रविवार, 14 फ़रवरी 2016

लखनऊ के कला शिल्प मेले की एक रिपोर्ट


कला शिल्प मेले में घूमते हुए मुझे जनाब निदा फ़ाज़ली साहब की यह बात बार बार याद आ रही थी...

बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो..
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे

शिक्षा व्यवस्था में तो लोचा है ही बेशक...हर बात से हम वाकिफ़ हैं ...ज़रूरत है थ्री-इडिएट्स जैसी फिल्मों की जो शायद बच्चों और मां-बाप का नज़रिया बदल सकें कि सिर्फ़ आईआईटी और आई आई एम की डिग्री से कुछ ज़्यादा होता नहीं है ...और वह भी कौन सा सभी पा ही लेते हैं...लेकिन इस दौड़ के चर्चे हम ने खूब सुने...कैसे बच्चों को छठी कक्षा से ही किसी आईआईटी की कोचिंग इंस्टीच्यूट में भेजा जाने लगता है..वहां से गाड़ी आती है.. उस का दोपहर में सुस्ताना..पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना बंद...बस गजब की टेंशन ...हर तरफ़ घर में...चार साल बाद शहर के किसी स्कूल में  नाम लिखवा कर कोटा के कोचिंग इंस्टीच्यूट में रवाना कर दिया जायेगा..  बस अपने शहर में तो नाम के लिए ही दाखिला ले लिया है ..कमबख्त प्लस टू भी तो पास करना है .. अपना शहर है, ऊंची पहुंच वाला बापू लोकल स्कूल को मैनेज कर लेगा, बच्चे, तू तो बस कोटा में मन लगा. 

अब यह सब कितना हास्यास्पद लगने लगा है...छठी क्यों, नर्सरी से ही उसे आईआईटी जैसी संस्थाओं में प्रवेश के लिए थोड़ा थोड़ा करते रहना चाहिए... वैसे भी अब उस इंगलिश एक्सप्रेशन का फैशन चल रहा है... Catch them young!
स्कूल कालेजों मे केवल और केवल पीसीएम और बॉयो ही पढ़ाए जाने चाहिए...ये भाषाएं...हिस्ट्री-ज्योग्राफी, नागरिक-शास्त्र ...ये विषय हम लोगों के लिए नहीं हैं भाई, यह सब तो हम पहले ही से जानते हैं...आगे चल के कहीं काम नहीं आते, ऐसी सोच हो जाती है बच्चों की मैट्रिक कक्षाओं तक पहुंचते पहुंचते। 

हिस्ट्री के मास्टर साब ने Crops & Trees को इस तरह से चित्रित करना सिखा दिया था..बस, उन का सिखाया तो यही याद है.
दूसरों की क्या बात करें, मैं अपनी बात ही कर लूं.. अपने प्रोफैशन के अल्प ज्ञान के अलावा मुझे कुछ नहीं आता...यहां तक कि दुनियादारी की भी समझ नहीं है.... I'm not even worldly-wise! ...हिस्ट्री -ज्योग्राफी का ज्ञान बस इतना कि मैं उसे बच्चों की नोटबुक के एक पन्ने पर लिख डालूं, ज्योग्राफी सच में बिल्कुल जीरो...और तो और ललित कलाओं और भारत की प्राचीन कला-संस्कृति का ज्ञान लगभग शून्य... let me pass the buck a little...ड्राईंग टीचर ऐसे मिले जिन्होंने इतने बरसों तक सेब, केला, नाशपती, और गांव के एक झोंपड़े के आगे कुछ सिखाया ही नहीं...वह तो भला हो ज्योग्राफी के टीचर चौहान साहब का कि उस से पेड़ों और फसलों की आकृति बनानी सीख ली..उसे ही ड्राईंग में इस्तेमाल कर लिया करता हूं अभी तक...


