पोस्ट लिखने से पहले ही यह बता दूं कि मैं कोई सैक्स-रोग विशेषज्ञ नहीं हूं.....लेकिन एक आम पढ़े-लिखे सजग नागरिक होने के नाते मैं अपनी व्यक्तिगत परसैप्शन एवं सैंसिटिविटि के आधार पर यह पोस्ट लिख रहा हूं। मुझे कुछ पता नहीं कि मैं अपने इन विचारों को लिख कर ठीक कर रहा हूं या नहीं , लेकिन आज सुबह से ही मेरे मन की आवाज़ थी कि इस विषय पर लिखना होगा, सो लिख रहा
हूं।
एक दूसरी बात यह भी यहां लिखना ज़रूरी है कि हिंदी चिट्ठाकारी का संसार अंग्रेज़ी चिट्ठाकारी से बहुत ज़्यादा अलग है। वहां पर ना किसी का ठीक से नाम पता, ना ही आईडैंटिटि ही पता........इसलिये आदमी कुछ भी लिख कर...कंधे झटका कर...हैल विद एवरीबॉडी कह कर पतली गली से निकल ले.....यह यहां पर संभव नहीं है क्योंकि हिंदी चिट्ठाकारी में सब अपने से ही लगते हैं...दरअसल लगते ही नहीं हैं, हैं भी अपने ही ....हिंदी चिट्ठाकारी तो भई एक परिवार सा ही दिखता है.....यहां पर जितनी भी महिलायें भी लिखती हैं वे भी एक तरह से अपने चिट्ठाकारी परिवार के साथ ही साथ अपने परिवार का एक अहम् हिस्सा ही लगती हैं...इस लिये इन की उपस्थिति में कुछ भी बहुत सोच समझ कर ही लिखना होता
है।
मैं यहां पर इस तरह की कहानी सी क्यों डाल रहा हूं ...इस का कारण केवल यही है कि डाक्टर होते हुये मैं पिछले कईं महीनों से दुविधा में हूं कि क्या मुझे व्यक्तिगत अथवा सैक्स संबंधी खबरों पर अपनी टिप्पणी देनी चाहिये क्योंकि कईं बार इतनी महत्वपूर्ण खबरें मैं यहां-वहां खास कर अंग्रेज़ी के अखबारों में देखता हूं कि मेरे लिये तुरंत उन के ऊपर कुछ कहना बेहद ज़रूरी हो जाता है। अब मैं इतने महीने तक तो इस तरह के विषयों पर लिखने से गुरेज सा ही करता रहा हूं ......लेकिन यह सोच रहा हूं कि ऐसा करना हिंदी पाठकों के साथ अन्याय ही होगा। इसलिये अब से निर्णय ले लिया है कि खबर कैसी भी हो.....शरीर के किसी भी सिस्टम से संबंधित...अब मैं उस पर अपनी टिप्पणी देने से, अपना मन खोलने से नहीं हटूंगा।
कल के अंग्रेजी के अखबार में एक न्यूज़-रिपोर्ट दिखी .....Ejaculating under 60 sec ‘premature’Experts hope quantification of time will put many out of their misery.
