मंगलवार, 19 मई 2009

ब्रेसेज़ से कुछ (या काफी ?) हद तक तो बचा ही जा सकता है ....

कुछ अरसा पहले मैंने एक लेख में इस बात का जवाब देने की एक कोशिश की थी कि क्या ब्रेसेज़ से बचा जा सकता है ?
मुझे हमेशा उसी विषय पर लिखना अच्छा लगता है जिस का सरोकार हज़ारों-लाखों से आम लोगों से हो। ब्रेसेज़ के बारे में मैं जब भी सोचता हूं तो यही लगता है कि होती तो बहुत से बच्चों एवं युवकों-युवतियों को इसकी ज़रूरत है लेकिन मेरे अनुमान के मुताबिक इन में से केवल एक फीसदी ( 1%) या शायद इस से भी बहुत कम इस तरह का इलाज करवा पाते हैं।

मेरे ये आंकड़ें टीवी चैनलों के एग्ज़िट पोल जैसे नहीं है – कोई सनसनीखेज़ हवाई बात नहीं है यह , यहां पर एक एक बात बहुत ही सोच समझ कर कही जा रही है।

लाखों मरीज़ों को मिलने के बाद अब कुछ कुछ समझने लगा हूं कि आखिर क्यों लोग बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांतों का इलाज नहीं करवा पाते। इस का एक कारण है कि यह इलाज अच्छा खासा महंगा होता है ---अकसर अगर फिक्सड़ ब्रेसेज़ से इस तरह के ऊट-पटांग दांतों को सीधा करने का इलाज करवाया जाता है तो लगभग दस-पंद्रह हज़ार का खर्च तो इस में हो ही जाता है। यह महंगा इसलिये है क्योंकि इस में इस्तेमाल होने वाले मैटीरियल बहुत महंगे हैं और इसे आरथोडोंटिस्ट विशेषज्ञ ही बढ़िया ढंग से कर पाते हैं।

अकसर यह भी देखा है कि इतनी रकम खर्च करना बहुत से लोगों की बस की बात नहीं होती क्योंकि उन की अपनी प्राथमिकतायें हैं।

लेकिन मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि जिन बच्चों के दांत टेढ़े-मेढ़े होते हैं उन में थोड़ी बहुत हीन-भावना आ ही जाती है। अब कोई कहे कि नहीं , नहीं, ऐसा नहीं होता, तो मेरी इस के लिये कोई दलील नहीं है।

लेकिन मैंने बहुत गहराई से इन बच्चों , युवकों-युवतियों के चेहरे को पढ़ कर यही पाया है कि टेढ़े-मेढ़े दांतों से ग्रस्त ये बच्चे कईं बार तो हंसना ही भूल जाते हैं। अकसर स्कूल आदि में दूसरे बच्चे जब इन की दांतों की बनावट के बारे में जाने-अनजाने मज़ाक में कभी कोई कमैंट ही मार देते हैं तो ये और भी आहट हो जाते हैं।

यह, क्या ......बात तो कुछ ज़्यादा ही लंबी खिंच रही है। तो, बस इतना ही कह कर आगे चलता हूं कि मेरा अनुभव मुझे यह कहता है कि इस तरह का इलाज करवाना आम बंदे के बस की बात है ही नहीं ---कारण तो बहुत से हैं, अब क्या क्या गिनवायें।

