गुरुवार, 4 सितंबर 2014

पोर्नोग्राफी -- हां या ना?

दो दिन पहले सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने इस तरह के प्रश्न डालने शुरू किए.. संदर्भ यही था कि केंद्र सरकार विचार कर रही है कि सभी पोर्नोग्राफी (अश्लील साइटों) को बंद कर दिया जाए। आप का क्या ख्याल है, हां या ना.....मेरे विचार में हां, बिल्कुल सही निर्णय है, अगर यह हो जाए तो शायद बहुत कुछ बच जाए।

मैं यह ऐसा किसी नैतिक पुलिस के हवलदार की तरह नहीं कह रहा हूं....मुझे पता है लोग हर तरह की आज़ादी चाहते हैं......वे पोर्नोग्राफी देखें या नहीं, यह उन का शायद व्यक्तिगत मामला है....पता नहीं कितनी सच्चाई है इस बात में...लेकिन अगर इन पोर्नोग्राफी वेबसाइट्स की वजह से समाज में तरह तरह के सैक्स अपराध होने लगें और सरकार इस तरह का कोई कदम उठाती भी है तो मेरे विचार में बिल्कुल सही है।

केवल हमारा मन ही जानता है कि हम ने क्या कभी कुछ अश्लील देखा कि नहीं, यह देखने से हमें कैसा अनुभव हुआ... केवल यह हमारा मन ही जानता है। किस उम्र में हम ने पहली बार कुछ इस तरह का अश्लील देखा, यह भी हमारे मन ही में कैद रहता है.....लेकिन वह सब कुछ देखने का विपरीत असर ही हुआ।

मैं कुछ अनुभव बांटने लगा हूं......केवल यह बताने के लिए कि पोर्नोग्राफी हम लोगों के ज़माने में भी थी, केवल स्वरूप बदला है ...शायद इस चक्कर में पड़ने की उम्र और भी कम हो गई है.....मोबाईल से कुछ भी देख सकते हैं आज बच्चे, नेट है....सब कुछ बस एक क्लिक की दूरी पर उपलब्ध है।

मुझे अच्छे से याद है कि मैं आठवीं या नवीं कक्षा में रहा होऊंगा...1975-76 के दिन.....मुझे कहीं से एक नावल पड़ा हुआ मिल गया.. शायद मेरे से ८ साल बड़े भाई का ... हिंदी का नावल था... उस में एक दो पेज़ मुझे बड़े उत्तेजक लगते थे....मैं उन्हीं पन्नों को अपनी किताब में रख कर बार बार पढ़ता था. अच्छा लगता था, यह सिलसिला कुछ दिन तक चला। फिर पता नहीं कब यह सिलसिला अपने आप बंद हो गया।

हां, उन दिनों स्कूलों में कुछ बच्चे मस्तराम के छोटे छोटे नावल लाते थे....... ऐसा नहीं कि यह एक आम सी बात थी.....बस, कभी पता चल जाता था कि आज फलां फलां छात्र मस्त राम लाया है......अजीब सा लगता था यह सब। शायद एक आध बार कोई एक कहानी पढ़ भी ली हो... शायद नहीं यार, पढ़ी ही थी....उस उल्लू के पट्ठे की भाषा पढ़ कर उत्तेजना कम और हंसी कहीं ज़्यादा आती थी।

लेकिन सब से अहम् बात जो मैं आप से शेयर करना चाहता हूं कि नवीं कक्षा में एक लड़का अश्लील तस्वीरों वाली किताब भी कभी कभी लाया करता था और आधी छुट्टी के समय और दो पीरियड के बीच टीचर के आने से पहले वह छुप छुप के दूसरे छात्रों को भी वे तस्वीरें दिखाया करता था। शायद यह काम उस ने सारे वर्ष में दो-चार बार किया होगा।

बड़ा अजीब लगता था वह सब देखना........... अजीब कहूं या यह कहूं कि अच्छा लगता था.......लेकिन जो भी हो उस से पढ़ाई में खलल तो पड़ता ही था......उन तस्वीरों को देखने के बाद फिर उस दिन पढ़ाई में मन नहीं लगता था... सच बता रहा हूं।

बस, मैं रेखांकित इसी बात को करना चाहता हूं कि पोर्नोग्राफी तो पहले भी थी, हां, अब यह सब बहुत आसान हो गया लेकिन १९७५-७६ के आस पास यह सब कुछ चल रहा था .. उस के पहले का ब्यौरा किसी और को देना होगा।

देखो यार, जो भी हो, मैं तो पोर्नोग्राफी के बारे में इतना जानता हूं कि जैसी इनपुट होगी वैसी ही आउटपुट होगी.....जैसे विचार अंदर डाले जाएंगे वैसी ही प्रतिक्रिया बाहर आयेगी..........यह तो एक स्वाभाविक सी ही बात है, है कि नहीं? ...  

मेरे विचार में पोर्नोग्राफी देखने वाले की ज़िंदगी में भूचाल सा आ जाता है......वह जो देखता है, उसे वैसे ही करना चाहता है....अब यह अमेरिका तो है नहीं...इसलिए उसे हर समय शिकार की तलाश रहती है। वरना, आपने कभी ये शब्द सुने थे.....गैंग-रेप, सामूहिक बलात्कार, अप्राकृतिक यौनाचार.......बच्चों का शोषण...आए दिन इन्हीं खबरों से अखबारें भरी पड़ी होती हैं। अगर पोर्नोग्राफी खत्म हो जाएगी, दिमाग में इस तरह के फितूर का कीड़ा घुसेगा ही नहीं तो शायद समाज में शांति बनी रहे। आमीन।

यह भी देखिए......
अप्राकृतिक यौन संबंधों का तूफ़ान...

इतना कुछ पढ़ने के बाद, चलिए अब यह सुंदर गीत सुनते हैं....हम को मन की शक्ति देना.....दूसरों की जय से पहले खुद की जय कहें.......

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