पिछली पोस्ट ...डा बशीर का डायरी --पेज 1 से आगे .....
जब बशीर ने उन से उस एक्स-रे के बारे में पूछा कि वह कहां पर है? उन्होंने बताया कि वह तो एक्स-रे विभाग में जमा हो गया था ... उस ने उन्हें वह लाने को कहा। वहां पर वे एक-डेढ़ घंटा धक्के खाने के बाद वापिस आ गये कि वहां से तो कहते हैं कि हम इतना पुराना एक्स-रे नहीं ढूंढ सकते।
बशीर उन के साथ एक्स-रे रूम तक गया ... वहां पर स्टॉफ को कहा कि देखो, बई, इन का एक्स-रे ढूंढो कैसे भी, कहीं से भी, इन का स्वास्थ्य देख ही रहे हैं आप! आधे घंटे के बाद वे दंपति एक्स-रे लेकर वापिस बशीर के पास आ गये।
बशीर ने फिर से पूछा कि बाकी सब तो ठीक है ना, उस ने साफ साफ अक्षरों में यह भी पूछ डाला कि बवासीर जैसी कोई बात तो नहीं! इतना सुनते ही उस वृद्दा ने बहुत ही झिझकते झिझकते बोला कि इन्हें टायलेट के साथ खून आता है। पूछने पर उस ने आगे बताया कि यह तो बहुत दिनों से हो रहा है। बशीर ने पूछा कि क्या यह तकलीफ़ आप ने अपने डाक्टर को पहले कभी बताई? जवाब मिला कि उन्हें लग रहा था कि गर्म दवाईयों की वजह से यह सब हो रहा है, अपने आप ठीक हो जायेगा। और रही बात, अपने डाक्टर के साथ बात करने की, यह बात किसी ने पूछी नहीं और उन्हें स्वयं यह बात करने में शर्म आती थी क्योंकि डाक्टर के कमरे में हमारी जान-पहचान के और भी बहुत से लोग इक्ट्ठे होते हैं।
बहरहाल , बशीर ने उन के नुस्खे पर यह टायलेट के रास्ते रक्त निकलने की बात लिख कर उसे वापिस डाक्टर के पास भेज दिया ... और डाक्टर ने छाती का एक्स-रे देख कर उन्हें अगले दिन फ़िज़िशियन को दिखाने के लिये बुला लिया।
बशीर आगे लिखता है कि जिस बड़े अस्पताल में वह काम करता है, वह बिल्कुल नाम का ही बड़ा है, पंद्रह डाक्टरों की जगह चार डाक्टर काम कर रहे हैं...विशेषज्ञ कोई भी नहीं टिकता, चुस्त चालाक लोग कोई भी जुगाड़ कर के बड़े शहरों में लपक जाते हैं... केवल एक फ़िज़िशियन है। आगे जो लिखा था वह पढ़ कर मन दुःखी हुआ....लिखता है कि एक एक डाक्टर दिन भर में 80-90 मरीज़ “भुगता” देता है, वह भी यह सोच कर हैरान है कि यह कैसे हो सकता है ! लेकिन बड़े दुःखी मन से आगे लिखता है कि डाक्टर चाहे एक भी हो....(और चाहे न भी हो !!) , सिवाए मरीज़ के किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, सब मस्ती मार रहे हैं, टूर जाने वाले टूर पर जा रहे हैं, छुट्टी पर जाने वाले छुट्टी काट रहे हैं, खूब राजनीति भी चल रही है, लेकिन अगर मरीज़ों की तरफ़ से कोई शिकायत नहीं है, तो किसी को भी किसी से कोई भी शिकायत नहीं है ....
बशीर भी जब दिल की बात लिखने लगता है ....तो फिर सब कुछ लिख ही देता है ... उस ने लिखा था ....मरीज़ों का क्या है, वे घंटा शिकायत करेंगे, उन्हें पता कैसे चलेगा कि उन के साथ कम से कम दस मिनट बिताने की जगह अगर आधा मिनट बिताया गया है तो इस का सीधा सीधा मतलब उन की सेहत के लिये आखिर है क्या ! लेकिन छोड़िए, किसी को कोई परवाह नहीं, सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा... आगे लिखता है कि उस के अस्पताल का सीधा सीधा फंडा है कि बस उन पांच दस लोगों को “ हर कीमत पर” हर तरह से खुश रखा जाए...( पंजाबी में एक कहावत है ...किसे अग्गे कोड़ा होना....बस लिखदा ऐ कि अजेहे पंजा-दसां लोकां अग्गे बस कोडे होन दी ही कसर रह जांदी ऐ !!) …..बशीरे, तूं वी जदों दिल नाल लिखदैं फेर कुछ नहीं वेखदा .......लेकिन लगता है कि वह इधर उधर देखता भी क्यों, अपनी डायरी में अपनी मस्ती में लिख रहा था।
मैं बशीर की डायरी पढ़ते पढ़ते सोच रहा था कि बशीर क्यों इतनी हिम्मत हारता दिखाई दे रहा है, हर बात का इलाज तो है, खैर मैं वापिस उस की डायरी के दूसरे पन्ने पर ही वापिस आ जाता हूं.....
