मैंने पिछले दो कड़ियों में दोस्तो आप तक लता मंगेश्कर जी के अंतिम संस्कार का आंखो देखा हाल पहुंचाने की एक मामूली सी कोशिश की थी, अभी उस महान हस्ती के बारे में चंद अल्फ़ाज़ और लिख कर अपनी बात ख़त्म करने लगा हूं... पहली कडी और दूसरी कड़ी लिंक यह रहा ...
लता दीदी आप की याद में ....कल सात रास्ते पर भी आप को लोग याद कर रहे थे ... |
लता जी के जाने के बाद ख्याल आ रहा कि मैं उन्हें दीदी किस ज़ाविए से कह रहा हूं...वह तो मेरी मां की हमउम्र थीं तो उस तरह से मेरी तो मौसी ही लगी ...है कि नहीं....सारे हिंदोस्तान की वे कुछ न कुछ लगती हैं और सूरज चांद के अस्तित्व तक लगती रहेंगी...अधिकतर की दीदी, बहुत से लोगों की बहन और मेरे जैसे कुछ लोग जिन्होंने लिखते लिखते उन से मौसी का रिश्ता ही बना लिया...जो भी हो, वे बहुत अच्छी थीं और मुझे तो टीवी या यू-ट्यूब पर उन की बातें सुनना बहुत ज़्यादा भाता था...बिल्कुल सहजता से कोमल बातें करती तो ऐसा लगता कि उन के मुखारबिंद से फूल झड़ रहे होते ...उन की बच्चों जैसी बिंदास हंसी तो मुझे और भी फ्लैट कर जाती ...
आज से तीस चालीस पहले हम लोग कभी उन के बारे में बात करते तो कोई यह भी कह देता कि लता जी के गले का करोड़ों रूपये का बीमा हुआ है ...कोई कहता कि लता जी जब गाती हैं तो उन की आवाज़ में इतनी खनक है कि उन्हें किसी भी संगीत के वाद्य-यंत्र की ज़रूरत ही कहां है....हां, तो मैं बात कर रहा था किस तरह से लोगों ने उन के साथ अपनेपन के रिश्ते कायम कर रखे थे ...मुझे उन से मिलने की बहुत तमन्ना थी ....लेकिन ज़रूरत नहीं कि सभी ख्वाहिशें पूरी भी हों, कुछ अधूरी भी अगर रह जाएं तो भी बंदे का दिमाग ठिकाने पर रहता है ...
दो दिन पहले मेरे पास एक आफीसर आए तो लता की बात छिड़ गई ..मैंने कहा कि लता दीदी ने तीन पीड़ीयों का मन बहलाए रखा ..वह कहने लगा तीन नहीं चार, डा साहब. वह आफीसर यही कोई 35-40 साल का था, उस ने मुझे अच्छे से चार पीड़ीयां गिना भी दीं...अपने नाना जी से शुरू कर के ...लेकिन पता नहीं मेरी मोटी बुद्धि में बात देर से पड़ती है ...मैं अभी लिखते वक्त उन चारों का हिसाब लगा नहीं पा रहा हूं ..अगली बात मिलने पर पूछूंगा..मैं कौन सा ऐसे ही छोड़ देने वाला हूं ...😎..वैसे उन्होंने ने बताया कि उन की मां तो लता जी के यूं चले जाने पर खूब रोती रहीं। अनुपम खेर की माता जी की एक वीडियो देख रहा था ...वह भी बेहद भावुक हो रही थीं...उन्होंने भी यही कहा कि लता जैसी न कोई थी और न ही कोई फिर से पैदा ही होगी...
लता जी के अन्तयेष्ठि के वक्त दूर दूर से लोग पहुंचे हुए थे ...सब उन से बेइंतहा प्यार करने वाले ...हर तरफ़ से आवाज़े आ रही थीं...नारे लग रहे थे ...लता दीदी अमर रहें ...लता दीदी अमर रहें...इतना प्यार बटोर कर ले गई हिंदोस्तान की यह बेटी...पास ही एक युवक खड़ा किसी से बात कर रहा था कि उस के पास तो कुछ पैसे भी नहीं थे, बस शिवाजी पार्क पहुंचने की तमन्ना थी... बस, जैसे तैसे भायंदर से यहां तक पहुंच गया...बता रहा था कि लता जी का अंतिम स्ंस्कार आज ही कर दिया ...अगर कल होता तो बाहर गांव से भी बहुत से लोग यहां पहुंच पाते ...खैर, ये तो पारिवारिक फ़ैसले होते हैं ..
पास ही एक दूसरा बंदा खड़ा था दूधे नाम से ...उसने बताया कि उस की घाटकोपर में फुटपाथ पर कपड़ों की दुकान है ...वह तो अढ़ाई बजे ही वहां पर पहुंच गया था ..मैंने पूछा इतनी जल्दी आ कर क्या किया...उसने बहुत सहजता से कहा कि मैं आकर यही देखता रहा कि कहां से अंदर जा पाऊंगा ..इतनी भीड़ में अंदर घुस भी पाऊंगा कि नहीं....सभी गेट देखता रहा और आखिर में बता रहा था कि इतना नज़दीक से लता दीदी के दर्शन हो गए...मेरी तमन्ना पूरी हो गई। मैं मन ही मन सोच रहा था कि यही तमन्ना तो हम भी लेकर आए थे जिसे ईश्वर ने पूरा कर दिया...