अब मेरा विचार तो यही है कि इस से बहुतों की मिज़री (परेशानी) मुझे तो नहीं लगता कि किसी तरीके से कम होगी।
खबर में कहा गया है कि इस बात की अब आधिकारिक पुष्टि हो गई है कि इंटरकोर्स शुरू होने से 60सैकंड के भीतर ही अगर किसी पुरूष का वीर्य-स्खलन हो जाता है तो इसे शीघ्र-पतन ( premature ejaculation) कहा जायेगा। इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ सैक्सुयल मैडीकल के विशेषज्ञों ने पहली बार इस शीघ्र-पतन की पारिभाषित किया है....रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विश्व भर में 30 फीसदी पुरूष इस यौन-व्याधि (Sexual disorder) से परेशान
हैं।
रिपोर्ट में एक अमेरिकन यूरोलॉजिस्ट ने यह भी कहा है कि शीघ्र पतन की इस से पहले वाली परिभाषायें वीर्य-स्खलन (ejaculation) की समय सीमा के बारे में कुछ कहती ही नहीं......इस लिये जो पुरूष भी शीघ्र डिस्चार्ज हो जाते थे वे यही समझते लगने लगते थे कि उन्हें तो शीघ्र-पतन की तकलीफ़ है जिस के परिणाम स्वरूप उन के वैवाहिक संबंध में दिक्कतें आनी शुरू हो जाती हैं, उन पुरूषों को बेहद मानसिक तनाव हो जाता है और यह स्थिति उन्हें अवसाद की खाई में धकेल देती
है।
उस विशेषज्ञ ने तो यह भी कहा है कि इस शीघ्र-पतन को पारिभाषित किये जाने का यह प्रभाव होगा कि जो पुरूष एक मिनट में स्खलित हो जाते हैं ....वे अब जान जायेंगे कि ऐसा होना एक मैडीकल अवस्था है तो चुपचाप खामोशी में इसे सहना से बेहतर है चिकित्सक से मिल कर इस का निवारण कर लिया जाये। और एक बार जब प्री-मैच्योर इजैकुलेशन ( शीघ्र-पतन) का डायग्नोसिस हो जाये तो उस की मनोवैज्ञानिक चिकित्सा एवं दवाईयां शुरू कर दी जाती
हैं।
रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि अब चूंकि शीघ्र-पतन को पारिभाषित कर ही दिया गया है...इस से दवा-कंपनियों को भी शीघ्र-पतन के मरीज़ों को भविष्य में किये जाने वाले क्लीनिकल ट्रॉयल्ज़ हेतु चिंहिंत करने में आसानी हो जायेगी.......( क्योंकि मापदंड जो फिक्स हो गया है......60सैकंड से कम वाला शीघ्र-पतनीया और 61सैकंड वाला धुरंधर खिलाड़............आप ने नोट कर लिया न कि मैंने कहा खिलाड़ न कि लिक्खाड़) ...यह कोष्ठक वाली लाइन मीडिया डाक्टर की अपनी है............
अच्छा खबर की बात तो होती रहेगी...पहले उस कार्टून के बारे में तो दो बातें कर लें जिसे इस न्यूज़-रिपोर्ट के साथ दिया गया है। इस कार्टून में यह दर्शाया गया है कि एक दंपति अपने शयन-कक्ष में अलग-अलग पड़े हुये हैं....चद्दर ओड़ के....पुरूष की हालत का ज्ञान इस बात से लगाया जा सकता है कि उस की जीभ बाहर निकली हुई है और चेहरे से पसीना टपक रहा है.....और महिला हैरान-परेशान सी यही सोचे जा रही है कि आज इस ने इतनी तेज़-रफ्तार गाड़ी क्यों चलाई !!....और इस के साथ-साथ उन की चादर पर एक स्टॉप-वॉच भी पड़ी हुई है जिस पर 55 सैकंड की रीडिंग है.....यह स्टॉप-वाच और उस पर यह 55 सैकंड वाली रीडिंग देख कर सोच रहा हूं कि ये अखबार वालों के कार्टून भी बहुत नटखट होते हैं........अब दोस्तो हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम में अंतर ही देख लीजिए......उस इंगलिश के पेपर में तो कार्टून छप भी गया....कार्टून के माध्यम से काफी कुछ कह भी दिया और इधर मुझ बेचारे को कार्टून का सही वर्णन करते हेतु सही शब्दों को ढूंढते ढूंढते ही मेरी डियर नानी मां याद आ गई।....