मैं अकसर लोगों से ईमानदारी से यह शेयर करता हूं ..कि मैंने भी इंटर तक फिजिक्स, कैमिस्ट्री पढ़ी है ... लेकिन अगर आज के दौर में पढ़ाई जाने वाली फिजिक्स-कैमिस्ट्री का पेपर मेरे को दे दिया जाए तो मुझे या तो शून्य मिलेगा या फिर दो तीन नंबर मैं शायद कैमिस्ट्री में ले पाऊं...पूरी सच्चाई से यह बात कर रहा हूं...अकसर मैं बेटे के बोर्ड के पेपर देख कर सारी केलकुलेशन करने के बाद ही इस तरह का ब्यान दिया करता था.
जो है सो है, सच्चाई मानने में कभी हिचकिचाहट हुई नहीं, जब से लिखने लगा हूं उस के बाद तो बिल्कुल भी नहीं...
आज बाद दोपहर बेटे के स्कूल में एक फंक्शन था...उसे भी सम्मानित किया जाना था....उस ने बहुत अच्छा किया है बोर्ड एग्ज़ाम में...४ बजे का टाइम था.. आज सुबह से थोड़ा सा सिर और गर्दन में दर्द हो रहा था...टेबलेट भी ली, लेकिन कुछ खास फर्क पड़ा नहीं...मुझे वहां जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं हो रही थी, मैंने बेटे को कहा कि मम्मी के साथ हो आए....लेिकन उस के चेहरे की तरफ़ देखा तो जाने का मन बनाया....फिर भी हिम्मत नहीं हुई...बेटे ने कहा, पापा, पर्ची डालते हैं......दोस्तो, यकीन मानिए हम ज़िंदगी के बहुत से फैसले पर्ची डाल कर करते हैं....यहां तक कि उसने इंजीनियरिंग करनी है या बॉयोलॉजी, यह निर्णय भी पर्ची डाल कर किया गया था।
पर्ची डाली, यैस या नो....पर्ची का फैसला था नो......लेकिन मैंने नो के बावजूद भी तुरंत कपड़े डाले और हम लोग रवाना हो गये।
वहां का वातावरण ऐसा था कि चंद मिनटों में ही मैं एकदम फिट हो गया...सिर दर्द गायब, गर्दन की ऐंठन भी पता ही नहीं चला कब ठीक हो गई।
मुझे वहां बैठे बैठे यही विचार आ रहा था कि हमारी शिक्षा व्यवस्था भी कितनी बीमार है.....ऊपर मैंने अपनी उदाहरण तो दर्ज कर ही दी है....अब इन बच्चों के जगह जगह एन्ट्रेंस एग्ज़ाम होंगे......सीबीएसई ने एक बार ले िलया न तो उस पर भरोसा कर लो, नहीं तो उस के बाद होने वाले किसी एक राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षा पर भरोसा कर लो.......उस के अनुसार सारे देश की संस्थाएं अपनी सीटें भर लें।
सभी छात्रों के लिए भी यह कितना आरामदायक होगा.......अब दर्जनों टेस्ट हैं, हर जगह इन की फीसें, तरह तरह की औपचारिकताएँ, फिर परीक्षाएं...फिर इंतज़ार, फिर काउंसलिंग......बच्चों के साथ साथ मां बाप की भी अच्छी खासी रेल बन जाती है।
इतने सारे टेस्ट देख कर यही लगने लगता है कि शायद इन को एक दूसरे के टेस्ट पर भरोसा ही नहीं है...इतना अविश्वास का वातावरण तो है ही .....वैसे हरेक ने अपनी दुकान भी तो चलानी है।
प्लस टू और कोचिंग ......ये तो जैसे एक दूसरे के पूरक बन गये हैं.....अगर आपने प्लस टू की बोर्ड की परीक्षा में ९९ प्रतिशत भी ले लिए अपने बलबूते पर.....लेिकन अगर आपने कोचिंग नहीं की.......तो आप लगभग यह मान ही लें कि आप किसी प्रवेश परीक्षा में अच्छा कर ही नहीं पाएंगे।
यह बड़ी बदकिस्मती है ......कोई ऐसा नियम बन जाए कि प्लस-टू की परीक्षा खत्म ही कर दो.......दसवीं के बाद कह दो बच्चों को कहीं से भी पढ़ो. .दो साल बाद तुम लोगों की परीक्षा होगी.....तब तक कोचिंग करो...जहां चाहो, पढ़ो....कुछ भी करो.....बस, पेपर आप लोगों का दो साल बाद होगा।