इस तरह की विद्याएं हम लोग स्कूल कालेज में ही ग्रहण कर सकते हैं...यार, कम से कम इन विधाओं को एप्रिशिएट करना तो आना चाहिए...नहीं तो बिल्कुल गंवारों जैसी हालत हो जाती है। उस के बाद तो हम लोग बस किताबें इक्ट्ठा ही कर सकते हैं...पढ़ने-पढ़ाने की किसी फ़ुर्सत रहती है ...यह किताब मैंने पंद्रह दिन पहले खरीदी थी कि इसे रोज़ाना थोड़ा थोड़ा पढूंगा...लेकिन अभी तक इसे खोल के देखा भी नहीं...

व्यवस्था की बिल्कुल थोड़ी पोल खोलने के बाद अब आते हैं लखनऊ के कला शिल्प मेले पर...यह मेला लखनऊ यूनिवर्सिटी के आर्ट्स एंड क्राफ्ट कालेज में १३ से १७ तारीख तक लगा है...कल वहां जाने का अवसर मिला...पिछले साल भी वहां जाना अच्छा लगा था। 

बहुत कर लिया बोर आप को अपनी सब बक-बक से....अब कला मेले को देखते हैं...
 One the graffiti with a great message I ever came across

मेले के अंदर जाते ही यह graffiti दिख गई...मन खुश हो गया...जैसा कि वह मेरे मन की बात कह रहा हो... वाट्सएप पर शेयर की तुरंत और बेटों को कहा कि यह तो कोई तुम लोगों जैसा ही लग रहा है मुझे...

  अरे भईया..ऑल इज़ वेल 

थोड़ी दूर जाने पर ही कालेज के स्कल्पटर विभाग के बाहर लॉन में यह मंजर दिखा...यह सब नारियल के कवर से बना हुआ दिखा... इसे देख कर सब लोग अपना अपना कयास लगा रहे थे, मैंने भी वही किया... पास ही गुजर रहे कालेज ने छात्रों ने भी कुछ बताया तो ...लेिकन मुद्दा वही लगा...राजनीति का ..किस्सा कुर्सी का... राजा और प्रजा के बीच की बातें...एक उत्तम कृति। 
आज की अखबार से पता चला कि यह 'सत्ता की भूख' का चित्रण है

आगे चलते चलते अन्य विभागों में भी बहुत कुछ दिखा...जिन्हें मेरे लिए समझना मुश्किल था..शायद समझने की ज़रूरत भी नहीं होती आर्टिस्ट के काम को ...इन की महानता का अहसास करना होता है बस। 
प्रिंसीपल कक्ष के बाहर एक छात्र द्वारा तैयार किया गया यह फैनूस 

कला प्रेमी छात्रों ने इस तरह के सूखे-गिरते-संभलते पेढ़ों का भी श्रृंगार कर रखा था..उत्सव में उन की भागीदारी सुनिश्चित की हो जैसे!  

  टी-पार्टी 

सूतली और बटनों से तैयार यह कृत्ति

पतझड़ का मंज़र कुछ यूं दिखा...जंगल में मंगल करने का हुनर


 वेलेंटाइन डे स्पेशल मेरी तरफ़ से ..




ग्रामीण जीवन का एक दृश्य 
शेल्फी प्वाईंट कुछ इस तरह से तैयार किया गया था छात्राओं द्वारा 

यह सफ़ेद इम्पोर्टेड गाड़ी यहां कैसे पहुंच गई?...मैंने भी ऐसा ही सोचा था... जब तक मैंने इसे हाथ से छू नहीं लिया..यह सारी गाड़ी थर्मोकोल से बनाई गई है...लाजवाब कृति...बाकी सब कुछ एक दम परफेक्ट है...स्टीयरिंग व्हील, सीटें .....बस, एक थोड़ी सी कमी खली ...आप इस में बैठ नहीं सकते.... great art work!


F



अब चलते हैं उस तरफ़ जिधर जा कर मुझे चंडीगढ़ के रॉक गार्डन और उस के सृजनकर्ता नेक राम जी का ध्यान आ गया...ऐसा क्यों हुआ, अभी बताऊंगा...पहले आप इन तस्वीरों को देखिए.. 









