आप भी सोच कर हंस रहे होंगे कि अब यह ईमानदारी वाली खुशबू का डियो कहां से ले आया हो आज मियां...मुझे भी नहीं पता दरअसल...लेकिन यह खुशबू कईं बार हमें अपने आप मिल ही जाती है...तब ध्यान आता है, अरे, यह तो ईमानदारी वाली खुशबू थी।
ईमानदारी का मतलब बस केवल अपने आप से ईमानदारी है...क्योंकि कोई ऐसा तराजू बना ही नहीं और न ही बन पाएगा जो किसी की ईमानदारी को तोल पाए...यह नामुमकिन है...बस, हमें खुद को ही सब कुछ पता होता है ...और यह खुशबू फैल ही जाती है।
आप कहीं भी जाइए, आप तक यह खुशबू पहुंच ही जायेगी...किसी अस्पताल में जाइए...वहां भी मिलेगी, बैंक में भी, डाकखाने में, स्कूल में, थियेटर में, सिनेमा में ....कहने का मतलब कहीं भी ...इस की न तो कोई परिभाषा है, न ही कोई रैसिपि है...बस, या तो यह है या नहीं है..that's all!
उस दिन मैंने एक पोस्टमास्टर को कहा (लेकिन फिर भी वह टस से मस नहीं हुआ...और उसने ना ही काम किया) कि इस डाकखाने में आते हुए अब डर लगने लगा है ...पता नहीं क्या कह के दौड़ा दिया जाए ..कि आज नहीं होगा यह काम..प्रिंटर ठीक नहीं है, अभी कोई दूसरा काम चल रहा है, या सर्वर स्लो है...और अकसर यह सब कहा भी इतने रूखे ढंग से जाता है कि मेरे जैसे इंसान का को फिर से उधर रुख करने को मन ही नहीं करता....बैंकों में भी बहुत बार ऐसा ही होने लगा है ..प्रिंटर नहीं है ठीक, आज प्रिंट करने वाला नहीं है, नेटवर्क में प्राबल्म है...यही आम सी बातें हैं..
इस की तुलना में खुशगवार फिज़ाओं की बात करें...ऐसे कर्मचारी जो मुस्कुराते हुए आने वाले का स्वागत करें, आने वाले को लगे कि यार, मैं यहां पर Welcome हूं....मैंने यहां आकर कोई गलती नहीं की....होते हैं, हर दफ्तर में, हर सरकारी दफ्तर में, हर अस्पताल में.....हर जगह ऐसे भी लोग मिलते हैं।
अपने अतीत में देखता हूं तो याद करता हूं ऐसे बहुत से चिकित्सकों को भी जिन के पास जा कर ही मरीज़ को लगता है कि अब तो बच ही जाएंगे, उन की body language, उन की कार्यदक्षता, बातचीत का ढंग, व्यवहार, आत्मीयता.....सब के नंबर हैं.....लेिकन छुपे हुए हैं....कहीं न कहीं बिना किसी की नॉलेज के मूल्यांकन हो रहा है...सीधी सीधी सी बात यह है कि खुशगवार फिज़ा का मतलब बस इतना है कि डाक्टर के पास पहुंचते ही मरीज़ को राहत की अनुभूति हो, दवाई तो बाद में असर करेगी....वह अलग बात है, लेकिन पहली बात है ईमानदारी वाली खुशबू.....ईमानदारी से यहां मेरा मतलब यही है कि जो हम सच में अनुभव कर रहे होते हैं उस बात को सामने वाले तक ईमानदारी से पहुंचा देना....लेिकन, पूरी एहतियात के साथ.......because...we are dealing with very fragile minds and frayed souls!