हां, एक बात मैं कहनी भूल गया कि अकसर आम आदमी इन टेढ़े दांतों को सीधा करवाने के चक्कर में भी किसी नकली दंत-चिकित्सक के चक्कर में फंस जाते हैं ----जो केवल हज़ार-डेढ़ हज़ार लेकर दांतों को सीधा करने की गारंटी ले लेते हैं।
यह केवल धोखाधड़ी है ---- इस तरह का इलाज सही ढंग से करना किसी नकली, फुटपाथी डाक्टर के बस की बात है ही नहीं ----- इन को टिश्यूज़ ( oral tissues) के बारे में कुछ भी तो पता होता नहीं -----ये बस धक्के से दांत आगे पीछे करने के लिये कुछ भी फिट कर यह कोशिश छःमहीने तक करते रहते हैं और जब इस के बाद भी कुछ हो नहीं पाता तो मरीज़ खुद ही इन के पास जाना छोड़ देते हैं। और अगर ये जल्दबाजी में दांतों को आगे पीछे सरका ही देते हैं तो भी ये अकसर दांतों को हिला कर ही दम लेते हैं। इसलिये इन के चंगुल फंसने से कहीं ज़्यादा बेहतर है टेढ़े-मेढ़े दांतों का कुछ भी न करवाना, कम से कम स्थिति बद से बदतर तो नहीं होगी।

अब, ज़रूरी बातें ---यह तो सारी भूमिका ही थी ...... तो यह तय है कि ब्रेसेज़ अपने इस देश के आम आदमी की पहुंच के बाहर हैं, तो फिर कम से कम हम लोग इस जनता को इतना तो सचेत कर दें कि वे छोटे छोटे बच्चों का शूरू से ही हर छःमहीने के बाद दंत-निरीक्षण करवा लिया करें।

नियमित निरीक्षण करवाने से यह होता है कि डैंटिस्ट को जहां भी थोड़ी बहुत गड़बड़ होती दिखती है वह तुरंत उसे ठीक ठाक कर के भविष्य में ब्रेसेज़ की ज़रूरत को कम करता जाता है।

अपनी इस बात को समझाने के लिये मैं एक उदाहरण ले रहा हूं। यह 11 वर्ष का लड़का मेरे पास कल आया था। आप देख सकते हैं कि इस के ऊपर वाले सूये ( maxillary canines) कितनी गलत जगह पर निकलने की फ़िराक में हैं। अपने मां-बाप की सजगता से यह बच्चा सही समय पर हमारे पास पहुंच गया।

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आप देख ही रहे हैं कि बच्चे के दाईं तरफ़ वाले पक्के दांत का क्या हाल हो रहा है , इस का मुख्य कारण यह है कि जिस जगह पर इस पक्के दांत ने आना था उस जगह पर तो अभी भी दूध वाला दांत ( milk tooth – deciduous caninc) टिका हुआ है।

वैसे तो आम तौर पर किसी भी पक्के दांत ( permanent tooth) के निकलने से पहले उस की ऊपर टिका हुआ दूध वाला दांत गिर कर नये पक्के दांत का स्वागत करता है लेकिन कुछ केसों में ऐसा भी होता है जो आप इस तस्वीर में देख ही रहे हैं। ज़्यादा जानकारी के लिये इस तस्वीर पर क्लिक करिये जिस से आप जान पायेंगे कि कौन सा दूध का दांत है और कौन सा पक्का दांत है।

हां, तो अगर इस बच्चे के मां-बाप इसे हमारे पास नहीं लेकर आते तो क्या होता ? ---इस की बहुत संभावना थी कि यह जो इस के दाईं तरफ़ पक्का दांत आ रहा है यह गलत जगह पर आ जाता और फिर जब पक्का दांत किसी गलत जगह पर जम चुका होता तो दूध वाला दांत गिरने की सोच लेता -----यानि कि सारा मामला ही गड़बड़ हो जाता। और फिर अगर अभिभावकों की इतनी हैसियत होती तो ब्रेसेज़ के लिये कोई जुगाड़ करना पड़ता।

