कुछ दिन पहले की ही तो बात है जब हिन्दुस्तान अखबार के संपादकीय पन्ने पर प्रियंका भारती के बारे में एक लेख छपा था ...बड़ी हिम्मत दिखाई सच में इस नवविवाहित महिला ने ...जिसने ससुराल जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उन के यहां शौचालय नहीं था...बाकी की कहानी तो आप को विद्या बालन ने ऊपर वाले यू-ट्यूब वीडियो में सुना ही दी है ..
अच्छा लगता है जब इस तरह के अभियान चलते हैं...आज का पेपर भी यह मासिक धर्म पर मुंह बंद रखने वाली रूढ़ियों को ध्वस्त कर रहा था ....अच्छा लगा यह भी पढ़ कर कि किस तरह से लोग ईन्नोवेटिव तरीके ईजाद कर रहे हैं...एक जगह के बारे में लिखा था कि जब वहां पर महिलाओं ने सेनेटरी पैड्स इ्स्तेमाल करना शुरू किया तो पालतू जानवरों की वजह से सारा कचड़ा सड़कों पर बिखरने लगा ... लोग आपत्ति करने लगे ...फिर अब वहां किशोरी मटका इस्तेमाल होता है ...जिस में इन सेनेटरी निप्किन्स का डिस्पोज़ल कर दिया जाता है ..वहीं पर गांव में यह बना दी गई है अंगीठी जैसी कोई चीज़..बाद में इन के सूखने पर इन को आग लगा दी जाती है ..
किसी पॉश ऑफिस के बारे में लिखा था कि वहां पर महिलाओं के लिए टॉयलेट में सैनेटरी पैड्स की वैंडिंग मशीन लगेगी या शायद लग चुकी है ... और इन के उचित डिस्पोज़ल के लिए भी एक मशीन होगी ...
अच्छा लगता है इस तरह की खबरों को पढ़ कर जब कुछ भी समाज में कोई पॉज़िटिव पहल करता है ... बात वही है ... सूरत बदलनी चाहिए...हालात बदलने चाहिए... पिछले कुछ अरसे से अच्छा काम हो रहा है किशोरियों एवं महिलाओं को उन के मासिक धर्म रख-रखाब के बारे में जागरूक करने का ...होना भी चाहिए..मंगल ग्रह पर फ्लेट की बुकिंग अगर हो सकती है तो पहले यह सब ज़रूरी मुद्दे भी सुलटा लिए जाएं...जिस की वजह से देश में महिलाओं को बीमारियों से परेशान रहना पड़ता है ..
अभी मुझे एक वाट्सएप मैसेज आया कि दुनिया में १५० देश हैं..लेकिन टायलेट का आर्किटेक्चर दो ही तरह का है ..इंडियन स्टाईल और वेस्टर्न स्टाईल ... इसलिए हमें भारतीय होने पर गर्व है ...
मैं यह तो मन बना नहीं पाया कि इस तथ्य की वजह से मुझे गर्व होना चाहिए कि नहीं.....लेकिन मेरे दिमाग की फिर्की बस बात पर चल निकली कि ऐसे कैसे दो ही श्रेणीयां, इस की तो बहुत सी किस्में हैं....चलिए इस की क्लासीफिकेशन करते हैं...
इंडियन स्टाईल की श्रेणियां इस तरह की हो सकती है ...
१. ओपन एयर स्टाईल ....
क) लोटे सहित ... इस के अंतर्गत लोटे या बिसलेरी की बोतल का साथ रहता है ..हां, दातून तो साथ में होती ही है।
ख) बिना लोटे वाली श्रेणी...इस के बारे में मेरे को ताज़ा जानकारी नहीं है, लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि मेरी जानकारी के अनुसार इस के बिना भी काम चलाया जाता रहा है ...आप तो गहरी सोच में पड़ गए?...इतना भी सुस्पेंस नहीं है ....एक तो विकल्प होता है अभी भी गांव के छप्पड़ का (छप्पड़ का मतलब गांव का तालाब जहां हमेशा पानी इक्ट्ठा रहता है) ...और अगर वह नहीं है तो वीरान जंगलों आदि में सोचिए किस चीज़ का विकल्प बचता है?....जी हां, आपने बिल्कुल सही सोचा ...छोटे पत्थर या ईंट के टुकड़े।
ओपन एयर स्टाईल (क्या कहते हैं इसे... जंगल पानी!) इतना पापुलर है कईं जगहों पर कि लोगों को घर में बनी टॉयलेट रास नहीं आती, कमबख्त हाजत ही नहीं होती तीन तीन बीड़ी मारने के बाद भी ....बस, बाहर ठंड़ी हवा में जाकर ही पेट साफ़ हो पाता है! अमिताभ बच्चन और बहुत से लोग इस बीमारी का इलाज करने में लगे तो हुए हैं...देखते हैं कब तक ये सब चल पाता है!
