बीबीसी की यह न्यूज़-रिपोर्ट पढ़ कर कुछ ज़्यादा अचंभा नहीं हुआ कि वहां पर २०१२ में बच्चों में किए जाने वाले सी टी स्कैनों की संख्या दोगुनी हो कर एक लाख तक पहुंच गई।
रिपोर्ट पढ़ कर और तो कुछ ज़्यादा आम बंदे को समझ नहीं आयेगा लेकिन वह इतना तो ज़रूर समझ ही जायेगा कि कुछ न कुछ तो लफड़ा है ही।
Sharp rise in CT scans in children and adults
समझ न आने का कारण है कि रिपोर्ट में कुछ कह रहे हैं कि यह ठीक नहीं है, कुछ कह रहे हैं कि नहीं जिन बच्चों को ज़रूरत थी उन्हीं का ही सी टी स्कैन करवाया गया है, खिचड़ी सी बनी हुई है।
लेिकन एक बात जो सब को अच्छे से समझने की ज़रूरत है कि बिना वजह से करवाए गये सी टी स्कैन का वैसे तो हर एक को ही नुकसान होता है, लेकिन बच्चों को इस से होने वाले नुकसान का सब से ज़्यादा अंदेशा रहता है क्योंकि उन का जीवन काल अभी बहुत लंबा पड़ा होता है।
इस रिपोर्ट में एक २०१२ की स्टडी का भी उल्लेख है जिसमें यह पाया गया कि अगर बच्चों के सी टी स्कैन बार बार किए जाएं (१० या उस से अधिक) तो उन में रक्त एवं दिमाग का कैंसर होने का रिस्क तिगुना हो जाता है।
अब सोचने वाली बात यह है कि यह पढ़ कर सभी मां बाप कहेंगे कि हमें पता कैसे चले कि डाक्टर जो सी टी स्कैन के लिए लिख रहा है, उस जांच की मांग उचित है या नहीं। वैसे भी बच्चा बीमार होने पर मां-बाप अपनी सुध बुध सी खोए रहते हैं और ऐसे में यह कहां से पता चले कि सीटी स्कैन करवाना उचित है कि नहीं, इस की ज़रूरत है भी कि नहीं।
बिल्कुल सही बात है यह निर्णय मां-बाप के लिए लेना मुमकिन बिल्कुल भी नहीं है।
लेकिन एक बात तो मां-बाप कर ही सकते हैं कि छोटी मोटी तकलीफ़ों के लिए बच्चे को बड़े से बड़े विशेषज्ञ के पास या बड़े कार्पोरेट अस्पतालों में लेकर ही न जाएं, सब से पहले अपने पड़ोस के क्वालीफाइड फैमली डाक्टर पर ही भरोसा रखें, यकीनन वह अधिकतर बीमारियों को ठीक करने में सक्षम है। अगर किसी बड़े टेस्ट की ज़रूरत होगी तो वह बता ही देगा।
और मुझे ऐसा लगता है कि यह मंहगे महंगे टेस्ट अगर किसी ने लिखे भी हैं, तो भी अगर समय की कोई दिक्कत नहीं है तो भी किसी दूसरे डाक्टर से परामर्श कर ही लेना चाहिए।
वैसे यह सब कुछ कर पाना क्या उतना ही आसान है जितनी आसानी से मैं लिख पा रहा हूं। बहुत मुश्किल है मां -बाप के लिए डाक्टर के कहे पर प्रश्नचिंह लगाना.......बहुत ही कठिन काम है।
यू के की बात तो हमने कर ली, लेकिन अपने यहां क्या हो रहा है, रोज़ हम लोग अखबारों में देखते हैं, टीवी पर सुनते हैं। कुछ कुछ गोरखधंधे तो चल ही रहे हैं।
एक बात जो मैंने नोटिस की है कि भारत में लोग पहले किसी गांव के नीम-हकीम झोला छाप के पास जाते हैं जिसने सीटी स्कैन या एमआरआई का बस नाम सुना हुआ है, बस वह हर सिरदर्द के मरीज़ को सीटी स्कैन और हर पीठ दर्द के मरीज़ को एमआरआई करवाने की सलाह दे देता है। इन नीम हकीमों तक ने भी सैटिंग कर रखी होती है...... और यह सैटिंग ज़्यादा पुख्ता किस्म की होती है। समझ गये ना आप?