सचमुच याद आ गई दोस्तो क्योंकि दोस्तो जब हम भी हम उस के यहां दो-तीन दिन रहने को जाते थे तो वह देवी हम से बेहद प्यार करती थी, बहुत ही बेहतरीन खाना खिलाती थी, पसीने से लथपथ होते हुये भी हमें रोज़ाना तंदूर की कड़क रोटियां खिलाती थीं और हम सब के लिये हैंड-पंप चला चला कर पानी की गागरें भर कर सुबह सुबह रख लेती थीं ...वरना जिस समय भी घर के बाहर गली में लगे कमेटी के नल से पानी आता था, पीतल की बड़ी बड़ी भारी गागरों में पानी ला कर इन पानी के मटकों को भर कर रखती थीं...........उस की केवल और केवल एक शिकायत थी कि तुम लोग इतने खुराफाती हो कि गागर में पूरा हाथ डाल कर पानी निकालते हो.....इस से पानी खराब हो जाता है, ऐसा वह समझती थी .....इस समय सोच रहा हूं कि क्या वह गलत कहती थी........बिल्कुल नहीं, मैंने भी तो चंद यही बातें ही सीखीं....लेकिन इतने सारे साल कठिन पढ़ाई करने के बाद !!!....अच्छा प्यारी सी स्वर्गीय नानी की बाकी बातें फिर कभी , अभी तो मैंने बस यह प्रूफ मुहैया करवाना था कि कार्टून को ब्यां करते करते मेरी तो असल में ही नानी की प्यारी यादें हरी हो गईं
।
भारत में किये गये सर्वे बतलाते हैं कि इस देश में सभी व्यस्क पुरुषों में से 10 फीसदी पुरूष ऐसे हैं जो किसी न किसी तरह के सैक्सुयल-डिस्फंक्शन से जूझ रहे हैं .....जिन में से 7 फीसदी पुरूष ऐसे हैं जो इस शीघ्र-पतन की वजह से परेशान हैं। मैक्स हास्पीटल के एक यूरोल़ाजिस्ट के अनुसार....... “Premature ejaculation most commonly affects Indian men aged 19-26years and decreases by nearly 50% after they reach 30.”
यानि कि 19-26 वर्ष के भारतीय युवक आम तौर पर इस शीघ्र-पतन से परेशान रहते हैं जो तकलीफ़ इन के तीस वर्ष के होते होते आधी हो जाती है। अब आप देखिये कि कितनी महत्वपूर्ण स्टेटमैंट हैं....इस पर चर्चा अभी थोड़ी ही देर में करते हैं।
…..इसी यूरोलॉजिस्ट ने आगे इस न्यूज़-रिपोर्ट में कहा है....... “Till now, whenever patients complained of Premature ejaculation or reaching climax before five minutes of intercourse, we first put them on counseling sessions. However, now we know that in patients who ejaculate within a minute, it is a pathological disorder that would need immediate medical intervention. In absence of any standardization earlier, doctors failed to diagnose serious premature ejaculation cases thereby prolonging mental and physical trauma for the patient”. .......यानि रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक तो जब भी मरीज़ शीघ्र-पतन की शिकायत करते थे या यह कहते थे कि इंटर-कोर्स के पांच मिनट के अंदर ही उन का वीर्य-स्खलन हो गया ( यानि काम हो गया या छूट गया !)…..तो हम लोग सब से पहले उन की काउंस्लिंग शुरू कर दिया करते थे। यह डाक्टर आगे कहते हैं कि अब हमें पता चल गया है कि जो पुरूष एक मिनट के अंदर ही स्खलित हो जाते हैं.....ऐसा होना एक पैथॉलाजिक डिस्आर्डर है.....यानि की बीमारी है यह....जिस के लिये तुंरत मैडीकल मदद ली जानी चाहिये। यह डाक्टर आगे यह फरमाते हैं कि इस से पूर्व चूंकि कोई मानक तय नहीं थे .......डाक्टर गंभीर तरह के शीघ्र-पतन रोगियों के डॉयग्नोज़िज़ में असमर्थ रहते थे जिस के कारण मरीज बेचारा लंबे समय तक फिजीकल एवं मानसिक यातना सहता चला जाता
था।
मीडिया डाक्टर की टिप्पणी ................