जितना मजाक आज की तारीख में प्लस-टू का बन रहा है, उतना तो कभी न था....लोग कोटा, दिल्ली, चंडीगढ़ जा कर कोचिंग करते हैं, छोटे शहरों में डम्मी एडमिशन ले लेते हैं.....ताकि प्लस टू के पेपर दे सकें, लेिकन कोचिंग अागे की प्रवेश परीक्षाओं के लिए होती है......मेरे घर के सामने एक छठी कक्षा का लड़का पड़ता है....एक दिन फिट्जी की वेन में बैठ रहा था....मुझे पता चला कि उसने छठी से ही फिट्जी की कोचिंग शुरू कर दी है...यह कोचिंग आठवीं और नवीं कक्षा से तो बहुत से लोग करने लगे हैं।
मुझे शिकायत है इस तरह के परीक्षा के पेटर्न से जो इस तरह की कोचिंग को बढ़ावा देते हैं....इस से आर्थिक तौर पर मेधावी छात्र-छात्राओं के भविष्य पर आंच आती है.....बहुत से लोग जो इस तरह की एक एक लाख की कोचिंग ज्वाइन नहीं कर पाते...वे इंटेलीजेंट होते हुए भी इन परीक्षाओं में पीछे रह जाते हैं......
कौन बदलेगा यार इस व्यवस्था को.....किसी को को आवाज़ उठानी होगी.......इस सड़न को कौन खत्म करेगा.....मुझे भी नहीं पता......लेकिन इस का इलाज होना ज़रूरी है!
बस हम यही मान कर चुप हो जाते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बीमार है, बहुत बीमार है...अब इस का इलाज हो जाना चाहिए......इंत्हा हो चुकी है। मुझे तो यही लगने लगा है कि अगर कुछ सजग बच्चे, उन के मां-बाप कोर्ट कचहरी नहीं जाएं तो घोर अनर्थ हो जाए.....पेपरों में जालसाजी, धोखाधड़ी करने वाले दिनप्रतिदिन तेज़-तर्रार होते जा रहे हैं...कंपीटिशन बढ़ता जा रहा है...
पता नहीं कुछ और होगा कि नहीं होगा, मैं अपने दिल की बातें िलख कर हल्का महसूस कर रहा हूं...जो भी हो, दोस्तो, बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी!
जो है सो है, सच्चाई मानने में कभी हिचकिचाहट हुई नहीं, जब से लिखने लगा हूं उस के बाद तो बिल्कुल भी नहीं...
आज बाद दोपहर बेटे के स्कूल में एक फंक्शन था...उसे भी सम्मानित किया जाना था....उस ने बहुत अच्छा किया है बोर्ड एग्ज़ाम में...४ बजे का टाइम था.. आज सुबह से थोड़ा सा सिर और गर्दन में दर्द हो रहा था...टेबलेट भी ली, लेकिन कुछ खास फर्क पड़ा नहीं...मुझे वहां जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं हो रही थी, मैंने बेटे को कहा कि मम्मी के साथ हो आए....लेिकन उस के चेहरे की तरफ़ देखा तो जाने का मन बनाया....फिर भी हिम्मत नहीं हुई...बेटे ने कहा, पापा, पर्ची डालते हैं......दोस्तो, यकीन मानिए हम ज़िंदगी के बहुत से फैसले पर्ची डाल कर करते हैं....यहां तक कि उसने इंजीनियरिंग करनी है या बॉयोलॉजी, यह निर्णय भी पर्ची डाल कर किया गया था।
पर्ची डाली, यैस या नो....पर्ची का फैसला था नो......लेकिन मैंने नो के बावजूद भी तुरंत कपड़े डाले और हम लोग रवाना हो गये।
वहां का वातावरण ऐसा था कि चंद मिनटों में ही मैं एकदम फिट हो गया...सिर दर्द गायब, गर्दन की ऐंठन भी पता ही नहीं चला कब ठीक हो गई।