कुछ किन्नर भी अपने सहयोगियों के साथ वहां पर दिखे ...सब के भाव इस महान् हस्ती के साथ कुछ इस तरह से जुड़े दिखे कि मैं ब्यां नहीं कर पा रहूा हूं ...किन्नरों ने भी लता जी के गाए गीतों पर खूब नाच-कूद की ...इस वक्त यहां पहुंच कर यह उन का उस कर्ज को हल्का करने का इरादा रहा होगा ....लेकिन यह कर्ज कोई चुका न पाएगा....लता जी तो हम सब को इस कर्ज के नीचे अच्छे से दबा कर चली गईं .... मेरे पास खड़े एक युवक ने पास ही खड़े एक दूसरे युवक की तरफ़ इशारा किया कि देखिए, उस के पिता जी बीमार हैं, खटिया पर हैं ...यहां आ नहीं पाए ...तो यह यहां से उन्हें चिता के दर्शन करवा रहा है और साथ में कह रहा है ....साथ में क्या कह रहा है, वह मेरी समझ में नहीं आया...मैंने उसी मराठी मानस से पूछा कि क्या कह रहा है ...उसने मुझे हिंदी में बताया कि वह अपने पिता जी को बता रहा था कि सब खत्म हो गया...
एक बात और बताऊं ...लता जी के अंतिम संस्कार के वक्त वहां पर आए सभी लोग अपने ही लग रहे थे ...ऐसे लग रहा था कि अपने घर का ही कोई सदस्य रूख्सत हो गया हो जैसे ...तभी तो चिता पूरी जलने तक किसी का बाहर जाने का मन ही नहीं कर रहा था ..वहीं खड़े खड़े इस देवी की जलती चिता को निहार रहे थे चुपचाप...जब मैं वीडियो बना रहा था तो एक युवक मेरे पास आया कि मैं मोबाइल नहीं ला पाया, अगर आप मेरे को यह वीडियो भेज देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी ..मैंने कहा कि मेहरबानी कैसी, उसी वक्त कोशिश की उस के नंबर पर भेजने की ..लेेकिन नहीं हो पाया...घर आने पर भूल गया... अगले दिन सुबह होते ही उसे तीन वीडियो भेजे और साथ में लता जी पर लिखे अपने ब्लॉग का लिंक ...वह बहुत खुश हुआ...
इस दिव्यांग के जज़्बे को सलाम...🙏 |
हां, जब मैंने लौटते वक्त बैसाखियों के सहारे चल रहे एक दिव्यांग शख्स को बाहर जाते देखा तो मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि कितना प्यार करते होंगे लोग इस देवी से कि इतनी मेहनत कर के यह दिव्यांग भी यहां पर अपने श्रद्धांजलि देने पहुंच गया ...पता नहीं कितनी दूर से आया होगा ...और इतने बड़े शिवाजी पार्क में भी तो इसे इतना चलना पड़ा होगा...मैं सोच रहा था कि इस वक्त चुस्त-दुरुस्त लोग नेटफ्लिक्स के हवाले हुए पड़े होंगे और यह बंदा इतनी मेहनत-मशक्कत कर के ........ऐसे लोगों के जज़्बे को भी मेरा सलाम।
और इस देवी को स्वर्ग की तरफ़ प्रस्थान इसी तरह से निहारते हुए हम वहां से लौट आए...Rest in peace, Lata Didi, you have done a lot for humanity! Now it is time to take some eternal rest! |
मुझे यह भी लग रहा था कि इतना समय हो गया मुंबई में और शिवाजी पार्क नहीं आए कभी ...यह भी क्या बात हुई...बस, जब मैं लंबी दूरी के लिए साईकिल चलाने निकलता था पिछले बरस तो बाहर ही से देख लेते थे ...या खबरों में पढ़ लेते थे इस की ऐतिहासिकता के बारे में ...और यह भी कि सचिन तेंदुलकर भी बचपन में यहीं प्रेक्टिस किया करते थे ...लता जी भी क्रिकेट की जबरदस्त फेन थीं..उस दिन एक वीडियो देख रहा था जिसमें वह बता रही हैं कि पहले जब टेस्ट-मैच चार चार दिन चलते थे तो कईं बार मैच देखने के लिए वह आठ दिन तक घर ही में रहती थीं ..उन दिनों कोई रिकार्डिंग भी नहीं करती थीं...
पार्क के बाहर लगी हुई स्व. मीनाताई ठाकरे की प्रतिमा |
लता जी, अब हम भी इन फूलों में, इन की खुशबू में, खुली खुशनुमा फ़िज़ाओं में, कुदरती नज़ारों में, हंसते चेहरों में आप को ढूंढ लिया करेंगे, देख भी लिया करेंगे ...आप का गाया यह बेहद सुंदर गीत सुन लिया करेंगे .🙏.. वाह...गले में मां सरस्वती ने वास भी ऐसा किया कि करोड़ों अरबों लोगों में आप की आवाज़ का जादू बरसों-बरसों तक चलता ही चला गया ...और यह चलता ही रहेगा...हमने लोरी सुनने की उम्र में मां की लोरीयों के साथ साथ आप के वही गीत सुने, बड़े होने पर शोखी भरे गीत..आगे चल कर हमें जीवन की सीख, अच्छे-बुरे रास्ते की पहचान दिखाने वाले गीत, फिर और आगे चले तो वे गीत सुनने लगें जिन में ज़िंदगी का मक़सद पता चलता है ...अभी इन गीतों को समझ कर आत्मसात करने की कोशिश ही कर रहे थे कि आप तो चली ही गईं....
अलविदा ...
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