अगले दिन वो दंपति आते हैं ...फिज़िशियन को दिखाने के लिये....किसी पड़ोसी की कार मांग कर क्योंकि उस बंदे से चला नहीं जा रहा था लेकिन उन के अस्पताल पहुंचने पर पता चलता है कि फिज़िशियन साहब तो आज छुट्टी पर हैं । मायूस हो कर जाने के सिवाए कोई चारा नहीं था।
अगले दिन वे दंपति आते हैं, फिज़िशियन को दिखाने के बाद बशीर के पास आते हैं....फिज़िशियन ने भी उन के छाती के एक्स-रे में दिखने वाली गड़बड़ी के बारे में लिखा था और टीबी के जीवाणु देखने के लिये लगातार तीन बार लार की टैस्टिंग (sputum test) के लिये कहा था। आज फिर बशीर ने पूछ ही लिया कि वह जो टायलेट के साथ रक्त आता है, उस का क्या हाल है ?
इतना बात सुनने पर पता नहीं कैसे बेचारी उस वृद्दा के सब्र का बांध टूट गया कि उस ने दिल की बात खोल ही दी ...डाक्टर साहब, यह तकलीफ़ इन्हें पिछले काफी दिनों से है, बड़ी बेबसी से, बशीर लिखता है, उस ने कहा कि मैं थक गई हूं इन का खून से लथपथ पायजामा और कच्छा (अंडरवियर) धोते धोते...... मुझे उल्टी जैसा होने लगता है, लेकिन बहुओं-बेटों वाला घर है, किसी से कुछ भी कहते शर्म आती है !! मैं तो यह बात आपसे भी न करती, पता नहीं कैसे आज हिम्मत आ गई !! और उस ने आगे कहा कि उसे लगता है कि इन की उस जगह पर कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि जिस तरह खून के थक्के निकलते हैं, मुझे बहुत डर लगता है....
बशीर ने आगे लिखा कि उसे समझ मे आ रहा था कि इन्हें किसी सर्जन को दिखाया जाना बेहद ज़रूरी है.... जिस के लिये उन्हें चालीस मील दूर जाना होगा......लेकिन वे अभी कहते हैं कि पहले वे थूक का टैस्ट करवा के उस तकलीफ़ से निपट लें, यह तकलीफ़ को थोड़े दिनों बाद देख लेंगे........क्रमशः
कड़ी जोड़ने के लिये देखिए
डा बशीर की डायरी --पहला पन्ना
जब बशीर ने उन से उस एक्स-रे के बारे में पूछा कि वह कहां पर है? उन्होंने बताया कि वह तो एक्स-रे विभाग में जमा हो गया था ... उस ने उन्हें वह लाने को कहा। वहां पर वे एक-डेढ़ घंटा धक्के खाने के बाद वापिस आ गये कि वहां से तो कहते हैं कि हम इतना पुराना एक्स-रे नहीं ढूंढ सकते।
बशीर उन के साथ एक्स-रे रूम तक गया ... वहां पर स्टॉफ को कहा कि देखो, बई, इन का एक्स-रे ढूंढो कैसे भी, कहीं से भी, इन का स्वास्थ्य देख ही रहे हैं आप! आधे घंटे के बाद वे दंपति एक्स-रे लेकर वापिस बशीर के पास आ गये।
बशीर ने फिर से पूछा कि बाकी सब तो ठीक है ना, उस ने साफ साफ अक्षरों में यह भी पूछ डाला कि बवासीर जैसी कोई बात तो नहीं! इतना सुनते ही उस वृद्दा ने बहुत ही झिझकते झिझकते बोला कि इन्हें टायलेट के साथ खून आता है। पूछने पर उस ने आगे बताया कि यह तो बहुत दिनों से हो रहा है। बशीर ने पूछा कि क्या यह तकलीफ़ आप ने अपने डाक्टर को पहले कभी बताई? जवाब मिला कि उन्हें लग रहा था कि गर्म दवाईयों की वजह से यह सब हो रहा है, अपने आप ठीक हो जायेगा। और रही बात, अपने डाक्टर के साथ बात करने की, यह बात किसी ने पूछी नहीं और उन्हें स्वयं यह बात करने में शर्म आती थी क्योंकि डाक्टर के कमरे में हमारी जान-पहचान के और भी बहुत से लोग इक्ट्ठे होते हैं।
बहरहाल , बशीर ने उन के नुस्खे पर यह टायलेट के रास्ते रक्त निकलने की बात लिख कर उसे वापिस डाक्टर के पास भेज दिया ... और डाक्टर ने छाती का एक्स-रे देख कर उन्हें अगले दिन फ़िज़िशियन को दिखाने के लिये बुला लिया।
बशीर आगे लिखता है कि जिस बड़े अस्पताल में वह काम करता है, वह बिल्कुल नाम का ही बड़ा है, पंद्रह डाक्टरों की जगह चार डाक्टर काम कर रहे हैं...विशेषज्ञ कोई भी नहीं टिकता, चुस्त चालाक लोग कोई भी जुगाड़ कर के बड़े शहरों में लपक जाते हैं... केवल एक फ़िज़िशियन है। आगे जो लिखा था वह पढ़ कर मन दुःखी हुआ....लिखता है कि एक एक डाक्टर दिन भर में 80-90 मरीज़ “भुगता” देता है, वह भी यह सोच कर हैरान है कि यह कैसे हो सकता है ! लेकिन बड़े दुःखी मन से आगे लिखता है कि डाक्टर चाहे एक भी हो....(और चाहे न भी हो !!) , सिवाए मरीज़ के किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, सब मस्ती मार रहे हैं, टूर जाने वाले टूर पर जा रहे हैं, छुट्टी पर जाने वाले छुट्टी काट रहे हैं, खूब राजनीति भी चल रही है, लेकिन अगर मरीज़ों की तरफ़ से कोई शिकायत नहीं है, तो किसी को भी किसी से कोई भी शिकायत नहीं है ....