यह इतनी फिलासफी मैंने पता नहीं क्यों झाड़ दी, लेकिन इस के पीछे भी एक कारण तो है....आज शाम को मैंने लैपटाप पर जैसे ही यू-ट्यूब लगाया तो सामने ही मेरी नज़र राज्यसभा के गुफ्तगू प्रोग्राम के विभिन्न एपीसोड्स पर पड़ी...कुछ अरसा पहले मैं सुबह उठ कर इन में से एक दो एपीसोड्स देखा करता था ....ऐसे प्रोग्रामों का महत्व मेरे लिए किसी प्रवचन से भी कहीं ज़्यादा बढ़ कर है, यह मेरी व्यक्तिगत राय हो सकती है।
मैं डी डी न्यूज़ पर हर हफ्ते आने वाले टोटल हैल्थ प्रोग्राम की तारीफ़ तो अपने ब्लॉग पर बहुत बार करता ही रहता हूं...वैसे तो मैंने राज्यसभी चैनल के गुफ्तगू प्रोग्राम के बारे में भी बहुत बार लिखा है...लेिकन जब भी मैं इस पर कोई भी ऐपीसोड देखता हूं तो बस उसी समय उस के बारे में लिखना शुरू कर देता हूं....
सुरेखा सीकरी जी का इंटरव्यू
आज भी यही हुआ...आज सुरेखा सीकरी जी की इंटरव्यू देखने का मौका मिला....मैं तो इन के फन का हमेशा से कायल रहा ही हूं.....आप देखिएगा इस इंटरव्यू में कि कितनी ईमानदारी से इसे रिकार्ड किया गया है....इस प्रोग्राम में सभी एपीसोड ऐसे ही हैं, एक से एक बढ़ कर ....ईमानदारी की खुशबू से लबरेज...
अकसर सुरेखा सीकरी जी को आप विभिन्न सोप-अोपेराज़ में देखते ही रहते होंगे....इन्होंने टीवी और फिल्मों में बहुत काम किया है.....मुझे अभी प्रेम चंद की कहानी ईदगाह का ध्यान आ रहा है जिस में इन्होंने एक छोटे बच्चे की दादी का किरदार किया है....बहुत बढ़िया किरदार था इन का वह भी ... काबिले-तारीफ़...यह ईदगाह कहानी का टीवी रूपांतर भी दूरदर्शन ने ही बनाया था....
ईदगाह कहानी ऐसी जिसे बार बार देखने का मन चाहता है...
मैं ऐसा मानता हूं कि जितने भी बेहतरीन इस तरह के प्रोग्राम है ...जमीन से, लोगों से जुड़े हुए, जो जोड़ने की बात करते हैं, वे सभी इस तरह के सरकारी चैनल ही बना सकते हैं... क्योंकि ये लोग इस तरह के प्रोग्राम एक सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत कर रहे हैं, इन का कोई कमर्शियल इंट्रेस्ट नहीं है....लेकिन मुझे कईं बार यह भी लगता है कि ये उतने लोगों तक पहुंच नहीं पाते, जितने लोगों तक इन्हें पहुंचना चाहिए...
यह जो राज्यसभी टीवी पर गुफ्तगू प्रोग्राम प्रसारित होता है यह हर रविवार की रात में १०.३० बजे आता है...मैंने भी शायद ही इसे कभी लाइव देखा हो, लेकिन राज्यसभी के यू-ट्यूब चैनल पर इस के विभिन्न एपीसोड अपलोड हुए हैं ...मैं इन्हें वहीं देख लेता हूं अकसर.
आज मैं सुरेखा सीकरी जी के इंटरव्यू को देखते हुए यह सोच रहा था....कि इस तरह के प्रोग्रामों को को स्कूलों कालेजों में भी दिखाया जाना चाहिए... ताकि बच्चों को इस तरह की शख्शियतों की बात चीत से, उन से साथ हो रही गुफ्तगू से भी प्रेरणा मिल सके.....बच्चे यह भी सीख पाएँ कि ईमानदारी से अपनी बात को कैसे रखा जाता है! मैं ऐसा सोचता हूं।
जो लोग इस तरह के प्रोग्राम में बुलाए जाते हैं ..किसी भी फील्ड से हों, इन लोगों ने अपना पूरा जीवन अपने पेशे के नाम कर दिया होता है...ज़रूरत है इन के अनुभव से कुछ ग्रहण कर लेने की..
