पिछले कईं हफ्तों से एक तरह से हड़कंप मचा हुआ है...स्वाईन फ्लू आ गया है, फैल रहा है...लेकिन सब से पहले समझने वाली बात यही है कि यह स्वाईन फ्लू नहीं है, नहीं है, नहीं है।
यह स्वाईन फ्लू नहीं है...इन शब्दों पर ज़ोर देने के लिए मुझे तीन बार लिखना पड़ा क्योंकि मीडिया में बार बार स्वाईन फ्लू शब्द का ही इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि सरासर गलत है, लोगों में भम्र पैदा कर रहा है, इसी की वजह से ही अफरातफरी का माहौल बन रहा है।
कुछ दिन पहले मैंने किसी विषय पर लेख लिखा था...लेकिन उस के कमैंट में एक भाई ने पूछा कि क्या स्वाईन-फ्लू की दवा है?..मैंने उन्हें संक्षेप सा उत्तर तो दे दिया...लेकिन उस उत्तर से मैं भी संतुष्ट नहीं था, मुझे लगा कि बात विस्तार से करनी होगी।
चार पांच दिन पहले मेरे एक मित्र का दिल्ली से फोन आया...बताने लगा कि तबीयत नासाज़ है, खांसी-जुकाम है, मैंने ही डाक्टर को कहा है कि क्या मुझे स्वाईन-फ्लू का टेस्ट करवा लेना चाहिए। डाक्टर ने कहा है--करवा लेते हैं। अगले दिन उस का फोन आया कि स्वाईन-फ्लू का टेस्ट पाज़िटिव निकला है। मैं उसे तसल्ली दी कि परेशान न होए, अपने खाने-पीने का ध्यान रखे....लेकिन उस की तसल्ली होती दिखी नहीं, दरअसल मीडिया ने स्वाईन-फ्लू के नाम ही से इतना प्रचार-प्रसार कर दिया है।
उस दोस्त की भी दवाई शुरू हो गई पांच दिन के लिए ... और घर के अन्य सदस्यों को दवाई एहतियात के तौर पर दी जाने लगी है... लेकिन क्या ऐसे हर केस में या इन के परिवार को दवाई दी जानी ठीक है, इस के बारे में मैडीकल विज्ञान के आधार पर बात करने की ज़रूरत है..आज सारा दिन मैं आप से इस एच१एन१ एन्फ्लुऐंजा के बारे में ही बात करूंगा......आज मुझे छुट्टी है, सोच रहा हूं आज शाम तक इस विषय पर सही सही जानकारी आप तक सटीक ढंग तक पहुंचा कर इस का खौफ खत्म करने के लिए अपना एक तुच्छ योगदान मैं भी दूं।
अब यह सूअर से नहीं, आदमी से आदमी में फैलता है...
जी हां, ये जो आज कर फ्लू हो रहा है, यह स्वाईन-फ्लू नहीं है, यह बस मौसमी एन्फ्लुऐंजा है... जो हर साल आता है जाता है। इसे सीज़नल H1N1एन्फ्लुऐंजा (Seasonal Influenza H1N1) कहते हैं। जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है कि यह स्वाईन फ्लू नहीं है। स्वाईन का मतलब है कि सूअर से फैलने वाला......लोगों में तो यह भी भ्रांति है कि यह सूअर का मांस खाने से फैलता है, ऐसा नहीं है, वो अलग बात है कि सूअर के मांस के साथ अन्य मुद्दे जुड़े हुए हैं जो इस पोस्ट की चर्चा का विषय नहीं है।
दरअसल २००९ में जब स्वाईन-फ्लू आया --जब इस वॉयरस का मुखौटा सामने आया या यूं कह लें कि २००९ में जब यह वॉयरस पैदा हुई.. तब इसे पैनडैमिक एच१एन१ कहा गया था, यह विश्व के बहुत से देशों में फैलने लगा।
२००९ में जब यह फ्लू आया तो विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर बराबर नज़र रखे हुए था, उसने विश्व स्तर पर एलर्ट भी जारी किया था... क्योंकि यह वॉयरस का बिल्कुल नया मुखौटा था... जिस का न तो कोई वैक्सीन था, न ही लोगों के शरीर में इस का मुकाबला करने की रोग-प्रतिरोधक क्षमता ही थी।