बशीर भी जब दिल की बात लिखने लगता है ....तो फिर सब कुछ लिख ही देता है ... उस ने लिखा था ....मरीज़ों का क्या है, वे घंटा शिकायत करेंगे, उन्हें पता कैसे चलेगा कि उन के साथ कम से कम दस मिनट बिताने की जगह अगर आधा मिनट बिताया गया है तो इस का सीधा सीधा मतलब उन की सेहत के लिये आखिर है क्या ! लेकिन छोड़िए, किसी को कोई परवाह नहीं, सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा... आगे लिखता है कि उस के अस्पताल का सीधा सीधा फंडा है कि बस उन पांच दस लोगों को “ हर कीमत पर” हर तरह से खुश रखा जाए...( पंजाबी में एक कहावत है ...किसे अग्गे कोड़ा होना....बस लिखदा ऐ कि अजेहे पंजा-दसां लोकां अग्गे बस कोडे होन दी ही कसर रह जांदी ऐ !!) …..बशीरे, तूं वी जदों दिल नाल लिखदैं फेर कुछ नहीं वेखदा .......लेकिन लगता है कि वह इधर उधर देखता भी क्यों, अपनी डायरी में अपनी मस्ती में लिख रहा था।
मैं बशीर की डायरी पढ़ते पढ़ते सोच रहा था कि बशीर क्यों इतनी हिम्मत हारता दिखाई दे रहा है, हर बात का इलाज तो है, खैर मैं वापिस उस की डायरी के दूसरे पन्ने पर ही वापिस आ जाता हूं.....
अगले दिन वो दंपति आते हैं ...फिज़िशियन को दिखाने के लिये....किसी पड़ोसी की कार मांग कर क्योंकि उस बंदे से चला नहीं जा रहा था लेकिन उन के अस्पताल पहुंचने पर पता चलता है कि फिज़िशियन साहब तो आज छुट्टी पर हैं । मायूस हो कर जाने के सिवाए कोई चारा नहीं था।
अगले दिन वे दंपति आते हैं, फिज़िशियन को दिखाने के बाद बशीर के पास आते हैं....फिज़िशियन ने भी उन के छाती के एक्स-रे में दिखने वाली गड़बड़ी के बारे में लिखा था और टीबी के जीवाणु देखने के लिये लगातार तीन बार लार की टैस्टिंग (sputum test) के लिये कहा था। आज फिर बशीर ने पूछ ही लिया कि वह जो टायलेट के साथ रक्त आता है, उस का क्या हाल है ?
इतना बात सुनने पर पता नहीं कैसे बेचारी उस वृद्दा के सब्र का बांध टूट गया कि उस ने दिल की बात खोल ही दी ...डाक्टर साहब, यह तकलीफ़ इन्हें पिछले काफी दिनों से है, बड़ी बेबसी से, बशीर लिखता है, उस ने कहा कि मैं थक गई हूं इन का खून से लथपथ पायजामा और कच्छा (अंडरवियर) धोते धोते...... मुझे उल्टी जैसा होने लगता है, लेकिन बहुओं-बेटों वाला घर है, किसी से कुछ भी कहते शर्म आती है !! मैं तो यह बात आपसे भी न करती, पता नहीं कैसे आज हिम्मत आ गई !! और उस ने आगे कहा कि उसे लगता है कि इन की उस जगह पर कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि जिस तरह खून के थक्के निकलते हैं, मुझे बहुत डर लगता है....
बशीर ने आगे लिखा कि उसे समझ मे आ रहा था कि इन्हें किसी सर्जन को दिखाया जाना बेहद ज़रूरी है.... जिस के लिये उन्हें चालीस मील दूर जाना होगा......लेकिन वे अभी कहते हैं कि पहले वे थूक का टैस्ट करवा के उस तकलीफ़ से निपट लें, यह तकलीफ़ को थोड़े दिनों बाद देख लेंगे........क्रमशः
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डा बशीर की डायरी --पहला पन्ना