अरे यार, वह कार्टून याद आ गया... एक बंदा रेल की लाइन पर बैठ कर पेट की सफ़ाई कर रहा है ..साथ में फोन पर संबंधित अधिकारी को फोन पर कह रहा है कि देखिए...अभी राजधानी को पांच मिनट के बाद स्टेशन से छोडिएगा....यहां पर लाइन पर डिजिटल इंडिया का काम चल रहा है... इससे ध्यान आया कि एक श्रेणी आप चाहें तो यह भी मान लीजिए जिन्हें रेलवे की लाइन पर या इस के दस-बीस गज की हद में ही हाजत होती है..
२. वेस्टर्न कमोड
जी हां, आज से कुछ पच्चीस तीस पहले यह एक स्टेट्स सिंबल के तौर पर उभर कर सामने आया...लेकिन यहां भी भ्रांतियों ने पीछा नहीं छोड़ा ...हड़्डी के डाक्टर कहें कि इस तरह की विलायती सीट पर ही बैठिए लेकिन लोगों के पेट वहां भी न साफ होते ... अनेकों बाते ंसुनने को मिलीं...चुटकुले भी ..रिसर्च ेपेपर ही क्या, एक किताब लिखी जा सकती है इस विषय पर ..
क) जेट सहित
ख) जेट के बिना
ग) टॉयलेट पेपर की सुविधा सहित
घ) मग्गे की सुविधा सहित
ड) टॉयलेट शावर की सुविधा सहित (बेहतर नियंत्रण हेतु)
टॉयलेट पेपर से याद आई एक बात कि कुछ अरसा पहले एक उच्च सरकारी अधिकारी की पत्नी ने किसी जूनियर अफसर को टायलेट पेपर के रोल भिजवाने के लिए कह कर एक बड़ा पंगा ले लिया....जो हम लोगों को मीडिया से पता चला .. बात का बतगंड बन गया ..और साहब को आखिर सफ़ाई भी देनी पड़ी कि हम लोग टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल करते ही नहीं.. देखिए, आप कोई भी बात छोटी नहीं होती, कभी भी राई का पहाड़ बन जाता है...संभल कर रहिए!
मैं भी किस क्लासीफिकेशन के चक्कर में पड़ गया ...सीधी सी बात है कि अगर आप किसी पब्लिक प्लेस पर हैं और अगर आप को खुदा-न-करे टॉयलेट यूज़ करने की ज़रूरत आन पडे़, और अगर आप को यह बंद नहीं मिले तो आप सही मायनों में खुशकिस्मत हैं , और अगर खुला हो और चिटकनी भी हो तो समझिए आप की तो हो गई बल्ले बल्ले....समझ लीजिए आप ने आधी जंग जीत ली .. उस के बाद आप देखते हैं कि नल चालू है कि नहीं, अकसर यह चालू हालत में नहीं होता ... या मरियल सा चल रहा होगा ...जिस के मुताबिक आप मन ही मन कुछ स्ट्रेटेजिक प्लॉनिंग कर लेते हैं....और सब से नीचे हमारी प्रायर्टी में होता है फ्लश का चलना ..अगर टॉयलेट साफ मिला है तो हमें लगता है कि मेरा तो काम हो गया, ठीक है ...बाद में आने वाले की अपनी किस्मत ...कोई किसी के हाथ की लकीरें थोड़े न बदल सकता है .....