तो यह बात अब हम सब की समझ में आ चुकी है कि यह २००९ वाली वॉयरस ही है, तब यह विश्व में पहली बार दिखी थी, लेकिन २००९ से २०१५ के बीच में हम सब में "herd immunity" पैदा हो चुकी है.......इस अंग्रेजी का मतलब केवल यही है कि इतने लंबे समय में हम लोगों के शरीर में इस का मुकाबला करने की क्षमता पैदा हो चुकी है....यह अपने अपने होता है......बिना बीमार हुए, बिना इस इंफेक्शन से ग्रस्त हुए......आप यूं समझ लें कि इस तरह की हर्ड-इम्यूनिटि हमारे लिए एक प्रकृति का तोहफ़ा है।
पहली बात तो यह कि अब सूअर वाली बात इस बीमारी के बीच से निकल चुकी है.......क्योंकि यह अब एक व्यकित से दूसरे व्यक्ति में खांसी-ज़ुकाम की तरह ही फैल रहा है.......और सीधी सीधी बात यह कि बहुत से लोगों में होगा, लेकिन गंभीर नहीं होगा, अब इम्यूनिटि है, इस से टक्कर लेने की रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो चुकी है।
मुझे ध्यान आया कि मैंने २००९ में कुछ स्वाईन-फ्लू से संबंधित लेख लिखे थे, अगर आप चाहें तो इस ब्लाग के दाईं तरफ पैनल में जो सर्च-बॉक्स बना है, उस में स्वाईन-फ्लू लिखें, तो सारे लेख आप के सामने आ जाएंगे.......मैंने भी अभी अभी देखे, लेकिन मैं जान-बूझ कर उन का लिंक यहां नहीं लगा रहा, जब यह स्वाईन-फ्लू है ही नहीं तो आप को क्यों बिना वजह उलझाया जाए।
तो दोस्त, आज सुबह जब अखबार आप के हाथ में आए तो पहले पन्ने पर स्वाईन-फ्लू के बारे में खबरें देख कर बिल्कुल भी भयमीत मन होइएगा.....इस के बारे में आज आप से बहुत सी बातें शेयर करनी हैं।
यह स्वाईन फ्लू नहीं है...इन शब्दों पर ज़ोर देने के लिए मुझे तीन बार लिखना पड़ा क्योंकि मीडिया में बार बार स्वाईन फ्लू शब्द का ही इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि सरासर गलत है, लोगों में भम्र पैदा कर रहा है, इसी की वजह से ही अफरातफरी का माहौल बन रहा है।
कुछ दिन पहले मैंने किसी विषय पर लेख लिखा था...लेकिन उस के कमैंट में एक भाई ने पूछा कि क्या स्वाईन-फ्लू की दवा है?..मैंने उन्हें संक्षेप सा उत्तर तो दे दिया...लेकिन उस उत्तर से मैं भी संतुष्ट नहीं था, मुझे लगा कि बात विस्तार से करनी होगी।
चार पांच दिन पहले मेरे एक मित्र का दिल्ली से फोन आया...बताने लगा कि तबीयत नासाज़ है, खांसी-जुकाम है, मैंने ही डाक्टर को कहा है कि क्या मुझे स्वाईन-फ्लू का टेस्ट करवा लेना चाहिए। डाक्टर ने कहा है--करवा लेते हैं। अगले दिन उस का फोन आया कि स्वाईन-फ्लू का टेस्ट पाज़िटिव निकला है। मैं उसे तसल्ली दी कि परेशान न होए, अपने खाने-पीने का ध्यान रखे....लेकिन उस की तसल्ली होती दिखी नहीं, दरअसल मीडिया ने स्वाईन-फ्लू के नाम ही से इतना प्रचार-प्रसार कर दिया है।
उस दोस्त की भी दवाई शुरू हो गई पांच दिन के लिए ... और घर के अन्य सदस्यों को दवाई एहतियात के तौर पर दी जाने लगी है... लेकिन क्या ऐसे हर केस में या इन के परिवार को दवाई दी जानी ठीक है, इस के बारे में मैडीकल विज्ञान के आधार पर बात करने की ज़रूरत है..आज सारा दिन मैं आप से इस एच१एन१ एन्फ्लुऐंजा के बारे में ही बात करूंगा......आज मुझे छुट्टी है, सोच रहा हूं आज शाम तक इस विषय पर सही सही जानकारी आप तक सटीक ढंग तक पहुंचा कर इस का खौफ खत्म करने के लिए अपना एक तुच्छ योगदान मैं भी दूं।
अब यह सूअर से नहीं, आदमी से आदमी में फैलता है...
