दो-चार दिन पहले मैं जब एक पारिवारिक समारोह में जयपुर गया हुया था तो वहां मुझे अपने मामा को टैटनस का टीका लगाना था। टीका लगाने के बाद मेरी वही उलझन कि उस डिस्पोज़ेबल सिरिंज एवं सूईं को कहां फैंकूं.....यानि कि इन डिस्पोज़ेबल्स को कैसे डिस्पोज़ ऑफ करूं!!....खैर, आप अगर मेरी जगह होते तो क्या करते ?....शायद आप दिमाग पर इतना ज़्यादा ज़ोर दिये बिना उस सूईं पर टोपी लगाकर किसी कूड़ेदान में फैंक देते। लेकिन मैं एक डाक्टर होने के नाते ऐसा न कर सका !
मैंने उस दिन भी वही किया जो मुझे थोड़ा सा ठीक लगा ( पूरा ठीक तो यह भी नहीं था ! )….मैं कुछ समय बाद बाज़ार जाते समय उस सिरिंज एवं नीडल को साथ ले गया और घर के पास ही एक कैमिस्ट की दुकान के सामने जहां इस तरह का कूड़ा पड़ा हुया था वहां मैंने इसे भी फैंक कर थोड़ी राहत महसूस की। वहां फैंकने का कारण यही था कि वहां से जो भी रैगुरर्ली इस तरह का कचरा उठाता होगा, वह तो सावधानी पूर्वक ही यह सब करता होगा। लेकिन गहराई से सोचता हूं तो यही पाता हूं कि यह सब एक खुशफहमी ही है......कहां ये सफाई वाले इतनी बातों का ध्यान रख पाते होंगे.....इन में कहां इतनी अवेयरनैस कि ये सब समझ पाते होंगे।
मैं अकसर सोचता हूं कि हम मैडीकल प्रोफैशन वाले अकसर मीडिया में ढींगे तो बहुत लंबी लंबी मारते हैं कि हम ने लिवर ट्रांस्पलांट कर दिया, रक्त की नाड़ी की रुकावट समाप्त कर दी..........लेकिन अकसर हम छोटी-छोटी बातों के ( जो वास्तव में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं) बारे में लोगों की जागरुकता का स्तर बढ़ा नहीं पाये......इस के कारण तो बहुत से हैं....लेकिन एक उदाहरण यह ही लीजिये......कि बड़े हस्पतालों में तो बॉयोमैडीकल वेस्ट मैनेजमेंट के बड़े लंबे चोड़े कानून तैयार हो गये....अब इन पर कितना चला जा रहा है, यह एक अलग मुद्दा है.......लेकिन घर में एक डिस्पोज़ेबल सीरिंज एवं सूईं का डिस्पोज़ल ही एक सिरदर्दी बन जाता है....हां, हां, सिरदर्दी उस के लिये जो सोचते हैं.....अन्यथा, कूड़ेदान में फैंक कर ही फारिग !!
अब जब हम तो इस नीडल-सीरिंज को कूड़ेदान में फैंक कर फारिग हो लिये लेकिन सब से पहले तो इस से हमारे यहां काम करने वाले सफाई कर्मचारी को यह चुभेगी.....फिर जहां पर बाहर बड़े डस्ट-बिन में इसे फैंका जायेगा ....वहां से भी इसे उठाते हुये कोई न कोई इस से चोट खायेगा......फिर आगे चल कर जहां पर सारे शहर का कूड़ा डाला जाता है वहां पर ये सूईंयां रैग-पिकर्जं की सेहत के साथ खिलवाड़ करेंगी। उस के बाद इन का क्या अंजाम होता है .....अब उस के बारे में क्या लिखूं...इन सीरिंजों एवं सूईंयों की रीसाईक्लिंग की खबरें अकसर चैनलों वाले दिखाते ही रहते हैं जहां पर एक टब में इस तरह डिस्पोज़ेबल मैडीकल वस्तुयें एक बड़े से टब में उबलती हुई दिखाई जाती हैं ...जिस के बाद इन्हें पैक कर के वापिस मार्कीट में बेचा जाता है....यह तो हुई इस रीसाईक्लिंग के गोरख-धंधे की बातें।
इसी तरह की क्रॉस-इंफैक्शन पर लगाम कसने के लिये ही और इस तरह की लोगों की सेहत को बर्बाद करने वाली री-साईक्लिंग को रोकने के लिये ही हर एक अच्छे क्लीनिक, दवाखाने या ओपीडी में जहां भी इंजैक्शन लगते हैं उन के पास एक नीडल एंड सिरिंज कटर होता ही है या होना ही चाहिये....ऐसे ही एक नीडल कटर एवं सिरिंज कटर की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं।
