कुछ याद आया?...मुझे तो आया...बस, लिखने के लिए ऐसा जुनून चाहिए, और कुछ नहीं... |
लेिकन हर काम के लिए एक सतत प्रयास और अभ्यास तो चाहिए ही ...लिखना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है...सन् २००० से पहले जब मैं विभिन्न पत्रिकाओं के लिए अपने क्षेत्र से जुड़े लेख भेजा करता था तो मुझे यही लगता था कि मेरे पास तो बस २०-३० विषय ही हैं, जिन पर मैं कुछ कह सकता हूं..उस के बाद क्या लिखूंगा?...१५ साल घिसने के बाद अब सैंकड़ों बातें हैं करने के लिए...बातों से बातें स्वतः ही निकलने लगती हैं...लेकिन वक्त की कमी, आलस्य और उमस भरी गर्मी की वजह से वे मन में ही रह जाती हैं।
इतने में क्या हुआ...यह शायद २००१ या २००२ की बात है...केन्द्रीय हिंदी निदेशालय ने एक प्रतियोगिता रखी ...नवलेखक अपनी अपनी रचनाएं भेजें..चयनित लेखकों को हम लोग नवलेखक शिविरों में भेजेंगे..
उन दिनों मुझे कंप्यूटर पर हिंदी में लिखना नहीं आता ..वैसे कंप्यूटर था भी नहीं उन दिनों हमारे पास...मैंने भी एक लेख लिख कर पोस्ट कर दिया...डाकिया डाक लाया...यह भी लेख संस्मरणों पर ही आधारित था..
कुछ दिनों बाद चिट्ठी आ गई कि आप को आसाम के जोरहाट में दो हफ्ते के लिए नवलेखक शिविर के लिए आमंत्रित किया जाता है ...जोश होता है उस उम्र में..फिरोजपुर से दिल्ली, दिल्ली से गुवाहाटी और वहां से जोरहाट की ओवर-नाइट यात्रा ...पहुंच गये जी जोरहाट...
वे पंद्रह दिन मेरे लिए बहुत अहम् थे...देश भर के प्रसिद्ध लेखक और हिंदी विद्वान उन्होंने वहां बुलाए हुए थे..सुबह से शाम तक हिंदी लेखन के बारे में बाते ही बातें...अपनी बात खुले से कहने की सीख....
एक तिवारी जी थे ..उन से हमने हिंदी की डिक्शनरी देखने का सलीका सीखा...सच में हम लोग हिंदी की डिक्शनरी में कुछ ढूंढ ही नहीं पाते थे पहले...उन्होंने ही प्रेरित किया कि कुछ भी लिखो...रोज एक पन्ना लिखो...साल में ३६५ पन्ने हो जायेंगे ...उन में से सौ पचास तो कहीं छपने लायक होंगे...अगर नहीं भी होंगे तो आप लिखते लिखते अपनी बात कहनी सीख जाएंगे...
मुझे उन की बातें बड़े काम की लगीं...वे अकसर कहते कि आप जो भी लिखते हैं रोज़ वह भी आने वाले समय में साहित्य ही कहलायेगा...वे अपने नाना की बात सुना रहे थे कि दशकों पहले उन के नाना जी ने एक जगह पर सब्जियों, दालों, चाय, शक्कर, घी के भाव लिखने शुरू किए...वे उम्र भर इसे लिखते रहे...और वह बता रहे थे कि आज की तारीख में वे प्रामाणिक दस्तावेज़ हैं, यह भी साहित्य ही है...
पंडित नेहरू बेटी इंदिरा के नाम जो खत लिखते थे ..किसे पता था कि वे छपेंगे, किताब की शक्ल ले लेंगे....ऐसी अनेकों अनेकों उदाहरणें हैं....
बस, सुझाव यही है कि रोज़ कुछ न कुछ लिखने की आदत डाल लीजिए...रोज़ का मतलब रोज़....छुट्टी आप को चाहिए ही क्यों?...
मुझे कोई कहता है ना कि लिखें तो लिखें क्या, मैं अकसर उन्हें यह भी कहता हूं कि चलिए..आप शुरूआत इस तरह से करिए कि दिन भर में हमारे पास सैंकड़ों नहीं भी तो बीसियों वाट्सएप मैसेज आते हैं...इन में से दर्जनों ऐसे होते हैं जिन्हें हम अगले ही क्षण आगे शेयर करते हैं...मुझे तो कईं बार यह बड़ी फिक्र होती है कि यार, अब इन्हें फिर से पढ़ना होगा तो कैसे हो पायेगा?
आप स्वयं देखिए कि कितनी बार आपने वाट्सएप मैसेजों को पीछे पीछे सरका के देखा...कितनी बार?...शायद कभी यह मैं कर लेता हूं...लेकिन बहुत बार मेरी आलसी प्रवृत्ति मुझे ऐसा करने से रोक देती है ...छोड़ो यार, जो गया सो गया, अब आगे इतने मैसेज इक्ट्ठा हो गये हैं...इन्हें देखते हैं...
बिल्कुल शुरुआत में आप एक काम कर सकते हैं...एक बड़ी सी डायरी लगा लीजिए..उस में उन सभी मैसेजों को लिखना शुरू करें जिन्होंने आप को गुदगुदाया, हंसाया, कुछ सोचने पर मजबूर किया या फिर आप की आंखें ही नम कर दी हों...
अच्छा, आप यह काम शुरू करिए..और मुझे बताइए कि आपने शुरू कर दिया है ...आगे की क्लास उस के बाद...
अभी ध्यान आया कि मैंने कुछ साल पहले इंटरनेट लेखन की वर्कशाप के बाद कुछ ज्ञान भी बांटा था..अगर कभी फुर्सत हो तो देखिएगा..मुझे तो उन्हें देखते हुए डर लग रहा है, पता नहीं क्या कुछ टिका दिया होगा... मैं उन्हें वापिस नहीं देखता क्योंकि फिर मैं उन में गुम हो जाता हूं...
उन लेखों के िलंक यह रहे ..वैसे ये खूब पापुलर हुए थे उस ज़माने में ....
चलिए, अपनी कापी खोल लीजिए..और मोबाइल से अच्छे अच्छे मैसेज निकाल कर लिखना शुरू करिए... and start exploring this wonderful of words!
आप भी समझ लीजिए कि इस मस्ती की पाठशाला में आज आप का पहला दिन है...
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