रविवार, 14 दिसंबर 2014

योग-ध्यान को भी तूने बाज़ार बना डाला..

अभी दस मिनट पहले उठा....पहले रिवाज़ था कि हम लोग सुबह सुबह उठ कर कुछ भी और किया करते थे....लेकिन आजकल बूथी (पंजाबी शब्द, मतलब चेहरा) के सामने मेरे जैसे को भी स्मार्ट बनाने वाला यंत्र पड़ा होता है.....स्मार्टफोन.....उसे उठा कर देखा तो एक ई-मेल आई हुई थी..अमेरिका से.....कि अगर तन्ने इस छुट्टियों के सीजन में ध्यान (मेडीटेशन) का २१ दिन के लिए ऑनलाइन आनंद लूटना है तो हम १० डालर की छूट दे रहे हैं....५० डालर वाला कोर्स हम लोग ४० में करवाएंगे, इस लिंक पर क्लिक कर के इस प्रोडक्ट को अभी खरीद ले। यह सीखने-सिखाने का काम सारा ऑनलाइन होता है या तो आप सीडी भी मंगवा सकते हैं।

इस तरह की ई-मेल्स अकसर आती रहती हैं, एक काम करता हूं इस पोस्ट को बीच में रोक कर पहले ज़रा इन्हें हमेशा के लिए ब्लॉक कर डालूं। एक्सक्यूज़ मी प्लीज़।

हां जी, बाज़ार के इस प्रोडक्ट को मैं जानता हूं.....दो साल पहले मेरी श्रीमति जी ने भी यह कोर्स किया था....एक बार साइन इन/रजिस्टर किया था तो पूरा तो करना ही था। पर मुझे याद है कि ऐसे प्रोडक्टस इतने शातिर होते हैं कि ध्यान का जो पाठ एक दिन अपनी साइट पर अपलोड करेंगे, ये कुछ घंटों तक ही वहां रहेगा, फिर उसे वहां से हटा दिया जाता है और यह डाउनलोड भी नहीं किया जा सकता। पहली बात तो यह कि इस तरह की विद्या ग्रहण करने के लिए आप टेक-सेवी हैं कि नहीं, आप की पात्रता इस बात पर निर्भर करेगी........धिक्कार है ऐसे बाजारू विज्ञापनों पर।

सोचता हूं कि ऐसे बेकार के अनुभवों को क्यों इतनी तूल दें, ये तो आप अपने आसपास भी देखते ही होंगे, योग प्रोग्रामों के लिए सैंकड़ों- हज़ारों खर्च पर पहली पंक्तियों में बैठ कर विशेष कृपादृष्टि का मुगालता पालने वाले भी कम थोड़े ही ना हैं इस देश में। कुछ कार्यक्रमों में तो...नहीं यार, बहुत से कार्यक्रमों में पहले इन उस्तादों के बैंक-खाते में इन्हें जबरन भिक्षा भी देनी होती है...(गुरू कहने की इच्छा नहीं हो रही, और उस्ताद शब्द का इस्तेमाल तो हम हिंदी फिल्मी में जगह जगह देखते ही हैं, इसलिए उसी से काम चला लेते हैं)....जैसे उस्ताद आप इस वीडियो में देखेंगे, इस तरह के योग-ध्यान उस्ताद भी आपस में उलझे ही रहते हैं, मैं जिस ई-मेल की बात कर रहा हूं उस में नीचे यह भी लिखा था कि ऐसे दूसरे प्रोडक्ट्स से बच कर रहें क्योंकि वे हमारे नहीं है, हम खािलस हैं, वे डुप्लीकेट हैं...



मुझे यह समझ बीस साल पहले आ गई थी कि योग-ध्यान जैसे अनमोल वरदान कृपा का विषय का... बख्शीश का मौजू है...बस गुरू की कृपा चाहिए....अगर आप में भी शिष्य बनने की सारी ज़रूरतें मौजूद हैं तो आप इस तरह की विद्याएं बिल्कुल गुरू-शिष्य परंपरा की निर्बाह करते हुए सहज सीख पाते हैं........खालिस गुरू की पहली निशानी, वे कटोरा हाथ में लेकर डॉलरों की भीख नहीं मांगा करते। वे तो चेले की तुच्छतम् दक्षिणा पर ही रीझ जाया करते हैं।  फक्कड़ किस्म के होते हैं जिन का एक ही उसूल होता है.....

