सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

सेब- सीधे हिमाचल के बागानों से ..

परसों मैं रोहतक से दिल्ली आ रहा था..नांगलोई से दो युवक डिब्बे में चढ़े...जबरदस्त हड़बड़ाहट...जैसे तैसे उन के सेबों की चार पेटियां सीटों के नीचे फिट हो जाएं...उन पेटियों के साथ धक्का-मुक्की करने के बाद दस मिनट में उन्होंने यहां वहां सारा माल फिट कर ही दिया...टीटीई आया...हां भई, कहां से आरक्षण है?...ऩई दिल्ली से है।

टीटीई ने कहा कि ऐसे कैसे, नांगलोई से कैसे आप चढ़ गये इस आरक्षित डिब्बे में....उन युवकों ने अपना परिचय दिया..थोड़ी उस से रिक्वेस्ट करी और टीटीई साहब आगे से ऐसी हरकत न करने के लिए आगाह करते हुए लौट गये..

मैं भी कहां कुछ कहने से रह पाता हूं...मैंने इतना ही कहा ...An apple a day keeps the doctor away! और आप लोगों ने तो लगता है पूरे साल का ही जुगाड़ कर लिया है...वे भी हंसने लगे ...वे किस विभाग में काम करते थे, वह लिखना यहां ज़रूरी नहीं है ..ठीक भी नहीं लगेगा।

उन्होंने बताया कि वाराणसी जाना है ...और मुझे जब उन के विभाग का पता चला तो मैंने उन के अधिकारी का पदनाम लेकर कहा कि यह उन के लिए दीवाली के तोहफ़े का जुगाड़ किए दे रहे हैं आप...वे फिर हंस पड़े......बताने लगे कि आप बिल्कुल सही कह रहे हैं..मैंने कहा कि ठीक है, अब लोग कहां रंग बिरंगी ईमरतियां, बर्फीयां खाते हैं....इस तरह की फ्रूट ही ठीक है..

एसी टू के उस कैबिन में एक अधेड़ उम्र की महिला भी थीं...वह भी उन की बातों में पूरी दिलचस्पी दिखा रही थी ...उन लड़कों ने बताया कि ये पेटियां वे आज़ादपुर मंडी से लेकर आये हैं...मुझे लगा कि वहां पर बहुत बड़ी सब्जी-फल मंडी है, इसलिए वहां से खरीद लाये होेंगे ..

नहीं, वे यह खरीद कर नहीं लाये थे, जैसा उन्होंने बताया कि उन के एक अंकल फौजी अफसर रिटायर हैं और अब शिमला के भी ऊपर उन्होंने सेब के बाग खरीद लिये हैं...यह उन्हीं के खेत से हैं...बता रहे थे कि ये सेब वहां पर तो १५-२० रूपये किलो के हिसाब से ही बिकते हैं...लेकिन इन सेबों की सब से खास बात यह है कि इन पर वैक्स (मोम) नही ंलगी है....

उन से एक विश्वसनीय बात यह पता चली कि बिना वैक्स के सेब इतने दिन रह ही नहीं सकता और मंडी में लाने के बाद सभी सेबों पर वेक्स की कोटिंग की जाती है ...लेेकिन ये सेब जो वे अपने साहिब लोगो ं के लिए ले जा रहे हैं इन पर वेक्स बिल्कुल भी नहीं है...

उस डिब्बे का माहौल इतना सेबमय हुआ देख मैं मन ही मन सोच रहा था कि ये सेब भी कितने खुशकिस्मत हैं...इन सेब की पेटियों की जरिये ये युवक अपने साहिब लोगों को शीशे में उतारेंगे और फिर पता नहीं उन से ट्रांसफर, प्रमोशन, कोई अनड्यू फायदे लेंगे ....सुना है ऐसा ही होता है...और अब लोग भी सभी हथकंड़ों से वाकिफ़ हो ही चुके हैं...किस को कैसे खुश करना है, कुछ लोग इस में महारत हासिल किए रहते हैंं...

एक बार मैं फिर किसी महकमे का नाम नहीं लूंगा लेकिन सुना है कि कुछ महानगरों में रहने वाले अधिकारियों के लिए फल-सब्जियां तीन चास सौ किलोमीटर की दूरी से आती हैं और इस सेवा के लिए बंदे तैनात होते हैं...जम्मू से चावल, राजमा, अमृतसर के पापड़-वडियां, लुधियाना के शर्बत, मुरब्बे, आचार,  लखनऊ के टूंडे कबाब, कढ़ाई वाले सूट-कुर्ते...क्या क्या नाम गिनाऊं...बेकार में!

