एक बार टाइम्स ऑफ इंडिया में एक ख़बर दिखी थी -अमेरिका में कुछ रिसर्च हुई है कि अगर लोग जितना नमक खाते हैं, उस में से एक ग्राम नमक खाना कम कर दें तो अमेरिका में करोड़ों-खरबों डालरों की बचत हो जाएगी ...जो पैसा वैसे ज़्यादा नमक खाने से पैदा होने वाली बीमारियों पर खर्च होता है ...मुझे हैरानी नहीं हुई बिल्कुल यह पढ़ कर ...क्योंकि ज़्यादा नमक एक बहुत बड़ा विलेन तो है ही ...पोस्ट लिखने के बाद देखा तो मुझे मेरी एक दस वर्ष पुरानी पोस्ट याद आ गई ....इस के बारे में यह रहा उस का लिंक.
बचपन में हम लोग देखा करते थे कि हर घर में खाने की मेज पर या तो एक छोटी नमकदानी सजी रहती थी ...नहीं तो घर में कहीं भी खाना खाते वक्त कोई न कोई आवाज़ दे ही देता था कि ज़रा नमकदानी तो इधर भेजो....मुझे मेरी बड़ी बहन का ही ज़्यादा नमक खाना याद है ...वह तो ज़रूर ही दाल की कटोरी में एक्सट्रा नमक डालती और फिर उसे अकसर उंगली ही से झट से मिला भी देती दाल में ...बडा़ होेने पर मैं उस के पीछे अकसर पड़ा रहता हूं कि नमक कम खाना चाहिए....कहती हैं कि अब कम खाती हूं ...
मैं यह जो पोस्ट लिखने इस वक्त बैठ गया हूं उस का कारण यह है कि कल की टाइम्स में एक बड़ी अहम् खबर छपी थी कि कम नमक खाने का दर्जा एक तरह से उच्च रक्तचाप की दवाईयां खाने के बराबर है ....और उसमें मेडीकल रिसर्च की भी बात की गई थी ...मुझे उसमें लिखी हर बात मुनासिब लिखी ....दिल्ली के बहुत बड़े हृदय विशेषज्ञ ने भी इस बात की पुष्टि की है ...अगर आप उस खबर को देखना चाहें तो इस लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं...
Reducing Salt Intake as Beneficial as BP First-line drugs: Study
(Times of India, Mumbai ....28th Nov, 2023)
साधारण खाने से जितना नमक हम लोग दाल-सब्जी में खाते हैं उस की कोई खास बात नहीं है ....समस्या यही है कि खाने के अलावा हम लोग दिन भर यहां वहां जंक-फूक खाते रहते हैं वह तो नमक से लैस होता ही है ....हम लोगों की और भी बहुत सी आदते ैहं जो हमारे अंदर ज़्यादा नमक (सोडियम) डंप करती रहती हैं ...
छाछ, लस्सी, गन्ने का रस, अधिकतर फल हमें नमक के बिना काटने को दौड़ते हैं .....यही लगता है क्योंकि हम उन को बिना नमक लेते ही नहीं हैं....दही में भी नमक डालते हैं...शिकंजी में भी नमक जो चुटकी भर डालना होता है, हम उसमें भी मनमर्ज़ी करते हैं....
लिखते 2 ख्याल आया कि बचपन में हम लोग कच्चा आम, ईमली खाते वक्त भी एक हाथ में नमक रखते थे, उस के बिना नहीं खाते थे तरबूज, जामुन, फालसा, छोटे छोटे लाल रंग के बेर भी बिना नमक के नहीं खाते थे ..। लखनऊ में आप कहीं से भी जब मूंगफली लेते हैं तो वह खोमचे वाला उस में तीन चार नमक की पुड़िया ज़रूर रख देता है, साथ में हरी मिर्च की चटनी भी ....और हां, शकरकंदी लीजिेए भुनी हुई कहीं से ...वह भी हम कहां बिना नमक के खाते हैं, ....नमक और नींबू के बिना शकरकंदी का क्या मज़ा...।
लखनऊ की बात तो मैंने लिख दी ...लेकिन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली विल्ली में हम लोग कहीं भी खड़े हो कर केले खाते हैं तो वह उन को काट कर उन में नमक ठेल देता है क्योंकि घर के बाहर कोई भी केला नमक के बिना खाता ही नहीं ....और वह नमक भी उसमें ऐसे ठूंस देता है जैसे कोई समाज कल्याण कर रहा हो ....केला हो गया, लईया-चना भी हमें नमकीन ही चाहिए, भुजिये मेें तो नमक भरा ही रहता है ....
