सोना खरीद रहे हो यार! |
हर पुराने शहरों के उन बाज़ारों में से उन तीन चार दातुन बेचने वालों के दिन भी बस समझिए लदने वाले हैं...कर ली उन्होंने जितनी कमाई करनी थी..अब उन्हें भी लगता है भरण-पोषण के दूसरे रास्ते तलाशने होंगे...
हिन्दुस्तान २४ मई २०१७ |
इससे पहले कि खबर बासी हो जाए..वैसे भी गर्मी का मौसम है ...सोचा कि यह ब्रांडेड नीम की दातुन वाली खबर सब से पहले सब से तेज़ी से अपने ब्लॉग पर ही क्यों ना सहेज लूं!
ध्यान टीना मुनीम का भी आया...एक जमाने में लोकल गाड़ी में दातून बेचने वाले गीत गाये थे उसने ...अब यह सब ब्रांडेड होने वाला है तो क्या पता आने वाले समय में उन की कंपनी भी ये दातून विश्व स्तर पर बेचने लगे...
अभी लिखते लिखते ध्यान आया कि कुछ दिन पहले इंटरनेट पर भी देखा था कि नीम की दातून पैकिंग में बिक रही हैं...खासी महंगी ...शायद इन दातूनों को ब्रांडेड रूप में बेचने का आईडिया भी यहीं से आया होगा..
दातुन के बारे में लोग मेरे से पूछते हैं तो मैं कहता हूं कि हां, यह दांतों और मसूड़ों की सेहत के लिए बहुत उमदा तो है ही बेशक ..और यह सैंकड़ों --शायद हज़ारों ...(मेरा हिसाब-किताब और हिस्ट्री बेहद कमज़ोर है) सालों से चलन में है ..ज़ाहिर है मेरी आधुनिक पढ़ाई लिखाई ने मुझे टुथपेस्ट का ही महिमा-मंडन सिखाया है ..लेेकिन मैं इतना जानता हूं कि हमारे खान पान की बदली हुई आदतों की वजह से हमें दातून के अलावा दूसरे रास्ते तलाशने पड़ रहे हैं... लेेकिन एक बात ज़रूर मानने वाली है कि जो लोग दातून करते भी हैं, वे दांतों को उस से इतनी बेरहमी से कूचते हैं कि दांत ही घिसा डालते हैं....एहतियात बरतिए... अपने दंत चिकित्सक से इस के बारे में चर्चा करिएगा...
प्रकृति की बात चली है तो मेरे विचार में आज इस पोस्ट में प्रकृति की ही कुछ तस्वीरें लगा दूं..
प्रकृति की छटा निराली है ...हर व्यक्ति अपने हिसाब से इस से सबक सीखता है ....आप इन सब तस्वीरों को देखिए ...अगर आप ध्यान से देखिएगा तो हर तस्वीर में प्रकृति के राज़, उस की मानवता के लिए सीख छिपी पड़ी है ....क्या हुआ?....कुछ ज़्यादा भारी भरकम बातें हो गईं! .. चलिए, भूल जाइए इन बातों को भी, बस आप ये तस्वीरें देखिए मजे से ...
अच्छा, वैसे तो यह एक निबंध का विषय है कि नैसर्गिक नज़ारे हमें क्या क्या सिखाते हैं...लेकिन मैं तो चंद लफ़्जों में ही इसे कहना चाहूंगा कि ये हमें शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, प्रेम-करूणा, सहनशीलता, ठहराव, स्थिरता, मूक दर्शक, हमेशा खिले हुए रहना ..खुशियां बांटना, पल पल को जीने का सबक सिखाते हैं....अभी तो इतने ही भारी भरकम शब्द ही ध्यान में आए....आप भी कभी लिखियेगा ब्लॉग के कमैंट्स बॉक्स में जाकर कि आप को प्रकृति के नज़ारों से क्या सीख मिलती है ... और हां, एक बात और याद आ गई ...कभी मेरा अहम् जब मेरे ऊपर हावी होने लगे और मैं प्रकृति की गोद में जाऊं तो मुझे अपने तुच्छ होने का (तुच्छ भी बहुत बड़ा शब्द लग रहा है ....क्या कुछ तुच्छतम् जैसा शब्द भी होता है ...धूल का कोई कण जैसा!) अहसास होता है जो बहुत सुकून देता है ..
चलिए, बहुत उड़ने के बाद धरातल पर आ जाते हैं...और यह देखते हैं कि सरकारी दफ्तरों में भी इस तरह की वारदातें होने लगी हैं...मुझे याद है कुछ अरसा पहले यहां रेलवे के डीआरएम दफ्तर के प्रांगण में जब दो ठेकेदारों के बीच गोलियां चली थीं तो बड़ा हंगामा हो गया था ..लेकिन यहां पर किसी कर्मचारी को अगवा करने की घटना हो गई कल ....बाबू अच्छा था या बुरा, यह तय करना कोर्ट का काम है.....लेेकिन इस घटना की जितनी निंदा हो सके होनी चाहिए...प्रजातंत्र के लिए खतरा हैं ऐसी घटनाएं....Let's nip the evil in the bud!
सुबह सुबह बेटे ने भी एक अच्छी बात शेयर की है ...यहां लगाये दे रहा हूं...
मैं भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखता हूं... |
चलिए, ज़्यादा मत सोचिए, सेहत के लिए ठीक नहीं होता, यह गीत सुन कर मूड ठीक करिए और सुबह के लिए अपने अपने को तैयार कीजिए....सुप्रभात ..
प्राकृतिक छटा मन को शांत करती है। मैं पहाड़ से आता हूँ तो गर्मी के बाद उधर जब बारिश पड़ती है तो वो दृश्य मन और शरीर में स्फूर्ति का संचार कर देते हैं।
जवाब देंहटाएंबाकी बातें भी ज्ञानवर्धक थीं। दातुन पैकेट में बिकते हुए तो मैंने देखे ही हैं। हाँ,सरकारी रूप से भी ये होने लगेगा इसका कोई अंदेशा नहीं था।
एक अच्छी विचारोत्तेजक पोस्ट।
सही फरमाया आपने विकास जी ...ये सरकारी रूप में दातूने ऐसे बिकने लगेंगी, मैंने भी ऐसी कल्पना नहीं की थी...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पोस्ट देखने के लिए..
प्रकृति की छटा एक अलग शांति देती है, जैसे कभी बारिश के मौसम में किसी टेकरी या पहाड़ी पर जाकर देखिये । या फिर कभी ट्रैन की खिड़की से ही सतपुड़ा के नजारे देखिये , लगता है की वहीं एक झोपड़ी बना कर रहने लगे ।
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