शनिवार, 25 जून 2011

अस्पतालों के वेटिंग एरिया का वातावरण

अस्पतालों के वेटिंग एरिया की तरफ़ शायद इतना ध्यान दिया नहीं जाता। मैंने अपने एक लेख में लिखा था कि अकसर अस्पतालों में आप्रेशन के द्वारा निकाली गई रसौलीयां या ट्यूमर आदि का प्रदर्शन वेटिंग एरिया में किया जाता है।

एक बार एक महिला रोग विशेषज्ञ के यहां बहुत से कांच के मर्तबान देख कर बहुत अचंभा हुआ ---और इनमें सब तरह के स्पैसीमैंस भरे हुये थे.... हम स्वयं से अनुमान लगा सकते हैं कि वहां जाने वाला एक मरीज़ इन सब को देख कर कितनी सहजता अनुभव कर पाता होगा।

आज से 15-20 साल पहले मुझे लगता था कि हैल्थ-ऐजुकेशन के लिये अस्पतालों के वेटिंग एरिया एक अच्छा स्थान है। लेकिन अब मेरी यह राय बदलने लगी है।

एक अस्पताल में देखा – एक विदेशी परिवेश में एक महिला की तस्वीर लगी हुई थी और साथ में मीनूपाज़ के ऊपर बहुत लंबा चौडा लिखा हुआ था –बिलकुल छोटा छोटा प्रिंट और भारी भरकम अंग्रेज़ी –अब कौन पढ़े इस सब को नज़र का चश्मा गढ़ा के। मैंने तो कभी इन पोस्टरों को किसी को पढ़ते देखा नहीं।

और भी कईं तरह के पोस्टर लगे थे ...सब के सब अंग्रेज़ी में.. एक तो ओसटियोपोरोसिस का पोस्टर ज़रूर हर जगह लगा दिखता है ---कि सब लोग इसके लिये ज़ूरूर अपनी जांच करवाएं। और साथ में एक बड़ा सा पोस्टर की हृदय की नाड़ीयों का बहाव कैसे रूकता है और कैसे हार्ट अटैक होता है। सब कुछ इतनी जटिल अंग्रेज़ी भाषा में दिखता है कि पहले तो कोई इन सब को पढ़ने के लिये उठे ही नहीं और और अगर उठ भी जाए तो दो मिनट में सिर दुखने लगे।

एक बात और भी है कि इन विज्ञापनों के पीछे मार्कीट शक्तियों का भी बहुत हाथ रहता है। अकसर इन पोस्टरों पर तरह तरह की दवाईयों अथवा सप्लीमैंट्स के विज्ञापन भी छपे रहते हैं। ओवरआल कुछ मज़ा सा नहीं आता यह सब देख कर।

हां, कईं जगह पर टीवी पर वही घिसी पिटी हिंदी मसाला मूवी ऊंची आवाज़ में लगी होती हैं..... वेटिंग रूम में इंतज़ार करने वालों की दशा एक सी कहां होती है ---किसी के मरीज़ के हालत की बिगड़ रही होती है, किसी की ठीक हो रही होती है, किसी के परिजन को डाक्टर ने जवाब दे दिया है .....ऐसे में कहां किसी को गोबिंदा या जलेबीबाई का नृत्य भाएगा।

मेरे विचार में अकसर जो थोड़ी बहुत जानकारी हम लोग जनता तक पहुंचाना चाहते हैं वह या तो हिंदी भाषी में होनी चाहिये ----बिल्कुल हल्की भाषा में – और क्षेत्रीय भाषा का भी सहारा लिया जा सकता है। बड़े शहरों में इस के साथ साथ अंग्रेज़ी का सहारा भी लिया जा सकता है। इस के अलावा कुछ भी केवल डराने का काम करता है।

मैंने अपने एक पुराने लेख में लिखा था कि बंबई के एक चिकित्सक के यहां मैंने एक बार यह पोस्टर देखा था ...
Seek the will of God
Nothing More
Nothing less
Nothing else