अब कितनी तारीफ़ करूं, मेरे पास तो शब्द ही खत्म हो गए.... लेिकन एक दो बातें अभी शेयर करनी हैं... पहली बात तो यही कि ज़रूरी नहीं कि हमें देश के चंद आठ-दस-बीस नेताओं की ही बातें करनी हैं या उन के ही इंटरव्यू देखने-दिखाने हैं हर समय...बिल्कुल वैसे ही जैसे डाक-टिकटें केवल आठ दस नेताओं की फोटो वाली ही नहीं चाहिए, इस महान देश के हर शहर में, हर गांव में, हर नुक्कड़ पर महान् लोग गुदड़ी के लाल की तरह छिपे हुए हैं......बस, उन से मिलने की देर है, उन से बात करने की बात है...बदलाव ही प्रकृति का नियम है.....डाकटिकटों के बारे में तो मैंने पिछले महीनों इतना कुछ पढ़ा कि वहां पर भी किस तरह की राजनीति होती है ...आप भी सब जानते ही हैं.... इसलिए कुछ दिन पहले मैं एक पोस्ट ऑफिस में गया तो मैंने भी कुछ डाकटिकटें खरीद लीं. मुझे ज़रूरत भी नहीं थी ...लेिकन उस पर लिखा मैसेज इतना बढ़िया लगा कि मैंने ये खरीद लीं...यही होना चाहिए, इतने सामाजिक एवं जनोपयोगी संदेश हैं, जिन के प्रचार प्रसार के लिए इन डाक टिकटों का इस्तेमाल होना चाहिए......फिज़ा खुशगवार हो तो रही है, आगे देखते हैं कैसे रहता है!
ईमानदारी वाली खुशबू की बात को विराम भी सिने तारिका साधना जी को याद कर के ही देते हैं....दो दिन पहले जब उन के स्वर्गवास का पता चला तो बेटा कहने लगा कि बापू की फेवरेट एक्सट्रेस.....सच में हमारे स्कूल के दौर में साधना जी ने बहुत एंटरटेन किया....एक नेक रूह थीं वह ...ईश्वर उन की आत्मा को शांित प्रदान करे..
ईमानदारी का मतलब बस केवल अपने आप से ईमानदारी है...क्योंकि कोई ऐसा तराजू बना ही नहीं और न ही बन पाएगा जो किसी की ईमानदारी को तोल पाए...यह नामुमकिन है...बस, हमें खुद को ही सब कुछ पता होता है ...और यह खुशबू फैल ही जाती है।
आप कहीं भी जाइए, आप तक यह खुशबू पहुंच ही जायेगी...किसी अस्पताल में जाइए...वहां भी मिलेगी, बैंक में भी, डाकखाने में, स्कूल में, थियेटर में, सिनेमा में ....कहने का मतलब कहीं भी ...इस की न तो कोई परिभाषा है, न ही कोई रैसिपि है...बस, या तो यह है या नहीं है..that's all!
उस दिन मैंने एक पोस्टमास्टर को कहा (लेकिन फिर भी वह टस से मस नहीं हुआ...और उसने ना ही काम किया) कि इस डाकखाने में आते हुए अब डर लगने लगा है ...पता नहीं क्या कह के दौड़ा दिया जाए ..कि आज नहीं होगा यह काम..प्रिंटर ठीक नहीं है, अभी कोई दूसरा काम चल रहा है, या सर्वर स्लो है...और अकसर यह सब कहा भी इतने रूखे ढंग से जाता है कि मेरे जैसे इंसान का को फिर से उधर रुख करने को मन ही नहीं करता....बैंकों में भी बहुत बार ऐसा ही होने लगा है ..प्रिंटर नहीं है ठीक, आज प्रिंट करने वाला नहीं है, नेटवर्क में प्राबल्म है...यही आम सी बातें हैं..