रिपोर्ट आपने भी पढ़ ही ली....और उस में दिये गये कार्टून के बारे में भी आपने जान ही लिया, अब आप का इस के बारे में वैसे ख्याल है क्या ?........ठीक है, चलिये , मैं अपना ख्याल ही पहले आप के समक्ष रखता हूं।
सब से पहले तो मैं यह मानता हूं कि जिन लोगों ने भी यह परिभाषा दी है...वे मेरे से बहुत ज़्यादा समझदार हैं, अपने फील्ड के धुरंधर एक्सपर्ट हैं....इसलिये यह सब कुछ बहुत गहन रिसर्च का ही नतीजा होगा, लेकिन एक ले-मैन की तरह तो मुझे टिप्पणी देने से कोई रोक तो नहीं सकता, है कि नहीं ?...
तो मेरी सुनिये......मुझे तो यह खबर पढ़ कर हंसी सी ही आई.........नहीं, नहीं, मैं किसी तरह से किसी रोगी का मज़ाक नहीं उड़ा रहा हूं.....लेकिन जो दशा एवं दिशा आज रिसर्च की है उस के बारे में सोच कर बेहद अजीब सा लगता है। यही सोचता रहा कि अब कोई मरीज जब अपने डाक्टर के पास इस तरह की तकलीफ के साथ जायेगा तो पहले तो डाक्टर उसे कहेगा कि पास वाली दुकान से एक स्टॉप-वाच लेकर घर जा और कल आ कर बतला कि तुम 60 सैकंड की समय सीमा के अंदर ही थे कि उसे एक-दो सैकंड के लिये पार कर पाये थे.....तुम्हारी तो भई आगे की मैनेजमैंट इस टाइम पर ही निर्भर
करेगी।
फिर ध्यान आया कि एक बार यह 60 सैकंड वाली बात पूरी तरह पब्लिक हो जाये.....मुझे पूरा विश्वास है कि विकसित देशों की कंपनियां ऐसे ऐसे गैजेट्स कर लेंगी जिन का नारा ही यही होगा कि इन क्रूशीयल क्षणों का मज़ा आप इस स्टॉप-वाच को शुरू और बंद करने में क्यों बर्बाद किये जा रहे ...हम ने बना दिया है यह गेजेट जिसे बस आपने मैदाने-जंग में उतरने से पहले पहनना है, इस पर सारी रीडिंग्ज़ अपने आप आ जायेंगी......आप को तो बस इस के सिवा कुछ करना ही है ही नहीं ( really ?)…।
मेरा विचार यह है कि अब इस रिसर्च का, शीघ्र-पतन की इस नईं परिभाषा का इतना प्रचार-प्रसार कर दिया जायेगा कि जिन लोगों के वैवाहिक संबंध जीवन रूपी सीधी सादी पटड़ी पर सरपट दौड़े जा रहे हैं ...उन को ख्वाहख्मां से एक तरह की हीन भावना का शिकार बना कर , उन के दांपत्य जीवन में भी इस तरह की परिभाषायें जहर ही घोलेंगी, उन के दांपत्य जीवन की रेल को ये मानक पटड़ी से नीचे गिरा कर ही दम
लेंगी।
यही सोच रहा हूं कि जिस देश में काम-सूत्र की रचना हुई ...क्या अब इस तरह के टुच्चे-टुच्चे सर्वे यह तय करेंगे कि कौन शीघ्र-पतनी है और कौन तीसमारखां.....। मुझे तो पता नहीं क्यों ये सब सर्वे-वर्वे बिलकुल बेकार से ही लगते हैं......जैसा कि आप ने ऊपर रिपोर्ट में पढ़ा कि पहले जो मरीज पांच मिनट तक नहीं चल (!!) पाते थे ….उन्हें ही काउंसिल किया जाता था ,लेकिन अब ऐसा कौन सा कर्फ्यू लग गया कि आप विशेषज्ञ लोग सीधे ही पांच मिनट से एक मिनट पर उतर
आये।
