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शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

ज़्यादा नमक का सेवन कितना खतरनाक है....

इस का जवाब आज की टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर मिलेगा कि ज़्यादा नमक के सेवन से हर वर्ष कितने लाखों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं.....ज़्यादा नमक खाने का मतलब सीधा सीधा -- उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड-प्रेशर) और साथ में होने वाले हृदय रोग। आप इस लिंक पर उस न्यूज़-रिपोर्ट को देख सकते हैं......बड़ी विश्वसनीय रिपोर्ट जान पड़ रही है.....अब इस रिपोर्ट के पीछे तो किसी का कोई वेस्टेड इंट्रस्ट नज़र नहीं ना आ रहा, लेकिन हम मानें तो....
 1.7 million deaths due to too much salt in diet

 भारत में तो लोग और भी ज़्यादा ज़्यादा नमक खाने के शौकीन हैं.... आप इस रिपोर्ट में भी देख सकते हैं। यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं है..क्योंकि जिस तरह से सुबह सवेरे पारंपरिक जंक फूड--समोसे, कचोरियां, भजिया.... यह सब कुछ सुबह से ही बिकने लगता है..... और जिस तरह से वेस्टर्न जंक फूड--बर्गर, पिज्जा, नूड्लस.... और भी पता नहीं क्या क्या.......आज का युवा इन सब का आदि होता जा रहा है, इस में कोई शक नहीं कि २० वर्ष की उम्र में भी युवा  मोटापे और हाई-ब्लड-प्रैशर का शिकार हुए जा रहे हैं.

दरअसल हम लोग कभी इस तरफ़ ध्यान ही नहीं देते कि इस तरह का सारा खाना किस तरह से नमक से लैस होता है, जी हां, खराब तरह के फैट्स (वसा) आदि के साथ साथ नमक की भरमार होती है इन सब से। और किस तरह से बिस्कुट, तरह तरह की नमकीन आदि में भी सोडियम इतनी अधिक मात्रा में पाया जाता है और हम लोग कितने शौकीन हैं इन सब के.....यह चौंकाने वाली बात है। आचार, चटनियां भी नमक से लैस होती हैं। और कितने दर्ज़जों तरह के आचार हम खाते रहते हैं। ज़रूरत है कि हम अभी भी संभल लें.......वरना बहुत देर हो जाएगी।

और एक बात यह जो आज के युवा बड़े बड़े मालों से प्रोसैसड फूड उठा कर ले आते हैं....रेडीमेड दालें, रेडीमेड सब्जियां, पनीर ...और भी बहुत कुछ मिलता है ऐसा ही, मुझे तो नाम भी नहीं आते.....ये सब पदार्थ नमक से लबालब लैस होते हैं।

मैं अकसर अपने मरीज़ों को कहता हूं कि घर में जो टेबल पर नमकदानी होती है वह तो होनी ही नहीं चाहिए...अगर रखी होती है तो कोई दही में डालने लगता है, कोई सब्जी में, कोई ज्यूस में....... नमक जितना बस दाल-साग-सब्जी में पढ़ कर आता है, वही हमारे लिए पर्याप्त है। और अगर किसी को हाई ब्लड-प्रैशर है तो उसे तो उस दाल-साग-सब्जी वाली नमक को भी कम करने की सलाह दी जाती है।

मुझे अभी अभी लगा कि यह नमक वाला पाठ तो मैं इस मीडिया डाक्टर वाली क्लास में आप सब के साथ मिल बैठ कर पहले भी डिस्कस कर चुका हूं.......कहीं वही बातें तो दोहरा नहीं रहा, इसलिए मैंने मीडिया डाक्टर ब्लाग पर दाईं तरफ़ के सर्च आप्शन में देवनागरी में नमक लिखा तो मेरे लिए ये लेख प्रकट हो गये......यकीन मानिए, इन में लिखी एक एक बात पर आप यकीन कर सकतें......बिना किसी संदेह के.......

