शनिवार, 27 अगस्त 2022

हुड़दंग-हुल्लड़बाज़ी ज़िंदगी बदल देती है कईं बार ....

आते जाते रास्तों पर सड़के नापते हुए फिरंगियों के वक्त की इमारतें देख कर हैरत में पड़ जाता हूं ...कुछ दिन पहले एक बस में बैठा बैलर्ड पियर जा रहा था (वी टी स्टेशन से गेटवे ऑफ इंडिया तक ए.सी बस सर्विस बहुत बढ़िया है)...रास्ते में एशिआटिक लाईब्रेरी दिखी ..पहली भी कईं बार देखी है ...उस दिन भी देखते ही बरबस मुंह से यही निकला ..पास बैठे अंजान यात्री से जैसे कुछ कहने लगा कि इन अंग्रेज़ों को भी अगर पता होता कि इन्हें इस देश से खदेड़ दिया जाएगा तो ये सब कुछ इतनी मोहब्बत से कहां बनाते ....उसने भी हामी भर दी ...। 


आज दोपहर बाद भी अभी एक-दो घंटे पहले ढ़ाई बजे के करीब मैं भायखला स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर दादर जाने के लिए लोकल-ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था ...वैसे तो पिछले कुछ महीने में भायखला स्टेशन का पूरा काया कल्प हुआ है ..एक दम हैरीटेज लुक दी गई है ...अच्छा लगता है ...अचानक इस घंटे पर नज़र गई और उस पर लिखा साल देखा तो हैरानी भी हुई १६० साल से पुराना घंटा ...फोटो खींच ली ... वैसे भायखला उस रेल लाइन पर आता है जहां पर हिंदोस्तान की सब से पहली रेलगाड़ी चली थी...मुंबई वी टी (या बोरी बंदर कहते थे तब) से ठाणे तक ....बाकी की स्टोरी तो आप जानते ही हैं...

फिरंगियों की तरफ से इस तरह के पुराने सामान को जब देखता हूं तो उन से किसी भी तरह की सहानुभूति की तो ऐसी की तैसी ...हर बार यही मज़ाक सूझता है कि इन पट्ठों ने ये सब यही सोच कर बनाया-सजाया होगा कि अब तो यह सब कुछ अपना ही है ...लेेकिन फिर मन ही मन नतमस्तक हो जाते हैं आज़ादी के उन दीवानों के बलिदान पर जिन्होंने अपनी जान गंवा कर हमें आज़ाद भारत में सांस लेने का और इस तरह के घंटे की फोटो खींचने का मौका दिया....

दो-तीन मिनट तो कभी कभी लोकल गाड़ी के लिए इंतज़ार करना ही होता है ...लेकिन इसी दौरान देखा कि सामने तीन नंबर प्लेटफार्म पर जो लोकल ट्रेन मुंबई वी टी की तरफ जा रही हैं, उस में बहुत से युवा ऊंची ऊंची आवाज़ निकाल कर हूटिंग सी कर रहे हैं....ऐसी ही हुल्लडबाजी ...मस्ती .....। मैंने सोचा कि शायद कल रविवार है, रेलवे भर्ती बोर्ड या किसी अन्य विभाग का कोई पेपर हो ...लेकिन उन युवकों की उम्र देख कर लगा नहीं ...अजीब सा शोर था....

खैर, इतने में मेरी ट्रेन भी कसारा लोकल आ गई ...बैठ गया....पेपर पढ़ने लगा ...इतने में पता नहीं मन किया कि परेल स्टेशन पर ही उतर जाता हूं ...उतरने लगा तो वहां पर भी दूसरी तरफ़ से आने वाली एक गाड़ी गुज़र रही थी और खूब शोर मचा हुआ था ...मुझे अचानक ख्याल आया कि दो दिन बाद गणेश-चतुर्थी है ...ये लड़के लाल बाग से गणपति बप्पा की मूर्ती लेने निकले होंगे ...हुल्लडबाजी कर रहे हैं, मस्ती कर रहे हैं...उम्र ही ऐसी है इन की ...खैर, मैं नहीं उतरा वहां पर ..


अगला स्टेशन दादर था ...दादर सेंट्रल रेलवे के प्लेटफार्म नंबर एक पर उतरा तो यह महिला अपना बोझा ढोने के लिए बड़ी मशक्कत करती दिखी ..लेकिन उसने अपने बलबूते पर इतना सामान सिर पर उठा कर ही दम लिया....इतने में देखा एक लड़की १८-२० बरस की बदहवास सी प्लेटफार्म पर भागते भागते गाड़ी पर चढ़ने से रह गई ...उसे तुरंत एक महिला कांस्टेबल ने पकड़ कर नसीहत की अच्छी घुट्टी पिलाई कि इस के बाद कोई ट्रेन नहीं आएगी क्या....



