शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

साहित्य अकादमी ने भी कर दी निंदा

अभी अभी मुझे टीवी के टिक्लर पर एक न्यूज़ दिख रही है कि साहित्य अकादमी ने लेखकों की हत्या की निंदा की है और लेखकों को अपने अवार्ड वापिस लेने की अपील की है।

हम पिछले कुछ दिनों से देख रहे हैं कि ये अवार्ड लौटाने की खबरें मीडिया पर छाई रहीं...हर जगह....संपादकीय पन्नों पर रोज़ाना एक दो व्यंग्य भी दिखते रहे, संपादकीय लेख भी ...और दो एक न्यूज़ स्टोरी भी दिखती रहीं।

कोई कहता कि अवार्ड ऐसे कैसे लौटा दिया...पैसे तो वापिस किए नहीं, कोई कह रहा था कि अवार्ड के साथ जो इतनी प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है ..वह कैसे लौटाएंगे....हर भारतीय भाषा में किताब छप जाती है जिसे साहित्य अकादमी अवार्ड मिल गया है....और एक बार ऐसा अवार्ड जिसे मिल जाता है जिस के साथ इतनी प्रतिष्ठा जुड़ी रहती है, उस की वजह से इन लेखकों को बहुत सी कमेटियों के सदस्यों के रूप में विदेश यात्राएं करने का भी अवसर मिल जाता है...ऐसी बहुत सी बातें मुझे पढ़ने सुनने का मौका मिला..

और हां, मुनव्वर राना के नाम पर भी खूब बातें हुईं कि पहले तो इन्होंने अवार्ड वापिस देने वालों के फैसले को ठीक नहीं ठहराया...फिर अपना अवार्ड भी लौटा दिया....फिर कल की ही टाइम्स आफ इंडिया के पहले पन्ने से पता चला कि मुनव्वर राना साहब को प्रधानमंत्री मोदी ने आमंत्रित किया है...

इतने विविध लेख इस विषय पर दिखे .....आखिर हो भी क्यों ना, प्रजातंत्र है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ...

जो भी हो, मुझे तो भई कल के हिन्दुस्तान के पहले पन्ने पर मेरे फेवरेट कवि गोपाल दास नीरज जी की यह बात भा गई...बहुत सटीक बात की उन्होंने.....नीरज जी को यहां लखनऊ में अकसर देखने-सुनने का अवसर मिलता रहता है....उन के दर्शन ही हो जाना हर बार एक आध्यात्मिक अनुभव जैसा....सच...उन की किताबों के पन्ने भी कभी उलट-पलट लेता हूं...ऐसी शख्शियतों की बातें पढ़ सुन कर लगता है कि समाज में लोकमत कैसे बनाया जाता है...


मेरी तरह आप भी नीरज जी की इस बात को हमेशा ध्यान में रखिएगा.

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