बहुत हो गई ये बातें ---- गर्भाशय के कैंसर के लिये यह टीका, प्रोस्ट्रेट के कैंसर से बचाव के लिये ये वस्तुयें लाभदायक हैं, विटामिन-डी की रोज़ाना खुराक से दिल के दौरे से होता है बचाव, इस विटामिन से एलज़िमर्ज़ की रोकथाम, उस विटामिन से यह लाभ, उस मिनरल से यह होता है, उस से फलां बीमारी का बचाव होता है--- बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं, इस तरह की इतनी सारी बातें तो जानने मात्र से ही थक जायेंगे ---उन्हें अमल में कैसे लाया जायेगा ! पहले तो इन्हें कहीं नोट करने के लिये अच्छी खासी डायरी चाहिये।
चलिये मुख्य बातें तो कोई मान भी ले----लेकिन अधिकर बातें और इस प्रकार की अधिकतर सिफारिशें माननी बहुत ही मुश्किल हैं ----वैसे तो विभिन्न कारणों की वजह से यह सब कुछ मानना नामुमकिन सा ही जान पड़ता है।
और दूसरी तरफ़ यह भी सोच रहा हूं कि कितने समय तक हम लोग तरह तरह की बीमारियों के लिये प्रदूषण, कीटनाशकों के अंधाधुध उपयोग, मिलावटी खानपान को दोष मड़ते रहेंगे ---- चलिये, यह भी सच है कि इन सब में तो गड़बड़ है ही , लेकिन ज़रा हम लोग अपनी जीवनशैली की तरफ़ नज़र दौड़ायें।
इसी गड़बड़ जीवनशैली की वजह से ही इतनी सारी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं----उच्च-रक्तचाप, मधुमेह आदि की तो बात अब क्या करें—इन्होंने तो अब एक महामारी का रूप धारण कर लिया है, चिंता की बात यह भी है कि दिन में कितने ही मरीज़ ऐसे मिल जाते हैं जिन में कोई थायरायड़ के लिये दवाईयां खा रहे होते हैं , और कितने ऐसे मिलते हैं जो अपने बड़े हुये यूरिक एसिड के लिये दवाईयां लिये जा रहे हैं......बात ठीक भी है कि अब किसी को तकलीफ़ होगी तो दवाई तो लेनी ही पड़ेगी क्योंकि अगर दवाई नियमित तौर पर नहीं ली जायेगी तो ये थायराइड की तकलीफ़ एवं यूरिक एसिड की प्राब्लम बहुत गड़बड़ कर देती है।
लेकिन मेरा विचार है कि ठीक है कि दवाई डाक्टरी सलाह के मुताबिक ले ली जाये, लेकिन इस के साथ साथ उस के लिये यह भी शायद बहतु ही ज़रूरी है कि क्या हम लोग खाने पीने में क्या कोई संयम भी बरत रहे हैं, क्या ऐसा कुछ कर रहे हैं जिस से कि शरीर का सारा सिस्टम ही लाइन पर आ जाये। मुमकिन है कि जब सारा सिस्टम ही लाइन पर आ जाये तो डाक्टर लोग इन तकलीफ़ों के लिये दी जाने वाली दवाईयां भी लेने के लिये हमें मना कर दें।
तो फिर सिस्टम लाइन पर आये तो आये कैसे !!---जो मैंने आज तक सीखा वह यही है कि इस सिस्टम को अंग्रेज़ी डाक्टरी के द्वारा तो लाइन पर लाना बहुत मुश्किल है --- इस के लिये केवल और केवल एक ही रास्ता है ---- कि सदियों पुरानी योग विद्या की शरण लेनी पड़ेगी ----- रोज़ाना शारीरिक परिश्रम करना होगा, योग क्रियायें करनी होंगी ---कम से कम प्राणायाम् नित्य करना होगा और सब से महत्वपूर्ण नित्य ध्यान (मैडीटेशन) करना होगी ---- और इस से साथ साथ सभी तरह के व्यसनों से बचना होगा, शुद्ध सात्विक आहार लेना होगा और मांसाहार से बचना होगा ---- ( मांसाहार से बचना मेरा नुस्खा नहीं है ---- लेकिन मैं अपनी इच्छा से इस का बिल्कुल भी सेवन नहीं करता हूं)।
सचमुच प्रवचन दे देना भी बहुत आसान है ---ये सब बातें जानता हूं लेकिन फिर भी सुबह सवेरे उठ कर सैर ना करने के नित्य प्रतिदिन नये नये बहाने ढूंढता हूं ----शायद पिछले एक-डेढ़ महीने से सैर नहीं की -----पिछले लगभग डेढ़ दो साल से प्राणायाम् करने का आलस्य करता रहता हूं ---- और ध्यान भी परसों कितने ही महीनों बाद किया है --- मैंने यह सब अच्छे से गुरू-शिष्य परंपरा के नियमों में रह कर सीखा हुआ है लेकिन पता नहीं क्यों टालता रहता हूं ----टालता ही रहता हूं ----जब सुबह नेट पर बैठ कर ब्लागवाणी या चिट्ठाजगत की सैर करता रहता हूं तो बार बार यह अपराधबोध होता रहता है कि यार, यह समय यह काम करने का नहीं है , 30-40 मिनट बाहर भ्रमण कर लिया जाये...........लेकिन मैं भी पक्का ढीठ हूं -----क्या करूं ?---- मेरी समस्या ही यही है कि मैं अपने आप से इस तरह के वायदे रोज़ाना करता हूं कि कल से यह सब शुरू करूंगा लेकिन पता नहीं मैं कब लाइन पर आ पाऊंगा ----वैसे इस समय आप बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं कि –पर उपदेश कुशल बहुतेरे !!