इस की तुलना में खुशगवार फिज़ाओं की बात करें...ऐसे कर्मचारी जो मुस्कुराते हुए आने वाले का स्वागत करें, आने वाले को लगे कि यार, मैं यहां पर Welcome हूं....मैंने यहां आकर कोई गलती नहीं की....होते हैं, हर दफ्तर में, हर सरकारी दफ्तर में, हर अस्पताल में.....हर जगह ऐसे भी लोग मिलते हैं।
अपने अतीत में देखता हूं तो याद करता हूं ऐसे बहुत से चिकित्सकों को भी जिन के पास जा कर ही मरीज़ को लगता है कि अब तो बच ही जाएंगे, उन की body language, उन की कार्यदक्षता, बातचीत का ढंग, व्यवहार, आत्मीयता.....सब के नंबर हैं.....लेिकन छुपे हुए हैं....कहीं न कहीं बिना किसी की नॉलेज के मूल्यांकन हो रहा है...सीधी सीधी सी बात यह है कि खुशगवार फिज़ा का मतलब बस इतना है कि डाक्टर के पास पहुंचते ही मरीज़ को राहत की अनुभूति हो, दवाई तो बाद में असर करेगी....वह अलग बात है, लेकिन पहली बात है ईमानदारी वाली खुशबू.....ईमानदारी से यहां मेरा मतलब यही है कि जो हम सच में अनुभव कर रहे होते हैं उस बात को सामने वाले तक ईमानदारी से पहुंचा देना....लेिकन, पूरी एहतियात के साथ.......because...we are dealing with very fragile minds and frayed souls!
यह इतनी फिलासफी मैंने पता नहीं क्यों झाड़ दी, लेकिन इस के पीछे भी एक कारण तो है....आज शाम को मैंने लैपटाप पर जैसे ही यू-ट्यूब लगाया तो सामने ही मेरी नज़र राज्यसभा के गुफ्तगू प्रोग्राम के विभिन्न एपीसोड्स पर पड़ी...कुछ अरसा पहले मैं सुबह उठ कर इन में से एक दो एपीसोड्स देखा करता था ....ऐसे प्रोग्रामों का महत्व मेरे लिए किसी प्रवचन से भी कहीं ज़्यादा बढ़ कर है, यह मेरी व्यक्तिगत राय हो सकती है।
मैं डी डी न्यूज़ पर हर हफ्ते आने वाले टोटल हैल्थ प्रोग्राम की तारीफ़ तो अपने ब्लॉग पर बहुत बार करता ही रहता हूं...वैसे तो मैंने राज्यसभी चैनल के गुफ्तगू प्रोग्राम के बारे में भी बहुत बार लिखा है...लेिकन जब भी मैं इस पर कोई भी ऐपीसोड देखता हूं तो बस उसी समय उस के बारे में लिखना शुरू कर देता हूं....
सुरेखा सीकरी जी का इंटरव्यू
आज भी यही हुआ...आज सुरेखा सीकरी जी की इंटरव्यू देखने का मौका मिला....मैं तो इन के फन का हमेशा से कायल रहा ही हूं.....आप देखिएगा इस इंटरव्यू में कि कितनी ईमानदारी से इसे रिकार्ड किया गया है....इस प्रोग्राम में सभी एपीसोड ऐसे ही हैं, एक से एक बढ़ कर ....ईमानदारी की खुशबू से लबरेज...
अकसर सुरेखा सीकरी जी को आप विभिन्न सोप-अोपेराज़ में देखते ही रहते होंगे....इन्होंने टीवी और फिल्मों में बहुत काम किया है.....मुझे अभी प्रेम चंद की कहानी ईदगाह का ध्यान आ रहा है जिस में इन्होंने एक छोटे बच्चे की दादी का किरदार किया है....बहुत बढ़िया किरदार था इन का वह भी ... काबिले-तारीफ़...यह ईदगाह कहानी का टीवी रूपांतर भी दूरदर्शन ने ही बनाया था....
ईदगाह कहानी ऐसी जिसे बार बार देखने का मन चाहता है...
मैं ऐसा मानता हूं कि जितने भी बेहतरीन इस तरह के प्रोग्राम है ...जमीन से, लोगों से जुड़े हुए, जो जोड़ने की बात करते हैं, वे सभी इस तरह के सरकारी चैनल ही बना सकते हैं... क्योंकि ये लोग इस तरह के प्रोग्राम एक सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत कर रहे हैं, इन का कोई कमर्शियल इंट्रेस्ट नहीं है....लेकिन मुझे कईं बार यह भी लगता है कि ये उतने लोगों तक पहुंच नहीं पाते, जितने लोगों तक इन्हें पहुंचना चाहिए...
यह जो राज्यसभी टीवी पर गुफ्तगू प्रोग्राम प्रसारित होता है यह हर रविवार की रात में १०.३० बजे आता है...मैंने भी शायद ही इसे कभी लाइव देखा हो, लेकिन राज्यसभी के यू-ट्यूब चैनल पर इस के विभिन्न एपीसोड अपलोड हुए हैं ...मैं इन्हें वहीं देख लेता हूं अकसर.