मेरे विचार में इस तरह की रिसर्च-वर्च सब दवा कंपनियां ही करवाती होंगी.....अब वे ढेरों दवाईयां बना रही हैं....वे अपने गोदाम भरने के लिये ही तो बना नहीं रही हैं.....अब उन्हें हर कीमत पर ग्राहक चाहिये......शीघ्र-छुट्टिये( प्री-मेच्योर इजैक्युलेटरस) नहीं मिल रहे तो मीडिया में इस तरह कि रिपोर्टें बारम्बार छाप कर इस सीधी-सादी जनता का दिमाग इतनी हद तक खराब कर दो, इन में इतनी ज़्यादा हीन भावना पैदा कर दो कि दिहाड़ीदार मज़दूर भी शाम को दिहाड़ी कर के लौटते समय तेल, हल्दी, घी के साथ साथ पास वाली दुकान से इस के लिये भी एक टेबलेट लेना न भूले........बच्चे के लिये कोई छोटा मोटा फल खरीदना तो पीछे कहीं रह गया ....उस मजदूर की ऐसी की तैसी...कैसे न खरीदे वो इस गोली को जो उसे इस हीन-भावना से उठा तो
पाये।
विचार मेरा यह भी है कि इस तरह की न्यूज़-रिपोर्टों में सैक्स को एक मकैनिकल-प्रक्रिया का ही दर्जा दे दिया जाता है.......यानि कि 2 जमा 2 चार.....लेकिन सैक्स एक बिल्कुल ही व्यक्तिगत सी , बेहद व्यक्तिगत सी बात है..जो कोई भी दिमागी तौर पर तंदरूस्त बंदा हर किसी के साथ डिस्कस नहीं करता फिरता.........और फिर इस देश में.....तौबा..तौबा....इस देश में तो सैक्स के विभिन्न पहलू हैं.........इतने कहने पर भी मजबूर हूं कि यहां पर तो सैक्स के पूजा है......एक आराधना है, अर्चना है......केवल किसी अबला का शोषण नहीं है, बाहर के मुल्कों की तरह स्लीपिंग पिल नहीं है, वासना नहीं है.......................ऐसा क्यों लिख रहा हूं.......क्योंकि ज़िंदगी की किताब के जो पन्ने रोज़ाना पढ़ता हूं उन के आधार पर ही सब कुछ कह रहा हूं ...कोई अपनी तरफ से मिर्च-मसाला नहीं लगा रहा......कईं ऐसे ऐसे मरीज़ देखता हूं जिन की हालत कईं कईं बरसों से कुछ इस तरह की है कि वे तो अपनी दिन-चर्या भी नहीं कर पाते..........और मेरे महान देश की ये पूजनीय महान देवियां इन की सेवा-सुश्रुषा में बिल्कुल मां की तरह से सारा जीवन एक बिता डालती हैं.........अब इन दंपतियों को यह एक मिनट का पाठ कोई भी पढायेगा तो क्या बच पायेगा, अगर ज़ुर्रत भी करेगा तो तमाचा ही खायेगा !! मैंने यह भी सुन रखा है कि अमीर मुल्कों की औरतें तो अच्छे भले मर्दों को अपनी नाइट-गाउन की तरह बदल कर , उन के GPL लगा कर किसी दूसरे की हो जाती हैं......( क्या ......अब आप यह पूछ रहे हैं कि यह GPL तो बता कि क्या होता है.....आप सब सुधि पाठक हो, आप को यह ज्ञान तो होना ही चाहिये....नहीं है तो आपस में पूछ कर काम चला लो,भाई। फिर भी कहीं पता ना लग पाये तो इस नाचीज़ को ई-मेल कर के पूछ लीजियेगा......कोई बात नहीं....अभी तो बस इतना समझ लीजिये कि यह है कोई सीरियस सी बात !!) …..हां, इन के लिये तो बहुत ज़रूरी है इस तरह की शीघ्र-पतन की डैफीनीशन्ज़.....क्योंकि 55 सैकंड तक ही चल पाने वाले निकम्मे पति से कानूनी तौर पर छुटकारा लेने से लिये उसे कोई तो ग्राउंड चाहिये कि नहीं !!