इस तस्वीरों में आप देखिये कि एक इस्तेमाल की गई सूईं को नीडल-बर्नर में डाल कर जलाया जा रहा है और अंत में वह नीडल पूरी तरह जल जाती है जिस की आप तस्वीर भी आप यहां पर देख रहे हैं।
यह तो हो गया इस्तेमाल की गई नीडल का काम तमाम, अब बारी आती है सिरिंज की.......ध्यान रहे कि इन सीरिंजों की भी बहुत ज़्यादा री-साईक्लिंग होती है । ऐसे में हम लोग इसी मशीन के द्वारा ही इस सिरिंज की नोज़ल ही काट देते हैं.............कितनी बढ़िया बात है ना कि ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी। इस सिरिंज की नोज़ल कटने की तस्वीरें भी आप इधर देख सकते हैं।
अब, आप शायद यह सोच रहे होंगे कि बस यह सब करके काम खत्म हो गया। नहीं, फिर इस तरह के इकट्ठे हुये प्लास्टिक को डिस्पोज़ ऑफ करना होता है। या तो इस तरह के प्लास्टिक को एक हाट-एयर ओवन में डाल कर कुछ इस तरह से पिघला सा दिया जाता है कि यह एक प्लास्टिक का छोटा मोटा गोला सा ही बन जाता है ...फिर इसे या तो हास्पीटल के आस पास खुदे किसी गड्ढे में डाल दिया जाता है या बड़े-बड़े हास्पीटलों में इंसीनेरेटर में इसे डाल कर राख बना दिया जाता है। यह तो मैंने सिर्फ़ सीरिंज और नीडल की ही बात की है ....पर अस्पतालों में तो रोज़ाना ही सैंकड़ो तरह के इस तरह के डिस्पोज़ेबल्ज़ इस्तेमाल होते हैं......अब आप भी सोचिये कि इन का सेफ़- डिस्पोज़ेबल कितना बड़ा चैलेंज है।
अब आप का यह सोचना भी मुनासिब है कि इतना सारा मैडीकल ज्ञान आखिर हमें क्यों परोसा जा रहा है। इस का केवल इतना उद्देश्य है कि एक तो आप को इस बॉयो-मैडीकल वेस्ट मैनेजमैंट के दहकते मुद्दे के बारे में सैंसेटाइज़ किया जा सके और दूसरा जब हम लोग घर में सीरिंज और सूईं इस्तेमाल करते हैं तो उस के डिस्पोज़ल के बारे में भी सोचें। अब आप स्वयं ही बतायेंगे कि आप क्या सोचते हैं कि आप इस इस्तेमाल की हुई सूईं को कैसे डिस्पोज़ ऑफ कर सकते हैं....हां, हां, मैं आप की इस बात से सहमत हूं कि अब घर में कभी-कभार इस्तेमाल होने वाली सिरिंजो-सूईंयों के लिये हम तो नहीं इस नीडल-सिरिंज कटर को खरीद सकते !!!......तो फिर आप भी कोई रास्ता निकालिये और मुझ से भी साझा करिये। वैसे, प्लास्टिक सिरिंज के बारे में मैं इतना कहना चाहूंगा कि अब कुछ हास्पीटलों में इस की जगह कांच की सिरिंजें इस्तेमाल हो रही हैं जिन्हें अगली बार इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह स्टैरीलाइज़ कर लिया जाता है। कम से कम इन सीरिंजों के कारण इक्ट्ठा हो रहे प्लास्टिक के ढ़ेरों पर तो अंकुश लगेगा ........और इन की री-साईक्लिंग के दुष्परिणामों से भी जनता बची रहेगी।