अब अगर तो यह मरीज़ किसी सही डाक्टर के हाथ पड़ जाता है तो वह उसे समझा-बुझा कर उस की सेहत और पैसा बरबाद होने से बचा लेता है, वरना तो......।
बीबीसी की इसी रिपोर्ट में आप पाएंगे कि यह मांग की जा रही है वहां यूके में किस सीटीस्कैन सैंटर ने वर्ष में कितने सीटीस्कैन किए और मरीज़ों की एक्सरे किरणों की कितनी डोज़ दे कर ये सीटीस्कैन किए जा रहे हैं, इस की पूर्ण जानकारी सरकार को उपलब्ध करवाई जाए। इस तरह के उपाय क्या भारत में भी शुरू नहीं किये जा सकते है या अगर शुरू हो भी गये तो इन का बेवजह किए जाने वाले सीटी स्कैनों की निरंतर बढ़ रही संख्या पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी एक प्रश्न ही है।
अंत में बस यही बात समझ में आ रही है कि अपने फैमिली फ़िज़िशियन पर भी हम लोग भरोसा करें......... और महंगे टैस्ट करवाने के लिए कहे जाने पर.....जिन के बार बार करवाने से नुकसान भी हो सकता है----ऐसे केस में हमें दूसरे चिकित्सक से ओपिनियन लेने में नहीं झिझकना चाहिए। यह नहीं कि दूसरे डाक्टर की फीस २०० रूपये है और यह टैस्ट तो ८०० रूपये में हो जायेगा, बात पैसे की नहीं है, बात सेहत की सुरक्षा की है कि बिना वजह एक्सरे किरणें शरीर में जा कर इक्ट्ठी न हो पाएं, किसी तरह की जटिलता न पैदा कर दें।
कुछ अरसा पहले भी मैंने इस विषय पर कुछ लिखा था, ये पड़े हैं वे लिंक्स........
रिपोर्ट पढ़ कर और तो कुछ ज़्यादा आम बंदे को समझ नहीं आयेगा लेकिन वह इतना तो ज़रूर समझ ही जायेगा कि कुछ न कुछ तो लफड़ा है ही।
Sharp rise in CT scans in children and adults
समझ न आने का कारण है कि रिपोर्ट में कुछ कह रहे हैं कि यह ठीक नहीं है, कुछ कह रहे हैं कि नहीं जिन बच्चों को ज़रूरत थी उन्हीं का ही सी टी स्कैन करवाया गया है, खिचड़ी सी बनी हुई है।
लेिकन एक बात जो सब को अच्छे से समझने की ज़रूरत है कि बिना वजह से करवाए गये सी टी स्कैन का वैसे तो हर एक को ही नुकसान होता है, लेकिन बच्चों को इस से होने वाले नुकसान का सब से ज़्यादा अंदेशा रहता है क्योंकि उन का जीवन काल अभी बहुत लंबा पड़ा होता है।
इस रिपोर्ट में एक २०१२ की स्टडी का भी उल्लेख है जिसमें यह पाया गया कि अगर बच्चों के सी टी स्कैन बार बार किए जाएं (१० या उस से अधिक) तो उन में रक्त एवं दिमाग का कैंसर होने का रिस्क तिगुना हो जाता है।
अब सोचने वाली बात यह है कि यह पढ़ कर सभी मां बाप कहेंगे कि हमें पता कैसे चले कि डाक्टर जो सी टी स्कैन के लिए लिख रहा है, उस जांच की मांग उचित है या नहीं। वैसे भी बच्चा बीमार होने पर मां-बाप अपनी सुध बुध सी खोए रहते हैं और ऐसे में यह कहां से पता चले कि सीटी स्कैन करवाना उचित है कि नहीं, इस की ज़रूरत है भी कि नहीं।
बिल्कुल सही बात है यह निर्णय मां-बाप के लिए लेना मुमकिन बिल्कुल भी नहीं है।
