रविवार, 25 जनवरी 2009
हनी, हम बच्चों को तबाही की तरफ़ धकेल रहे हैं !
इस समय मेरे सामने बच्चों के एक जंक-फूड का रैपर पड़ा हुआ है जिस के ऊपरी लिखी सूचना पढ़ कर मुझे डिस्कवरी चैनल के उस बहुत ही लोकप्रिय प्रोग्राम का ध्यान आ रहा है --- Honey, we are killing the kids !!
Ingredients के आगे लिखा हुआ है ----Rice meal, Edible oil, Corn Meal, Gram Meal, Spices, Condiments and Salt.
और इस के आगे एक बहुत ही बड़ी स्टैंप लगी हुई है कि नो एमएसजी, ज़ीरो ट्रांसफैट्स एवं कोलेस्ट्रोल फ्री ( No Added MSG, Zero Trans Fats, Cholesterol free) ---- अब इन शातिर कंपनियों को पता है कि पब्लिक को कैसे उल्लू बनाना है – चलो मान भी लिया कि कंपनी ने इस पैकेट में MSG ( Monosodium glutamate ---जिसे आमतौर पर रेहड़ी वाले चीनी नमक कह कर बहुत फख्र महसूस कर लिया करते हैं ), लेकिन यह कोलैस्ट्रोल फ्री वाली बात तो मेरी समझ में कभी आई नहीं कि आखिर यह कैसे हो सकता है कि इस तीस ग्राम के पैकेट में अगर लगभग 12 ग्राम वसा है तो यह भला कौन सा जादू हो गया कि फिर भी यह कोलैस्ट्रोल फ्री है।
इस पांच रूपये के पैकेट पर लिखी बाकी जानकारी कुछ इस प्रकार की थी --- कुल वजन 30 ग्राम
प्रत्येक 16 ग्राम उत्पाद में निम्नलिखित इन्ग्रिडिऐंट्स हैं –
कैलीरीज़ – 92.6
टोटल फैट – 5.8 ग्राम
कोलैस्ट्रोल - ज़ीरो मिलिग्राम ( कंपनी के लिये ज़ोर ज़ोर से तालियां मारने की इच्छा हो रही है !!----इतना बहादुरी का काम कर दिया !!)
टोटल कार्बोहाइड्रेट – 8.48 ग्राम
प्रोटीन – 1ग्राम
तो, सीधा सीधा इस का मतलब यह हुआ कि जब किसी ने यह पांच रूपये का पैकेट खा लिया तो उस ने बिना वजह स्वाद स्वाद के चक्कर में या यूं कह लें कि अपने मां-बाप के लाड के चक्कर में बिल्कुल कोरी सी 200 कैलोरी अपने अंदर फैंक दीं।
और ध्यान दें कि लगभग आधी कैलोरीज़ इस तरह के पैकेट में फैट से ही आ रही हैं।
अब अगर कोई यह सोचे कि क्या डाक्टर आज इस मासूम से पांच रूपये के पैकेट के पीछे पड़ गया है। जो भी हो, यह पैकेट इतना मासूम है----इस का कारण यह है कि इस तरह के पैकेट खाने से एक तो बच्चों को इस का चस्का सा लग जाता है जिस तरह का बीड़ी का या गुटखे-पान मसाले का चस्का होता है उसी तरह से इन बेकार की चीज़ों का भी एक चस्का ही होता है।
आपने क्या कहा ---- हम कौन सा बच्चों को ये सब रोज़ ले कर देते हैं ? –चलिये मैं यह भी बात मान लूं कि आप बच्चों को ये कभी कभी ले कर देते हैं लेकिन फिर भी आप ने उस दिन के लिये उस का नुकसान कर ही दिया ना---- क्योंकि बच्चों की भी अपनी कैलीरोज़ की ज़रूरत है –अब दो-चार सौ कैलोरी अगर उस की इस तरह के एक-दो चालू उत्पादों से पूरी हो गई तो भला उसे दाल, सब्जी खाने की क्या पड़ी है ---- बस, इस तरह के एक दो पैकेट, साथ में एक चॉकलेट बार, और ऊपर से थोड़ी बहुत कोल्ड-ड्रिंक हो गई तो हो गया उस का रात का खाना ----कब सोफे पर टीवी देखता हुआ, किसी भूत-प्रेत वाला टीवी सीरियल देखते देखते खौफ से डर कर आंखे बंद कर के सोने का नाटक करते करते खर्राटे भरने लगता है किसी को पता ही नहीं चलता क्योंकि वे अभी दूसरी तरफ़ वारदात देखने में मसरूफ़ हैं --- तो, बात तो ठीक ही हुई ना कि हनी, हम लोग बच्चों को तबाह ( चलिये खुल कर ही लिख देते हैं ---तबाह नहीं मार रहे हैं !!) – कर रहे हैं ।