इस तरह के पोस्टर देख कर अच्छा लगता है। और अगर इन जगहों पर सुंदर पोस्टर लगाये जा सकें जो सहजता कायम रखने में मदद करें। ध्यान आ रहा है नन्हे मुन्ने बच्चों के हंसते-किलकारियां मारते हुये पोस्टरों का – एक पोस्टर और भी दिखता है कि जिन में एक नंग-धडंग शिशु ने अपने मुंह पर अंगुली रखी हुई है, साथ में लिखा है ...silence. और तरह तरह की प्राकृतिक दृश्यों को वेटिंग रूम में लगाया जा सकता है –बर्फ से ढके पर्वत, झरने, घने जंगल, समुंद्र का नज़ारा------कितने नज़ारे हैं इस संसार में....इन सब से इंतज़ार करने वाले लोगों का ध्यान बंटता है ....वे थोडा रिलैक्स कर पाते हैं।

और देवी देवताओं की तस्वीरें --- मुझे इस में थोड़ी आपत्ति है--- 36 करोड़ देवी देवताओं को मानने वाले इस देश में किस किस को दीवारों पर सजाएंगे, जिस किसी के भी इष्ट-देव उस प्रतीक्षालय में लगे नहीं दिखेंगे, वह बेचारा यूं ही किसी अनिष्ट की संभावना से परेशान होता रहेगा। इस संसार में सभी डाक्टरों का कोई धर्म नहीं होता, यह बहुत सुखद बात है.....उस के मरीज़ केवल एक मरीज़ है .....लेकिन यह उस के वेटिंग रूम में दिखना भी चाहिये। हम जिस धर्म को, धर्म-गुरू, साधु-संत-फकीर, देवी देवता को मानते हैं, यह हमारा पर्सनल मामला है.................इस का प्रदर्शन कहां ज़रूरी है। अथवा हमें अपने ऊपर धार्मिक का लेबल चिपका कर क्या हासिल हो जाएगा।

मैं एक चिकित्सक को जानता हूं उस ने अपनी सभी अंगलियों में तरह तरह की अंगुठियां, नग आदि पहने हुये हैं......हम लोग कईं बार उस के बारे में सोच कर बहुत हंसते हैं ...और तो और देवी देवताओं की अनेकों अनेकों तस्वीरें भी उस ने अपने कमरे में टांग रखी हैं ...लेकिन फिर भी ............चलिये, इस बात को इधर ही छोड़ते हैं।

डाक्टर अगर स्वयं ही इस तरह की अंध-श्रद्धा में विश्वास रखता दिखाई देगा तो जादू, टोनो, तांत्रिकों, झाड़-फूंक, भूत-प्रेतों जैसे अंधविश्वासों से जकड़े हुये आम आदमी का क्या होगा......कुछ चीज़ें हमें जान बूझ कर इस आम आदमी के हितों को ध्यान में रख कर करनी होती हैं और कुछ इन्हीं कारणों से नहीं करनी होतीं......ताकि लोगों तक संदेश ठीक पहुंचे।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आप का लेख हमेशा ही समाज के लिए एक अच्छा सन्देश होता है |
    शुभकामनायें !

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  2. वेटिंग रुम में सरल भाषा में कोई बात हो तो उससे कुछ नई जानकारी या कुछ नया सीखने को मिल सकता है। मुझे याद है पहले मैं दाँत में कोई चीज फंसने पर सुई से निकालता था, एक डेंटिस्ट के वेटिंग रुम में मैंने धागे से फंसे हुये को निकालने के बारे में पढ़ा और अब मैं यही करता हूँ।

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  3. bahut acchhi vicharneey post. kash bahut se dr. ya hospital owner is post ko padh paaye aur sudarh ho sake.

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  4. bahut achchi saarthak post.choti choti baaton ko bhi aapne observ kiyaa aur apni post main dalaa hai.achcha lagaa padhker,badhaai

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  5. सामयिक और महत्तवपूर्ण तथ्यों को उदघाटन करता हुआ लेख...बहुत अच्छा

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