आज मैं सुरेखा सीकरी जी के इंटरव्यू को देखते हुए यह सोच रहा था....कि इस तरह के प्रोग्रामों को को स्कूलों कालेजों में भी दिखाया जाना चाहिए... ताकि बच्चों को इस तरह की शख्शियतों की बात चीत से, उन से साथ हो रही गुफ्तगू से भी प्रेरणा मिल सके.....बच्चे यह भी सीख पाएँ कि ईमानदारी से अपनी बात को कैसे रखा जाता है! मैं ऐसा सोचता हूं।
जो लोग इस तरह के प्रोग्राम में बुलाए जाते हैं ..किसी भी फील्ड से हों, इन लोगों ने अपना पूरा जीवन अपने पेशे के नाम कर दिया होता है...ज़रूरत है इन के अनुभव से कुछ ग्रहण कर लेने की..
अब कितनी तारीफ़ करूं, मेरे पास तो शब्द ही खत्म हो गए.... लेिकन एक दो बातें अभी शेयर करनी हैं... पहली बात तो यही कि ज़रूरी नहीं कि हमें देश के चंद आठ-दस-बीस नेताओं की ही बातें करनी हैं या उन के ही इंटरव्यू देखने-दिखाने हैं हर समय...बिल्कुल वैसे ही जैसे डाक-टिकटें केवल आठ दस नेताओं की फोटो वाली ही नहीं चाहिए, इस महान देश के हर शहर में, हर गांव में, हर नुक्कड़ पर महान् लोग गुदड़ी के लाल की तरह छिपे हुए हैं......बस, उन से मिलने की देर है, उन से बात करने की बात है...बदलाव ही प्रकृति का नियम है.....डाकटिकटों के बारे में तो मैंने पिछले महीनों इतना कुछ पढ़ा कि वहां पर भी किस तरह की राजनीति होती है ...आप भी सब जानते ही हैं.... इसलिए कुछ दिन पहले मैं एक पोस्ट ऑफिस में गया तो मैंने भी कुछ डाकटिकटें खरीद लीं. मुझे ज़रूरत भी नहीं थी ...लेिकन उस पर लिखा मैसेज इतना बढ़िया लगा कि मैंने ये खरीद लीं...यही होना चाहिए, इतने सामाजिक एवं जनोपयोगी संदेश हैं, जिन के प्रचार प्रसार के लिए इन डाक टिकटों का इस्तेमाल होना चाहिए......फिज़ा खुशगवार हो तो रही है, आगे देखते हैं कैसे रहता है!
ईमानदारी वाली खुशबू की बात को विराम भी सिने तारिका साधना जी को याद कर के ही देते हैं....दो दिन पहले जब उन के स्वर्गवास का पता चला तो बेटा कहने लगा कि बापू की फेवरेट एक्सट्रेस.....सच में हमारे स्कूल के दौर में साधना जी ने बहुत एंटरटेन किया....एक नेक रूह थीं वह ...ईश्वर उन की आत्मा को शांित प्रदान करे..
वाह ये कहलायेगी एक मुकम्मल ब्लॉग पोस्ट , अपनी डाक्टरी विधा , गुफ्तगू , डाक टिकट से लेकर साधना जी तक ..पूरा बुलेटिन नामा लगा शैली और भाषा हमेशा की तरह चकाचक ...बांटते रहिये डाक्टर साहेब ..प्यार भी और इकरार भी , बहुत बहुत शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंझा साहब, इतनी बढ़िया हौंसलाफ़जाई पढ़ कर पहले तो मैं फूल के कुप्पा हो गया ...सच में मैं धन्य हो गया। मुझे अपनी बात और भी खुलेपन की प्रेरणा मिली। धन्यवाद....मुझे यकीन है पूरा कि आप के पास भी जो आगंतुक आते होंगे आप के कार्यस्थल पर वे भी इसी तरह की खुशबू से सरोबार हो कर जाते होंगे। पक्का भरोसा है ऐसा मुझे भी।
हटाएं