एक तरफ़ हो ...संजय दत्त –मान्यता द्वारा अपनी शादी की अर्ज़ी वापिस लेने की खबर और दूसरी तरफ़ यह खबर हो कि मध्य-प्रदेश और झारखंड से आ रहे 16मज़दूर ट्रैक पर चलते हुये पीछे से आती हुई ट्रेन की चपेट में आने से कुचले गये(जिसे 9वें पन्ने पर छापा गया है)......तो, किसी दूसरी कक्षा में पढ़ रहे बच्चे से पूछते हैं कि कौन सी खबर बड़ी है या कौन सी खबर अखबार के पहले पन्ने पर छपनी चाहिए थी। ...........हां, हां, मैं भी यही सोच रहा हूं कि ये मज़दूरों के कुचले जाने वाली खबर पहले पेज पर न सिर्फ़ छपनी ही चाहिए थी , वह तो उस पन्ने पर सब से ऊपर भी छपनी चाहिए थी। लेकिन पता नहीं जो अंग्रेज़ी अखबार मैं पढ़ रहा हूं इस में न्यूज़-सेलेक्शन करने वालों को क्या हो रहा है......क्या हो रहा है इन की न्यूज़-सैंस को जो इन की न्यूज़-वैल्यू को सही ढंग से देख नहीं पा रहे हैं या यह सब कुछ जान-बूझ कर होता है...........जिस के कारण हम सब अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन फिर भी यह सब कुछ हो रहा है। पेज थ्री जर्नलिज्म खूब ज़ोरों से पनप रहा है और आने वाले समय में तो और भी पल्लवित-पुष्पित होगा।
वो 16मज़दूरों वाली खबर तो आप सब ने देख सुन ही ली होगी......अगर उस को फ्रंट पेज पर लिया जाता तो क्या यह पेपर मैला हो जाता.....पता नहीं , लेकिन......। इस खबर से शायद दूसरों को बहुत कुछ सीखने को मिलता । इस खबर को पढ़ कर दुःख बहुत ही हुया ..इन 16 लोगों में से तीन महिलायें और दो बच्चे भी थे। इन लोगों की त्रासदी देखिए कि मर कर भी ये लोग हैड-लाइन नहीं बन पाते....। और वो जो संजय दत्त की शादी वाली बात है , उस की ब्रीफ –न्यूज़ जो पहले पन्ने पर थी, उस के नीचे यह भी लिखा गया था पेज 15 पर इस खबर को विस्तार से पढ़ा जा सकता है।
हां, जिस जगह मज़दूरों वाली खबर छपी थी ,उस के साथ एक खबर यह भी छपी थी कि एक महिला ने चलती रेल-गाड़ी के टॉयलेट में एक प्री-मैच्योर बेबी को जन्म दिया जो उस टायलेट के रास्ते से नीचे पटड़ी पर गिर गई.....जब महिला को होश आया, तो स्टेशन मास्टर को सूचित किया गया और फिर......फाइनल बात यही कि उस मां को अपनी बच्ची मिल गई और दोनों ठीक हैं......इसे पढ़ कर बहुत खुशी हुई। एक बार ऐसी खबर पढ़ लेने के बाद सारी उम्र बंदा उस कहावत को कैसे भूल सकता है.......जाको राखे साईंयां, मार सके न कोय....बाल न बांका कर सके, जो जग बैरी होय। हम कह तो देते हैं कि इस देश को वह ऊपर बैठा खुदा ही चला रहा है, लेकिन क्या ऐसी खबरें पढ़ने के बाद इस में कोई शक की गुंजाइश रहती है। अपना मन टटोल कर बतलाइए कि क्या आप को इस मां-बच्ची वाली खबर को पहले पेज़ पर लेने वाली कोई बात नहीं लगती.......................क्या करें, लगती है,भई लगती है , बहुत लगती है...और भी बहुत कुछ लगता है, लेकिन क्या करें भई दाल-रोटी का चक्कर है, बच्चे भी तो पालने हैं............................वैसे,आप भी अपनी जगह पर ठीक हैं, लेकिन यहां ब्लोगिंग में तो कोई ऐसा दाल-रोटी का रोना नहीं है, इस में तो दिल खोल लिया कीजिए।
इस बच्चे पालने वाली बात से याद आया है कि बेटा आवाज़े लगा रहा है कि चल, बापू , अब उठ भी जा, बस स्टैंड पर छोड़ कर आ जा, आज भी बस मिस हो गई तो फिर ब्लोग में अपनी शिकायत डाल देगा। सो, अब तो उठना ही पड़ेगा।