अकसर ऐसे मरीज़ों से मुलाकात होती रहती है जिन्हें जब टुथपेस्ट और ब्रुश इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है तो वे झट से कह देते हैं ......“ हमें तो भई पेस्ट करना कभी पसंद नहीं आया। एक आयुर्वैदिक पाउडर से ब्रुश के साथ ब्रुश करते हैं ! दांतों की कोई तकलीफ़ नहीं !!”….
अब यह स्टेटमैंट किसी व्यक्ति द्वारा दी गई एक बेहद महत्त्वपूर्ण स्टेटमैंट है जिस का जवाब तुरंत ही एक लाइन में नहीं दिया जा सकता । इसलिये मुझे इस स्टेटमैंट के ऊपर एक पोस्ट लिखने का विचार आया है। .वैसे उस बंदे की बात अपनी जगह कितनी सही लगती है कि डाक्टर, तुम तो कहते हो टुथपेस्ट और ब्रुश....लेकिन अपने दांतो की तो भई आयुर्वैदिक पावडर और ब्रुश के ज़रिये अच्छी खासी निभ रही है, ऐसे में भला हमें क्या पड़ी है कि हम टुथपेस्ट और ब्रुश के चक्कर में पड़ें !
लेकिन इस बात की तह तक पहुंचने के लिये हमें पहले कुछ इधर-उधर की हांकनी पड़ेंगी। एक बात तो यह भी बताना चाहूंगा कि अकसर ऐसे लोगों से भी मिलना होता है जिन के मुंह का निरीक्षण करने के बाद जब हम लोग कैज़ुएली ही पूछ लेते हैं कि आप पेस्ट कौन सी इस्तेमाल करते हैं तो झट से जवाब मिलता है .....“ मैंने तो आजतक न तो ब्रुश किया है और ना ही पेस्ट का ही इस्तेमाल किया है, बस घर का बनाया मंजन ही किया होता है !”....अब हम जब आगे बढ़ेंगे तो इस बात का भी जवाब भी तो ढूंढेंगे.....केवल मरीज की कही बात को झुठलाने के लिये ही नहीं ,लेकिन केवल सच की तलाश करने के लिये।
अच्छा चलिये, कुछ बातें करें। इतने करोड़ों लोग तंबाकू का विभिन्न रूपों में सेवने करते हैं....तो क्या सब को मुंह का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर या शरीर के किसी अन्य अंग का कैंसर हो जाता है ! या हर कोई तंबाकू से पैदा होने वाली बीमारियों की चपेट में आ जाता है। अब इस का जवाब तो एक डाक्टर को देना ही होगा ना, अब इस के जवाब से कोई भाग कर बताये। बात यही है कि सारी कायनात मानती है कि तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन घातक है, लेकिन फिर भी हम अपने आस-पास भी तो देखते हैं कि कुछ हमारे ही सगे-संबंधी-मित्र बरसों से सिगरेट पिये जा रहे हैं और साथ में ठोक कर कहते हैं कि देखो, भई, हम तो पूरी ऐश करते हैं लेकिन हमें तो कोई तकलीफ़ नहीं है। ऐसे ही लोगों की इस तरह की बातें उन के आस-पास रहने वाले वालों को भी इस ज़हर को ट्राई करने के लिये उकसाती हैं। लेकिन फिर भी अन्य लोग इन जहरीली चीज़ों का इस्तेमाल करने से नहीं ना चूकते ! ….अगले बिंदु पर जाने से पहले इतना ज़रूर कहना चाहूंगा कि बरसों से इस्तेमाल करने वाला बंद अपने आप ही यह घोषणा कर के खुश हो रहा है ना कि वह फिट है......