 खिंच गई मेरी फोटू भी 

कालेज के छात्र प्रशांत तिवारी ने अपने तीन चार सहपाठियों के साथ मिल कर इसे तीन चार दिन में यह शक्ल दी है ...मैंने इस की बहुत सराहना की और विज़िटर बुक में रॉक गार्डन याद दिलाने की बात लिखी... और यह भी लिखा कि इसे देख कर बहुत से लोगों को शायद कचरे से ऐसी बेहतरीन कृतियां बनाने की प्रेरणा मिले... कचरा?...जी हां, कचरा-कबाड़ इधर उधर फैंकने से कहीं बेहतर होगा अगर ऐसा होने लगे...

बिल्कुल पास जा कर ही पता चलता है कि यह कलाकृति प्लास्टिक के छोटे गिलासों से (जो जमीन पर छोटे छोटे गुंबद दिख रहे हैं) और जो मेन कृति है (जिस के साथ प्रशांत ने मेरी फोटू खींचनी चाही) वह थर्मोकोल के गिलासों से तैयार की गई है....  really a great artwork! मैंने अभी अभी अखबार देखी है इस रिपोर्ट को लिखते हुए तो इस के बारे में और भी पता चला है..

(इसे अच्छे से पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए)

इन संस्थानों के छात्र-छात्राएं बहुत ही क्रिएटिव हैं...कबाड़ की बात हो रही थी तो आगे देखिए इन बच्चों ने फ्यूज़ हुई ट्यूबों के कबाड़ से क्या बना दिया...मैंने उस के अंदर झांका तो मुझे लगा जैसे गहरा कुआं हो ...लेकिन बाद में समझ आया कि यह सब ground level पर ही है.. ट्यूबों की चहारदीवारी के अंदर ग्राउंड पर शीशे लगे हैं जिस की वजह से एक गहरे खड्ढे का भ्रम पैदा होता है... 


ट्यूब लाइटों के कबाड़ से ही कर दिया कमाल


मैं जो यहां पर इस कला मेले का वर्णन कर रहा हूं ..शायद मैं एक दो प्रतिशत ही आप तक पहुंच पा रहा हूं...definitely these art works are beyond words!  



इन सब को समझने का मेरे जैसे कला के अनपढ़ के पास हुनर नहीं है....लेिकन यह मंज़र बहुत सुंदर लग रहा था...यह जो धुआं निकल रहा है...यह ज़मीन के नीचे मिट्टी की छोटी मटकियां दबाई गई हैं...जिन में धूप जल रहा है ..उस के अंदर लगे बल्ब की वजह से यह दृश्य दिख रहा है..

इसी ग्राउंड में एक जगह शाम के समय बसंत उत्सव चल रहा था...मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह को नृत्य के रूप में पेश किया गया.....बेहतरीन प्रस्तुति...

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ईदगाह को इस तरह से पेश किया गया. 

ईदगाह कहानी तो आप सब ने ज़रूर पढ़ी होगी....अगर नहीं तो कोई बात नहीं, आप को अभी लिंक दे रहे हैं...देखिएगा...must watch...


थक गया यार....आज रविवार के चार घंटे तो इस रिपोर्ट को तैयार करने में निकल गये...परवाह नहीं, अगर आप लखनऊ में रहते हैं और इसे पढ़ कर आप को भी वहां जाने की तमन्ना हो जाए...यह मेला १७ तारीख तक चलेगा।
 ओ के ...  गुड़ मार्निंग... Have fun! ..Enjoy your Sunday! आर्ट एंड क्राफ्ट कालेज बड़ी आसानी से डालीगंज ब्रिज से और हनुमान सेतु की तरफ़ से भी पहुंचा जा सकता है...Try to spend sometime there and stay chilled like the boy in the above graffiti!