आज कल अखबार में या टीवी चैनलों पर फेस-मास्क के बारे में इतना कुछ दिख रहा है कि दर्शक तो यह सब देख कर चकरा गया है । इतनी बातें सुनने देखने के बाद भी लोग शायद निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि वे मास्क पहनें कि नहीं !! ऐसे अवसर पर अमेरिकी सैंटर ऑफ डिसीज़ कंट्रोल की सिफारिशों का ध्यान अवश्य कर लेना चाहिये क्योंकि यह एक अत्यंत विश्वसनीय साइट है और जो यह कह रहे हैं उस पर आप बिना किसी ज़्यादा सोच-विचार के विश्वास कर सकते हैं।
इन की वेबसाइट पर इन्होंने इस बात का जवाब देने के लिये जनता को दो हिस्सों में बांटा है ---वो लोग जिन्हें बीमारी नहीं है और वे लोग जो बीमारी से जूझ रहे हैं। और एक विशेष बात यह है कि जब यह संस्था फेस-मॉस्क के बारे में कुछ सिफारिश कर रही है तो यह नहीं कह रही कि वे लोग जिन्हें स्वाईन-फ्लू है या नहीं है, बल्कि यह कहा जा रहा है कि जिन लोगों को फ्लृ-जैसी बीमारी है या नहीं है, यह कहना यहां ज़रूरी था क्योंकि नोट करने वाली बात यह है कि फ्लू-जैसी बीमारी तो किसी को मौसमी फ्लू की वजह से भी हो सकती है क्योंकि स्वाईन-फ्लू का तो तब चलेगा जब ज़रूरत पड़ने पर टैस्ट वैस्ट किये जायेंगे। इसलिये ऐसे लोगों के लिये भी फिलहाल फेस-मास्क से संबंधित वही सब सिफारिशें माननी होंगी जो कि बीमारी( फ्लू जैसी बीमारी --- influenza like illness) से जूझ रहे लोगों के लिये मान्य होंगी।
आज कि चर्चा करने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि स्वाईन-फ्लू के लिये कुछ लोगों को हाई-रिस्क माना गया है जिन में इस बीमारी के होने का खतरा दूसरे सामान्य लोगों की बजाये ज़्यादा होता है । ये हाई-रिस्क वाले लोग हैं ------पांच साल से कम उम्र के बच्चे, 65 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोग, 18 वर्ष से कम उम्र के वे लोग जिन्हें लंबे समय के लिये एसप्रिन दी जा रही है, गर्भवती महिलायें, ऐसे लोग जो किसी भी पुरानी बीमारी ( जैसे कि श्वास-प्रणाली से संबंधित---इस में दमा रोग भी शामिल है, मधुमेह, दिल के किसी रोग, लिवर के रोग, गुर्दे के रोग आदि से पहले से जूझ रहे हैं, जिन लोगों की इम्यूनिटि ( रोग प्रतिरोधक क्षमता) पहले ही से किसी कारण वश बैठी हुई है ---चाहे यह कुछ दवाईयों के असर से हो या फिर कुछ रोगों की वजह से जिनमें एच-आई-व्ही संक्रमण शामिल है।
सी.डी.सी की सिफारिशों के अनुसार अगर नॉन-रिस्क श्रेणी के लोगों में कोई फ्लू जैसे लक्षण नहीं हैं तो उन्हें फेस-मास्क लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन अगर कोई हाई-रिस्क श्रेणी वाला बंदा किसी भीड़-भाड़ वाले एरिया में जा रहा है तो उसे मास्क ज़रूर लगा लेना चाहिये और जहां तक हो सके उसे इस तरह के एरिया में जाने से बचे ही रहना चाहिये।
और दूसरी विशेष बात यह है कि जो लोग हाई-रिस्क में आते हैं उन्हें फ्लू-जैसी बीमारी ( नोट करें कि यहां भी स्वाईन-फ्लू नहीं बल्कि फ्लू जैसी बीमारी ही कहा गया है ---क्योंकि टैस्ट नहीं हुआ है) से ग्रस्त परिवार जनों की देखभाल से थोड़ा बच कर रहना चाहिये ---- अकसर यह संभव नहीं होता, ऐसे में वे हाई-रिस्क व्यक्ति जो केयर दे रहे हैं उन्हें फेस-मास्क लगा लेना चाहिये।
और जहां तक चिकित्सा कर्मीयों का संबंध है जो कि फ्लू जैसी बीमारी या स्वाईन-फ्लू जैसी बीमारी से ग्रस्त पब्लिक के इलाज में लगे हुये हैं उन्हें तो N95 जैसा फेस-मास्क पहन कर ही रखना चाहिये और यह सिफारिश उन हैल्थ-कर्मियों के लिये है जिन्हें कोई दूसरी शारीरिक व्याधि नहीं है अर्थात् वे हाई-रिस्क श्रेणी में नहीं आते । जो हैल्थ-कर्मी स्वयं हाई-रिस्क श्रेणी में आते हैं उन के लिये तो बताया गया है कि अगर हो सके तो उन की सेवायें उन्हें उस कार्य-क्षेत्र से थोड़ा हटा कर लेनी चाहिये ---- और वे चिकित्सा के जिस भी कार्य-क्षेत्र में काम करें उन्हें N95 जैसे फेस-मास्क पहने रखना चाहिये।
और जिन लोगों में स्वाईन-फ्लू जैसी बीमारी होने का शक हो या जिन में यह बीमारी कंफर्म है उन्हें तो जहां तक हो सके फेस-मास्क पहन कर ही रखना चाहिये । इस बीमारी से ग्रस्त महिलायें भी स्तन-पान करवाते समय फेस-मास्क अवश्य पहनें।