हां, तो सामने बैठी औरत को तो इस बात की चिंता थी कि उसे इस तरह के सेब कैसे मिलेंगे दिल्ली में रहते हुए..उन से फोन नंबर मांगने लगी..उन्होंने कहा कि नहीं, यह संभव नहीं है...इस तरह के सेब बिकाऊ नहीं है, और वे विक्रेता भी नहीं हैं...उन युवकों ने एक सेब निकाल कर मुझे खाने के लिेए कहा ...मैंने कहा...बढ़िया है, लौटा दिया...फिर उन्होंने एक गोल्डन सेब निकाल कर कहा कि आप इसे तो खा कर देख ही लीजिेए...मैंने उस सेब को सूंघा तो उन से कहा कि यह खाने के लिए नहीं, सहेजने के लिए है ...दिव्य सुगंध है इसकी...


पानी से धो कर खाने पर उस का स्वाद बहुत ही बढ़िया लगा .. अब पता नहीं यह साईकोलॉजिकल था ...या फिर असल में ...
लेकिन कल मैंने  उन युवकों की बात से यह सीख ज़रूर ले ली है कि यह जो मैं कभी कभी बिना काटे सेब खा लेता हूं....यह अब बंद करना पड़ेगा....शायद आप लोगों ने भी नोटिस किया होगा कि अब सेब को छिलके के साथ खाने में बड़ा अजीब सा लगता है ..बकबका सा लगता है .....शायद यह उस के ऊपर चढ़ी मोम की वजह से ही होता हो...

सेबों की बात होने पर उन दोनों युवकों और उस महिला को जब मेरे बारे में पता चला कि मैं डैंटल-सर्जन हूं ..तो फिर वहां पर मुझे उन की दांतों से जुड़ी समस्याओं का निवारण भी करना ही था... लेकिन मुझे इस में कोई आपत्ति नहीं होती कभी भी, जिस बात की जानकारी जिस के पास है, उसे ही लोग उस के बारे में पूछेंगे...मैं कभी किसी को टालने वाले बात नहीं करता...

मैं नई दिल्ली पर उतरने वाला था ..वे थोड़ा सा परेशान सा दिखे कि अब जिन लोगों की सीटें हैं अगर उन लोगों ने अपना सामान अपनी सीटों के नीचे ही रखने को कहा तो ......मैंने कहा..तो क्या, आप लोगों को उस की क्या चिंता है...मैंने अपने हाथ वाले सेब की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ...आप के पास ये सब हैं न इतने सारे, एक एक उन्हें भी थमा कर उन की भी बोलती बंद कर दीजिएगा.....एक बार फिर से डिब्बे में ठहाके लगने लगे!

चलिए, अपनी बात को यहीं विराम देता हूं ...वैसे भी दीवाली की खरीदारी का मौसम है, आपने भी जाना होगा....लेकिन तोहफ़े खऱीदते समय हमेशा उन अनजान लोगों को विशेष कर ध्यान में रखिए जिन को शायद ही कभी कोई याद रखता है या यही सोचता है कि क्या यार...

तोह़फे दीजिए....अपने स्कूल के पुराने मास्टरों को ढूंढिए, अगर वे अभी तक सितारों में नहीं मिल गये हैं तो उन के पास जाकर उन को तोहफ़े दीजिए...पुराने दिनों को याद कीजिए...अगर आप के गुरुजन अभी नहीं है, तो बच्चों के पुराने या मौजूदा टीचरों को इसी बहाने याद कीजिए...जिन बसों में आप के बच्चे रोज़ स्कूल से आते हैं...उसे के ड्राईवर और कंडक्टर को याद करने की हमें फुर्सत ही कहां है..मुझे याद है कि कुछ साल पहले जब मैंने उस स्कूल बस के कंडक्टर को एक भेंट दी थी दीवाली से एक दिन पहले तो उसे कितना अच्छा लगा था... अपनी हाउसिंग सोसायटी के सभी सिक्योरिटी गार्ड्स को ज़रूर याद रखिए.....जिस सैलून में आप के हर महीने बाल कटवाने पहुंच जाते हैं उस गणेश को आप कैसे भूल सकते हैं....कभी यह सब कर के देखिएगा...बहुत अच्छा लगेगा...बात तो मन की खुशी की है ...अच्छा, एक बात और ...आते जाते किसी भी ज़रूरतमंद दिखाई देने वाले अंजान बंदे को तोहफ़े देने से हमें कौन रोक रहा है....इस बात यह भी काम करेंगे!

और एक बात...बहुत बार लोग ऐसे ही एक रिचूएल के तौर पर ही तोहफों के आदान-प्रदान कर लेते हैं....इधर से आया उधऱ भिजवा दिया...क्या फायदा इस सब सिरदर्दी का ...इस ते बेहतर होगा चुपचाप घर में बैठ कर रेडियो विविध भारती सुनिए। तोहफ़ों को तोहफे ही रहने दीजिए....उन पर चाटुकारिता, फ्लैटरी का रैपर मत लपेटिए.....इन छोटी छोटी बातों से कुछ नहीं होता ..जो लोग हाशिये पर खड़े नज़र आएं, उन्हें ढूंढ ढूंढ कर खुश करिए......यही दीवाली का असली जश्न है, आप का भी और उन का भी !!

सेब की बागानों की बात चली तो देखिए मुझे कितना सुंदर यह गीत ध्यान में आ गया...one of my favourites since school days..





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