बक्शी साहब पर लिखी यह किताब हिंदी में भी उपलब्ध है ...इसे ज़रूर पढ़िए... |
जादू भी कोई छोटा मोटा नहीं...3500 के करीब बेहतरीन फिल्मी नगमें - 650 फिल्मों के लिए लिख दिए...और लगभग सभी एक से बढ़ कर एक...आज कल उन पर लिखी एक किताब पढ़ रहा हूं...उन के बेटे राकेश बक्शी ने लिखी है ...बहुत अच्छी किताब है ....जो लोग भी फिल्मी गीतों से मोहब्बत करते हैं, 60-70-80 के दशक के फिल्मी गीतों के दीवाने हैं, उन सब को यह किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए...ज़िंदगी के हर जज़्बात में भीगे हुए गीत ..बक्शी साहब ने लिख दिए...और जब उन पर लिखी किताब पढ़ रहा हूं तो सोच रहा हूं कि जिस बंदे ने इतनी जद्दोजहद वाली ज़िंदगी जी हो, यह उसी की क़लम का जादू ही हो सकता है ...
फिल्मी गीतों से याद आया कि जब हम लोग बच्चे थे तो फिल्मी गीतों के पेम्फलेट मिलते थे ...यही कोई 15-20-25 पैसे का एक पन्ना मिलता था जिस पर किसी नई आई फिल्म के सारे गाने छपे होते थे ...कुरबानी फिल्म का ऐसा ही पेम्फलेट मुझे पिछले साल कहीं से मिल गया था ...बिल्कुल पहाड़े जैसे कागज़ पर ये गीत छपे होते थे ...पहाड़े समझते हैं न आप, जिसे फिरंगी में हम लोग टेबल कहने लगे थे बाद में ...सच में तब से पहाड़ों को याद करने, और तोते की तरह रटने का असल ज़ायका ही जाता रहा ...पहले स्कूलों की रौनक ही कक्षाओं से आने वाली पहाड़े रटने की ज़ोर-ज़ोर से आने वाली आवाज़ों की वजह से हुआ करती थी...
फिर बहुत साल बाद फिल्मी गीतों की छोटी छोटी किताबें बाज़ार में आने लगीं ...हम भी खरीद लेते कभी कभी ...लेकिन इन किताबों को खरीदने का इतना शौक नहीं था, शायद अपने स्कूल-कालेज की किताबों से ही फ़ुर्सत न मिलती थी ...बहरहाल, ये फिल्मी गीतों की किताबें 2-3 बरस पहले मेरी ज़िंदगी में आईं...कैसे, बताता हूं। मैं उर्दू पढ़ रहा था, रोज़ क्लास में भी जाता था....लेकिन कुछ ख़ास पल्ले पड़ नहीं रहा था...एक तरह से शर्म सी महसूस होने लगी ....एक तो 55 साल की उम्र में यह काम कर रहा था, उस पर कुछ बात आगे बढ़ नहीं रही थी ...यही हिज्जे समझ में न आ रहे थे, हुरूफ का आपस में मिलान कैसे करना है, कुछ भी पता न चल रहा था, उर्दू के उस्ताद जी भी जैसे एक बार खीझ ही गए थे ...जब मैं सवाल ज़्यादा करता लेकिन मुझे आता जाता कुछ था नहीं ....
उर्दू में लिखा है मेहदी हसन की गज़लें....😄 |
उर्दू में लिखा है किशोर के गीत ...इसने मुझे उर्दू सिखाने में बहुत मदद की ..😂 |
वह कहते हैं न इरादे पक्के हों तो ख़ुदा भी बंदे की मदद करने पर मजबूर हो जाता है ...मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ....एक दिन लखनऊ की सड़कों की खाक छानते हुए एक फुटपाथ पर मुझे फिल्मी गीतों की छोटी छोटी किताबें दिख गईं ....अब इतना तो मैं उर्दू जानता ही था कि यह पता लगा पाया कि ये फिल्मी गीतों की किताबें हैं ...लेकिन लिखी हुई वे उर्दू में थीं। कुछ गज़लों की किताबें मिल गईं ...मैंने दो चार खरीद लीं ...और मैं उन को धीरे धीरे पढ़ने लग गया ...मुझे थोड़ा बहुत समझ में आने लगा ..फिर एक आइडिया आया कि यार, अगर किसी तरह से हर गीत का मुखड़ा मैं पढ़ पाऊं ...थोड़ा बहुत जितना भी हो जाए...तो मैं उस को यू-टयूब पर मोबाइल पर सुनने लगता और सामने किताब रख लेता ....कुछ ही दिनों में बहुत से गीत सुनते सुनते मैं उर्दू पढ़ने लगा ...क्योंकि गीतों की ज़ुबान बिल्कुल आम बोल चाल की ज़ुबान हुआ करती थी उस दौर में ....और यही उन की इतनी लोकप्रियता का राज़ था...
मेरे वेहले कम ....टाइम नूं धक्के मारन लई!!😉 |
अभी मैं शाम को बिल्कुल निठल्ला बैठा हुआ था...यू-ट्यूब पर अपने आप ही एक गीत दिखा ...देख सकता हूं मैं कुछ भी होते हुए ...यह गीत बेहद लोकप्रिय है ..सुनने लगा ....सुनते सुनते एक फिल्मी गीतों की एक छोटी सी किताब उठा कर इस गीत को वहां से देख कर अपनी नोटबुक में लिखना शुरू कर दिया ..सोचा कि इस तरह से फाउंटेन पेन से लिखने की प्रैक्टिस भी हो जाएगी...यह काम भी मैं अकसर कर लेता हूं ...वरना, कैलीग्रॉफी में भी दिक्कत होने लगती है ...
काश...ये नोट्स तैयार करने की मेहनत सही वक्त पर की होती...!! |
मुझे हैरानी इस बात की हुई कि जो किताब में लिखा था वह मैंने लिख लिया ...लेकिन फिर उस गीत को सुनते हुए पाया कि उसमें जो एक लाइन है ....बाग़ में सैर को मैं गया एक दिन ...वह तो इस किताब में लिखी ही नहीं हुई ....एक आधा और छोटा मोटा लफ़्ज़ था जो किताब में लिखा हुआ था जब कि गीत में नहीं था...अभी इस बात पर हैरान हो ही रहा था कि अचानक पता चला कि यू-ट्यूब पर जो गीत सुन रहा हूं उस गीत से आखिरी पैरा ही गायब है ...
यह बात मैंने बहुत जगह नोटिस की है ...महान गीतकारों के गीत तो हमें नेट पर मिल जाते हैं, किताबों में भी मिल जाते हैं ...लेकिन बहुत सी त्रुटियों के साथ मिलते हैं ...ये गीत हमारी धरोहर हैं ...इन को यूं का यूं सहेज कर रखना हमारी जिम्मेदारी है ....कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं....जहां भी त्रुटि दिखे, उसे लिखने वाले के नोटिस में लाया जाए....यह सब इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि आनंद बक्शी साहब अपने सभी गीत हिंदोस्तानी भाषा में उर्दू स्क्रिप्ट में लिखते थे ... इसलिए उन को उन के मूल रूप में संभाल कर अगली पीढ़ीयों तक पहुंचाना भी तो हमारा काम ही है ....ये सब फिल्मी गीत कालजयी हैं, हमारी संवेदनाओं को झकझोड़ते हैं, हमें अलग दुनिया में ले जाते हैं ....इसलिए लिखने वालों ने इन में जो प्राण फूंके हैं, उन्हें हमें उसी हालत में ज़िंदा रखना है ... 😎...
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