कि इस तरह की स्टेटमैंट फेयर सैक्स के साथ सर्वथा फेयर नहीं है......This is not some commodity which anybody can choose to relish anywhere provided he has a condom in his pocket……यह कोई वस्तु थोड़े ही है जिसे जब चाहा भोग लिया बस आपकी जेब में एक कॉन्डोम होना ज़रूरी है। ऐसा कह कर क्या हम नारी को अपरोक्ष रूप में अपमानित नहीं कर रहे......आखिर क्यों हम इसे केवल मैकेनिकल क्रिया के रूप में देख रहे हैं......इस के भावनात्मक पहलूओं को हमेशा नज़र-अंदाज़ कर दिया जाता है , यह मेरी समझ में कभी नहीं आया। आप से अनुरोध है कि मेरी इसी ब्लोग पर या हैल्थ टिप्स वाली ब्लोग पर वह वाली पोस्ट भी ज़रूर पढ़े.....नहीं , मैं किसी ऐसी वैसी जगह पर नहीं जाता।

इस में कोई संदेह नहीं है कि कॉन्डोम का सही इस्तेमाल स्त्री एवं पुरूष दोनों को एचआईव्ही संक्रमण से बचाता है। लेकिन हम क्यों नहीं समझते कि क्या जब कोई व्यक्ति किसी तरह के कैज़ुएल सैक्स में , वन-नाइट स्टैंड(रात गई,बात गई) जैसी जगहों में खोया पाता है तो क्या केवल हमारे द्वारा उस के हाथ में एक कॉन्डोम थमाने से ही सब कुछ ठीक ठाक हो जायेगा। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं कि शरीर की अन्य फ्लूएड्स( body fluids) में भी कईं तरह के विषाणु, हैपेटाइटिस बी वायरस इत्यादि अथवा अन्य बीमारियों ( जिनके बारे में अभी तक पता ही नहीं है) के जीवाणु मौज़ूद रहते हैं..........तो कहने का भाव यही है कि संक्रमित व्यक्ति द्वारा मुख से मुख चुंबन के दौरान जो कुछ हो रहा है, वह भी इतना सुरक्षित नहीं है जितना लोग समझने लग गये हैं।

सीधी सी बात है कि हम अपनी संस्कृति की तरफ देखें तो इस में इन विकृतियों के लिए कोई जगह ही नहीं है। ऐसे खेल पल भर के लिए रोमांचक तो हो सकते हैं लेकिन जान-लेवा भी सिद्ध हो सकते हैं। मेरी तरफ आप को भी ध्यान आ रहा होगा कि अगर हमारे पुरातन लोग इन विकृतियों से इतने ही अनछुये से थे, तो ये जो प्राचीन इमारतों पर आकृतियां पत्थरों में खुदी हुई हैं, क्या वे मात्र किसी कलाकार की कल्पना ही हैं। इस के बारे में तो मेरा ज्ञान सीमित है ...मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूं कि शायद तब एड्स और एस.टी.डी जैसे रोग थे नहीं या किसी को इन के बारे में पता नहीं था....शायद जब कोई इस तरह के रोगों से मरता होगा तो तब भी यही कह दिया जाता होगा कि बस लिखवा कर ही इतनी लाया था।

लेकिन कुछ भी हो आज के दौर में यह यौन-विकृतियों ने कुछ इतना भयानक रूप ले लिया है कि इस के बारे में हमें कुछ करना ही होगा...अगर ऐसा नहीं होता तो इस एड्स कंट्रोल सोसायिटी को अपने विज्ञापन में यह लिखवाने की ज़रूरत भी न पड़ती......एक से ज्यादा व्यक्तियों के साथ संयुक्त संभोग न करें क्योंकि ......।

बात पते की केवल इतनी है कि हमारी लाइफ में कैज़ुएल सैक्स का कोई भी स्थान नहीं है। हर प्रकार का संयम बरतने में ही समझदारी है। एक कॉन्डोम लगा कर कोई अपने आप को तीसमार खां न समझे कि अब तो बाल न बांका कर सके, जो जग बैरी होय। यह भी भम्र है.....कभी ऐसी गलती हो जायेगी कि सारी उम्र पछताना पड़ सकता है...तिल तिल मरना पड़ सकता है........क्योंकि यह कॉन्डोम का इस्तेमाल अगर किसी को कैज़ुएल सैक्स के लिए करना पड़ रहा है तो इस का सीधा सादा मतलब है कि उस का सैक्सुयल बिहेवियर हाई-रिस्क है। मुझे उम्मीद है कि पाठक इस कॉन्डोम वाली बात को इस के ट्रयू परस्पैक्टिव में लेगें.....नोट करें कि मैं कॉन्डोम का विऱोध सर्वथा नहीं कर रहा हूं.......जी हां, यह तो सुरक्षा-कवच है ही .......लेकिन मैं तो कैज़ुएल सैक्स का , पैसे देकर खरीदे गये सैक्स का घोर विरोध कर रहा हूं।

आप मेरे विचारों से सहमत हैं कि नहीं , लिखियेगा।

PS….मुझे आभास है कि पोस्ट लंबी हो चुकी है, लेकिन मुझे मेरी इस आदत के लिए क्षमा करें कि जब तक मैं एक बार अपनी बात पूरी तरह से खत्म न कर लूं, मेरे को चैन नहीं पड़ता। सिर-दुखने लग जाता है( हां, आप ठीक सोच रहे हैं कि चाहे पाठकों का दुख जाये) । अच्छा तो आप आशीर्वाद दें कि अपनी बात को कम शब्दों में कहना सीख लूं।
Good evening….have a lots of fun…...and enjoy your weekend !!

3 टिप्‍पणियां:

  1. Casual sex is like a disaster waiting to happen. Sooner or later you are gonna get one of many STD's.

    One must avoid it if he/she can. Because, causal sex is very high risk sexual behavior and I read in a journal that it is equivalent to having sex with 5-6 different people at once because people who engage in causal sex are always at much greater risk of getting any STD.

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