मुझे वहां बैठे बैठे यही विचार आ रहा था कि हमारी शिक्षा व्यवस्था भी कितनी बीमार है.....ऊपर मैंने अपनी उदाहरण तो दर्ज कर ही दी है....अब इन बच्चों के जगह जगह एन्ट्रेंस एग्ज़ाम होंगे......सीबीएसई ने एक बार ले िलया न तो उस पर भरोसा कर लो, नहीं तो उस के बाद होने वाले किसी एक राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षा पर भरोसा कर लो.......उस के अनुसार सारे देश की संस्थाएं अपनी सीटें भर लें।
सभी छात्रों के लिए भी यह कितना आरामदायक होगा.......अब दर्जनों टेस्ट हैं, हर जगह इन की फीसें, तरह तरह की औपचारिकताएँ, फिर परीक्षाएं...फिर इंतज़ार, फिर काउंसलिंग......बच्चों के साथ साथ मां बाप की भी अच्छी खासी रेल बन जाती है।
इतने सारे टेस्ट देख कर यही लगने लगता है कि शायद इन को एक दूसरे के टेस्ट पर भरोसा ही नहीं है...इतना अविश्वास का वातावरण तो है ही .....वैसे हरेक ने अपनी दुकान भी तो चलानी है।
प्लस टू और कोचिंग ......ये तो जैसे एक दूसरे के पूरक बन गये हैं.....अगर आपने प्लस टू की बोर्ड की परीक्षा में ९९ प्रतिशत भी ले लिए अपने बलबूते पर.....लेिकन अगर आपने कोचिंग नहीं की.......तो आप लगभग यह मान ही लें कि आप किसी प्रवेश परीक्षा में अच्छा कर ही नहीं पाएंगे।
यह बड़ी बदकिस्मती है ......कोई ऐसा नियम बन जाए कि प्लस-टू की परीक्षा खत्म ही कर दो.......दसवीं के बाद कह दो बच्चों को कहीं से भी पढ़ो. .दो साल बाद तुम लोगों की परीक्षा होगी.....तब तक कोचिंग करो...जहां चाहो, पढ़ो....कुछ भी करो.....बस, पेपर आप लोगों का दो साल बाद होगा।
जितना मजाक आज की तारीख में प्लस-टू का बन रहा है, उतना तो कभी न था....लोग कोटा, दिल्ली, चंडीगढ़ जा कर कोचिंग करते हैं, छोटे शहरों में डम्मी एडमिशन ले लेते हैं.....ताकि प्लस टू के पेपर दे सकें, लेिकन कोचिंग अागे की प्रवेश परीक्षाओं के लिए होती है......मेरे घर के सामने एक छठी कक्षा का लड़का पड़ता है....एक दिन फिट्जी की वेन में बैठ रहा था....मुझे पता चला कि उसने छठी से ही फिट्जी की कोचिंग शुरू कर दी है...यह कोचिंग आठवीं और नवीं कक्षा से तो बहुत से लोग करने लगे हैं।
मुझे शिकायत है इस तरह के परीक्षा के पेटर्न से जो इस तरह की कोचिंग को बढ़ावा देते हैं....इस से आर्थिक तौर पर मेधावी छात्र-छात्राओं के भविष्य पर आंच आती है.....बहुत से लोग जो इस तरह की एक एक लाख की कोचिंग ज्वाइन नहीं कर पाते...वे इंटेलीजेंट होते हुए भी इन परीक्षाओं में पीछे रह जाते हैं......
कौन बदलेगा यार इस व्यवस्था को.....किसी को को आवाज़ उठानी होगी.......इस सड़न को कौन खत्म करेगा.....मुझे भी नहीं पता......लेकिन इस का इलाज होना ज़रूरी है!
बस हम यही मान कर चुप हो जाते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बीमार है, बहुत बीमार है...अब इस का इलाज हो जाना चाहिए......इंत्हा हो चुकी है। मुझे तो यही लगने लगा है कि अगर कुछ सजग बच्चे, उन के मां-बाप कोर्ट कचहरी नहीं जाएं तो घोर अनर्थ हो जाए.....पेपरों में जालसाजी, धोखाधड़ी करने वाले दिनप्रतिदिन तेज़-तर्रार होते जा रहे हैं...कंपीटिशन बढ़ता जा रहा है...
पता नहीं कुछ और होगा कि नहीं होगा, मैं अपने दिल की बातें िलख कर हल्का महसूस कर रहा हूं...जो भी हो, दोस्तो, बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी!