बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

दलाली, तलाशी और चुप्पी ...

दरअसल इस पोस्ट का हैडिंग मुझे भी अजीब सा लग रहा है ...लेकिन बिना हैडिंग के पोस्ट पब्लिश नहीं हो पाती..इसलिए ऐसे ही जो मन में आया लिख दिया...
कल से तीन बातें मन में घूम रही हैं...सोच रहा हूं लिख के छुट्टी करूं....वरना बेकार में परेशान किए रहेंगी...

दलाली...

कुछ साल पहले मेैं शताब्दी में सफ़र कर रहा था...पिछली सीट पर दो ऑफीसर जैसी बातें करने वाले दोस्त दिखने वाले बंदे बैठे हुए थे...अपने बॉस का तवा उन्होंने लगा रखा था... बीच बीच में तो मुझे झपकी आती रही ...लेकिन अपने बॉस की बातें सुना रहे थे कि किस तरह से उस ने किसी भी शहर में कार्यरत कनिष्ठ अधिकारियों को नहीं बख्शा...कहीं से आचार, कहीं से मुरब्बे और कहीं से शर्बत और कहीं से देसी घी की गज्जक और रेवड़ीयां मंगवाता रहता था .. और भी बहुत कुछ...और आपस में बात कर रहे थे कि पाखंडी इतना तगड़ा कि सभी अंगुलियों में हर तरह के नग और मोती धारण किये रहता था...कैसे कोई ग्रह उस की खिलाफ़त कर पाए।

उन में से एक ने किस्सा सुनाया कि कैसे एक मशीन उन के दफ्तर में आई तो उस के पीछे पड़ गया कि कंपनी से पांच हज़ार रूपये दिलवाओ...यह बंदा अपने दोस्त से कह रहा था कि अब उसने वैसे तो किसे से कुछ लिया नहीं था, एक बार तो उसे कहने की इच्छा हुई कि सर, आप अपने आप ही ले लीजिए...लेकिन इतनी हिम्मत जुटा नहीं पाया...लेकिन जब तक पांच हज़ार रूपये उस के घर उस के माथे पर नहीं मार आया उस बॉस को चैन नहीं पड़ा....

दूसरा उस के ट्रांसफर के किस्सों को याद कर रहा था कि कैसे उसने छठे पे कमीशन के कुछ आफीसर्ज़ के सारे के सारे एरियर्ज़ हड़प लिए... कमबख्त पता नहीं क्यों इतना भिखमंगा सा लगने लगा था अपनी नौकरी के पिछले दो तीन सालों में...जी हां, उन्होंंने उस के लिए ऐसे ही शब्द इस्तेमाल किये थे...

और दूसरा कहने लगा कि ऐसा लगता था कि यार वह बॉस नहीं है, ट्रांसफर करने करवाने वाला कोई उच्चकोटि का दलाल है ....ट्रांसफर करवाने, धमकाने और निरस्त करने के बल पर ही उसने फगवाड़े में एक आलीशान बंगला खड़ा कर लिया था ...

दूसरे ने उस की हां में हां मिलाते हुए कहा कि यार, तुम ने बिल्कुल सही पकड़ा ...बिल्कुल दलाल ही तो लगता था...उस की शक्ल भी वैसी ही हो गई थी..(आगे उसने जो कहा, वह मैं यहां नहीं लिख सकता, आप समझ सकते हैं) ...विधि का विधान देखिए रिटायरमैंट के दिन जब रात में पार्टी में धुत हो कर अपने ड्राईवर के साथ फगवाडा़ बंगले में जा रहा था तो रास्ते में ही सीबीआई टीम ने कार से तीन करोड़ की रकम के साथ धर दबोच लिया... अभी केस चल ही रहा था कि डेढ़ साल में वह चल बसा...

किसी ने सही ही कहा है ...कोयलों की दलाली में मुंह काला...

चुप्पी ...

कुछ  दिन पहले एक साहित्यिक कार्यक्रम में था....एक ९७-९८ वर्ष की महान् साहित्यकार का सम्मान होना था...साहित्यकार तो संवेदनशील होते ही हैं...सब ने उन के शतायु ही नहीं, दीर्घायु होने की प्रार्थना की...किसी ने कहा कि बख्शी दीदी आज ९८ साल की हैं, ईश्वर उन्हें मेरे ९८ साल  के होने तक स्वस्थ रखे... सब का उदबोधन सुन कर अच्छा लग रहा था...इतने में शहर के एक नामी गिरामी सेठ की बारी आई...उसने अपने भाषण मेे ंकहा कि दीदी, ९८ साल की हैं, इन्हें देख कर अच्छा लग रहा है, मित्रो, अब उम्र ही ऐसी है ...एक तरह से अब यह मेहमान ही हैं..दो तीन या चार साल की और....ज़्यादा से ज़्यादा किसी आदमी की इतनी ज़िंदगी ही तो होती है ...उस रईस के ये शब्द सुन कर पंडाल में बैठे सभी लेखक-विचारक एक दूसरे का मुंह देख कर हंसने लगे कि  यह कह क्या रहा है! उस समय मुझे यही बात याद आ रही थी...

उस समय मैं भी यही सोच रहा था कि वह बात ठीक ही है कि कईं बार चुप रहने में ही अकलमंदी होती है ...और इस चुप्पी से भले ही लोगों को हमारे मूर्ख होने का शक होने लगे....वरना एक बार मुंह खुलने पर तो फिर शक की कोई गुंजाईश ही नहीं रहती!



तलाशी...

तलाशी एयरपोर्ट पर, सिनेमा घरों में, शापिंग माल में, मेट्रो स्टेशनो ं पर सब जगह होती है, बुरा नहीं लगता ...कुछ वीवीआईपी के रिश्तेदारों को लगता होगा बुरा... जिन को अभी एग्ज़ेम्ट लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है ...लेकिन यह भी गलत है ...कुछ लोगों पर आप कैसे दूसरों से अधिक भरोसा कर सकते हैं...चलिए, इस दिशा में भी मौजूदा सरकार ने कुछ काम तो किया था शुरु शुरु में ही ...उस के बाद कुछ खबर नहीं आई। लेकिन मुझे एक तलाशी थोड़ी परेशान कर गई...तीन चार दिन पहले मैं एक सर्विस स्टेशन के बाहर खड़ा था... वर्करो ंकी छुट्टी का टाइम था, जिस तरीके से उन की तालाशी ली जा रही थी बाहर आते वक्त, यह मुझे कचोट गया ... गेट पर खडे़ उस सिक्योरिटी वाले गोरखे का तरीका ही कुछ ऐसा था....वर्करों के शोल्डर बैग्ज़ के सभी हिस्सों को ऐसे टटोल रहा था कि ..........क्या कहूं, मन खराब हुआ यह देख कर .....यह सोच कर कि छोटे बच्चे भी यह नहीं चाहते आज कल कि कोई उन के बैग से छेड़छाड़ करे ...और यहां तो .!!

तीन बातें कह कर मन को कुछ सुकून सा मिला तो है ...बाकी का काम यह गीत कर देगा...