रविवार, 17 अप्रैल 2022

लता जी की यादें....षणमुखानंदा हाल, मुंबई - 16 अप्रैल, 2022


कल सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया देख रहा था तो बाम्बे टाइम्स में एक इश्तिहार पर नज़र रुक गई ...यही सोचा कि अगर हो सका तो ज़रूर हो कर आएंगे...यह प्रोग्राम किंग सर्कल स्टेशन के पास षणमुखानंदा हाल में था..शाम के 6.30 बजे...लता जी की यादें और साथ में सुरेश वाडकर भी वहां आ रहे हैं...और इतना बड़ा म्यूज़िकल ग्रुप ...हेमंत कुमार ग्रुप जिन के यू-ट्यूब चैनल पर मैं कोई न कोई फिल्मी गीत सुनता रहता हूं ...

टिकट लेने पहुंचा तो पता नहीं उस ने क्या बताया कि हज़ार की ..दो हज़ार की ...मैंने सीधा पूछा कि सब से कम वाली कौन सी है ...उसने कहा अगली खिड़की पर जाइए...500 रूपये की टिकट वहां मिलेगी। टिकट खरीद ली ..यह सैकंड बॉलकनी की टिकट थी...ज़िंदगी में पहली बार किसी सैकंड बॉलकनी के बारे में सुना था, देखना तो बाकी थी...टिकट तो ले ली, लेकिन यही सोचने लगा कि सैकंड बालकनी से लाइव आर्केस्ट्रा क्या दिखेगा...वही डेढ़-दो हज़ार वाली ले लेनी थी...खैर, साढ़े छः बजे का वक्त था...लेकिन अंदर जा कर सुन रहे थे कि हाल का ए.सी कुछ ट्रिप हो गया है ..यह पहली बार हुआ है ...

हां, एक बात यह तो यहां लिख दूं कि इस हाल के बारे में मैंने जितना सुन रखा था, वह कम था...मुझे अभी तक यह ख्याल नहीं आ रहा कि शायद मैं लगभग 25-30 बरस पहले भी इस हाल में किसी प्रोग्राम के सिलसिले में आया था...लेकिन कुछ याद नहीं है ..खैर, अभी दो साल पहले सुन रहे थे कि इस हाल की रेनोवेशन हो रही है ...भई, क्या आलीशान रेनोवेशन की गई है ...तस्वीरें तो मेरे पास वहां की दर्जनों हैं लेकिन मैं जानबूझ कर यहां नहीं लगा रहा क्योंकि उस से फिर जो वहां जा कर आप को थ्रिल मिलने वाली है न वह खत्म हो जाएगी...इसलिए जब भी कभी कोई प्रोग्राम हो वहां हो कर आइए, बहुत मज़ा आएगा...



आखिर कैसी है यह जगह....क्या कहें, इसकी सुंदरता, भव्यता ब्यां करना मेरे तो बस में ही नहीं है...क्योंकि मैं तो बस फिल्मी गीतों का शौकीन हूं ..बाकी तो संगीत वीत मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर जैसा ही है ...मुझे कुछ और पल्ले नहीं पड़ता। लेकिन वहां की दीवारों पर जो लिखा है, जिन महान संगीतकारों, गायकों एवं अन्य कलाकारों की तस्वीरें लगी हुई हैं, वे सब आप को रोमांचित करेंगी ...यह मेरी गारंटी हैं...मैं ही उन दीवारों से नज़रें नहीं हटा सका...इतने में सात बजे के करीब किसी ने कहा कि ए.सी शुरू हो गये हैं...लोग अंदर प्रवेश कर रहे हैं...

लेकिन, यह क्या ...सैकंड बॉलकनी लेकिन वहां से इतना भव्य दृश्य...वाह..वाह...वहां से स्टेज का पूरा नज़ारा दिख रहा था ...जब मैं अपनी सीट पर बैठा तो एक लड़का सैक्सोफोन बजा रहा था ...बिना सांस लिए इतना बेहतरीन सैक्सोफोन बजाना...वाह...हेमंत कुमार जिन्होंने यह प्रोग्राम आर्गेनाइज़ किया था ...वह उस लड़के की तरफ़ इशारा कर के बताने लगे कि यह लड़का जब 12 साल का था तो उन के पास आया अपने डैड के साथ कि मुझे आपके साथ काम करना है ...उन्होंने उस के डैड को कहा कि आप अहमदाबाद में जो भी सर्विस करते हैं, उसे छोड़ कर बंबई में बस जाइए। बता रहे थे उन्होंने वैसा ही किया और 6 साल के बाद आज इस की उम्र 18 साल है और यह बड़े बड़े सभी म्यूज़िक डायरेक्टर्ज़ के साथ काम कर चुका है...