हां, इस प्रोग्राम में दिखाया जाता था कि एक खूब मोटा-ताज़ा विदेशी
परिवार कैसे अपने खाने पीने की आदतों, टीवी देखने की आदतों एवं एक्सरसाइज़ करने की आदतों में क्रांतिकारी बदलाव कर के अपनी फिटनैस को पुनः प्राप्त कर लेते हैं ---- यह प्रोग्राम मुझे बहुत बढ़िया लगता है इसे देखने के बाद मैंने भी बहुत बार खीर एवं हलवा खाने के लिये मना किया होगा।
यह जो जंक फूड है ना इन पर सारी सूचना होती भी तो अंग्रेज़ी में ही है ----वैसे अगर हिंदी में भी यह सब लिखा रहेगा तो इन शक्तिशाली कंपनियों का भला कोई क्या उखाड़ लेगा --- वैसे इंगलिश में यह सारी सूचना लिख कर इन का काम आसान भी तो हो जाता है ---जो मां-बाप इंगलिश नहीं भी जानते वो भी इन्हें यह सोच कर खरीदते हैं कि चलो, इंगलिश में सब कुछ लिखा है तो ठीक ही होगा। लेकिन जो भी हो, आज कल जब भी मैं किसी ऐसे बच्चे के हाथ में ये पैकेट देखता हूं जिसे मैं समझता हूं कि इस पैकेट से कहीं ज़्यादा रोटी-सब्जी की ज़रूरत है तो मन बहुत दुःखी होता है --- इच्छा होती है इस के हाथ से इसे कैसे भी छीन लूं --- बाद में जब भूख लगेगी तो चुपचाप मज़े से खिचड़ी खा ही लेगा।
आप का प्रश्न मैंने भांप लिया है --- कि डाक्टर तुम्हारे सामने इस तरह के जंक-फूड का पैकेट कहां से आया ?—आप के सामने तो लगता है आज पोल खुल गई ---कल शाम को बेटे को दिलाया था ---लेकिन ज़रा इस तरफ़ भी ध्यान दीजियेगा कि यह सब होता कितने समय के बाद ------निःसंदेह कुछ महीनों के बाद !!
लेकिन फिर भी यह गलत है ---आखिर क्यों मैं उसे यह चस्का लगाने में उस की मदद कर रहा हूं !!
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आपके लेख की जितनी भी तारीफ की जाए कम है
जवाब देंहटाएंअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
चोपडा साहब बहुत अच्छा काम कर रहे हो, आप के इस लेख से अगर दस लोगो को भी समझ आ जाये तो काफ़ी है, क्योकि यह दस लोग आगे ओर लोगो को भी बतायेगे, लेकिन भारत मै खास कर आज कल इन चीजो को खाने का पागल पन है लोगो मे, शायद इन चीजो को शान से खा कर अपने आप को अमीर दिखाना चाहते है, या फ़िर बच्चो से ज्यादा प्यार दिखाना चाहते है, ओर यह घर घर की कहानी है, कोका कोला आज हर घर मै शान से पीया जाता है....
जवाब देंहटाएंक्योकि हम जल्द ही भूल जाते है पिछली बातो को.
धन्यवाद
लोगों में जागरूकता पैदा करनेवाला आलेख है यह....आपके माध्यम से कुछ लोगों तक भी यह संदेश पहुंच जाए तो बहुत अच्छी बात होगी।
जवाब देंहटाएंबढिया!
जवाब देंहटाएंजंक फूड की जंक स्टैम्प!
जवाब देंहटाएंचोपड़ा जी, बताएं कि पेट भर जाए और कैलोरी कम मिले, कोलेस्ट्रोल भी कम। वैसे बिना घी के मक्के की रोटी हरी साग से खाना अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंजंक फूड जितना कम खाया जाय उतना अच्छा है लेकिन कभी कभी हम भी अपने को और बच्चे को दोनों को बरबाद कर ही बैठते हैं, खासकर जब लोंग ड्राइव पर निकले हों। लेख ज्ञानवर्धक है।
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