मैंने इस विषय पर इतना लंबा चौड़ा इसलिये भी लिख दिया है कि अकसर घरों में कभी कभार सिरिंजे-सूईंयां दिख ही जाती हैं......चाहे तो किसी को कोई टीका वगैरह लगना हो या किसी का कोई ब्लड-सैंपल लेने के लिये ही........और हां, एक बहुत ही ज़रूरी बात का यह तो खास ध्यान रखें कि इस्तेमाल की गई सूईं पर उस की टोपी चढ़ाने से गुरेज करें( जैसा कि आप इस तस्वीर में देख रहे हैं) ......क्योंकि मैडीकल सैटिंग्स में देखा गया है कि चिकित्साकर्मीयों को ज़्यादातर इन सूईंयों से नीडल-प्रिक इंजरी इन को वापिस कैप चढ़ाते समय ही होती हैं। और अभी एक बात का ध्यान आ रहा है कि जब किसी चिकित्सा कर्मी को किसी मरीज़ पर इस्तेमाल की गई सूईं अचानक चुभ जाती है तो वह उस चिकित्सा कर्मी एवं उस के परिवार की ज़िंदगी में किस तरह से खलबली मचा देती है.....इस का खुलासा कभी मूड में हुया तो करूंगा...जिस से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। मैंने तो एक राष्ट्रीय संस्था के साथ भी ये बेहद खौफ़नाक अनुभव बांटने चाहे थे ताकि सभी तरह के चिकित्साकर्मी इस से कुछ सीख ले सकें...........लेकिन उन्होंने कोई खास रूचि नहीं दिखाई........अब किसी के पीछे पड़ने वाले तो हम भी नहीं.......लेकिन ये सारे अनुभव किसी न किसी प्लेटफार्म पर साझे जरूर करने हैं.....देखते हैं ये सब कुछ कब संभव हो पाता है।
मैं भी कहां का कहां पहुंच गया.....और जाते जाते एक बात यह भी करनी है कि अब डिमांड कर के इंजैक्शन लगवाने वाले दिन लद गये हैं......ऐसी डिमांड कभी नहीं करनी चाहिये। और हां, मेरे मामा के टैटनस के टीके वाली बात तो कहीं पीछे ही छूट गई.........क्योंकि यह जो हर छोटी-मोटी चोट के बाद टैटनस का टीका लगवाने का एक क्रेज़ सा है......यह भी कितनी उचित है , कितना अनुचित.........इस की चर्चा भी शीघ्र ही करूंगा।
जाते जाते यह भी ज़रूर कहना चाहूंगा कि जब भी कभी डिस्पोज़ेबल सिरिंज एवं नीडल की ज़रूरत पड़े तो बढ़िया क्वालिटी की ही सिरिंज एवं नीडल खरीदें.......पहले मैं सोचता था कि इस का नाम मुझे नहीं लेना चाहिये....लेकिन अब लगने लगा है कि अगर मैं किसी आइटम को ज़रूरत पड़ने पर अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिये इस्तेमाल कर रहा हूं और उस स संतुष्ट हूं तो इस को आखिर आप लोगों के साथ शेयर करने में दिक्कत क्या है.........ओबवियस्ली कोई नहीं.....तो, फिर मैं आप को यह बताना चाहता हूं कि मैं कभी भी अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिये DISPOVAN नामक सीरिंजों एवं सूईंयों का ही इस्तेमाल करता हूं......और भी बहुत ही अच्छी कंपनियां होंगी, लेकिन मैं तो इस प्रोडक्ट को ही इस्तेमाल करता हूं और मेरा इस में पूर्ण विश्वास है। मुझे यह लगने लग गया है कि मैंने क्या लेना देना है इन कंपनियों से .....जो भी मेरे अनुभव हैं मुझे बिल्कुल बेपरवाह होकर पूरी इमानदारी से आप से बांटने चाहिये क्योंकि आप लोग अकसर मेरी बातों को बहुत सीरियस्ली लेते हो............Thank you, so very much !!
Achchha laga lekha.. vaise pahle main iska niddle ko buri tarah se aise mor kar fenkata tha jisase ye kisi ko chubhe bhi nahi aur dobara ise koi use bhi na kar sake..
जवाब देंहटाएंबड़ी मेहनत की है आपने इस आलेख में। हमारी व्यवस्था बड़ी ढीली है । आज ऐसी syringe आ गयी हैं जो एक उपयोग के बाद टूट जाती हैं इनके अलावा अन्य का उपयोग सरकार ने क्यों बंद नहीं किया ?????????????
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