इस के बाद फिल्मी गीतों का सिलसिला शुरू हुआ... जो भी मैं गीत यहां लिख रहा हूं उन के लिंक भी साथ ही लगा रहा हूं...अगर सुनना चाहें तो उस लिंक पर क्लिक करिए...

इस ज़माने में इस मोहब्बत ने ... (मेहबूब की मेंहदी) 

तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया ..(फिल्म..कुदरत)

तुझ से नाराज़ नहीं ज़िंदगी...हैरान हूं मैं ..(फिल्म- मासूम) 

दिल में तुझे बिठा के ...कर लूंगी में बंद आंखें ..(फिल्म- फकीरा) 

इस के बाद सुरेश वाडकर स्टेज पर आए और उन्होंने ये तीन गीत गाए...

अजनबी कौन हो तुम 

मोहब्बत है क्या चीज़ (प्रेम रोग)

मेरी किस्मत में तु नहीं शायद ...(प्रेम रोग) 

इस के बाद अन्य कलाकारों ने ये गीत सुनाए...निंदिया से जागी बहार (हीरो) , सुन साहिबा सुन प्यार की धुन (राम तेरी गंगा मैली हो गई) , जा रे जा ओ हरजाई...(विश्वनाथ)...

एक बार फिर जब सुरेश वाडकर स्टेज पर आए तो उन्होंने फिर लता जी का गाया हुआ एक सोलो गीत गाया ....कहने लगे कि वह तो एक अवतार थीं, किसी को भी उन के गाए हुए गीत फिर से गाने की हिम्मत ही नहीं होती...फिर भी हम लोग यह गल्ती करते रहते हैं...जो गीत उन्होंने गाया वह यह था... रुला के गया सपना तेरा ...बैठी हूं कब हो सवेरा...।

इस के आगे सुरेश वाडेकर ने वह गीत गाया....हुस्न पहाड़ों का ..क्या कहना कि बारह महीने यहां मौसम जाड़ों का ... इस गीत की एक याद उन्होंने साझा कि जिस दिन इस गीत की रिकार्डिंग थी, लता जी को तो कैसेट में गीत भेजा गया था ..वह तो पूरा रियाज़ कर के आती थीं...लेकिन मैं तो सुबह ही से स्टूडीयो में था...सुरेश ने बताया कि दादू (रवींद्र जैन) के नोट्स बहुत ऊंचे होते हैं ..लेकिन हम आधा नोट नीचे ही इस गीत की रिकार्डिंग करेंगे ..और इस तरह से गीत रिकार्ड हो गया..। 

आगे गीत जो वाडेकर ने सुनाया वह भी अपना फेवरेट ..पतझड़ सावन बसंत बहार ...एक बरस के मौसम चार...मौसम चार ...इस गीत को तो मैं कैसे भूल सकता हूं ...1987-88 में आज से 35 साल पहले जब मैं एम.डी.एस कर रहा था तो मैंने इस की कैसेट को इतनी बार सुना और इतनी तेज़ आवाज़ में सुना...कि कैसेट घिस गई, टेपरिकार्ड का हैड भी जवाब दे गया...और होस्टल की पूरी फ्लोर में यह गीत याद हो गया, लेकिन मेरा मन फिर भी न भरा इस गीत से....मुझे अभी भी कहते हैं उन दिनों के पुराने साथी ....उन्हें अभी भी अच्छे से याद है ... हा हा हा ...

अच्छा, अब उस प्रोग्राम में हो गया इंटरवल.... मैं भी ब्रेक ले रहा हूं ..बाकी की बातें हाल की, सुरेश वाडेकर की और लता जी की अगली पोस्ट में करेंगे ..किस तरह से सुरेश वाडेकर को लता जी के साथ गाने का मौका मिला ...वे सब बातें आपसे साझा करेंगे...😎

सैकेंड बालकनी से भी ऐसा भव्य दृश्य दिख रहा था ...वैसे यह तस्वीर प्रोग्राम के समापन के वक्त की है...

प्रभु कृपा आप सब पर बनी रहे🙏 ...उस हाल में जा कर ऐसे लगता है जैसे हम लोग किसी प्राचीन मंदिर में आए हैं...वैसे ही वहां की एम्बिऐंस है, वैसी ही खुशबू और वैैसी ही वाईब्रेशन्ज़...

शेष, अगली पोस्ट का इंतज़ार करिए... 



2 टिप्‍पणियां:

  1. आप के साथ एक अलग ही जिंदगी का आनंद ले रहे है। बहुत ही रोचक जानकारी। सस्पेंस न रखा करो फोटो शेयर कर ही दिया करो सर

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  2. आगे की पोस्ट पहले पढली पर लगा दोनों का अस्तित्व अलग अलग है जैसे एक सिक्के के दो पहलू। बहुत बहुत बधाई सर।
    सत्येंद्र सिंह

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