जी हां, ये जो आज कर फ्लू हो रहा है, यह स्वाईन-फ्लू नहीं है, यह बस मौसमी एन्फ्लुऐंजा है... जो हर साल आता है जाता है। इसे सीज़नल H1N1एन्फ्लुऐंजा (Seasonal Influenza H1N1) कहते हैं। जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है कि यह स्वाईन फ्लू नहीं है। स्वाईन का मतलब है कि सूअर से फैलने वाला......लोगों में तो यह भी भ्रांति है कि यह सूअर का मांस खाने से फैलता है, ऐसा नहीं है, वो अलग बात है कि सूअर के मांस के साथ अन्य मुद्दे जुड़े हुए हैं जो इस पोस्ट की चर्चा का विषय नहीं है।
दरअसल २००९ में जब स्वाईन-फ्लू आया --जब इस वॉयरस का मुखौटा सामने आया या यूं कह लें कि २००९ में जब यह वॉयरस पैदा हुई.. तब इसे पैनडैमिक एच१एन१ कहा गया था, यह विश्व के बहुत से देशों में फैलने लगा।
२००९ में जब यह फ्लू आया तो विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर बराबर नज़र रखे हुए था, उसने विश्व स्तर पर एलर्ट भी जारी किया था... क्योंकि यह वॉयरस का बिल्कुल नया मुखौटा था... जिस का न तो कोई वैक्सीन था, न ही लोगों के शरीर में इस का मुकाबला करने की रोग-प्रतिरोधक क्षमता ही थी।
तो यह बात अब हम सब की समझ में आ चुकी है कि यह २००९ वाली वॉयरस ही है, तब यह विश्व में पहली बार दिखी थी, लेकिन २००९ से २०१५ के बीच में हम सब में "herd immunity" पैदा हो चुकी है.......इस अंग्रेजी का मतलब केवल यही है कि इतने लंबे समय में हम लोगों के शरीर में इस का मुकाबला करने की क्षमता पैदा हो चुकी है....यह अपने अपने होता है......बिना बीमार हुए, बिना इस इंफेक्शन से ग्रस्त हुए......आप यूं समझ लें कि इस तरह की हर्ड-इम्यूनिटि हमारे लिए एक प्रकृति का तोहफ़ा है।
पहली बात तो यह कि अब सूअर वाली बात इस बीमारी के बीच से निकल चुकी है.......क्योंकि यह अब एक व्यकित से दूसरे व्यक्ति में खांसी-ज़ुकाम की तरह ही फैल रहा है.......और सीधी सीधी बात यह कि बहुत से लोगों में होगा, लेकिन गंभीर नहीं होगा, अब इम्यूनिटि है, इस से टक्कर लेने की रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो चुकी है।
मुझे ध्यान आया कि मैंने २००९ में कुछ स्वाईन-फ्लू से संबंधित लेख लिखे थे, अगर आप चाहें तो इस ब्लाग के दाईं तरफ पैनल में जो सर्च-बॉक्स बना है, उस में स्वाईन-फ्लू लिखें, तो सारे लेख आप के सामने आ जाएंगे.......मैंने भी अभी अभी देखे, लेकिन मैं जान-बूझ कर उन का लिंक यहां नहीं लगा रहा, जब यह स्वाईन-फ्लू है ही नहीं तो आप को क्यों बिना वजह उलझाया जाए।
तो दोस्त, आज सुबह जब अखबार आप के हाथ में आए तो पहले पन्ने पर स्वाईन-फ्लू के बारे में खबरें देख कर बिल्कुल भी भयमीत मन होइएगा.....इस के बारे में आज आप से बहुत सी बातें शेयर करनी हैं।
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