खैर, सामने एक नन्हा बालक दिखा ...मां के हाथ में दूध की बोतल तो थी लेकिन वह मोबाइल पर गुफ्तगू में मसरूफ़ थी....वाट्सएप पर ऐसे बहुत सी पोस्टें दिखती रहती हैं न ...मुझे भी उस वक्त यही ख्याल आया जैसे कि वह शिशु मां को कह रहा हो कि मम्मी जी, मुझे भूख लगी है ...प्लीज़ मोबाइल पर तो सारा दिन रहती ही हो, मेरा भी तो कुछ ख्याल करो ...

कुर्ला, मध्य रेल, लोकल प्लेटफार्म नंबर १

खैर, अभी इस प्यारे से बालक की तरफ से नज़र हटी ही थी कि आगे फिर थोड़ा शोर सा दिखा ...प्लेटफार्म पर कुछ खून गिरा हुआ था...मुझे लगा कि किसी को चोट वोट आई होगी या किसी को खून की उल्टी हुई होगी ... अभी चंद कदम आगे चला था कि प्लेटफार्म के एक एरिया को कार्डन-ऑफ किया गया था ... भान हुआ कि कुछ तो मनहूस बात हुई ही है ...आगे बढ़ तो गया लेकिन रहा नहीं गया....पाटिल हवलदार से पूछा कि क्या हुआ...उसने जो बताया वह दिल को दहलाने वाला था ...कहने लगा कि पांच-दस मिनट पहले चार युवक गिर गए गाड़ी से ...गिरा तो एक ही, साथ में तीन और ले बैठा....किसी का हाथ कट गया है, किसी का पांव.....बहुत अफसोस हुआ यह सुन कर। मेरे पूछने पर उसने बताया कि अभी तो सॉयन अस्पताल भेज दिया है ...बाद में उन के परिवार वाले उन्हें जहां से लेकर जाना चाहें....

पाटिल बता रहा था कि ये लड़के लोग गणपति चतुर्थी के चक्कर में बड़ा हुड़दंग मचा रहे थे ...चलती ट्रेन से खंभे को छूने की कोशिश कर रहे थे ...बहुत ज़्यादा अफसोस हुआ यह सुन कर ...यार-दोस्त थोड़ी मस्ती करने निकले और अचानक क्या से क्या हो गया....किसी को कुछ फ़र्क नहीं पड़ता ...मुंबई एक मिनट भी नहीं थमी..हादसे के पांच मिनट बाद सब कुछ ऐसे चल रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं...

पोस्ट इसलिए लिखने पर मजबूर हुआ कि मन की बात कह लूं कि त्यौहार का मतलब हम लोग क्यों इतने हुड़दंग करना ही मान लेते हैं...खुशी है, उत्सव का माहौल है, ठीक है...लेकिन जोश के साथ होश भी तो रखना होगा...मैं मानता हूं कि हर किसी को इस तरह की नसीहत की पुडि़या बहुत बुरी लगती है ...क्योंकि हादसा तो कभी भी हो सकता है...किसी के साथ भी ..लेकिन फिर भी जितना हो सके, उतना ही ख्याल रखना ही चाहिए....पानी के सामने, आग के सामने, और गाड़ी के सामने किसी की नहीं चलती....

पानी से याद आया...पिछले दिनों में हर साल की तरह बंबई के जुहू बीच और अन्य बीचों पर कुछ युवा डूब गए...रेड-एलर्ट जारी था ...और सरकार भी क्या करे, लेकिन जवान लोग किस की सुनते हैं...समंदर की लहरें लील ले गईं जवान लोगों को ...अकसर इस तरह की खबरें देख कर मुझे कुछ पंद्रह बीच बरस पहले कोच्ची की अपनी यात्रा याद आ जाती है..कोच्ची से कोई २०-२५ किलोमीटर दूर एक बीच है...वहां कहते हैं ज़्यादा आगे जाना खतरनाक होता है (चेतावनी हम लोगों ने बाद में पढ़ी थी) ..हम लोग किनारे पर ही खड़े थे ...अचानक लहर आई ..हमारे पैरों के नीचे से ऐसे रेत खिसकी की मां कहां गई, पर्स कहां गया, छोटा बेटा दो-तीन साल का कहां बह गया...बाकी भी सभी लुढ़क गए...उस वक्त तो यही लगा कि पता नहीं कितने लुढ़क गए, कितने रह गए ...खैर, फटाफट जैसे तैसे उठ खड़े हुए और भागे वहां से ..टैक्सी में बैठ कर ....अभी याद आया .....जी हां, वह था कोवलम बीच 

हां, अभी कुछ दिन पहले कृष्ण जन्माष्टमी थी ..दही हांडी का उत्सव था ..किस तरह से कुछ युवक बुरी तरह से ज़ख्मी हो गए...अखबार में पढ़ा कि एक का तो दिमाग ऐसा डेमेज हुआ है कि उस का बचना मुश्किल है ..और दूसरा कोमा में है ....ऐसे बहुत से केस हर बरस होते हैं ....हम लोग सीख क्यों नहीं लेते ..उत्सव मनाएं लेकिन होशोहवाश में रह कर .... इस बार मेरे एक दोस्त ने दही हांडी वाले दिन एक वीडियो भेजी जिसे देख कर मेरा दिल दहल गया....कुछ युवक एक लड़के को पकड पर ऊपर हांड़ी की तरफ उछाल रहे थे ...उस युवक का जब सिर उस मटकी पर लगा वह हांडी फूट गई ....लेकिन होने को तो कुछ भी हो सकता था ...