एक बात आपने भी नोटिस की होगी इस रिपोर्ट में कि विशेषज्ञ कह रहे हं कि भारत में शीघ्र पतन के बहुत से केस 19-26 वर्ष के दरमियान पाये जाते हैं ....और 30वर्ष की आयु तक पहुंचते पहुंचते इन केसों की संख्या आधी रह जाती है। इस के बारे में थोड़ी चर्चा करते हैं......इस का कारण जो मैं समझ पाया हूं कि इस उम्र के दौरान इन नीम-हकीमों ने इन छोरों का दिमाग इतना ज़्यादा खराब कर दिया होता है कि वे अपने आप को असक्षम सा समझने लगते हैं। तरह तरह के पैम्फलेट ये सो-काल्ड सैक्स –स्पैशलिस्ट छपवा कर सार्वजनिक स्थानों पर बांटते फिरते हैं जिन में सब कुछ इतने ज्यादा नैगेटिव एवं डरावने से ढंग से कहा गया है कि इस उम्र के नौजवान अपने इतने ज़्यादा प्रोडक्टिव वर्षों में तरह तरह की हीन भावनाओं से ग्रस्त हो जाते हैं। इन में अकसर कुछ इस तरह से बातें की गई होती हैं कि बचपन की गलतियों से बरबाद हुये जीवन को ठीक कर लो, हस्त-मैथुन से , स्वप्न-दोष से जो लिंग टेढ़ा हो चुका है, बिल्कुल क्षीण हो चुका है, उस को ठीक कर भई , खानदानी हकीम जी आप लोगों के शुभचिंतक हैं जो बादशाही इलाज से सब कुछ ठीक ठाक कर देंगे........................अरे, बेवकूफों, ठीक तो उसे करोगे जो ठीक नहीं होगा......इन युवकों को बस यही तकलीफ है कि इन का दिमाग आप नीम-हकीमों ने ही तो खराब कर रखा है..they have literally mentally tortured some of our youth in believing that they are capable of doing nothing…..that they are impotent. Unfortunately once such a feeling takes roots in tender minds, then these .....इन्हें ना तो कुछ है , ना ही होगा......अगर कोई व्याधि थोड़ी बहुत है भी , तो क्वालीफाईड चिकित्सक किस लिये मैडीकल कालेजों से हर साल इतनी संख्या में निकल रहे हैं………….वे आखिर किस मर्ज की दवा
हैं।
बात सोचने की यह भी तो है कि अगर इन युवकों में शीघ्र-पतन की समस्या इतनी ही ज़्यादा गहरी है तो फिर तीस साल के बाद इस शीघ्र-पतन के लोग आधे क्यों रह जाते हैं .....क्या ये सारे डाक्टर के पास जा कर इलाज करवा लेते हैं.......नहीं, नहीं, मुझे तो नहीं लगता कि चंद लोगों ( आटे में नमक के बराबर!)…के इलावा लोग इस तकलीफ़ के कारण किसी डाक्टर के पास कभी जाते भी हैं !!.....सीधी सी बात है कि इतने धक्के खा के इधर उधर वे इस उम्र में थोड़े मैच्योर होने लगते हैं और इस तरह की काल्पनिक (ज्यादातर काल्पनिक ही !!!!!!!!!!!!!......कोरी काल्पनिक.......!!!!!!) व्याधियों से वे ऊपर उठने लगते हैं। अरे भई इस देश के युवक अच्छी तरह से जानते हैं कि उन के वंशज क्या थे.....वे सैक्स को किस स्तर पर रखते थे.........उन्हें कुछ समय तक तो ये पैंफलेट गुमराह ( सैक्स शिक्षा के दुर्भाग्यपूर्ण अभाव के कारण ) कर सकते हैं लेकिन उन के पुरातन संस्कारों की जड़े इतनी पुख्ता हैं कि ये उन्हें डगमगाने नहीं
देतीं।