सोच रहा हूं कि इस वक्त इस पोस्ट को ठेल कर आधे घंटे के लिये बाहर घूम ही आता हूं ---वैसे तो एक सुपरहिट बहाना पिछले कुछ अरसे से सैर न कर पाने का यही रहा है कि बाहर ठंडी बहुत होती है ----लेकिन मुझे शत-प्रतिशत पता है कि यह मेरी कोरी बहानेबाजी है ----और भी क्या कोई काम इस मौसम में करने से रह जाता है ? नहीं ना , तो जो बातें हमें लाइन पर चलाये रखती हैं उन पर ही अमल करने में हम इतने कमज़ोर क्यों पड़ जाते हैं , पता नहीं, यह सब मेरे साथ ही होता है -----लेकिन मेरे साथ होना तो और भी ठीक नहीं है क्योंकि समाज हम डाक्टर लोगों की जीवनशैली को एक आदर्श मान कर उस का अनुसरण करना ही करना चाहते हैं ।
वैसे लाइफ को लाइन पर लाने के मैंने अभी तक के अपने सारे तजुर्बे को मैंने ऊपर दो-तीन हाइलाइटिड पंक्तियों में सहेज दिया है ---आप ने भी नोट किया होगा कि इन मे विटामिन की गोलियों की कहीं बात नहीं हो रही, किसी टानिक को पीने के लिये नहीं कहा गया है, कोई हाई-फाई बातें भी नहीं की गई हैं -------- मन तो कर रहा है कि इन पंक्तियों को फ्रेम करवा कर हमेशा अपने सामने रखा करूं --- लेकिन जब तक इन पर मैं पूरी तरह से अमल नहीं करता तब तक इस ज्ञान से क्या हासिल ---- जब ज्ञान व्यवहार में ढले तो जीवन का श्रृंगार बने !
सबसे अच्छा सिस्टम तो वही है जो किसी सिस्टम का मोहताज न हो। रहा सवाल खुद से वसदे करने का, तो एक शेर अर्ज है-
जवाब देंहटाएंजाम-ए-मेरी तौबा शिकन,
तौबा मेरी जाम-ए-शिकन,
सामने है ढेर, टूट हुए पैमानों का
बहुत रोचक आलेख-विष्णु जी से भी पूर्णतः सहमत.
जवाब देंहटाएंसिस्टम लाइन पर आ जाएगा तो हम वकीलों की भी छुट्टी। हम वकील होते हुए और आप डाक्टर होते हुए कहते हैं सिस्टम लाइन पर लाओ। पर कितना असर है, उस का?
जवाब देंहटाएंचोपडा साहब जी आप की सभी बाते बहुत काम की है, पिछली साल जब मै भारत आया तो यही बाते चल रही थी तीन चार रिश्तेदार बेठे थे, दो चार अडोसी पडोसी भी बाते युही चल पडी मिलावट पर मेरे फ़ुफ़ा जी बोले कि आजकल भारत मे बहुत ज्यादा बिमारी बढ रही है, लोग खुब फ़ुलते जा रहे है,खास कर ओरते, सभी अपनी अपनी मार रहे थे, अंत ममे मैमे कहा, फ़ुफ़ड जी वो देखो हमारे बरतन मांजने वाली माई,समाने उस मकान मे मजदुरी करती ओरत को, यह सब भी तो भारत मै ही रहती है, फ़िर यह तो शायद इतना पोषटिक खाना भी नही खाती? फ़िर यह क्यो नही फ़ुली, बीच मे ही कोई वोली अरे यह तो गरीब है,तो मेने झट से कहा यह आप सब से अमीर है, अपनी पुरी नींद सोते है,शायद ही कभी बीमार होते हो, सीधा नल का पानी पीते है, बस मेहनत करते है, इस लिये यह चुस्त है , फ़िट है.
जवाब देंहटाएंयह बात हमे इन से सीखनी चाहिये, आज भारत मै इतना दिखावा है अगर किसी के पास थोडा सा भी धन आता है तो दो चार नोकर जरुर घर मै होगे, खाना बाहर से आयेगा,या बाहर जा कर खाओ. बहुत सी ऎसी बाते है, जिन से हम अपना ही नुक्सान करते है,
हम यहां सभी काम खुद करते है, बच्चो को अभी से अपनी जिम्मेदारी देते है,स्कुल तक पेदल जाये, पेदल आये, या फ़िर स्कूल बस तक दो कि मी दुर पेदल जाये पेदल आये.
टिपण्णी आप की पोस्ट से बडी ना हो जाये.
इस लिये धन्यवाद
सुन्दर सलाह!
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