अभी लिखते लिखते मुझे खुद डर लगने लग गया है कि हमारी खाने-पीने की आदतें भी कितनी खौफनाक हैं ....हम किसी की नहीं सुनते, सेहत से कोई लफड़ा हो जाता है तो हम समझते हैं कि विशेषज्ञ बचा लेगा, वह भगवान है ........ठीक है, छोटा मोटा भगवान तो वह है ही बेशक, एक बार तो मौत के मुंह से बाहर निकाल लेगा .......लेकिन हम कहां अपने खान-पान में कुछ सुधार करने को राज़ी होते हैं इतनी आसानी से ...
खीरा, ककड़ी भी खाएंगे तो भी नमक के साथ, सलाद में भी नमक...शराबी बंधु महफिल में भी कईं बार नमक ही रख लेते हैं अपने साथ (मैंने कई बार देखा कि शराबी बंधु जो काजू-चने न रख पाएं, वे कोई भी आचार ही रख लेते हैं ....और कईं बार तो देसी दारू पीते वक्त कुछ बंधुओं को साथ में चुटकी भर नमक चाटते देखा है .....यह किसी का मज़ाक नहीं बना रहा हूं ....क्योंकि वह काम मैंने कभी नहीं किया.....बस, कुछ बातें सच् सच अपनी पोस्ट में दर्ज करने के लिए लिख रहा हूं....
भुजिया खाने का तो मैं भी बड़ा शौकीन हूं ....लोकल स्टेशन पर बिना सोच विचार किए सेव-मुरमुरा, कुरमुरा, तली हुई मूंगफली, नमकीन दाल.....और भी बहुत कुछ --बस ऐसे ही ट्रेन की इंतज़ार करते करते खरीद लेता हूं ....पहले तो रोजाना ही ऐसा करता था, अब डरने लगा हूं ....महीने में शायद एक दो बार ...और घर में भी बीकानेरी भुजिया इत्यादि खाता ही हूं .........लेकिन यह पोस्ट लिखने भर से मेरी यह खराब आदत सही नहीं ठहराई जा सकती .....अपने पैर पर खुद कुल्हाडी़ मारने वाली बात है .....किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता ....
समोसे, वडा-पाव, भजिया-पाव.....चाइनीज़, हाका, मोमोज़......सच में बाहर जाते हैं तो लगता है जनता रब की बारात में आई हुई है ....(यह एक पंजाबी कहावत है ...इंज लगदै जिवें ओह रब दी जंजे आया होवे)....
काजू भी खाने हैं तो नमक वाले, पिस्ता भी नमक वाला ...भुने हुए चने भी नमकीन.....
कितनी लंबी लिस्ट लिखूंगा .....बस, यही मानिए की दाल-रोटी-सब्जी के अलावा हम जितना कुछ भी नमक वाला खा रहे हैं, वह हम अपने आप से धोखा कर रहे हैं......कुछ लिस्ट तो ऊपर दी है....और एक बात, ये जो आज की नईं जेनरेशन प्रोसैसेड फूड की दीवानी है न, यह सारे का सारा सोडियम से लैस होता है ....हम खुश होते हैं कि टिक्की आधे मिनट में तैयार हो गई, रेडीमेड दाल, चने, पनीर ...गर्म पानी में डालते ही खाने लायक हो गया ....इन के बारे में कभी अपने डाक्टर से बात करिए.....मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं , सीधी सपाट बातें लिखता हू्ं ......लेकिन मुझे इन सब चीज़ों से बेहद नफरत है....यही वजह है कि मुझे कहीं भी बाहर जा कर खाना पसंद ही नहीं है .......कोई भी हो, कहीं भी है, कुछ भी हो.....बाहर जा कर कंट्रोल नहीं होता, तला-मला, फ्राई आने दो, और उस के बाद जलेबी, आईसक्रीम और गुलाब जामुन जब खाता हूं तो अपने आप से दिल ही दिल में क्या कहता हूं, वह तो मैं लिख भी नहीं सकता...
इस पोस्ट में तो नमक की ही बात कर रहे हैं, लेकिन अकसर जो चीज़ें हमारे खाने पीने की नमक से लैस होती हैं...वे अच्छे-बुरे घी, तेल, मसाले भी लैस होती हैं ...जैसे मटन,मुर्गा, मछली .....कोई भी नॉन-वैज हो...इसलिए उन्हें खाने से होने वाली पेचीदगी और भी ज़्यादा है ...
कहीं किसी पढ़ने वाले को यह नहीं लग रहा कि इतना डराया क्यों जा रहा है.......नहीं, नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, वैसे भी कौन किस की सुनता है...हम चिकित्सक हैं, हम ही नहीं किसी की सुनते ....मैंने बताया न कि कैसे भुजिया खाते हैं, कैसे मीठा खाते हैं ....और फिर सिर पकड़ कर एसिडिटी से परेशान हो कर घंटो पड़े रहते हैं....
