गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

भूल सुधार करनी मुश्किल तो है..फिर भी..

सच में भूल सुधार करना बड़ा मुश्किल काम है, लेकिन फिर भी कईं बार करना पड़ता है। अब मैं भी यही काम कर रहा हूं।

आज सुबह मैंने एक पोस्ट लिखी थी कि मुझे लगा कि मेरे फ्लैट के आसपास की बिल्डिंग से कहीं से १५-२० मिनट तक किसी महिला के रोने की आवाज़ आती रही, बीच बीच में किसी बच्चे के रोने की आवाज़ भी आ रही थी। मुझे लगा कि कोई महिला पिट रही है। लंबी-चौड़ी पोस्ट मैंने उस पर लिख डाली। मैंने अपना मन भी बना लिया कि और तो कुछ मेरे से होगा नहीं, लेकिन मैं हाउसिंग सोसायटी के सैक्रेटरी के नोटिस में तो यह सब लेकर आऊंगा ही कि वह कुछ तो करे इस तरह की घृणित हरकतों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए।

लेकिन आज मुझे एक प्रैक्टीकल सबक मिल गया कि जब तक अपनी आंखों से ना देखो, किसी बात पर यकीन मत करो, किसी बात पर विश्वास न करो।

तो हुआ यूं ......आज शाम को अभी दो एक घंटे पहले ही जब मैं ग्राउंड फ्लोर पर गया.....जैसे ही मैं बेसमैंट पार्किंग में जाने लगा तो मुझे सुबह जैसी आवाज़ें फिर से सुनाई देने लगीं....मैं ठिठक कर रूक गया कि देखूं तो सही कि ये आवाज़ें आ कहां से रही हैं।

अरे यह क्या, मैं हैरान रह गया यह देख कर कि ये आवाज़ें जो मैंनें सुबह भी लगभग आधा घंटा सुनी थीं, ये तो दरअसल लगभग १० वर्ष के एक लड़के की थीं जो एक स्पैशल, डिफरेन्टली एबल्ड लड़का था... वह ज़ोर ज़ोर से दहाड़ रहा था, और उसका बड़ा भाई या उन के घर का कोई वर्कर उसे काबू करने की कोशिश कर रहा था। बिल्कुल वही आवाज़ें जो मैं कभी कभी सुना करता था। सारी बात समझ में आ गई।

राहत मुझे इस बात की तो हुई कि सुबह की आवाज़ें किसी पिट रही महिला की नहीं थीं.........लेकिन इस स्पैशल बच्चे की मनोस्थिति मन कचोट गई। ईश्वर उसे भी सेहत प्रदान करे।

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