कुछ कुछ गाडि़यों में इतने सारे विकल्प रहते हैं ...ऊपरी श्रेणियों में ... कि आदमी असमंजस में पड़ जाता है कि किस सुविधा का इ्स्तेमाल करें और किस को बस ट्राई कर के अपना सामान्य ज्ञान थोड़ा बढ़ा लें....कईं बार ट्रेन में स्टील के लोटे को लोहे की जंजीर से बंधे देख कर झुंझलाहट तो होती है ..फिर वही वाट्सएप वाला चुटकुला याद कर मन हल्का हो जाता है ...
चुटकुला यह है जनाब .... किसी बंदे ने इसी जंजीर से बंधे हुए लोटे की शिकायत संबंधित अधिकारी को कर दी ...कि जंजीर बंधी होती है .. दिक्कत होती है ....और ऊपर से जंजीर भी छोटी ..परेशानी का सबब है इस तरह की जंजीर.....ऑफिस से जवाब आया.... महोदय, लोटा बंधा हुआ है ...आप तो नहीं!
देखिए, कितना बढ़िया समाधान घर बैठे ही बता दिया गया..
और हां, एक बात और ...बात से बात निकलती है ...उस ख़त का ध्यान आ गया जिस की वजह से रेलवे के डिब्बों में टॉयलेट बनवाने शुरू किए गये...एक बंदे ने रेलवे प्रशासन को यह पत्र लिख भेजा .. आप ने पहले ज़रूर कहीं पढ़ा होगा...
ग) मिक्सड़ श्रेणी...
यह एक चलताऊ काम है ..जब इंडियन स्टाईल पर स्टूल रख कर कुछ लोग बीमारी या किसी शारीरिक तकलीफ़ की वजह से पांच दस मिनट के लिए वेस्टर्न कमोड़ में बदल लेते हैं ....इन से कोई शिकायत नहीं भाई....इनसे पूरी सहानुभूति है ...इन की दिक्कत की वजह से ..
लेकिन यह जो दूसरी क्लास है न जो वेस्टर्न कमोड़ पर इंडियन पद्धति का लुत्फ़ उठाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते ....यह कृत्तिम बुद्धिजीवि क्लास है ... इस से संबंधित कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए...क्योंकि सर्वे में लोगों ने इस का जवाब नहीं दिया 😃😄 ...लेकिन इतना पता चला है कि कुछ लोग वेस्टर्न कमोड़ पर लगी गंदगी की वजह से और बीमारियों से बचने हुए सूट-बूट समेट इस पर विराजमान हो जाते हैं और फिर एक मिनट में ही चलती गाड़ी में गिर कर कम से कम हाथ पांव टुड़वाने के डर से आसन से नीचे उतर जाते हैं....अकसर ये ना इधर के रहते हैं न उधर के ....प्रोसेस बीच में आधी अधूरी छूट जाती है, सो अलग..
आप सोच रहे होंगे कि तुम इस मिक्सड़ श्रेणी के बारे में इतने विश्वास से यह कैसे लिख रहे हैं....जवाब सीधा है कि मैंने भी कभी न कभी बचपन में इसे ट्राई तो किया ही होगा....नहीं, किया होगा नहीं, मैं ब्लॉग में कभी झूठ नहीं बोलता.. फर्स्ट हैंड एक्सपियेंस है भाई.. खुश?.....मेरे मुंह से सच्चाई उगलवा के ..
बस, अब बंद करूं ....उस विज्ञापन का ध्यान आ रहा है जिस में एक आदमी अपने बेटे से पूछता है कि कौन सा टीवी लाएं....बेटा भी एक नंबरी ...बापू को कहता है कि आप ले लाओ कोई भी ... आपने कौन सा देखना है..!!
बापू कहता है कि यह क्या बात हुई ..टीवी खरीदूंगा लेकिन देखूंगा नहीं?...तब उस का लौंडा उस की आंखे खोलता है कि टॉयलेट बनवा तो ली है घर में, कभी गये हो उसमें?
आइए ... भारत के स्वच्छता अभियान मिशन को सफल बनानें में सहयोग करें...ध्यान आ रहा है सुलभ शौचालय का जिन को देखते ही कितना सुकून मिल जाता है कि अगर ज़रूरत पड़ेगी तो ये हैं ना......आशा है आप कम से कम इस बात पर तो मेरे से सहमत होंगे ही !!
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