मीडिया डाक्टर: केवल नमक ही तो नहीं है नमकीन ! (जनवरी १५ २००८)
मीडिया डाक्टर: एक ग्राम कम नमक से हो सकती है ... सितंबर २६ २००९
मीडिया डाक्टर: नमक के बारे में सोचने का समय ...(मार्च २९ २००९)
आखिर हम लोग नमक क्यों कम नहीं कर पाते (जून १६ २०१०)
श्रृंखला ---कैसे रहेंगे गुर्दे एक दम फिट (अक्टूबर ४ , २००८)
आज एक पुराने पाठ को ही दोहरा लेते हैं (जनवरी २९ २००९)
मीडिया डाक्टर: श्रृंखला ---कैसे रहेंगे ... (अक्टूबर १ २००८)

सर्च रिजल्ट में तो बहुत से और भी परिणाम आए हैं ..जिन में भी नमक शब्द का इस्तेमाल किया गया था।  मेरे विचार में आज के लिए इतने ही काफ़ी हैं।

आज इस विषय पर लिख कर यह लगा कि इस तरह के पाठ बार बार मीडिया डाक्टर चौपाल पर बैठ कर दोहराते रहना चाहिए......अगर किसी ने भी आज से नमक कम खाना शुरू कर दिया तो जो थोड़ी सी मैंने मेहनत की, वह सफल हो गई। मेरे ऊपर भी इस लिखे का असर हुआ.....मैं अभी अभी जब दाल वाली रोटी (बिना तली हुई).. खाने लगा तो मेरे हाथ आम के आचार की शीशी की तरफ़ बढ़ते बढ़ते रूक गये। ऐसे ही छोटे से छोटे प्रयास करते रहना चाहिए।

यह पाठ तो हम ने दोहरा लिया, आप अपनी कापियां-किताबें बंद कर सकते हैं .....और आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक दूसरा पाठ भी दोहराने की ज़रूरत है......मैं तो इसे अकसर दोहरा लेता हूं.....आप भी सुनिए यह लाजवाब संदेश...

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

सुबह-सवेरे टहलने का प्रेरणादायी जज़्बा

मैं अभी अभी साइकिल पर टहल कर आ रहा हूं—जहां हम रहते हैं वहां आसपास हरे-भरे खेतों से घिरे गांव हैं। मैंने एक-डेढ़ महीने से यह रूटीन बनाई है कि दिन में लगभग एक घंटा साईकिल चला लेता हूं। अच्छा लगता है। तीन-चार किलो वजन भी कम हुआ है। लेकिन जिस बात ने आज सुबह मुझे हिला दिया और जिस ने मुझे आज तीन महीने बाद वापिस चिट्ठा लिखने के लिये विवश किया वह यह है।

मैंने आज सुबह एक बुज़ुर्ग को गांव में टहलते देखा ---इस में क्या खास बात है? लेकिन इस में खास बात यह है कि वह बंदा कोई सामान्य बंदा नहीं था --- उस की एक टांग में कुछ समस्या थी जिस की वजह से वह मुश्किल से चल पा रहा था, और दूसरे हाथ में उस ने लाठी पकड़ रखी थी लेकिन मैं जिस वजह से उसे देखता रह गया वह यह थी कि उस के यूरिन-बैग लगा हुआ था जिसे उस ने अपनी बाजू पर टांग रखा था। मैं वापिस लौटता उस बहादुर इंसान के ज़ज़्बे की मन ही मन प्रशंसा कर रहा था।

मैं उस की शारीरिक मानसिक परिस्थिति के बारे में नहीं जानता लेकिन इतना तो मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि उस की जैसी भी हालत है उसे इस टहलने का लाभ तो मिलेगा ही। और मैंने उस अनजान आदमी के स्वास्थ्य लाभ की भरपूर कामना की।

मैं लगभग तीन महीने चिट्ठाकारी से दूर रहा –कईं कारण थे, जॉब में व्यस्त था। और मुझे कुछ कुछ यह लगने लग गया था कि इंटरनेट की वजह से मुझे सिरदर्द और गरदन में दर्द होने लगा है और मैं चिड़चिड़ा सा होने लगा हूं –सुबह उठते ही मैं लैपटाप के आगे सज जाता था। लेकिन अब वह आदत छूट चुकी है--- अपने आप को भी समय देना इंटरनेट से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। वैसे इस दौरान मैंने अपनी एक वेबसाइट भी लांच की है --- हैल्थ बाबा.... कभी हो सके तो देखना।