दरसल, नमक -सोडियम क्लोराईड में सोडियम ही विलेन है ....इस का मतलब यह हुआ कि जिन जिन चीज़ों के बनाने में मीठा सोड़ा, बेकिंग पावडर आदि इत्यादि इस्तेमाल होता है उन में भी सोडियम तो है ही ....जो अधिक मात्रा में हमारी सेहत से कैसा खिलवाड़ करता है, यह हम सब जानते हैं....बार बार डाक्टर लोग बताते रहते हैं .....अखबारों में लिखा दिखता है, रेडियो-टीवी पर भी सुनते हैं ....
कभी ख्याल किया हो तो जब कोई दस्त से परेशान हो तो उस के लिए जो ओआरएस (जीवन रक्षक घोल) घर में बनाया जाता है उसमें भी एक लिटर पानी में चीनी, नींबू के साथ साथ एक चुटकी
नमक ही डाला जाता है ...
बेकरी के जितने भी उत्पाद हैं, बिस्कुट हो, या पेटीज़ हों या कुछ और, सब कुछ कॉमन-साल्ट से .....और अगर उस से नहीं भी तो किसी न किसी रूप में सोडियम तत्व उसमें मिला ही रहता है ...
यह पोस्ट भी ऐसी है, जो मन में आ रहा है, लिखते जा रहा हूं...क्या करें, डॉयरी हो या हो ख़त ..हम इसी तरह से लिखते रहे हैं ....
बातें तो बहुत हो गईं ...लेकिन पते की बात इतनी है जो मुझे समझ में आई है कि खाने में ...दाल, रोटी, साग, सब्जी में जितना नमक हम खा लेते हैं बस उतना ही काफी है, उतनी ही ज़रूरी है ....बाकी जो हम यहां वहां से ठूंसते फिरते हैं, वह तो बाद में उत्पात ही मचाता है ...किसी का आज, किसी का कल.......लेकिन तंग तो इस की बहुतायत से लोग रहते ही हैं ....डाक्टर भी क्या करें, कह ही तो सकते हैं.....
मेज़ के ऊपर छोटी नमकदानी रखनी ही नहीं चाहिए.....नमक मांगने के लिए कोई आलस ही करेगा....वरना, दाल, भाजी, सलाद, अमरूद ...छाछ सब में छिड़कने लगेगा....
सीख........आज के पाठ की वही घिसी-पिटी दशकोंं पुरानी सीख है कि नमक का कम इस्तेमाल करें ...जितना कम हो सके .....सब्जियों, फलों के माध्यम से भी हमें नमक (सोडियम) हासिल हो जाता है ...इस की कमी के बारे में इतना चिंता न करें...
हां, लिफाफा बंद करते करते एक बात याद आ गई ...वैसे भी मैं बीपी वीपी का कोई विेशेषज्ञ तो हूं कि मेरी इन बातों पर अंध-श्रद्धा करें और उन्हें पत्थर की लकीर की तरह मान लें, नहीं, आप अपने चिकित्सक से बात करें ....अपने फैसले खुद करें., अपने डाक्टर से बात करने के बाद ....और हां, मुझे कुछ महीने पहले किसी ने पूछा कि शरीर में हमेशा के लिए किसी के नमक कम भी हो सकता है क्या.....मुझे नहीं पता था, मुझे तो बस डी-हाईड्रेशन का ही पता था जिसमें किसी को कुछ दिनों के लिए नींबू-पानी, ओआरएस इत्यादि लेने की सलाह देते हैं....लेकिन उसने बताया कि डाक्टर ने उसे कहा है कि तुम ने हमेशा ही ज़्यादा नमक लेना है ....बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी, मैंने साफ साफ कहा कि मुझे ऩहीं पता इस के बारे में ....
पोस्ट पढ़ने के बाद आप क्या सोचेंगे...क्या कुछ असर पड़ेगा भी या नहीं, लेेकिन जैसा कि मैं अकसर सोचता हूं कि इसे लिखना मेरे खुद के लिए एक रिमांइडर का काम करेगा....वैसे तो मैं नमक कम ही लेता हूं ...दही में, छाछ में, नहीं, जूस में नहीं, फ्रूट में नहीं, सलाद में नहीं.....जितना हो सके, ख्याल कर लेता हूं ...जंक भी न के बराबर, महीनों बीत जाते हैं एक वड़ा-पाव, समोसा खाए...बस, मुझे भुजिये इत्यादि खाते वक्त सोच विचार करना होगा .....