यही नहीं होली के दिन भी सभी अस्पतालों की एमरजैंसी को किस तरह से मुस्तैद रहने को कहा जाता है ....क्योंकि हादसे होते हैं, चोटे लगती हैं उन दिनों भी ....बात सोचने वाली यही है कि क्या हम अपने आप में रह कर संयम से अपने तीज-त्यौहार नहीं मना सकते ....ऐसा क्या है कि धार्मिक त्यौहारों पर भी सरकारों को इतने बड़े स्तर पर पुलिस बंदोबस्त करना पड़ता है कि एक अजीब सा खौफ़ कहीं न कहीं सताने लगता है ...

बस बात यही खत्म करते हैं कि किसी को कोई नसीहत की ज़रूरत नहीं है, जितना कुछ जानने लायक है उस से तो ज़्यादा ही हम लोग जानते हैं......मानते हैं या नहीं, वह अलग बात है। बस, अपना ख्याल रखा करो भाई...बच कर रहिए, बच कर चलिए, खुद भी बचिए, औरों को भी बचाते रहिए ..

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सर। कई कहलुओं को उजागर करता हुआ ब्लॉग। बहुत बहुत बधाई।

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    1. धन्यवाद, सिंह साहब ...पोस्ट देखने के लिए और उत्साहवर्धन के लिए..

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  2. उस दिन (शनिवार) मेरे साथ कुछ यूं हुआ। पैरो मे स्वेलिंग और चलने मे दर्द था। सोचा टॅक्सी से ही दादर चला जाए। वेस्टर्न लाइन से दुसरी ट्रेन पकडनी थी। टैक्सी ली लेकिन थोड़ा आगे बढ़े नही की डायवर्जन पे डायवर्जन। जगह-जगह ट्रैफिक जाम। फिर याद आया की उस दिन चिंतामणि गणेशजी का आगमन होने वाला था। कोरोना महामारी के चलते मुंबईकर 2 साल से इसका इंतजार कर रहे थे। ऐसे मे तो दादर जिंदगी मे कभी नही पहुंच पाते। थोड़ा सोचकर काॅटन ग्रीन से होते हुए भायखला स्टेशन चलने का निर्णय लिया। रेल्वे के क्वार्टर से भायखला स्टेशन पैदल 7-8 मिनट मे पहुंच सकता था। काफी टाइम भी निकल गया था। ट्रेन मिलेगी की नही ये सवाल था। नही मिली तो घर वापस लौट जाऊंगा ये पहले से ही सोच लिया था। खैर, लोकल से दादर पहुंच गया। ब्रीज से देखा तो ट्रेन खड़ी थी। आप जानते ही है कि यंग होने के बावजूद मेडिकल कंडिशन ऐसी है की मै ज्यादा दौड़भाग नही कर सकता। दिमाग मे भी हमेशा डर बना रहता है कि फेफड़े फिर से ना फट जाए। फिर से वही दर्द, समय की बर्बादी और घरवालों को परेशानी। नसीब अच्छा था की मै ट्रेन मे चढ़ा और ट्रेन चल पड़ी।

    दुसरी बात आपने बड़ी अच्छी कही की त्यौहार संभलकर मनाने चाहिए। हमारा प्यारा भारत त्यौहारों का देश है। हर त्यौहार नया जीवन मे नया उत्साह ले आता है। लेकिन कई जगह से दुखद समाचार भी सुनाई देते है। क्या हम खुशियो को 100% और दुखद समाचारों को शुन्य नही कर सकते? ना चाहते हुए भी कहना पड रहा है कि इसमे पालिटिक्स का भी बड़ा रोल होता है। दहीहांडी मे हाईट कम रखने का सुझाव देने वालों को स्वीकार नही किया जाता। गणेशोत्सव मे छोटी और पर्यावरणपुरक मूर्तियों को प्रोत्साहन नही मिलता। PoP की बडी बडी मुर्तिया समुद्र और बाकी जलाशयों मे बहाई जाएंगी। कुछ जाने भी ले जाएंगी। कोरोना महामारी से हमने बहुत कुछ सीखा लेकिन बहुत ही जल्द भूल भी गए। उदाहरण के तौर पर देखें तो आंतरराष्ट्रीय स्तर पर युक्रेन युद्ध और हमारे अपने देश मे बढता हुआ धार्मिक उन्माद।

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