हां, तो मैं उस बुज़ुर्ग बंदे की बात जब सोच रहा था तो यही ध्यान आ रहा था कि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो हृष्ट-पुष्ट होते हुये भी किसी तरह की शारीरिक कसरत से दूर भागते हैं, टहलने से कतराते हैं और अकसर इस सब के चलते हम लोग बीसियों तरह की शारीरिक एवं मानसिक विपदाओं को बुलावा दे बैठते हैं। काश, हम सब लोग समय रहते समझ जाएं और सुबह सवेरे लैपटाप की बजाए प्रकृति के साथ अपना समय बिताना शुरू कर दें ---सिर का दर्द, गरदन का दर्द अपने आप भाग जायेगा---जैसे मेरा भाग गया।

रविवार, 18 अप्रैल 2010

फिटनैस वॉकिंग ----किताब के कुछ अंश

कुछ वर्ष पहले मैंने एक किताब खरीदी थी --फिटनैस वॉकिंग। मुझे यह बहुत पसंद आई। इस में कुछ पंक्तियों को मैंने ऐसे ही सहज भाव में रेखांकित कर दिया था। आज इसे देख रहा था तो ऐसा ध्यान आया कि इस की कुछ महत्वपूर्ण बातों को ही शेयर किया जाए।

Fitness Walking -- By Les Snowdon & Maggie Humphreys.
There are some quotes written on the first page --
"The difference between a good walker and a bad one is that one walks with his heart , and the other with his feet" .........W.H.Davies.
"If one just keeps on walking everything will be all right".......Soren Kierkegaard

आदमी पिछले 30 लाख वर्षों से टहल रहा है, पैदल चल रहा है ---लेकिन उस ने दौड़ना, भागना ( जॉगिंग) तो पिछले तीस-चालीस वर्षों से ही शुरू किया है। इस से यही शिक्षा मिलती है कि टहलिये, सैर कीजिये ----यह मत सोचिये कि भागने से ही ज़्यादा फायदा होगा।

From this book ---"Man has been walking at least three million years. He has been jogging for 30. The moral is simple: you dont have to break yourself with 'no pain, no gain' jogging -walk, dont run, Fitness walking is the 'best' exercise recommended by exercise physiologists, biomedical experts, cardiologists, chest experts, obesity experts and stress experts, among others.

Walking has always been a major form of transportation for Man, but only recently have the health and mental benefits of fitness walking become apparent.

फिटनैस वॉकिंग से सारी टेंशन, तनाव दूर भाग जाता है और इस के बाद हम बहुत रिलैक्स महसूस करते हैं।
"Fitness walking is a universal stress reliever. It energises you; helps you relax; makes you feel good about yourself; helps you cope with anything that life throws at you, especially in the work place. Walk to work, or part of the way; take a fitness walking break during the day; walk at least part of the way home; or take a walk in the evening. It will help you beat depression, and it will help you sleep better. Fitness walking is the best -- and cheapest--stress manangement system around.

अकसर मेरा भी सिर भारी होता है ---तो फिर मैं भी अगर उस समय टहलने के काबिल होता हूं तो 30-40 मिनट बाहर जा कर टहल आता हूं --- बस, सिर हल्का होते ही सब अच्छा लगने लगता है।

वैसे मैं नियमित टहलता नहीं हूं ---- इस के अनगिनत फायदे जानते हुये भी बिना वजह ऐसी हिमाकत करता हूं। पिछले कुछ दिनों से मेरे बाएं घुटने में थोड़ा दर्द सा होने लगा था ---मैंने थोड़ा टहलना शूरू किया है, बहुत अच्छा लगता है।

मैं अकसर सोचता हूं कि किसी भी डाक्टर के पास जाने से पहले हमें अपनी जीवन-शैली को पटड़ी पर लाना ही होगा ---हम क्या खाते हैं, हमारी क्या आदते हैं, अल्कोहल-सिगरेट बीड़ी आदि क्या ले रहे हैं, क्या रोज़ाना तीस-चालीस मिनट टहलते भी हैं या बस एक जगह स्थूल पड़े ही रहते हैं ---- ये सब बातें ठीक ठाक करने के बाद ही उस " डाक्टर रूपी भगवान " ( ?) के पास जाना ठीक है, वरना उस का नुस्खा कितना फायदा कर पाएगा  ? हां,  एमरजैंसी के लिये तो ठीक है, जो हमें सचेत करने के लिये है कि भई, अब भी संभल जाएं वरना बाद में मत कहना कि किसी ने पहले नहीं चेताया।