शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

हर सुबह का मूड अलग होता है..

और यह मूड हमारे मूड पर तो निर्भर करता ही है ...हमारे आस पास के नज़ारे पर भी निर्भर करता है।

मैंने आज के भ्रमण के लिए जो डगर चुनी आप देखिए वह कितनी सूनी है....इस तरह के सूने रास्ते कितने बेजान से लगते हैं।
इस तस्वीर में मैं नहीं हूं...

अभी मैं थोड़ा ही चला था कि मुझे सूर्य देवता के सुंदर दर्शन हो गये.....मन गदगद हो गया। आप देखिए यह तस्वीर कितनी सुंदर लग रही है।

वैसे यह लखनऊ का एक बहुत ही महत्वपूर्ण एिरया है ...इस सड़क पर रमाबाई अम्बेडकर रैली स्थल है। यहां पर जब मायावती की रैली होती है तो भारी संख्या में लोग देश के अलग अलग हिस्सों से जुटते हैं। हां, ध्यान आया शायद इस लोकसभा के चुनाव अभियान के दौरान राजनाथ सिंह की भी एक भव्य रैली इसी रैली स्थल पर हुई थी।




इस रैली स्थल पर मैंने सुना है कि यू पी सरकार की पुलिस का डेरा है...आज भी देखा तो इन के ही बैरेक अंदर दिखे।
वापिस आते हैं सूने रास्ते की तरफ...मैं जब भी इस रोड की तरफ़ निकलता हूं तो यही सोचता हूं कि इस रोड पर इतने कम लोग क्यों आते हैं भ्रमण के लिए।

फिर मैं सोचता हूं कि इस रोड के इतने निर्जीव से लगने का कारण यही है कि इस सारी रोड पर शायद ही कोई घना छायादार पेड़ हो। आप स्वयं देखिए...जो पेड़ लगे हैं ...वे किस तरह के हैं ....यह मैंने लखनऊ में बहुत सी जगहों पर देखा है...जितने भी स्मारक आदि पिछले कुछ सालों में बने हैं, उन के बाहर इस तरह के कांटेदार पेड़ ही लगे हैं....पता नहीं यह किस आफीसर की पसंद होगी....इस तरह के बिना छाया वाले कंटीले पेड़ ....वह कहावत कुछ कुछ सटीक लग रही है...

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर
पंक्षी को छाया नही, फल लागे अति दूर।।



वैसे इस सूनी सड़क का फायदा ले रहे थे एक बेटी-बाप दिखने वाले दो बाशिंदे....वह आदमी अपनी बेटी को एक्टिवा चलानी सिखा रहा था...इस में कोई शक नहीं कि ऐसी सड़क तो ड्राईविंग सीखने वालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं।

और यह क्या, तीन लड़के इतनी मस्ती में नीचे बैठ के क्या कर रहे हैं.........ओ हो...ये तो यहीं पर जंगल का आनंद ले रहे हैं.....बहुत ही बातें काश्मीर से कन्याकुमारी को जोड़ती हैं........एक बात यह भी है ...खुले में शौच....एक नज़र मेरी उन की तरफ गई और उधर विद्या बालन का वह डॉयलाग मेरे एफएम पर बज रहा था...जहां शौच वहां शौचालय.

बहरहाल, अब तक मेरी वापिसी यात्रा शुरु हो चुकी थी......मैंने देखा कि मैं तो कंटीले पेड़ों से गिले शिकवे करता रहा लेकिन ये बच्चे तो अपनी दादीनुमा मां या मांनुमा दादी के साथ साथ चलते चलते मस्ती में मस्त थे। इन से हम बड़ों को सीख लेनी चाहिए। और जहां तक दादीनुमा मां की बात है ...यह बड़ी त्रासदी है कि छोटी छोटी उम्र में भी महिलाएं इस तरह से ढल जाती हैं ...सेहत गिर जाती है कि एक ही नज़र में यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल लगता है कि ये साथ चल रहे बच्चों की मां है या दादी नानी।


वापिस लौटते लौटते मुझे दिख गया उस कहावत ..अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है...को चरितार्थ करता यह नज़ारा। शायद किसी दूसरे एरिये का कुत्ता आ पहुंचा इस जगह ...इस झुंड ने घेर रखा है इसे। वह भी कौन सा कम है, हार नहीं मान उस ने भी...मुझे बहुत बुरा लगता है जब ये कुत्ते किसी अकेले कुत्ते पर हावी होने की कोशिश करते हैं या फिर उस आदमी या औरत पर ही कमबख्त भौंकतें हैं जो सड़क से रद्दी कागज, प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें आदि इक्ट्ठी करने के बाद दस रूपये का जुगाड़ कर पाते होंगे....आज कर के कुत्तों का रवैया भी भेदभाव वाला है।

आगे आया तो अन्ना हज़ारे की तस्वीर देख कर अन्ना हज़ारे के शिखर के दिन याद आ गये और किरण बेदी की भी याद आ गई ...एक कहावत और इस्तेमाल कर लें.....हर दिन होत ना एक समाना।


थोड़ा सा आगे आते ही देखा कि इन इन्द्री को बड़ा करने वाले ने और पतले वीर्य को गाड़ा करने वाले स्पैशलिस्ट महोदय ने भी अपनी खानदानी दुकानदारी का तंबू गाड़ रखा है.


और आज का भ्रमण खत्म होते होते हनुमान महाराज जी के दर्शन हो गये..

कैसा लगा आज के भ्रमण का मेरा वर्णऩ, लिखिएगा। 

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