क्या सेहत की यही परिभाषा है, क्या इतना कह कर खुश हो लेने से चल जायेगा ?....मुझे तो ऐसा नहीं लगता। हां, अगर कोई फिजिशियन उसे चैक करने के उपरांत यह डिक्लेयर कर दे कि हां, भई, हां, तुम एकदम फिट हो, तो बात दूसरी है !....लेकिन ऐसा हो ही नहीं सकता.....क्योंकि तंबाकू अंदर ही अंदर विभिन्न अंगों पर मार तो करता ही रहता है, हां, यह ठीक है कि उन का ऐसा विकराल रूप अभी न दिखा हो जिस की वजह से तंबाकू का सेवन करने वाले की नींद ही उड़ जाये।
अब, मुंह की ही बात लीजिये.....मेरे पास मुंह के इतने ज़्यादा मरीज़ आते हैं जिन के मुंह के अंदर तंबाकू के तरह-तरह के सेवन के परिणाम-स्वरूप अजीब तरह के छोटे-छोटे घाव नज़र आते हैं। अब हम जैसे डाक्टरों के लिये चिंताजनक बात तो यही है कि अकसर इस तरह की अवस्थाओं की मरीज़ को कोई तकलीफ़ होती नहीं है, लेकिन हमें यह भी पूरा पता है कि अगर तंबाकू का सेवन तुरंत बंद कर के इन का इलाज न किया गया तो इन में से कुछ अवस्थायें जो अभी बहुत इनोसेंट सी दिख रही हैं, वे कभी भी पल्टी मार के मुंह के कैंसर का विकराल रूप धारण कर लेंगी। इसलिये हम लोगों को तंबाकू के सेवन का जम कर विरोध करना ही पड़ता है.....यहां यह तर्क तो बिल्कुल चलता ही नहीं ना कि हर एक तंबाकू का सेवन करने वाले को ही थोड़ा मुंह का कैंसर हो जायेगा..........लेकिन समस्या यही तो है कि हमें भी नहीं पता कि कौन आगे चल कर इस की चपेट में आ जायेगा, इसलिये ऐसी वस्तु के इस्तेमाल को सिरे से ही क्यों न नकार दिया जाये। आशा है कि आप को इन बातों का औचित्य समझ में आ गया होगा।
ऊपर जो बातें की गई हैं उन से एक बात यह भी निकलती है कि किसी व्यक्ति के किसी बीमारी से ग्रस्त होने का मतलब यह भी है कि उस के शरीर में, कुछ विभिन्न कारणों की वजह से, उस बीमारी के पैदा होने की संभावना दूसरों से ज़्यादा है। अब इस बात को इस से ज़्यादा एक्सप्लेन करना इस पोस्ट के स्कोप से बाहर है.....लेकिन यह तो तय ही है ना कि दो बंदे बचपन से मुंह में तंबाकू-चूना दबा रहे हैं, लेकिन एक को मुंह का कैंसर 45 की उम्र में ही काबू कर लेता है लेकिन दूसरा 85 की उम्र में भी मेरे जैसे डाक्टरों को देखते ही झट से तंबाकू की एक और चुटकी होठों के अंदर कुछ इस अंदाज़ में दबाता है कि मानो हम लोगों की खिल्ली उड़ा रहा हो। अच्छा तो आप बतलाईए कि ऐसे में क्या हम इस 85 वर्षीय हवा में उड़ रहे नटखट बुजुर्ग का केस देख कर तंबाकू चूसने का खुला लाइसैंस दे दें ?....नहीं ना, ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता। लेकिन यह डिस्कशन तो कुछ ज़्यादा ही लंबी होती जा रही है, इसलिये अपने मूल प्रश्न पर ही वापिस आता हूं।
