मंगलवार, 24 जून 2014

बस हिंदी के नाम ही से डर गए...

पिछले दिनों हिंदी बहुत ज़्यादा खबरों में रही। सोशल वोशल मीडिया पर हिंदी के इस्तेमाल पर या हिंदी इंगलिश दोनों के इस्तेमाल पर खूब चर्चा भी हुई..कईं जगह बवाल भी मचा।

लेकिन क्या किसी ने यह देखने का कष्ट भी किया कि आखिर ब्लागिंग, ट्विटिंग एवं फेसबुक पर सरकारी विभागों के बंदों द्वारा कितनी हिंदी इस्तेमाल हो रही है....और यह सब जो इंगलिश में हो रहा है , उस की आखिर फ्रिक्वेंसी है क्या।

आप कभी इस बात की रिसर्च करेंगे तो पाएंगे कि हिंदी की तो बात क्या करें, इंगलिश के माध्यम से भी सोशल मीडिया और ब्लॉग्स पर कुछ विशेष कहा ही नहीं जा रहा। और यह उतना आसान भी नहीं है जितना दिखाई जान पड़ता है।

इस का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि एक फरमान के आते ही किसी को इंटरनेट पर हिंदी का इस्तेमाल करना नहीं आ जाता। जैसे हर काम सीखने से आता है, इस के लिए भी एक अनुशासित ट्रेनिंग दरकार होती है। और यह भी एक तपस्या ही है।

लोग बाग आठ-आठ दस-दस वर्ष से हिंदी में ब्लॉगिंग कर रहे हैं, और अभी भी सीखने वालों की ही श्रेणी में आते हैं। मैं भी इस विधा का एक प्रारंभिक छात्र हूं।

मेरा बस इतना कहना है कि बस फरमान से ही एक ओपिनियन न कायम कर लिया करें......कभी रिसर्च भी किया करें कि ज़मीनी वास्तविकता क्या है, अब इस से ज़्यादा मैं यहां कह नहीं सकता, आप स्वयं देखें कि चल क्या रहा है !! आप भी सब समझ जाएंगे। 

5 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ साहब हम तो हिन्दी हिन्दी ही हैं …… क्योंकि do not know English, so Hindi write, read and speak. confuse people that I'm a true servant of Hindi. :)

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नायब सूबेदार बाना सिंह और २६ जून - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. अपने विचार,अच्छी सलाह ........
    शुभकामनायें|

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  4. बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@दर्द दिलों के
    नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं

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  5. सच हिंदी में ब्लॉगिंग किसी तपस्या से कम नहीं ... हम भी ५ साल से ब्लॉगिंग कर रहे हैं, लेकिन तकनीकी ज्ञान में सीखने वालों की ही श्रेणी में हैं।

    .. बहुत बढ़िया सामयिक आलेख

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