बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

पता नहीं अब हमारे सादे पान-मसाले पर क्यों डाक्टर अपनी डाक्टरी झाड़ रहे हैं !


अभी मैं अपना लैप-टाप खोल कर स्टडी-रूममें बैठ कर सोच ही रहा था कि आज किस विषय पर पोस्ट लिखूं कि अचानक बेटे ने मेरी टेबल के सामने लगे बोर्ड पर लगे एक विज्ञापन की कटिंग को देखते हुए कहा कि पापा, यह विज्ञापन मैंने भी देखा था, बड़ा अजीब लगा था।


क्योंकि इस पान मसाले में है.....अव्वल दर्जे का कत्था(रू800प्रतिकिलो) , पवित्र चंदन(रू60000-66000प्रतिकिलो),रूह केवड़ा(रू3लाख प्रतिकिलो), ज़ायकेदार इलायची(रू450प्रतिकिलो), प्रोसैस्ड सुपारी(रू200-225प्रतिकिलो), 0%तम्बाकू(तम्बाकू के रूप में नहीं)................यह विज्ञापन किसी हिंदी के समाचार-पत्र में छपा था। अब कोई भी बंदा इतना लुभावना विज्ञापन देखने के बाद भला क्यों करेगा गुरेज़ मुंह में दो-तीन पानमसाले के पाउच उंडेलने से। और ऊपर से यह 0% तम्बाकू वाली बात ....भई यह सब कुछ लिखा हो तो पानमसाले की धूम आखिर क्यों न मचे। वैसे वो 0% तम्बाकू- तम्बाकू के रूप में नहीं वाली बात तो मेरी समझ में भी नहीं आई...........।


लेकिन यह पानमसाला खाना भी हमारी सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक है। आप ही सोचिए कि अगर ऐसा न हो तो क्यों विज्ञापन के एक कोने में यह चेतावनी भी लिखी हो....पानमसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। वैसे वो बात दूसरी है कि उसे लिखा कुछ इस तरह से होता है कि उसे पहले तो कोई ढूंढ ही न पाये और अगर गलती से ढूंढ ले भी तो बंदा पढ़ ही न पाये।


जी हां, पानमसाला चबाना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इस में मौजूद सुपारी को मुंह के कैंसर की एक पूर्व-अवस्था सब-मयूक्स फाईब्रोसिस( submucous fibrosis) के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और यह वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध भी हो चुका है.....


छोटे छोटे कॉलजियेट लड़कों को दो-पहिया वाहनों पर चढ़े-चढ़े नुक्कड़ वाले पनवाड़ी की दुकान के ठीक सामने वाले फुटपाथ पर पानमसाले के दो तीन पाउच इक्ट्ठे ही मुंह में उंडेलते हुए बेहद दुःख होता है....यह शौक शुरू शुरू में तो रोमांचित करता होगा लेकिन बाद में जब इस की लत पक्की हो जाती है तो फिर शायद इसे छोड़ना सब के बश की बात भी नहीं होती।


ओरल-सबम्यूक्स फाईब्रोसिस की बात चली थी तो कुछ इस के बारे में बात भी की जाये...इस अवस्था में मुहं की नर्म,लचकीली चमडी़अपनी लचक खो कर, बिलकुल सख्त, चमड़े जैसी और झुर्रीदार हो जाती है, धीरे धीरे मुंह खुलना बंद हो जाता है, मुंह में घाव और छाले हो जाते हैं और मरीज़ को कुछ भी खाने में बहुत जलन होती है। यह कैंसर की पूर्वावस्था होती है और यह अवस्था किस मरीज़ में आगे चल कर मुंह के कैंसर का रूप धारण कर ले., यह कुछ नहीं कहा जा सकता । इसलिए इस अवस्था का तुरंत इलाज करवाना बहुत लाजमी है.....क्योंकि इस अवस्था में तो कईं बार मरीज का मुंह इतना कम खुलने लगता है कि वह रोटी का एक निवाला तक मुंह के अंदर नहीं रख सकता जिस के कारण उसे फिर तरल-पदार्थों पर ही ज़िंदा रहना पड़ता है या फिर सर्जरी के द्वारा मुंह खुलवाना पड़ता है और सब से...सब से ...सब से जरूरी यह कि उसे पानमसाले की लत को हमेशा के लिए लत मारनी पड़ती है।


लेकिन इस लत को लात मारने के लिए आखिर तब तक इंतजार आखिर किया ही क्यों जाये.....यह शुभ काम हमआज ही कर दें तो कितना बढ़िया होगा....आज से ही क्यों अभी से ही अपने मुंह में रखे पान-मसाले को अभी थूक दें तो क्या कहने......शाबाश.....यह हुई न बात......मोगैंबों खुश हुया।

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

ड्रा चोपडा जी,आप ने हमेशा ही बहुत उपयोगी जानकारी दी हे, ओर आप के आज के लेख मे **वैसे वो बात दूसरी है कि उसे लिखा कुछ इस तरह से होता है कि उसे पहले तो कोई ढूंढ ही न पाये और अगर गलती से ढूंढ ले भी तो बंदा पढ़ ही न पाये।*
तो इस के लिखने का कया फ़ायदा,अगर बडे शव्दो मे लिखा हो ओर खरीदते वक्त दिखे तब तो ठीक हे, हमारे यहां सिगरेट के पाकेट पर मोटे ओर साफ़ शव्दो मे चारो ओर चेतावनी लिखी होती हे, १६ साल से छोटे बच्चे कॊ ऎसी चीजे बेचने पर दुकानदार को भारी जुर्माना चुकाना पडता हे,जब की भारत मे बच्चे से ही यह सब मगबाते मा बाप.

पंकज अवधिया Pankaj Oudhia said...

मै तो इससे दूर ही हूँ पर मुझे लगता है कि जिन्हे तलब लग चुकी है वो इसे आसानी से छोडने से रहे। क्या हम इसका कोई विकल्प खोज सकते है जो नुकसान रहित हो? मैने हर्बल सिगरेट पर काम किया है पर इसे इतना अधिक अच्छा नही बना पाया कि असली सिगरेट वाले सब छोडकर इसे पीने लगे। कोशिश जारी है।

Gyandutt Pandey said...

केन्सर अस्पताल में बड़े भीषण केस देखे हैं मुंह के केन्सर के। पर उसी अस्पताल में मरीज की सेवा में तैनात परिवार जनों को गुटका खाते भी पाया!

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