हेल्प यू ट्रस्ट के निमंत्रण पर कल शाम एक अद्भुत गीतकार गोपाल दास नीरज के जन्मदिवस समारोह में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पिछले वर्ष भी इन के जन्मदिवस पर एक समारोह में शिरकत करने का मौका मिला था.....मुझे याद है पिछले साल समारोह में मौजूद उत्तराखंड के उस समय के गवर्नर कुरैशी साहब किस तरह से इन के गीतों पर झूम रहे थे और उन की फरमाईश पर कलाकारों ने वह गीत भी पेश किया था......शोखियों में घोला जाए... फूलों का शबाब।
इस तरह के महान् गीतकार के दर्शन ही कर लेना अपने आप में एक बहुत बड़ा सौभाग्य है। कल समारोह में शायर अनवर जलालपुरी साहब ने कितना सही कहा ...इस फनकार के लिए.....
विरले होते हैं जिन का यश विश्व गाता है,
नीरज जी जैसा गीतकार तो बस सदियों में आता है।
नीरज को पढ़ के आदमी बनता अदीब है...
नीरज को जिसने देखा बड़ा खुशनसीब है।।
इस कार्यक्रम में नीरज जी द्वारा लिखे फिल्मी गीत प्रस्तुत करने के लिए बंबई से कलाकार आए हुए थे। एक से बढ़ कर एक गीत प्रस्तुत किये गये।
प्रोग्राम के दौरान मैं व्हाट्सएप पर अपने कालेज के दिनों के पुराने मित्रों के साथ संदेशों का आदान-प्रदान कर रहा था....एक ने कहा कि यार, वह मेरा नाम जोकर का वह गीत ... ऐ भाई ज़रा देख के चलो....आगे ही नहीं पीछे भी ...लेकिन ऐन वक्त पर मेरा मोबाइल मुझे धोखा दे गया......उस में हर तरह कबाड़ भरा होने की वजह से मैं रिकार्डिंग न कर सका......काफी कुछ डिलीट तो किया, लेकिन फिर भी रिकार्डिंग संभव न हो पाई।
बहरहाल, मैंने सोचा कि जो भी गीत सुन रहा हूं इन की एक प्लेलिस्ट बना कर आप तक ज़रूर पहुंचाऊंगा......वही काम किया आज सुबह उठ कर.......समय तो काफी लगा, लेकिन अच्छा लगा.......आशा है आप इस प्लेलिस्ट का ज़रूर आनंद लेंगे..
दोस्तो, यह गीतकार वह है जिस के गीत मेरे जैसे लोग प्राइमरी कक्षा से सुन रहे हैं......जी हां, दूसरी-तीसरी कक्षा से जब भी रेडियो पर या फिर किसी शादी-ब्याह के मौके पर इस तरह के गीत बजा करते थे तो सब कुछ छोड़-छाड़ कर इस की धुन में ही रमने का मन किया करता था.....वैसे तो छःसात आठ साल की उम्र ही थी उस समय......लेकिन कुछ सुनना अच्छा लगता था, आपको साफ़ साफ़ बता दिया है....यह भी उसी दौर का गीत है जो बेहद पसंदीदा था...शर्माली ओ मेरी शर्मीली...
ईश्वर नीरज जी को उम्रदराज करे......९१ वर्ष के हैं, अभी भी इन की वाणी में युवाओं जैसा ही जोश है.....पिछले वर्ष भी वे व्हील-चीयर पर ही आए थे...इस वर्ष भी ....सहारे के िबना वे चल नहीं पाते...उम्र का तकाजा है, लेकिन जब बोलते हैं तो सब मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
सोच रहा हूं जब हम लोग बचपन में ऐसे गीतों को सुनते हैं तो क्या जानते हैं कि किस ने लिखा, किस ने कंपोज़ किया, किस पर फिल्माया गया ...वगैरह वगैरह....लेकिन इतने वर्षों बाद जब इन महान् शख्शियतों को देखने का अवसर मिलता है तो बहुत खुशी होता है।
आप को हिंदी विकिपीडिया पर नीरज जी का यह पन्ना भी बहुत पसंद आएगा....
पिछले वर्ष भी वे अपने जन्मदिवस पर वे कुछ इस तरह से बोले थे...
जाते जाते लड्डू से मुंह तो मीठा करते जाइए....
जाते जाते लड्डू से मुंह तो मीठा करते जाइए....
प्रोग्राम के अंत में जब नीरज जी का वह गीत पेश किया गया......ताकत वतन की हम से है.....तो सभागार में मौजूद सभी संगीत-प्रेमियों ने खड़े हो कर इस का आनंद लिया.....
ताकत वतन की हम से है........ |