अच्छा तो अपनी बात हो रही थी पेस्ट इस्तेमाल करने की या ना इस्तेमाल करने की। अब ऐसे बहुत से लोग मिलते हैं जिन्होंने से कभी पेस्ट नहीं की, कोई मंजन नहीं किया, कोई दातुन नहीं की, केवल हर खाने के बाद कुल्ला ही करते हैं और वे बड़े गर्व से कहते हैं कि यही उन की बतीसी कायम रहने का राज़ है। लेकिन अकसर जब उन के मुंह का निरीक्षण किया जाता है कि तो पाया जाता है कि उन के मुंह से भयानक दुर्गंध तो आ ही रही है, इस के साथ ही वे पायरिया रोग के एडवांस स्टेज से ग्रस्त भी हैं। मैं यहां पर यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि अपनी बात को सिद्ध करने के लिये यह मेरा कोई एक्सट्रिमिस्ट ओपिनियन नहीं है.....यह हमारा दिन-प्रतिदिन का अनुभव है....और इस तरह की पोस्टों पर लिखा एक-एक शब्द पिछले पच्चीस सालों के अनुभव की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही आप तक पहुंच रहा है।
लेकिन हां, कभी कभार, बहुत रियली ऐसा भी होता है कि ऐसे कुछ बंदों में इतना ज़्यादा रोग नहीं भी दिखाई देता। और दूसरी तरफ़ एक सिचुऐशन देखिये कि कोई आदमी रोज़ाना दो बार टुथ-पेस्ट और ब्रुश से दांत भी साफ कर रहा है, जुबान भी नियमित रूप से रोज़ाना सुबह साफ करता है, लेकिन दांतों की सड़न फिर भी उस का पीछा नहीं छोड़ती......कईं बार तो ऐसे लोग फ्रस्ट्रेट हुये होते हैं। तो, यहां पर यही समझने की बात है कि मुंह की बीमारियां केवल टुथपेस्ट या ब्रुश करने या ना करने से ही नहीं होतीं...........लेकिन उन के होने अथवा ना होने में हमारी जीन्स (genes) का रोल है, हमारे मुंह के अंदर पाये जाने वाले जीवाणुओं की किस्मों का रोल है, हमारे थूक की कंपोज़ीशन का रोल है, हमारे खान-पान का, हमारी अन्य आदतों का बहुत अहम् रोल है। वैसे यह लिस्ट बहुत लंबी है, लेकिन फिर कभी इस के बारे में चर्चा करेंगे।
तो, अब मैं जिस बात पर आना चाहता हूं वह यही है कि जो लोग मंजन और ब्रुश से दांत साफ कर रहे हैं....यह उन की पर्सनल च्वाइस है। लेकिन हां, पहले किसी दंत-चिकित्सक को अपना निरीक्षण करवा कर यह ज़रूर सुनिश्चित कर लें कि सब कुछ ठीक ठाक है। और जहां तक इन तरह तरह के मंजनों का प्रश्न है, कुछ में तो बहुत ही खुरदरे तत्व मिले होते हैं। अकसर लोग हमारे पास भी तरह तरह की शीशियां लेकर आते हैं कि यह शीशी बस-अड्डे के सामने सहारनपुर से रोज़ाना आने वाले बाबे से ली थी, क्या कमाल का पावडर है...मेरे सारे परिवार का पायरिया छू-मंतर ही हो गया है। लेकिन अकसर जब इन लोगों के मुंह का चैक-अप किया जाता है तो बात कुछ और ही होती है।
ठीक है, आप तो कैमिस्ट की दुकान से सीलबंद आयुर्वैदिक पावडर का इस्तेमाल करते हैं......और अगर आप का दंत-चिकित्सक भी आप के दांतों का निरीक्षण करने के उपरांत यही कहता है कि सब कुछ एक दम फिट है तो आप भी अपनी जगह बिल्कुल ठीक हैं कि आखिर आप क्यों करें टुथपेस्ट पर स्विच-ओवर !
