साथियों, पिछले लगभग 25 वर्षों से चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ा हुया हूं। मीडिया एवं मैडीकल लेखन में भी विशेश रूचि रखता हूं। बस, ऐसे ही मन में बहुत दिनों से विचार उठ रहा था कि ब्लागिंग के माध्यम से आप के साथ अपने पेशे की खुल कर बात करूं। कुछ सेहत की बातें करूं--और पूरी इमानदारी से करूं जैसे कि हम लोग घर में बैठ कर करते हैं। अकसर हम
अपने बड़े -बुजुर्गों से यह तो सुनते ही रहते हैं कि जितने डाक्टर ज्यादा हो गए हैं उतनी ही बीमारियां भी बढ़ गई हैं,,, इस के बारे में आप क्या सोचते हैं। बहुत अच्छा , आप चाह रहे हैं कि पहले मैं बताऊं कि मेरे इस के बारे में क्या विचार हैं। लेकिन , साथियो, जैसे जैसे मेरी इस बेबाक डायरी के पन्ने आप के सामने खुलेंगे, मैं अपने विचार आप से ज्यादा समय के लिए कहां छिपा पाऊंगा।
बस, आज सुबह की एक बात याद आ रही है, एक बहुत ही बुजुर्ग माता ने मेरे से कंधे एवं पीठ पर दर्द के लिए दवाई मांगी....और उसी समय मुझे बेहद भोलेपन से निर्देष भी दे डाला कि खाने वाली ही देन,लगाने वाली मत देना। कारण पूछने पर कहने लगीं कि उस मलहम को मुझे लगाने वाला कोई नहीं.....पोते-पोतियां तो स्कूल में, फिर टयूशन में सारा दिन व्यस्त रहते हैं, किस को कहूं कि मुझे दवाई लगाए ।।। बस,इस के इतना कहने पर ही उस की सारी कही-अनकही बात मेरी समझ में आ गई । समझ तो आप को भी आ ही गई होगी.........बस यही सोच रहा हूं कि आखिर हम जा किधर रहे हैं ?