केवल नमक ही तो नहीं है नमकीन ... (पंद्रह बरस पुरानी मेरी एक पोस्ट....मुझे उसे पढ़ते पढ़ते हंसी आ रही थी....मैं ही नहीं बदला इतने बरसों में तो पढ़ने वालों से ऐसी उम्मीद क्यों करें, भई..) 😂😎
10 साल पहले भी कुछ लिखा था नमक के बारे में ...अगर देखना चाहें तो यहां देखिए....ज़्यादा नमक का सेवन कितना खतरनाक है!!
वैसे नमक हो, तेल हो, मीठा हो, तीखा हो...जितनी गड़बड़ी हम लोग अपने खानेपीने में कर रहे हैं, उस के बारे में आज की टाइम्स आफ इंडिया में भी एक बहुत बड़े डाक्टर ठक्कर का एक लेख आया है....देखिए, उन्होंने सब कुछ कितना सच सच लिख दिया है, और वह भी इतनी सहजता के साथ ...उस लेख को भी देख लीजिए लगे हाथों.......क्या पता, मेरी बात का नहीं, उन की बात का ही असर हो जाए.....
times of India 29.11.23 (click on pic to read it) |
नमक स्वाद अनुसार....शीर्षक इस लिया रखा क्योंकि उस वक्त इसी का ख्याल आया क्योंकि इसी नाम से एक किताब आई थी 2-3 बरस पहले ...साहित्यिक कृति थी ...कोई डाक्टरी नहीं झाडी़ थी उसमें लेखक ने .....और जो ऊपर बहुत पहले मैंने कल की खबर का लिंक दिया है कि कम नमक को ब्लड-प्रेशर की दवाई जैसी अहमियत दी गई है ....उस का मतलब यह नहीं कि आप जो दवाईयां ले रहे हैं, उन्हें बंद कर दें और नमक खाना कम कर दें.......ऐसा नहीं, दवाईं अपने डाक्टर की सलाह अनुसार लेते रहें, मेरे कहे मुताबिक यह देखें हर वक्त खाते समय कि क्या नमक का यह इस्तेमाल ज़रुरी है या मेरी जान ज़्यादा ज़रूरी है........जो भी जवाब मिले, उसी मुताबिक आगे की रणनीति तय करिए .....😂.....
लेकिन मैं इतने लिखने के बाद अब कल से नमक के इस्तेमाल के बारे में और भी ज़्यादा सचेत रहने की कोशिश करूंगा....एहतियात बरतूंगा....
एक बात और सता रही है ....नमक स्वादानुसार ....यह अकसर पत्रिकाओं में जो रेसिपी लिखी होती हैं उन के नीचे लिखा रहता था....था इसलिए कि अब कहां ये सब इतना छपता है मैगजीन में ...और एक बात, हिंदोस्तानी घरों में अगर कभी दाल या सब्जी में नमक ज़्यादा पड़ जाए तो घर की गृहिणी को ऐसे लगता है मानो उसने कोई संगीन ज़ुल्म कर दिया हो ....इस तरह की दकियानूसी बातें हैं भाई जो कचोटती हैं....नमक ज़्यादा पड़ भी गया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.....हमारे मोहल्ले में एक सिपाही रहता था ....जब उस कबख्त की दाल में सिपाहिन से कभी नमक ज़्यादा पड़ जाता था तो रोटी की थाली दूर फैंक देता था.....और सारा घर सहम जाता था....अरे, भई पकी पकाई मिल रही है....खा ले ....नमक ज़्यादा है तो दो चम्मच दही डाल ले...
लिखते लिखते सिर भारी हो गया है खामखां ....चलिए, सुनयना फिल्म की गीत सुनता हूं भारीपन को दूर भगाने के लिए....1979 की फिल्म ...मैंने कालेज में नये नये पैर रखे थे, रात में कभी कभी विविध भारती लग जाता था तो उस में यह गीत बजता था ...सुन कर मज़ा आता था ....परसों इसे बहुत अरसे बाद विविध भारती पर सुना ....
विस्तृत परिवार, जब हमसब उसमे पले बढे, दोस्तों के साथ पत्थर फेंक कर कच्चे आमों को तोड़ना और चटकारे मार कर नमक के साथ कच्चा आम खाना अदभुत समय की याद आ गई, सर मैं जब इस ब्लॉग को पढ़ रहा था तो लग रहा था की बहुत समय के बाद हम चार-पांच मित्रों के साथ खाली समय में बातचीत करते-करते नमक पर चर्चा सुरु हुई, और बारी-बारी से सब ने कुछ नमक से होने वाले नुकसान के बारे बताना शुरू किया।
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