हम फकीरों से जो चाहे वो दुआ ले जाए..
खुदा जाने कब हम को हवा ले जाए..
हम तो राह बैठे हैं लेकर चिंगारी..
जिस का दिल चाहे चिरागों को जला ले जाए।।

असल में जो गुरू होते हैं वे इसी तरह के ही होते हैं..बुझे हुए दिए जलाने का काम करते हैं....योग-ध्यान तो क्या, एक बार जब बीज बो दिया तो सभी विद्याएं सहज ही प्रवेश करने लगती हैं। इन का किसी से कंपीटीशन भी नहीं होता।

मैंने बहुत साल पहले इंगलिश में एक बहुत सुंदर बात पढ़ी थी कि इस संसार में जो भी हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ज़रूरी है..इस कायनात में वह सब हमें सहज ही मुफ्त मुहैया हो जाता है.....जैसे हवा, पानी, प्यार, करूणा आदि ...
आप समझ ही गये हैं कि मैं इस पोस्ट में क्या कहना चाहता हूं......ये विद्याएं धन की मोहताज कभी भी नहीं रही हैं और शुक्र है कि कभी भी न रहेंगी...

जहां रहेगा वहीं रोशनी लुटायेगा, 
कि चिराग का कोई घऱ नहीं होता। 

मेरे बागी दिमाग में बहुत साल पहले ये विचार कौंदा करते थे कि ये कैसे प्रोग्राम कि जो पैसा खर्च कर पाए, वह तो सीख ले, और जो न खर्च पाए.....वह महरूम रह जाए........होता होगा, दुनियावी शिक्षा या डिग्रीयां पाने के लिए यह सब होता ही है......आप रद्दी से रद्दी लोंडे को पैसे की ताकत से विदेश से डिग्री करवा कर उस की मैट्रीमोनियल वेल्यू बढ़ा सकते हैं बस.....लेकिन ये जो दैवी विद्याएं ( divine blessings) हैं ये तो भाई कृपा का विषय है, रहमत का खेल है......हो गई तो ठीक, न हुई तो ठीक............और रहमत हर तरफ़ खुली बरस रही है, हम समर्पण तो कर के देखें। 

आज की सुबह तो इन योगा-ध्यान वालों का तवा लगाने में निकल गई......बस बात इतनी सी है कि जिन लोगों ने भी पब्लिक का चूतिया बनाने की कोशिश की.....देश की जनता भोली भाली है, इन के अंधविश्वास देख-सुन कर आंखें भर आती हैं......जिस ने भी इन्हें बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करना चाहा, तो इस ईश्वरीय सत्ता ने भी ऐसा संतुलन कर दिया कि कुछ तो सलाखों के पीछे चक्कियां पीस रहे हैं, कुछ फरार हैं.........पता नहीं कितने भेड़िये अभी भी बेस बदल कर घूम रहे हैं।

यार, यह कैसे लोग अंध-श्रद्धा में अंधे हो कर अपनी बेटियां, बहनें तुम्हारे पास आशीर्वाद के लिए भेजते हैं और तुम अब उन पर बुरी नज़र ही नहीं, उन से ही मुंह काला करने लगोगे तो तुम्हें छुड़वाएगा कौन....और जो बच्चियां इस तरह के भेड़ियों का पर्दाफाश करती हैं, उन को नोबल तो नहीं मिलेगा कभी, लेकिन हमारी तालियां तो मिल ही सकती हैं....अपनी परवाह न करते हुए, पता नहीं भविष्य में शिकार होने वाली कितनी बच्चियों को दरिंदों से बचा लेती हैं। 

जब मैंने आज सुबह वह ध्यान वाली ई-मेल पढ़ी कि आप इस मेडीटेशन प्रोड्क्ट को खरीद लो........तो मुझे एक गज़ल का ध्यान आ गया........उस में कुछ लफ्फाज़ इस तरह से थे........कि तूने बाज़ार बना डाला...........यू-ट्यूब पर वह तो मिला नहीं लेकिन संयोग से एक बहुत खूबसूरत बात बरसों बाद सुनने को मिल गई.........गुलाम अली साब की आवाज़ में .........तेरी आवारगी ने आवारा बना डाला..