लेकिन एक बात तो मां-बाप कर ही सकते हैं कि छोटी मोटी तकलीफ़ों के लिए बच्चे को बड़े से बड़े विशेषज्ञ के पास या बड़े कार्पोरेट अस्पतालों में लेकर ही न जाएं, सब से पहले अपने पड़ोस के क्वालीफाइड फैमली डाक्टर पर ही भरोसा रखें, यकीनन वह अधिकतर बीमारियों को ठीक करने में सक्षम है। अगर किसी बड़े टेस्ट की ज़रूरत होगी तो वह बता ही देगा।
और मुझे ऐसा लगता है कि यह मंहगे महंगे टेस्ट अगर किसी ने लिखे भी हैं, तो भी अगर समय की कोई दिक्कत नहीं है तो भी किसी दूसरे डाक्टर से परामर्श कर ही लेना चाहिए।
वैसे यह सब कुछ कर पाना क्या उतना ही आसान है जितनी आसानी से मैं लिख पा रहा हूं। बहुत मुश्किल है मां -बाप के लिए डाक्टर के कहे पर प्रश्नचिंह लगाना.......बहुत ही कठिन काम है।
यू के की बात तो हमने कर ली, लेकिन अपने यहां क्या हो रहा है, रोज़ हम लोग अखबारों में देखते हैं, टीवी पर सुनते हैं। कुछ कुछ गोरखधंधे तो चल ही रहे हैं।
एक बात जो मैंने नोटिस की है कि भारत में लोग पहले किसी गांव के नीम-हकीम झोला छाप के पास जाते हैं जिसने सीटी स्कैन या एमआरआई का बस नाम सुना हुआ है, बस वह हर सिरदर्द के मरीज़ को सीटी स्कैन और हर पीठ दर्द के मरीज़ को एमआरआई करवाने की सलाह दे देता है। इन नीम हकीमों तक ने भी सैटिंग कर रखी होती है...... और यह सैटिंग ज़्यादा पुख्ता किस्म की होती है। समझ गये ना आप?
अब अगर तो यह मरीज़ किसी सही डाक्टर के हाथ पड़ जाता है तो वह उसे समझा-बुझा कर उस की सेहत और पैसा बरबाद होने से बचा लेता है, वरना तो......।
बीबीसी की इसी रिपोर्ट में आप पाएंगे कि यह मांग की जा रही है वहां यूके में किस सीटीस्कैन सैंटर ने वर्ष में कितने सीटीस्कैन किए और मरीज़ों की एक्सरे किरणों की कितनी डोज़ दे कर ये सीटीस्कैन किए जा रहे हैं, इस की पूर्ण जानकारी सरकार को उपलब्ध करवाई जाए। इस तरह के उपाय क्या भारत में भी शुरू नहीं किये जा सकते है या अगर शुरू हो भी गये तो इन का बेवजह किए जाने वाले सीटी स्कैनों की निरंतर बढ़ रही संख्या पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी एक प्रश्न ही है।
अंत में बस यही बात समझ में आ रही है कि अपने फैमिली फ़िज़िशियन पर भी हम लोग भरोसा करें......... और महंगे टैस्ट करवाने के लिए कहे जाने पर.....जिन के बार बार करवाने से नुकसान भी हो सकता है----ऐसे केस में हमें दूसरे चिकित्सक से ओपिनियन लेने में नहीं झिझकना चाहिए। यह नहीं कि दूसरे डाक्टर की फीस २०० रूपये है और यह टैस्ट तो ८०० रूपये में हो जायेगा, बात पैसे की नहीं है, बात सेहत की सुरक्षा की है कि बिना वजह एक्सरे किरणें शरीर में जा कर इक्ट्ठी न हो पाएं, किसी तरह की जटिलता न पैदा कर दें।
कुछ अरसा पहले भी मैंने इस विषय पर कुछ लिखा था, ये पड़े हैं वे लिंक्स........
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