वैसे जिस अवस्था में यह बच्चा हमारे पास आया है आप यह सुन कर हैरान होंगे कि इस अवस्था में भी कम बच्चे ही हमारे पास आते हैं --- ये अकसर तभी आते हैं जब पक्का दांत किसी गलत जगह पर पूरी तरह सैट हो जाता है, तब तो अकसर ब्रेसेज़ के अलावा कोई विकल्प रहता नहीं है। लेकिन बहुत से केसों में मैंने ऐसा भी देखा है –विशेष कर इसी पक्के सूये ( permanent canine) के संबंध में कि यह बिल्कुल ही अगले दांतों के ऊपर आ बैठता है जिस से बच्चा किसी से बात करने में भी झिझकने लगता है ----- क्योंकि जब ये दांत अपनी जगह पर न होकर किसी अन्य दांत के ऊपर जम जाते हैं तो ये लंबे लंबे दांत बिल्कुल शैतान के दांतों ही जैसे दिखते हैं । और मैंने सैंकड़ों केसों में इस प्रकार के permanent canine( पक्के दांत ) को निकाल दिया ----जिससे कि बच्चे की लुक्स तुरंत बेहतर भी हो गई क्योंकि बाकी के पक्के दांतों में किसी तरह का गैप नहीं था। इस के अलावा इन बच्चों के पास ब्रेसेज़ लगवाने जैसा कोई विकल्प नहीं था ----और इस तरह के केसों में जब कि यह दांत बिलकुल ही किसी दूसरे दांत के बाहर ही जम कर बैठ जाये, तो फिर इसे तो इस की सही जगह दिलवाना तो और भी पेचीदा काम है -----पहले इस के लिये जगह बनाने के लिये किसी दूसरे पक्के दांत को निकालना पड़ता है ---फिर आर्थोडोंटिक्स ट्रीटमैंट के ज़रिये इसे इस की सही जगह पर ला दिया जाता है ---यह इलाज काफ़ी लंबा तो चलता ही है ----स्वाभाविक है कि यह अच्छा खासा महंगा काम भी है क्योंकि इसमें आर्थोडॉंटिस्ट की बहुत मेहनत भी इंवाल्व होती है और जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि उत्तम क्वालिटी के डैंटल-मैटीरियल अच्छे खासे महंगे हैं।

हां, तो मैं अपने 11 साल के मरीज़ पर वापिस आता हूं । इस का इलाज कल ही शुरू कर दिया गया ---कल ही इस का दाईं तरफ़ का दूध वाला केनाइन ( milk canine) निकाल दिया गया है ---- इससे उम्मीद है कि पक्के दांत को अपनी जगह पर आने के लिये एक रास्ता मिलेगा। क्योंकि इस ग्यारह साल की उम्र में इरप्टिव फोर्स ( दांत के जबड़े में अपना स्थान लेनी की प्रक्रिया) बहुत अच्छी होती है , इसलिये दो –एक महीने में हमें रिज़ल्ट दिखने शुरू हो जाते हैं कि पक्का दांत थोड़ा रास्ते पर आ रहा है और अगर इस तरह के केसों में थोड़ी बहुत कसर रह भी जाती है तो अकसर इतनी ऊंच-नीच खुशी खुशी स्वीकार कर ही लेते हैं। लेकिन अगर फिर भी किसी केस में यह ज़रूरत लगती है तो थोडे़ समय के लिये ब्रेसेज़ की सिफारिश भी कर दी जाती है।

और इस बच्चे के मुंह की बाईं तरफ़( फोटो में दाईं तरफ़) का दूध वाला दांत ( deciduous canine) भी एक-दो दिन में निकाल दिया जायेगा।

यह सब कुछ इतना लंबा-चौडा़ केवल इसलिये लिखा कि आप के साथ साथ एक बार मैं भी उस बढ़िया सी अंग्रेज़ी कहावत वाला पाठ दोहरा लूं ----------- a stitch in time saves nine !!
Any comments ?

1 टिप्पणी:

  1. आपकी बात से सहमत हूँ। ब्च्चे प्राय: दाँतो के कारण हीनभावना के शिकार हो जाते हैं और इससे बुरा क्या हो सकता है कि कोई मुस्कराने से कतराने लगे?
    घुघूती बासूती

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