हां, युवक की बात तो हो गई. लेकिन इतना तो हम मानते ही हैं कि कुछ दवाईयों के प्रयोग से इस तरह की समस्या टैंपरेरी तौर पर आ सकती है जिसे डाक्टर के परामर्श से दवा चेंज करने पर बिलकुल ठीक किया जा सकता है। और हां, कुछ शारीरिक तकलीफें भी हैं जिन में इस तरह की समस्यायें कभी कभी किसी को हो सकती हैं........जिन का समाधान चिकित्सक मरीज को बताते ही रहते है
हां, अगर किसी को कोई रियल बीमारी की वजह से ही यह सब हो रहा है तो फैमली फिजीशियन उसे किसी सर्जन अथवा यूरोलॉजिस्ट के पास चैक-अप क लिये रैफर कर ही देता है जिधर उस का आसानी से इलाज हो जाता है । लेकिन जाते जाते एक बात कहनी बहुत जरूरी समझता हूं कि इस तरह की तकलीफ़ें का केंद्र-बिंदु हम मन ही होता है.....और इन का समाधान भी हमारी पुरातन योगिक क्रियायों में धरा-पड़ा है....प्राणायाम्, ध्यान........और सब से ज़रूरी कि सभी व्यस्नों से कोसों दूर रहा जाये........।सादा, पौष्टिक भोजन लें। और क्या , बाकी सब राम भरोसे छोड़ दें.........सैकस कोई मैराथान रेस नहीं है...........किसी को दिखावा थोडे ही करना है..............इस देश में सैक्स को बहुत ऊंचा स्थान हासिल है.......पूजा के समान है यह......क्या आप यह नहीं मानते ??.......वैसे भी मियां-बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी ...........क्या पता कोई 30सैकंड वाले दंपति इतने खुश हों और बीस मिनट सरपट दौड़ने वाला धुरंदर धावक अंदर से बीवी की गालियों का ही पात्र बनता
हो।
यह सब इतना पर्सनल है.....इतना पर्सनल है कि मेरी मीडिया से यही गुजारिश है कि कम से कम इस देश के बंदों को चैन से सोने तो दो यारो, पैसा कमाने के , सैंसेशन क्रियेट करने के और मौके कम हैं कि आपने उस की पलंग की चादर पर एक स्टॉप-वाच रख कर उस की नींद ही हराम कर दी। कुछ तो सोचो, यारो, कुछ तो सोचो.............बस, और क्या कहूं !!
जाते जाते बस इतना आप सब ब्लागर-बंधुओं से पूछ रहा हूं कि अगर आप इजाजत दें तो इस न्यूज़-रिपोर्ट के साथ जो कार्टून पेपर में छपा है उसे भी स्कैन कर के इस पोस्ट में डाल दूं.........लेकिन आप की आज्ञा के बिना नहीं......उसे देख कर आप बहुत हंसेंगे !!
ps……अगर किसी को यह पोस्ट पढ़ कर थोडा बहुत अटपटा लगा हो कि अब हिंदी चिट्ठों में भी लोग दिल खोलने लगे हैं तो उन से मैं कर-बद्ध क्षमा-याचक हूं.......लेकिन इतना तो आप को अब तक का मेरा ट्रैक-रिकार्ड देख कर यकीन हो ही गया होगा कि I am not interested in getting cheap thrills by writing such pieces……और इस का छोटा सा प्रूफ यह ही है कि मुझे पता है कि मेरा टीन-एज बेटा मेरी सारी पोस्टें पढ़ता है, और फिर भी मैंने इस तरह के सेंसेटिव से विषय पर लिखने का फैसला लिया क्योंकि I feel strongly about this sensitive issue because it involves millions of simple, naive, innocent people worldwide !!
बस, अब तो लिखना बंद करूं ....कहीं ऐसा न हो कि आप सब लोग अपनी टिप्पणीयों के माध्यम से मेरी धुनाई ही कर दो।