लेकिन इन सब बातों का पूरा जवाब भी मैं दूंगा, लेकिन इस समय पिछले डेढ़ घंटे से लगातार लिखते लिखते थक सा गया हूं और आप से इजाजत चाहूंगा......लेकिन इस पोस्ट के दूसरे हिस्से में इन पेस्टों और पावडरों( आयुर्वैदिक पावडरों समेत) की खुल कर बात करूंगा.....पेस्ट अथवा पावडर कैसा हो, कितना इस्तेमाल किया जाये।
जो भी हो, मैं अपनी पिछली पोस्ट पर आई एक टिप्पणी का तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं जिस की वजह से मुझे यह पोस्ट लिखने पर बाध्य होना पड़ा। इस पोस्ट को मैं बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानता हूं ...इसलिये मैंने इसे सुबह-सवेरे फ्रैश रहते हुये लिखने का फैसला किया। इसलिये कहता हूं कि कुछ टिप्पणी हमें झकझोरती हैं कि हां, अब ढूंढ इस बात का जवाब....शायद हम ने भी कभी इतनी गंभीरता से इन महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में इतनी गंभीरता से पहले कभी सोचा ही नहीं होता क्योंकि हम अकसर यही सोच कर खुश होते रहते हैं कि एक प्रोफैशनल के नाते हम कह रहे हैं वही पत्थर पर लकीर है.......लेकिन बात तर्क की है, वितर्क की है, विज्ञान की है, तो ऐसे में हमारी एक एक बात इस कसौटी पर खरी तो उतरनी ही चाहिये।
मेरे एक दोस्त ने बिल्कुल सही कहा था कि इस तरह की ब्लोग की दिशा-दशा तो समय ही निर्धारित करता है। अच्छा तो जल्द ही इसी शीर्षक वाली पोस्ट के दूसरे भाग के साथ हाज़िर होता हूं।
अच्छा तो दोस्तो इतनी सीरियस सी और बोरिंग पोस्ट झेलने के बाद मेरी पसंद का एक गीत ही सुन लो !
Subscribe to: Post Comments (Atom)
6 comments:
डॉ. साहब। आप की इस सिरीज से हमें बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। आप के सुझाव पसंद आए। लेकिन आयुर्वेदिक दंत पाउडर के संबन्ध में आप की बात अधूरी रही। आयुर्वेद प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है। सैंकड़ों वर्षों का अनुभव उस में सुरक्षित है। इस का अर्थ यह भी नहीं कि उसे अद्यतन करने की आवश्यकता नहीं है। वह भी चाहे कम ही हो ही रहा है। दाँतों-मुँह के सम्बन्ध में भी उस में बहुत कुछ है। यहाँ तक कि कुछ भी उपलब्ध न होने पर नमक और सरसों के तेल से मसूड़ों की मालिश और दांतों को साफ कर लेने का विधान भी है। उन का उपयोग करने में मैं कोई बुराई नहीं देखता। दंत चिकित्सक को नियमित वर्ष में एक बार दिखाना तो अच्छी बात है। उस से यह तो पता लग ही जाएगा कि क्षरण कितना हुआ है और उस की गति को कैसे कम किया जा सकता है? आप बताते रहिए। हम भी सीखते रहेंगे।
@ द्विवेदीजी, मैं इन्हीं बातों को डिस्कस करने के लिये ही इस पोस्ट का दूसरा भाग करने की बात कही है। आप का पोस्ट में रूचि लेने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया। इस से हमें भी थो़ड़ा गहराई से सोचने के लिये बाध्य होना पड़ता है। धन्यवाद,सर।
आप की दूसरी पोस्ट का इंतजार रहेगा। वैसे मुझेयाद आता है कि मेरे एक रिश्तेदार के बारे में जो नियमित सुबह शाम ब्रश करते थे,कम से कम 5 से 10 मिनिट तक और जबान भी साफ़ करते थे, फ़िर भी उनके मुंह से बदबु आती थी, हां उनके दातों में केवेटीस काफ़ी थी जिस वजह से हर खाने के बाद कुल्ला करते थे। मुंह की बदबु पर भी और विस्तार से बताने की कृपा करें।
हाँ डॉ साहब
यह पोस्ट कुछ अधूरी सी लग रही है.. अगली कड़ी पढ़ने से सही समझ में आयेगा।
वैसे दाँतों की एकाद परेशानी से हम भी परेशान है, नियमित टुथपेस्ट करते हुए भी।
लाइनों को हाईलाईट करने का संयोजन बढ़िया लगा।
हम भी खडे हे इन्त्जार मे,
काम की पोस्ट।
पूरा करें हम ध्यान से पढ रहे हैं
Post a Comment